गल्बा-ए-इश्क़ के गुल्ज़ारों में
खिला गुलाबी रुखस़ार तौबा
दमकता हुस्न बेहिसाब तेरा
रात में खिला महताब तौबा
खिज़ा रसीदा सहराओं में
हसरतें दिल-कुशा तौबा
आब-ए-जबीं पे परिसा जुल्फें
दमकते चेहरे पे नक़ाब तौबा
उससे मुलाक़ात यकीनन बाक़ी
है अधूरा ख्वाब 'निर्जन' तौबा
भरे हैं आब-ए-चश्म से सागर
आतिश आब-ए-तल्ख़ सी तौबा
इश्तियाक़ हसरत-ए-दीदार ऐसी
अफ़साने लिख जाएँ तो तौबा
लिखो इख्लास अब तुम मेरा
मैं कहता हूँ मेरी तौबा ....
गल्बा-ए-इश्क़ - प्यार का जूनून
गुलज़ार - उपवन
रुखस़ार - ग़ाल
खिज़ा - पतझड़
रसीदा - मिला है
सहरा - रेगिस्तान
दिल-कुशा - मनोहर
जबीं- माथा
आब-ए-चश्म-आंसू
आब-ए-तल्ख़ - शराब
आतिश-आग
इश्तियाक़-चाह, इच्छा, लालसा
हसरत-ए-दीदार - ललक , आरज़ू
अफ़साने - कहानियां, किस्से
इख्लास= प्यार, प्रेम
मन मोहक माधुर्यगुणीय प्रस्तुतीकरण जो मन की गांठें खोल दे !
जवाब देंहटाएंwah, bahut sunder likha h tushar bhai
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंनए शब्दों से परिचय भी हो गया .
वाह !!! बहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
शुक्रिया जनाब
हटाएंउर्दू समझ नहीं आती बॉस।
जवाब देंहटाएंभैया तभी तो नीचे मतलब भी लिखे हैं शब्दों के :)
हटाएंबेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंमनमोहक ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंभाई साहब वाअह्ह्ह्ह्ह
आप सभी मित्रों का शुक्रिया
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