गुरुवार, अगस्त 08, 2013

चलो मिल जाएँ

आज फिल्म 'दूसरा आदमी' का एक गाना 'क्या मौसम है' जिसे 'किशोर दा, लता दी और मोहम्मद रफ़ी साहब' ने गाया है सुन रहा था । सुनते सुनते मन में आया कि क्यों ना इसकी तर्ज़ को अपने शब्दों में दोस्तों के नाम कुछ लिख कर प्रस्तुत किया जाये बस वही छोटा सा प्रयास किया है । उम्मीद है कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई होगी । अब मेरे यार दोस्त ही बता सकते हैं के मुझे कहाँ तक सफलता मिली । 


एक जीवन है
वो मतवाले पल   
अरे फिर से वो, मुझे मिल जायें 
फिर से वो, कहीं मिल जायें 
कुछ साथी हैं 
मिलने के क़ाबिल
बस इसलिए हम, मिल जाएँ 
फिर से हम, कहीं, मिल जायें 

मिल के जब हम सभी, हँसते गाते हैं 
पड़ोस में चर्चे तब, हो जाते हैं 
हे हेहे हे 
ऐसा है तो, हो जाने दो, चर्चों, को आज
ये क्या कम है 
हम कुछ हमराही 
अरे मिल जाएँ, बहक जाएँ 
फिर से हम, कहीं, मिल जायें 

वो मस्तियाँ, यारों का प्यार 
हम हो चले, बेक़रार 
लो, हाथ में, शाम का, जाम लो 
बेवफ़ा किसी, सनम का, नाम लो 
दुनिया को अब खुश, नज़र आयें हम 
इतना पियें, के बहक, जाएँ हम 
के बहक, जाएँ हम, के बहक, जाएँ हम  
के बहक, जाएँ हम 

फिर से हम, कहीं मिल जायें 
ओ ओओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ 
फिर से हम, कहीं मिल जायें 
ओ ओ ओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ 

7 टिप्‍पणियां:

  1. निश्चित ही सुन्दर प्रयास!

    सुमधुर आवाज़!

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  2. मज़ेदार खूबसूरत अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

    जवाब देंहटाएं

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