कभी लगता है ज़िन्दगी थी वो
दिल ये मेरा कहे अजनबी थी वो
वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे
सोचा शरीक-ए-ग़म थी वो
कभी मुझसे मिलके हम थी वो
बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे
दिल से बेज़ार बेज़ुबान थी वो
आरज़ू तार तार बदगुमान थी वो
घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे
दिल से जुड़े लोगों में थी वो
मेरी आँखों में ज़िन्दगी थी वो
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाई-
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
बड़ी बदनसीब थी वो
जवाब देंहटाएंअमोल हीरा खो दी वो
तुषार भाई बहुत खूब
जवाब देंहटाएंभाई साहब वाह्ह
जवाब देंहटाएंक्या शब्दों के साथ जादूगरी प्रस्तुत किया है।
बहुत ही खूब