मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

एहसास

दिल में एहसास 
अब बदल रहे हैं
बदलते हालातों का असर है
शायद
यह सिलसिला यूँ ही हर दफा
ऐसे ही चलता रहेगा 
जब तक अंजाम  पर 
न पहुच जाये ज़िन्दगी 
अकेले बैठ कर देख रहा हूँ 
अपने हाथों की लकीरों को
कोई नहीं है यहाँ 
जो मेरी  पेशानी को चूम ले 
उस सोंधे से एहसास का 
दीदार करा दे 
कोई तो हो कहीं 
जो मेरे दिल को समझ सके 
दिलों में बदलते एहसास को 
अब क्या कहूँ 
वक़्त बदलता रहता है 
उम्र भी ढलती रहती है मुसलसल 
यह फलसफा मालूम है सबको 
मगर इस सूने से 
कमरे में बैठ कर
हर वक़्त यही सोचा करता हूँ 
यह सिलसिला कब तक और चलेगा
कोई शायद कभी तो आएगा और
फिर अपने सोच के गलियारों से 
मैं बहार आ पाउँगा
नहीं देखूंगा
अपने हाथ की रेखाओं को 
बस उसके एहसास में डूब जाऊंगा 
अपनी इस वीरान ज़िन्दगी से 
बे-परवाह हो जाऊंगा ...... 

Beyond Forgetting

I just felt that i need to share this with you...it is such a beautiful poem by Rolando Carbonnel which dates back in the 70s. I hope you'll like it...

For a moment I thought I could forget you. For a moment I thought
I could still the restlessness in my heart.
I thought the past could no longer haunt me nor hurt me.
How wrong I was!
For the past, no matter how distant, is as much a part of me as life itself.
And you are part of that life.
You are so much a part of me, of my dreams,
my early hopes, my youth and my ambitions
that in all my tasks I can't help but remembering you.
Many little delights and things remind me of you.
Yes, I came. And would my pride mock my real feelings?
Would the love song, the sweet and lovely smile on your face,
be lost among the deepening shadows?
I have wanted to be alone.
I thought I could make myself forget you in silence and in song...
And yet I remembered.
For who could forget the memory
of the once lovely, the once happy world such as ours?
I came because the song that I kept through the years is waiting to be sung.
I cannot sing it without you.
The song when sung alone will lose the essence of its tune,
because you and I had been one.
I have wanted this misery to end, because it is part of my restlessness.
Can't you understand?
Can't you define the depth and the tenderness of my feelings towards you?
Yes, can't you see how I suffer in this even darkness without you?
You went away because you mistook my silence for indifference.
But silence, my dear, is the language of my heart.
How could I essay the intensity of my love
when silence speaks a more eloquent tone?
But, perhaps, you didn't understand...
Remember, I came because the gnawing loneliness is there
and will not be lost until the music is sung, until the poem is heard,
until the silence is understood....until you come to me again.
For you alone can blend the music and memory
into one consuming ecstasy.
You alone...

पूर्ण पुरुष

मानव जन्म 
क्या
एक बुदबुदा है 
और 
उसका जीवन 
एक कर्म 
कर्म 
अपूर्व कर्म 
पर 
जब यह कर्म 
अधूरा रह जाता है 
किसी के प्रति 
तब
एक तड़प
मन मस्तिष्क 
में लिए 
वोह बुदबुदा 
नया रूप लिए 
फिर आता है 
क्यों क्या 
कर्म पूरा 
करने को 
या 
किसी को 
कर्म में लगाने को 
नहीं जानता
जीवन 
तू अपने नाम 
में पूर्ण है 
लेकिन 
आत्मा में 
पूर्ण नहीं 
वोह 
तुझसे
कहीं परे 
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है 
तुझ में 
छिपी है 
तुझे, शायद 
यश देने को 
उस की 
आवाज़ सुन 
उस की बात गुन
तभी तू 
पूर्ण जीवन 
कहलायेगा 
कहलायेगा 
पूर्ण पुरुष ||   

मंगलवार, अप्रैल 12, 2011

ज़ख़्म

कहते हैं 
समय हर ज़ख़्म 
को भर 
देता है 
पर, क्या ?
समय 
उस ज़ख़्म के 
निशानात को 
मिटा भी देता है ?
ऐसा 'निर्जन'
नहीं सुना है 
समय
तू अगर 
ज़ख़्म भरता है 
तो उस पर
एक एहसान 
और कर 
उसके निशानात 
को भी 
मिटा दे 
तब सब कहेंगे 
समय बलवान 
ही नहीं 
ग़मसार भी है .....

एक हकीकत अधूरा सपना

मैं
आया
एक अपरिचित
से मिलने
अपरिचित, अपरिचित
नहीं था
वो था मेरा
जन्म भर का
सपना - सपना
जब सपना
सच
हुआ था
उससे
मिलकर तब
एक अपरिचित
सपने ने
हकीकत में
मिलने से
इनकार
किया था
क्यों ?
क्या वो
अपने को
कभी खोना
नहीं
चाहता था ?
या
फिर वो
अपने,
अतीत में
लौटने को
तयार
नहीं था ?
ऐसी
पूर्णिमा, जिसको
खोया
उसने, अपने
सुख को
और अब
अमावस्या
वो दिवाली
उसे
मिलने आई
ऐसे मिली, वो
प्रथम
परिचय,  में
उस
चिर परिचित
अपने से
अपने से
अपने
'निर्जन' से ....

मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

आंसू

आँखों से छूटा एक आंसू 
घरती पर जब गिर पड़ा
पछताया क्यों बिछड़ा नैनों से  
घबराया मैं क्यों टूट गया
समझ बूझ कर सोया होता 
क्यों अपनों से छूट गया 
आँख का वोह मोती आज 
मिटटी में खो गया 
आँखों से निकला एक आंसू 
अस्तित्वा विहीन हो गया

जीवन क्या है ?

कोई मुझे समझा दे
जीवन क्या है ?
विष का प्याला 
जीवन क्या है ?
बहता दरिया 
जीवन क्या है ?
मृग तृष्णा 
जीवन क्या है ?
सूनेपन सा 
क्या, कभी किसी ने जाना है ?
क्या इसको पहचाना  है ?
जीवन क्या है ?
दर्द का प्याला 
जीवन क्या है ?
एक दहकती ज्वाला 
एक दिन सबको भस्म हो जाना है
जीवन क्या है ?
एक सुन्दर धोखा 
जीव उसमें फंसा होता है 
धोखा खाना 
धोखा देना
क्यों यह अजब तमाशा है 
कभी कुछ पाता
कभी कुछ खोता 
क्यों जीव माया का दीवाना है ?
जीवन क्या है ?
कोई मुझे समझा दे....

बुधवार, मार्च 30, 2011

पागल सी लड़की

गज़ब पागल सी एक लड़की 
मुझे हर वक़्त कहती है 
मुझे तुम याद करते हो ?
तुम्हे मैं याद आती हूँ ?
मेरी बातें सताती हैं ?
मेरी नींदें जगाती हैं ?
मेरी आंखें रुलाती हैं ?
सर्दी की सुनहरी धुप में क्या 
तुम अब भी टहलते हो ?
उन खामोश रास्तों से 
क्या तुम अब भी गुज़रते हो ?
ठीठुरती सर्द रातों में क्या 
तुम अब भी छत पर बैठते हो ?
फ़लक पे चमकते तारों को 
क्या मेरी बातें सुनाते हो ?
मई की तेज़ गर्मी में 
क्या अब भी गोला खाते हो ?
वोह छम छम बारिशों में क्या
तुम अब भी बेख़ौफ़ नहाते हो ?
यूँ मशरूफ होकर भी
क्या तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई ?
या मेरी याद आते ही 
तुम्हारी आँख भर आई ?
अजब पागल सी लड़की है 
यह क्या सवाल करती है
जवाब उसे मैं दूँ क्या ?
बस इतना ही कहेगा 'निर्जन'
तू कितनी बेवक़ूफ़ लड़की है 
जो यह सवाल करती है 
भला इस जिस्म से वो जान 
कभी जुदा हो सकती है 
अगर यह जिस्म है मेरा 
तो सासें बन तू बहती है
तुझे मैं भूलूंगा कैसे 
तू पल पल साथ रहती है 
अजब पागल सी लड़की है 
गज़ब पागल सी लड़की है
क्या क्या सवाल करती है 
क्या क्या सवाल करती है ......

 

मुझको

शब् भर ग़म-ए-दोरान में फंसा लिया खुद को 
यह जिंसी मोहब्बत ने बहका दिया मुझको
अब उस अंजुमन से क्या गिला करना 
खुद अपनी ही खुदी से गिरा दिया खुद को 
सितम अब यह नही के वो यार क्या सोचेगा 
गिरा हूँ नज़र से अपनी उठा सका न खुद को 
यह जज़्बात-ए-फ़हाशी तेरी खातिर थाम रखे थे 
यह जिंसी कशिश कहीं बर्बाद न कर दे मुझको 
मगर ए यार ग़ाफिल ही सही फ़रहात से 
पर बे-ज़मीर नही ए 'निर्जन'
मेरे रब की रहमतों ने बचा लिया मुझको 

[ दोरान = During, जिंसी = Sex Appeal, ग़ाफिल = Reckless/Unaware/Absent Minded, फ़रहात = Pleasure, फ़हाशी = Obscenity ]

मंगलवार, मार्च 29, 2011

कुछ इस तरह

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे 

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे

एक कतरा भी मेरे ख्याल का बाकी न रहे
चांदनी शब् में मेरे निशानात भी  बाकी न रहे
मेरा हर रोज़ तेरे ख्वाबों में आना न रहे
हर तरफ प्यार के अपने तू दीवारें उठा दे

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे

आज की रात तू मुझको अपनी यादों से भुला दे
इश्क की वोह महकती खुशबू भी मिटा दे
मेरे लफ़्ज़ों में है जो दर्द वोह कभी नहीं दिखता
सुन मेरी तू गुज़ारिश इस दर्द की दावा दे

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे....

सोमवार, मार्च 28, 2011

चलो छोड़ो

कभी कुछ बातें कह देना
और कहना चलो छोड़ो 
कभी कुछ कहते कहते, 
कह देना, चलो छोड़ो
मुझे क्यों खास लगती है, 
अदाएं यह जो हैं तेरी 
कभी सोचा के कह डालूं
कभी सोचा चलो छोड़ो
जताना किस को चाहता हूँ ?
जो कह देगी चलो छोड़ो
यह रिश्ता तुझसे कैसा है ? 
बताता हूँ ! चलो छोड़ो
यह सोचा साथ होता मैं 
फिर सोचा चलो छोड़ो
मेरी बेक़रारी का आलम क्या ?
किसे जाकर बताऊँ मैं 
था यह सोचा तुझे बोलूं 
फिर सोचा चलो छोरो 
ख्वाइश एक थी मेरी 
के जी भर के तुझे देखूं 
तेरी तस्वीर बनता मैं 
फिर सोचा चलो छोड़ो
जो तू रूठ जाएगी 
तो कुछ लिख कर मना लूँगा
पर ऐसे मनाने पर भी कहती हो, चलो छोड़ो
रहेगी उम्मीद जब तक यह हमारे एक होने की 
डर है तुम यह कह न दो 
चलो उम्मीद को छोड़ो
मैं कुछ सोचूं , के कह दूंगा
वोह कह देती चलो छोड़ो
यह किस्सा यूँ ही चलता था 
यह किस्सा यूँ ही चलता है 
मैं कहता हूँ ज़रा सुन ले 
वोह कहती है चलो छोड़ो... चलो छोड़ो... चलो छोड़ो

बातें

चल बातें करें इतनी 
चल बातें करें कितनी 
चल बातें करें उतनी 
के 
फलक की गोद में सिमटे सितारें थक के सो जाएँ 
ज़मीन पर बिखरे मंज़र सब फकत हैरान रह जाएँ 
उतरती अप्सराएँ शोर करना ही भुला बैठें 
हवाएँ चलती थम जाएँ  
झरने बहते रुक जाएँ
चल बातें करें इतनी ...
बिना मकसद बिना मतलब
चल बस बोलते जाएँ 
तू कहती रह मैं सुनता हूँ
और यूँ वक़्त भी थम जाये
चल बातें करें इतनी ....
उठ कर बस चलूँ अब तो 
तेरे लिए 
यह सोचना दुश्वार  हो जाये 
और ऐसे में अचानक से 
तेरे हसींन लबों से यों 
मोहब्बत का इकरार हो जाये
चल बातें करें इतनी 
के तुझको प्यार हो जाये 
के तुझको प्यार हो जाये.....

गुफ़्तगू














साथ जिसके सजाये थे ख्व़ाब कितने
अब मिलता है वो सिर्फ़ ख़्वाबों में

आहट से जिसकी मचल उठता था दिल
अब सुनाई देता है वो सिर्फ़ आहटों में

साथ बिताये थे जिसके हसीन पल कई
अब गुज़रते हैं बन याद वो रातों में

बातें साथ करते थे जिसके बेहिसाब
अब रह गया है हिसाब सिर्फ यादों में

राहों से चुने थे जिसकी ख़ार हमने
छोड़ गया है वो 'निर्जन' अब काँटों में

चाहत में जिसकी हो रही है ये गुफ़्तगू
वो शख्स मिलेगा अब सिर्फ चाहतों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

Sath jiske sajaye the khwaab kitne
ab milta hai wo sirf khwaboon mein

Aahat se jiski machal uthta tha dil
Ab sunai deta hai wo sirf aahaton mein

Sath bitaye the jiske haseen pal kayi
Ab guzarte hain ban yaad wo raaton mein

Baatein sath karte the jiske behisab
Ab reh gaya hai hisab sirf yaadon mein

Raahon se chune the jiski khaar humne
Chhod gaya hai wo 'nirjan' ab kaanton mein

Chahat mein jiski ho rahe hain ye guftgoo
Wo shakhs milega ab sirf chahaton mein

-- Tushar Raj Rastogi ---

मोहब्बत

उस दिन रो रो कर कहा उसने
मुझे तुमसे मोहब्बत है 'निर्जन'
जो मोहब्बत ही करनी थी
तो फिर इतना रोये क्यों ??

सोमवार, मार्च 14, 2011

धडकन

यादों में न ढूँढ मुझे 
मैं तेरे दिल की गहराईयों में मिल जाऊंगा 
जो तमन्ना हो अगर मिलने की
तो ज़रा हाथ रख सीने पर 
महसूस करेगी तो तेरी धडकनों में मिल जाऊंगा ...

शाम

हर एक शाम आती है तेरी यादें लेकर 
हर एक रात जाती है तेरी यादें देकर
उस शाम की अब भी तालाश है मुझे
जो शायद आये तुझे अपने साथ लेकर ... 

सफ़र

मंज़िल कितनी है दूर अभी,
लम्बा मेरा सफ़र बहुत है
उस मासूम दिल को मेरे,
देखो तो मेरी फ़िक्र बहुत है
जान ले लेती तन्हाई मेरी,
सोचा मैंने इस पर बहुत है
सलामत है वजूद 'निर्जन',
उनकी दुआ में असर बहुत है...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक दोस्त








आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

शाम-ए-ज़िन्दगी फिर ढली सी है
ख़लिश ये दिल में फिर बढ़ी सी है

तेरी ख्वाहिश दिल में जगी सी है
एक आग ख्वाहिशों में लगी सी है

कभी किसी रोज़ तो बहारें आएँगी
साथ अपने हज़ार खुशियाँ लायेंगी

बस ये सोच आँख अभी लगी सी है
सपनो में मुझे ज़िन्दगी मिली सी है

आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

उसकी यादें














ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?

जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?

क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?

क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?

क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?

क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?

गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?

वो बिन तेरे जो खुश है अगर 
फिर 'निर्जन' हर पल क्यों मरता है ?

मंगलवार, सितंबर 14, 2010

The Scars of Love

do the scars of love ever really heal
do they change your mind about the way you feel
do they stay forever locked inside your mind
do they ever leave and leave the past behind
do they stay a lifetime will they ever go
do they ever heal will we ever know