ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?
जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?
क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?
क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?
क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?
क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?
गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?
वाह..बहुत भावपूर्ण प्रवाहमयी रचना...
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