बुधवार, मार्च 30, 2011

पागल सी लड़की

गज़ब पागल सी एक लड़की 
मुझे हर वक़्त कहती है 
मुझे तुम याद करते हो ?
तुम्हे मैं याद आती हूँ ?
मेरी बातें सताती हैं ?
मेरी नींदें जगाती हैं ?
मेरी आंखें रुलाती हैं ?
सर्दी की सुनहरी धुप में क्या 
तुम अब भी टहलते हो ?
उन खामोश रास्तों से 
क्या तुम अब भी गुज़रते हो ?
ठीठुरती सर्द रातों में क्या 
तुम अब भी छत पर बैठते हो ?
फ़लक पे चमकते तारों को 
क्या मेरी बातें सुनाते हो ?
मई की तेज़ गर्मी में 
क्या अब भी गोला खाते हो ?
वोह छम छम बारिशों में क्या
तुम अब भी बेख़ौफ़ नहाते हो ?
यूँ मशरूफ होकर भी
क्या तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई ?
या मेरी याद आते ही 
तुम्हारी आँख भर आई ?
अजब पागल सी लड़की है 
यह क्या सवाल करती है
जवाब उसे मैं दूँ क्या ?
बस इतना ही कहेगा 'निर्जन'
तू कितनी बेवक़ूफ़ लड़की है 
जो यह सवाल करती है 
भला इस जिस्म से वो जान 
कभी जुदा हो सकती है 
अगर यह जिस्म है मेरा 
तो सासें बन तू बहती है
तुझे मैं भूलूंगा कैसे 
तू पल पल साथ रहती है 
अजब पागल सी लड़की है 
गज़ब पागल सी लड़की है
क्या क्या सवाल करती है 
क्या क्या सवाल करती है ......

 

मुझको

शब् भर ग़म-ए-दोरान में फंसा लिया खुद को 
यह जिंसी मोहब्बत ने बहका दिया मुझको
अब उस अंजुमन से क्या गिला करना 
खुद अपनी ही खुदी से गिरा दिया खुद को 
सितम अब यह नही के वो यार क्या सोचेगा 
गिरा हूँ नज़र से अपनी उठा सका न खुद को 
यह जज़्बात-ए-फ़हाशी तेरी खातिर थाम रखे थे 
यह जिंसी कशिश कहीं बर्बाद न कर दे मुझको 
मगर ए यार ग़ाफिल ही सही फ़रहात से 
पर बे-ज़मीर नही ए 'निर्जन'
मेरे रब की रहमतों ने बचा लिया मुझको 

[ दोरान = During, जिंसी = Sex Appeal, ग़ाफिल = Reckless/Unaware/Absent Minded, फ़रहात = Pleasure, फ़हाशी = Obscenity ]

मंगलवार, मार्च 29, 2011

कुछ इस तरह

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे 

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे

एक कतरा भी मेरे ख्याल का बाकी न रहे
चांदनी शब् में मेरे निशानात भी  बाकी न रहे
मेरा हर रोज़ तेरे ख्वाबों में आना न रहे
हर तरफ प्यार के अपने तू दीवारें उठा दे

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे

आज की रात तू मुझको अपनी यादों से भुला दे
इश्क की वोह महकती खुशबू भी मिटा दे
मेरे लफ़्ज़ों में है जो दर्द वोह कभी नहीं दिखता
सुन मेरी तू गुज़ारिश इस दर्द की दावा दे

कुछ इस तरह अपनी आँखों के अश्क
मेरी आँखों में सिला दे 
कुछ इस तरह मेरी यादों 
का हर लम्हा तू जलादे....

सोमवार, मार्च 28, 2011

चलो छोड़ो

कभी कुछ बातें कह देना
और कहना चलो छोड़ो 
कभी कुछ कहते कहते, 
कह देना, चलो छोड़ो
मुझे क्यों खास लगती है, 
अदाएं यह जो हैं तेरी 
कभी सोचा के कह डालूं
कभी सोचा चलो छोड़ो
जताना किस को चाहता हूँ ?
जो कह देगी चलो छोड़ो
यह रिश्ता तुझसे कैसा है ? 
बताता हूँ ! चलो छोड़ो
यह सोचा साथ होता मैं 
फिर सोचा चलो छोड़ो
मेरी बेक़रारी का आलम क्या ?
किसे जाकर बताऊँ मैं 
था यह सोचा तुझे बोलूं 
फिर सोचा चलो छोरो 
ख्वाइश एक थी मेरी 
के जी भर के तुझे देखूं 
तेरी तस्वीर बनता मैं 
फिर सोचा चलो छोड़ो
जो तू रूठ जाएगी 
तो कुछ लिख कर मना लूँगा
पर ऐसे मनाने पर भी कहती हो, चलो छोड़ो
रहेगी उम्मीद जब तक यह हमारे एक होने की 
डर है तुम यह कह न दो 
चलो उम्मीद को छोड़ो
मैं कुछ सोचूं , के कह दूंगा
वोह कह देती चलो छोड़ो
यह किस्सा यूँ ही चलता था 
यह किस्सा यूँ ही चलता है 
मैं कहता हूँ ज़रा सुन ले 
वोह कहती है चलो छोड़ो... चलो छोड़ो... चलो छोड़ो

बातें

चल बातें करें इतनी 
चल बातें करें कितनी 
चल बातें करें उतनी 
के 
फलक की गोद में सिमटे सितारें थक के सो जाएँ 
ज़मीन पर बिखरे मंज़र सब फकत हैरान रह जाएँ 
उतरती अप्सराएँ शोर करना ही भुला बैठें 
हवाएँ चलती थम जाएँ  
झरने बहते रुक जाएँ
चल बातें करें इतनी ...
बिना मकसद बिना मतलब
चल बस बोलते जाएँ 
तू कहती रह मैं सुनता हूँ
और यूँ वक़्त भी थम जाये
चल बातें करें इतनी ....
उठ कर बस चलूँ अब तो 
तेरे लिए 
यह सोचना दुश्वार  हो जाये 
और ऐसे में अचानक से 
तेरे हसींन लबों से यों 
मोहब्बत का इकरार हो जाये
चल बातें करें इतनी 
के तुझको प्यार हो जाये 
के तुझको प्यार हो जाये.....

गुफ़्तगू














साथ जिसके सजाये थे ख्व़ाब कितने
अब मिलता है वो सिर्फ़ ख़्वाबों में

आहट से जिसकी मचल उठता था दिल
अब सुनाई देता है वो सिर्फ़ आहटों में

साथ बिताये थे जिसके हसीन पल कई
अब गुज़रते हैं बन याद वो रातों में

बातें साथ करते थे जिसके बेहिसाब
अब रह गया है हिसाब सिर्फ यादों में

राहों से चुने थे जिसकी ख़ार हमने
छोड़ गया है वो 'निर्जन' अब काँटों में

चाहत में जिसकी हो रही है ये गुफ़्तगू
वो शख्स मिलेगा अब सिर्फ चाहतों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

Sath jiske sajaye the khwaab kitne
ab milta hai wo sirf khwaboon mein

Aahat se jiski machal uthta tha dil
Ab sunai deta hai wo sirf aahaton mein

Sath bitaye the jiske haseen pal kayi
Ab guzarte hain ban yaad wo raaton mein

Baatein sath karte the jiske behisab
Ab reh gaya hai hisab sirf yaadon mein

Raahon se chune the jiski khaar humne
Chhod gaya hai wo 'nirjan' ab kaanton mein

Chahat mein jiski ho rahe hain ye guftgoo
Wo shakhs milega ab sirf chahaton mein

-- Tushar Raj Rastogi ---

मोहब्बत

उस दिन रो रो कर कहा उसने
मुझे तुमसे मोहब्बत है 'निर्जन'
जो मोहब्बत ही करनी थी
तो फिर इतना रोये क्यों ??

सोमवार, मार्च 14, 2011

धडकन

यादों में न ढूँढ मुझे 
मैं तेरे दिल की गहराईयों में मिल जाऊंगा 
जो तमन्ना हो अगर मिलने की
तो ज़रा हाथ रख सीने पर 
महसूस करेगी तो तेरी धडकनों में मिल जाऊंगा ...

शाम

हर एक शाम आती है तेरी यादें लेकर 
हर एक रात जाती है तेरी यादें देकर
उस शाम की अब भी तालाश है मुझे
जो शायद आये तुझे अपने साथ लेकर ... 

सफ़र

मंज़िल कितनी है दूर अभी,
लम्बा मेरा सफ़र बहुत है
उस मासूम दिल को मेरे,
देखो तो मेरी फ़िक्र बहुत है
जान ले लेती तन्हाई मेरी,
सोचा मैंने इस पर बहुत है
सलामत है वजूद 'निर्जन',
उनकी दुआ में असर बहुत है...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक दोस्त








आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

शाम-ए-ज़िन्दगी फिर ढली सी है
ख़लिश ये दिल में फिर बढ़ी सी है

तेरी ख्वाहिश दिल में जगी सी है
एक आग ख्वाहिशों में लगी सी है

कभी किसी रोज़ तो बहारें आएँगी
साथ अपने हज़ार खुशियाँ लायेंगी

बस ये सोच आँख अभी लगी सी है
सपनो में मुझे ज़िन्दगी मिली सी है

आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

उसकी यादें














ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?

जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?

क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?

क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?

क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?

क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?

गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?

वो बिन तेरे जो खुश है अगर 
फिर 'निर्जन' हर पल क्यों मरता है ?

मंगलवार, सितंबर 14, 2010

The Scars of Love

do the scars of love ever really heal
do they change your mind about the way you feel
do they stay forever locked inside your mind
do they ever leave and leave the past behind
do they stay a lifetime will they ever go
do they ever heal will we ever know

सोमवार, अगस्त 30, 2010

August

What wondrous life is this I lead!
Ripe love drops about my way;
The luscious clusters of her hug
Upon me do crush her bliss;
Your soft hands mesmerizing
Into my hands themselves do reach;
Stumbling on thoughts as I pass
Ensnared with flowers, I fall in her arms.

सोमवार, अगस्त 09, 2010

अंतर की वेदना












अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं

दुःख की संयोजना का
कोई पंथ नहीं

जो मेरा है
वो मेरा सर नहीं

जिसमें जीवित हूँ
वो मेरा संसार नहीं

रक्त रंजित अधर हैं
फिर भी मैं गा रहा हूँ

रुधिर बहते नयन हैं
फिर भी मुस्करा रहा हूँ

व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ
आक्रोश हूँ पर मौन हूँ

सत्य सह मैं
सत्य पर मिथ्या रहा हूँ

अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं अब

'निर्जन' जो होता है
अभिव्यक्त समक्ष वो

सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, अगस्त 03, 2010

अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...











 
बरसों के बाद देखा, एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है, क्या नाम था भला सा

तेवर खींचे खींचे से, आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी, लहजा थका थका सा

अलफ़ाज़ थे के जुगनू, आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में, नहरों का रास्ता सा

ख्वाबों में ख्वाब उस के, यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो, जैसे के रतजगा सा

पहले भी लोग आये, कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर वजह से लेकिन, औरों से था जुदा सा

अगली मोहब्बतों ने, वो नामुरादियाँ दी
ताज़ा रफ़ाक़तों से, था दिल डरा डरा सा

तेवर थे बेरुखी के, अंदाज़ दोस्ती सा
वो अजनबी था लेकिन, लगता था आशना सा

कुछ यह के मुद्दतों से, मैं भी नहीं था रोया
कुछ ज़हर में बुझा था, अहबाब का दिलासा

फिर यूँ हुआ के सावन, आँखों में आ बसा था
फिर यूँ हुआ के जैसे, दिल भी था आबला सा

अब सच कहूँ तो यारों, 'निर्जन' खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत, एक वाकेया ज़रा सा

बरसों के बाद देखा, एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है, क्या नाम था भला सा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

खुशियों के चार पल















खुशियों के चार पल, मैं सदा ढूँढता रहा
क्या ढूँढना था मुझको, मैं क्या ढूँढता रहा

बेईमानों के शहर में, मैं अदना सा शख्स़
लेने को सांस थोड़ी, बस हवा ढूँढता रहा

मालूम था के उसकी, नहीं है कोई रज़ा
फिर भी मैं वहां, उसकी रज़ा ढूँढता रहा

मालूम था कि मुझे, नहीं मिल सकेगा वो
फिर भी मैं उसका, पता सदा पूछता रहा

फिर यूँ हुआ के उस से, मुलाक़ात हो गई
अब ताउम्र 'निर्जन', अपना पता पूछता रहा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, अगस्त 02, 2010

ये रात
















अलग सा एहसास, दिलाती है ये रात
दिलासा देती है, पास बुलाती है ये रात
लिपट के सोने को जी करता है इसके साथ
हालात हैं कि दिन की रौशनी से डरता हूँ
डर लगता है कि टूट न जाएँ ये हसीं ख्वाब
डर लगता है कि कोई मुझे यूँ देख न ले
देख ना ले कि मैं आज भी अकेली है मेरी रात 
तेरी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए साथ
उम्मीद है बस दिल में यादें सँवारने के लिए पास
कभी तो मिलेगी कहीं तो मिलेगी वो मुझसे
यकीन अपने से ज्यादा 'निर्जन' उस पर क्यों है ?
आकर देख ज़रा कि भरोसा ज्यों का त्यों है
अलग सा एहसास दिलाती है यह रात