सोमवार, अगस्त 02, 2010

ये रात
















अलग सा एहसास, दिलाती है ये रात
दिलासा देती है, पास बुलाती है ये रात
लिपट के सोने को जी करता है इसके साथ
हालात हैं कि दिन की रौशनी से डरता हूँ
डर लगता है कि टूट न जाएँ ये हसीं ख्वाब
डर लगता है कि कोई मुझे यूँ देख न ले
देख ना ले कि मैं आज भी अकेली है मेरी रात 
तेरी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए साथ
उम्मीद है बस दिल में यादें सँवारने के लिए पास
कभी तो मिलेगी कहीं तो मिलेगी वो मुझसे
यकीन अपने से ज्यादा 'निर्जन' उस पर क्यों है ?
आकर देख ज़रा कि भरोसा ज्यों का त्यों है
अलग सा एहसास दिलाती है यह रात

4 टिप्‍पणियां:

  1. इंतज़ार की बेकरारी तब और बढ़ जाती है जब कोई उम्मीद न हो इसके कट जाने की -

    न कोई वक्त ,न उम्मीद ,न कोई वायदा ,

    खड़े थे रहगुज़र पर करना था ,तेरा इंतज़ार .

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  2. रात का मानवीकरण किया है आपने इस रचना में .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना

    मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

    जवाब देंहटाएं
  4. इस आह पर वाह कैसे लिखूँ .....।
    take care
    God Bless U

    जवाब देंहटाएं

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