अपनी बात को मैं इन दो पंक्तियों के माध्यम से आरम्भ कर रहा हूँ
कुछ ज़बानों पर हैं ताले, कुछ तलवों में हैं छाले
पर कहते हैं कहने वाले, के स्वराज चल रहा है
किस हाल से हमारा यह समाज गुज़र रहा है ?
'सब चलता है' के नारे पर स्वराज जल रहा है
स्वराज की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज भारत की पीड़ित और त्रस्त आम जनता देश में बदलाव की आस लगाये मुंह ताकती बैठी है | हिंसा, गरीबी, भुखमरी, शोषण, महंगाई, बेरोज़गारी, उंच नीच, नक्सलवाद, आर्थिक विषमता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं की आग में जनता फतिंगों की तरह भुन रही है और हमारे लोकशाही पहलवान उन्हें दिन-बा-दिन और ज्यादा गर्म करते जा रहे हैं |
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और जनक माननीय श्री अरविन्द कजरीवाल द्वारा दिखाई गई स्वराज की तस्वीर ने लोगों के दिलों में एक क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित की थी | उनके अनुसार नए स्वराजगर्भी भारत में भ्रष्टाचारियों की खिलाफ जेल का प्रावधान होगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल होगा, चोर बाजारियों और बेईमानों की संपत्ति ज़ब्त होगी, रिश्वतखोरों को नौकरियों से बर्ख़ास्त किया जायेगा, कोर्ट में केस आने पर फटाफट सुनवाई होगी और जल्द से जल्द फैसलें दिए जायेंगे, पुलिसिया गुंडाराज पर अंकुश कसा जायेगा, व्यापारियों को एक सम्मान जनक स्थान दिया जायेगा, महिलाओं की रक्षा और सुरक्षा सर्वोपरि होगी और भी न जाने ऐसी कितनी ही बातें जो जनता का दिल बहलाने को ग़ालिब-ए-ख्याल बन खुशियों का एक सब्ज़बाग़ बनाने में सफल रहीं | आम आदमी के भीतर एक निश्चय, विश्वास और आत्मसम्मान ने जन्म लिया और लोग स्वराज के इस सपने से जुड़ते चले गए |
उधर दूसरी ओर स्वराज के अंतर्गत पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज में कहा गया है के -
- देश की राजनीति को बदला जायेगा आम जनता को अपने साथ जोड़ा जायेगा
- भ्रष्टाचार को दूर करने का नियंत्रण सीधा जनता के हाथ में होगा
- सामाजिक भेद भाव, छुआ छूत और अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा
- धर्म के नाम पर समाज नहीं बंटने दिया जायेगा
- आर्थिक और सामाजिक नीतियों में बदलाव होगा
- हर एक विषय में जनता की भागीदारी को महत्त्व दिया जायेगा
- बेहतरीन स्वस्थ्य एवं शिक्षा योजनायें बनाई जायेंगी
- जनता को ख़ारिज करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिजेक्ट )
- जनता को मन्सूख करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिकॉल )
- जनता को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार होगा ( राईट तो स्पीक )
आम आदमी पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज का सबसे अभिन्न कदम है प्रत्याशीयों की चुनावी प्रक्रिया जिसमें कहा गया है के चुनाव में खड़ा होने वाला उम्मीदवार - आम जनता में से ( फ्रॉम दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के द्वारा ( बाय दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के साथ (विथ दा कॉमन पीपल) की पद्दति के द्वारा चयनित होगा | यहीं पर पार्टी और आम आदमी की जीत होती है |
परन्तु दुर्भाग्यवश पिछले कुछ समय से पार्टी की कुछ फैसलों और कार्यप्रणाली को लेकर और स्वराज के मुखौटे को लेकर अनेक सवाल खड़े होते जा रहे हैं | पार्टी की कारगुजारियों और हुक्मराना रवैये को लेकर आम आदमी के दिल में पार्टी और स्वराज के प्रति सवालिया निशान लगते जा रहे हैं | जैसे -
- क्या 'आप' भी राजनीति और राजनेताओं का शिकार हो रही है ?
- क्या 'आप' का संभावित और तथाकथित स्वराजनामा अपने लक्ष्य से भटक रहा है ?
- क्या 'आप' अपनी दूरदर्शिता का स्वयं क़त्ल करने में जुट गई है ?
- क्या 'आप' को साख चाहियें या चुनावी राख चाहियें ?
- क्या 'आप' बिकाऊ उम्मीदवारों को अपने स्तम्भ बनाकर खड़ा करना चाहती है ?
- क्या 'आप' को जीताऊ, नामी, और सरनामी उम्मीदवारों की ज़रुरत है ?
- क्या 'आप' की नीतियां और आदर्श बेमानी हो रहे हैं ?
- क्या 'आप' में आम जनता का महत्त्व कम हो रहा है ?
- आज के परिवेश में 'आप' में आम आदमी के लिए स्थान कहाँ है ?
- क्या 'आप' आज भी आम आदमी की आवाज़ है ?
- क्या 'आप' को कुछ एक चंद लोग मिलकर चलने लगे हैं ?
- क्या 'आप' में सरगना और गुटबाज़ी हो रही है ?
- क्या 'आप' में भाई भतीजावाद जन्म ले रहा है ?
- क्या 'आप' में कार्यकर्ताओं की अहमियत कम हो रही है ?
- क्या 'आप' में आला कमान वाली स्तिथि बन्ने लगी है ?
- क्या 'आप' भेड़ियों और भेड़चाल के दवाब में आ रही है ?
- क्या 'आप' अपनी छवि के साथ समझौता करने पर आमादा है ?
मेरा इन सवालों को उठाने का उद्देश्य भी यही है के यह सवाल आप तक पहुंचे और आप अपने स्वीकारोक्ति / सुझाव / टिप्पणियां हमारे इस अभियान तक पहुचाएं जिससे हम स्वराज की एक साकारात्मक छवि रखने में कायम रह सकें | इस लेख के ज़रिये मैं सभी से पुरजोर अनुरोध करता हूँ के ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे इस आन्दोलन से जुड़ें और अपना वक्तव्य हम तक पहुंचाएं और आज एक आम नागरिक के नज़रिए से हमें बतलाएं के आपको कुछ रसूकदारों की मनमानी का राज चाहियें, आलाकमान और उनके पप्पूओं की सांठ-गाँठ चाहियें, गुंडाराज चाहियें या फिर स्वराज चाहियें? चुनना है आपको क्योंकि यह ज़िम्मेदारी है आम आदमी की क्योंकि देश है आपका और भविष्य भी है आपका | इसे बिगड़ना और बनाना दोनों जनता के हाथों में है | इसलिए खुलकर सामने आयें और अपने विचार प्रकट करें |
आखिर में अपनी बात को विराम देने के लिए मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा के
सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना, बाज़ू-ए-क़तील में है
वादा-ए-स्वराज अब, रह न जाए बातों में
खून तो खौला हुआ, अब सभी के दिल में है
वक़्त आने दो बता देंगे, तुम्हे ए अहमकों
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है
जय स्वराज | जय भारत माता | जय हिंदी
बहुत ही संवेदन शील विषय पर लिखा है आपने |
जवाब देंहटाएंयह लेख सोचने पर बाध्य करता है |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (27-06-2013) को बहुत बंट चुके हम अब और न बांटो ( चर्चा - 1288 )
मे "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अभी तो आप पार्टी का राजनैतिक आरम्भ भी नहीं हुआ है,ऐसे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी ही होगी,बहरहाल एक अच्छे विषय पर सुन्दर लेख आपका आभार तुषार जी।
जवाब देंहटाएंविचारणीय है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,विचारणीय प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: एक हमसफर चाहिए.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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