गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

मेरे सवाल

कभी कभी सोचता हूँ
क्या इंसान इतना मसरूफ़ भी हो सकता है
के वो हँसना मुस्कराना तक भूल जाये
किसी अपने अज़ीज़ को याद करने के लिए भी
उसके पास वक़्त नहीं होता
क्या आज रिश्तों को भी धोया जाने लगा है ?
क्या रिश्तों की वोह गर्माहट जो मुझे महसूस होती है
उसके दिल में भी कोई ऐसी आग से तपिश होती होगी ?
कुछ पल दिल इन बातों को नहीं मानता
लेकिन
कुछ पल बाद खुद ही जवाब दे देता है
शायद यही सच है...यही ज़िन्दगी का कड़वा सच है
आज के दौर में यही मुकाम रह गया है रिश्तों का...

तेरी गुलाब की पंखुडियां...

आज तक महकती हैं
तेरे दिए गुलाब की कलियाँ
मेरे अंतरंग अंतर्मन में
खुलती हथेलियों में
जब गुलाब की पंखुडियां
अलसाई सी आंख खोलती हैं
तब मदमाती, लहराती,
मदहोश कर जाती 
महकती गुलाब की भीनी सुगंधी सी 
तू आती है
हर सांझ
बनते हैं कई किरदार मेरी कल्पनाओं में
बनते हैं, बिगड़ते हैं
रह जाती है तू
और वही
तेरी गुलाब की पंखुडियां...

उस दिन

उस रोज़
इन गुलाबों की महक यूँ न होगी
तेरी शोख हंसी की खनक यूँ न होगी
ख्वाबों से भरे दो नैनों की चमक यूँ न होगी
तितलियों सा रंग तेरा यूँ न होगा
तेरी मीठी बोली की चहक यूँ न होगी
अल्हड़ इस जवानी की छनक यूँ न होगी
उस दिन
स्याह से सफ़ेद बालों का सफ़र यहाँ होगा
चमकते चेहरे का झुर्रियों से सामना होगा
और यह तेज़ कदम कुछ सुस्त होंगे
उस दिन 
मगर उन झुर्रियों में भी यही नूर होगा
ढलती आँखों में भी इस इश्क का यही सुरूर होगा
शायद यह सपना मेरा तभी आबाद होगा
सांझ ढले मेरे हाथों में तेरा हाथ होगा
तेरा मेरा ये साथ यह अब जन्मों का साथ होगा.....
तेरा मेरा ये साथ यह अब जन्मों का साथ होगा.....

गुरुवार, दिसंबर 08, 2011

Thought

No life can be the same again
with loss of one so dear...
my heart is always yours my friend
your sadness is my tear...

Will You Come ?

while I struggle to find myself
trillions thoughts puts flowers in my mind
after months, years out of contact
a friend calls on my cell
with unspoken pain in her voice
i just listend and asked

will you come?

if you’ll come,
i’ll be resting in une roseraie,
gowned in shades of rosy petals
lying on the bed of romantic roses

if you’ll come
i’ll hear you through the mango trees
that weave the skies like timber lace
or make tasty food

if you’ll come
i call to you past funnel-clouds
the way a cuckoo boasts with chatter
and beats his happy wing

if you’ll come
i’ll drape myself across your soul
the way the river rushes stones,
until their jaggedness is smooth

if you come
i’ll sing a thousand songs, sweet
as butterflies that land on naked shoulders
on a rainy days

if you’ll come to me
i’ll know my days were half the sum,
an interlude with death, when born again
on the day you come.

सोमवार, अगस्त 29, 2011

मेरा घर

शाहजहानाबाद के दिल में बसा
सुकून-ओ-अमन-चैन से परे 
शोरगुल के दरमियाँ
एक दिलकश इलाके में
एक उजडती बेनूर पुरानी हवेली
दीवारों पर बारिश के बनाये नक़्शे 
इधर उधर पान की पीकों की सजावट
और मेरे माज़ी की यादें इधर उधर
काई बनकर हरी हो रही हैं रोज़
एक जानी पहचानी सी ख़ामोशी
वो अंधेरों में भी गुज़रते सायों का एहसास
गमलों के पौधों के पत्तों के बीच
चहल कदमी करते चूहे
जगह जगह फर्श पर जंगली कबूतरों की बीट की सजावट
इन सबके बीच 
छोटा सा टुकड़ा आसमान का
और उस आसमान में
पिघलते काजल सी सियाह रात का कोना पकडे 
बादलों के बीच से गुज़रता चाँद
पहले भी ऐसे ही आता था मेरे घर
बारिश के बाद की मंद गर्मी में
छज्जे पर खड़े 
मैं 
यूँ ही ख्वाब बुना करता था
दीवारों से लिपटे पीपल के
दरीचों के साए में
तुम्हे भी याद किया करता था
सर्दियों की सीप सी सर्द रातों में
नर्म दूब के बिछोने पर
अक्सर मेरा जिस्म तपा करता था
तेरे जाने से भी कुछ नहीं बदला था
तेरे आने से भी कुछ नहीं बदला है
आज फिर रात भी वही है
और चाँद भी वही आया है
और आज भी वही तपिश 
सीने में जल रही है
मैं वीरान घर के बरामदे में
खामोश खड़ा
महसूस करता हूँ
वोह तेरे आगोश की तपिश
सहर होने तक
और बस यूँ ही
बन जाते हैं यह आसमानी सितारे 
सियाह रात की कालिख में जड़े सितारे
लफ्ज़ बन उठते हैं अपने आप
लिख जाते हैं हर रात एक कविता
मेरे दिल का हाल 
यही है मेरे दिल की दास्तान 
यही है मेरे दिल की दास्तान

बुधवार, जुलाई 06, 2011

कोई था

कोई था कभी जो कहता था के अगर याद आये तो आधी रात को भी बेजिझक याद कर लेना | आज याद आई तो वोह भी आँख चुरा कर निकल लिया | कन्नी काट ली उसने भी | हो सकता है उसकी भी कोई मजबूरी रही होगी जो अब उसे भी याद नहीं आती | शिकवा और शिकायत मुझे किसी से नहीं है, शायद इतने बुरे दिन हैं अपने के कोई अब याद करना भी नहीं चाहता | ज़िन्दगी भी न जाने क्या क्या खेल दिखाती है | कभी आकाश का कभी पाताल का नज़ारा करवाती है | कभी ऐसा वक़्त था जब चारो तरफ चहल पहल हुआ करती थी | रोनाकें हुआ करती थी | आज वीरान खालीपन है चारों तरफ | चार दीवारों के बीच ज़िन्दगी बेजान है | ऐसा लगता है जैसे मैं भी मेज़ और कुर्सी की तरह बेजान, कमरे में हूँ और उन चार दीवारी से बातें कर रहा हूँ | अकेलापन और मायूसी से ऐसा नाता जुड़ गया है | चरों ओर का सन्नाटा काट खाने को दौड़ता है | शायद बुरा वक़्त इस को कहते हैं जब कोई साथ नहीं होता | सुना था के बुरे वक़्त में साया भी साथ छोर जाता है पर मुझे इतना तो इत्मिनान है के बस एक मेरा साया ही है आज जो मेरे साथ है | यह वक़्त भी गुज़र जायेगा और मुझे उम्मीद है के एक नई किरण लेकर कभी तो आएगा | इसी उम्मीद के साथ जी रहा हूँ | उस नई सूरज की किरण का इंतज़ार है शायद कभी तो ऐसी सुबह आएगी जो अपने साथ खुशियाँ और प्यार की बरसात से मेरे आंगन को भिगो जाएगी | बस एक इसी उम्मीद के साथ ज़िन्दगी जिए जा रहा हूँ और इस अकेलेपन के अज़ाब को पिए जा रहा हूँ | अगर कहीं खुदा है तो वोह इस इल्तेजा को ज़रूर सुनेगा और मुझपर अपने स्नेह की बरसात ज़रूर करेगा | काश कभी तो वोह पुराने दिन लौट कर आयेंगे | हाँ ज़रूर आयेंगे | मेरा दिल कहता है मेरे से के तू अपने पर भरोसा रख और ज़िन्दगी को जिए जा जिए जा जिए जा |

मंगलवार, जुलाई 05, 2011

You Taught Me

Just sitting idle and was enjoying reading some poetry. There i came across this poem full of romance and emotions. Rather than i should say some true and very rare emotions that are not found in today's world. I hope that it will make you think about your thinking about love too...

I wanted a mansion once... that is until I met you,
Now the only place I want to live is inside your heart
I once desired diamonds... until I met you,
Now the only sparkle I need comes from within
I used to crave the finest clothing... until I met you,
Now I want not a single thread to separate our bodies
I once coveted a fancy car... until I met you,
Now I want nothing that would put miles between us
I once prayed for money... until I met you,
Now I want none of the things money can buy
I once yearned for a sense of security... until I met you,
Now my only security comes is knowing you are near
I once dreamt of a prestigious job... until I met you,
Now I find my success in knowing that you are happy
I once asked for the world on a silver platter... until I met you,
Now you are my world and I want for nothing but your touch
Loving you has been my teacher; you taught me not to want
Being with you has been my discovery; you are all that I need
Finding you has been my salvation, I now understand grateful
But perhaps of most importantly...
Your love in return has been my everything

- Teresa Weimer -

अब वो नहीं है साथ मेरे

दिल धड़कता था जिसके नाम से
अब वो नहीं है साथ मेरे
सांसें चलती थी जिसके दम से 
अब वो नहीं है साथ मेरे
आँखें चमकती थी जिसके नूर से 
अब वो नहीं है साथ मेरे 
ज़िन्दगी जिंदा दिल थी जिसकी रूमानियत से
अब वो नहीं है साथ मेरे 
कुछ तो ऐसा हुआ जो 
आज कोई नहीं है साथ मेरे 
बस इस बात से डरता है दिल 
कभीं ज़िन्दगी यूँ ही खाख न हो जाये 
और कोई न हो साथ मेरे....

मंगलवार, जून 28, 2011

काश ऐसा भी तो हो

काश ऐसा भी तो हो
पूर्णिमा की रात हो
परियों की बारात हो
समंदर का साहिल हो 
और तू आए
कभी ऐसा भी तो हो

काश ऐसा भी तो हो
यह सर्द हवाएं 
जब तेरे घर से गुजरें 
तेरी खुशबु चुराएं 
और मेरे घर ले आयें 
काश ऐसा भी तो हो 

काश ऐसा भी तो हो 
सुहाना एक मंज़र हो 
दूर दूर तक वादियाँ हों 
कोई न मेरे साथ हो 
और तू आए 
काश ऐसा भी तो हो 

काश ऐसा भी तो हो
ये मेघा ऐसे गरज के बरसे 
मेरे दिल की तरह मिलने को 
तेरा दिल भी तो तरसे 
तू निकले अपने घर से
और मेरे घर तक आए
काश ऐसा भी तो हो 

काश ऐसा भी तो हो 
तन्हाई हो और तुम हम हों 
दो दिल हों और दो लब हों 
बूँदें गिरें बरसात भी हो 
और तू आए 
काश ऐसा भी तो हो 

काश ऐसा भी तो हो
मेरे घर का आँगन हो 
तेरी पायल की छम छम हो 
ठंडी हवा के झोंके सी 
तेरी मीठी बातें हों 
काश ऐसा भी तो हो 

काश ऐसा भी तो हो 
जैसा मैंने सोचा है
सपनो की इस दुनिया में 
तुझको आते देखा है
तू भी सपने बुनती हो 
और सपनो में मुझको चुनती हो 
काश ऐसा भी तो हो 
काश ऐसा भी तो हो ....

वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के

वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका
शब्-ए-तन्हाई में वो याद आई
तो दिल इज़्तिराब से मचल उठा [ इज़्तिराब - restlessness]
सिर्फ चंद लम्हे मिले थे मुझे 
और मैं वो अलफ़ाज़ न कह सका 
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका

ज़ख्म ज़िन्दगी ने जितने दिए 
भुला दिए चंद रोज़ में 
वो आई जब दर पर मेरे
हाल-ए-दिल को पूछने
दिन ज़िन्दगी के तब से मैंने 
नाम उसके कर दिए
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका

वक़्त गुज़ारा था जो उसके साथ 
हसीन खवाब सा लगने लगा
लम्हे यूँ ही गुज़र जायेंगे
ऐसा तो सोचा न था 
एक पल ऐसा भी आया
जब उसने बिछडने की बात की
मैंने भी ख़ामोशी से 
मुस्करा के बात टाल दी 
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका

पर बात उसकी सच ही थी 
कुछ ही पल में वो 
मुझसे बिछड गई 
लेकिन मेरे दिल-ए-बेचैन मैं 
अपनी सुन्दर यादें छोड़ गई 
न चाहा था कभी उसकी 
आँखों में अश्क देखूंगा 
पर उस रोज़ वोह भी 
कम्बक्त छलक ही गए 
उस रोज की ख़ामोशी
एक ख्वाब बन कर रह गई 
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका

गर मालूम होता मुझे 
ज़िन्दगी ऐसी बेवफा होगी 
तू मिलकर भी जुदा होगी 
और हसरतें यूँ फनाह होंगी 
ग़म-ए-दोराह पर 
मुलाकात भी होगी कभी 
ऐसा कभी सोचा न था 
बस यही अफ़सोस है दिल में 'निर्जन' 
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के 
न वो सुन सकी 
न मैं कह सका

रविवार, जून 12, 2011

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?



अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?
मैने माना के तुम इक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन आराई हो
तलत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो
मुझसे मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मैने खुद अपने किये की ये सज़ा पाई है
[ पैकर-ए-रानाई : paradigm of beauty; चमन-ए-दहर : garden of earth; रूह-ए-चमन आराई : soul of beautified garden; तलत-ए-मेहर : Prayer of Sun; फ़िरदौस की बरनाई : paradise’s youthfulness; बिन्त-ए-महताब : daughter of moon; गर्दूं : heavens; अंदेशा-ए-रुसवाई : possibility of humiliation ]

ख़ाक में आह मिलाई है जवानी मैने
शोलाज़ारों में जलाई है जवानी मैने
शहर-ए-ख़ूबां में गंवाई है जवानी मैने
ख़्वाबगाहों में गंवाई है जवानी मैने
हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र ड़ाली है
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर ड़ाली है

[ शोलाज़ारों – flaming lamentations शहर-ए-ख़ूबां – city of beauty ख़्वाबगाहों – bedrooms ]


उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूं तारी था
सर पे सरशारी-ओ-इशरत का जुनूं तारी था
माहपारों से मोहब्बत का जुनूं तारी था
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूं तारी था
एक बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी

[ जुनूं – passion;सरशारी-ओ-इशरत : satisfaction and happiness; माहपारों: moon-faced; शहरयारों : friends of the city; रक़ाबत : animosity; एक बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब: bed of velvet and fur ]


क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फ़रियाद-ए-जिगरदोज़ मेरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में ड़ूबी हुई मेरी गुफ़्तार
मै के खुद अपने मज़ाक़-ए-तरब आगीं का शिकार
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहां से लाऊँ
अब मै वो जज़्बा-ए-मासूम कहां से लाऊँ

[ मजरूह : wounded;फ़रियाद-ए-जिगरदोज़- my heart’s lamentations; नाला-ए-ज़ार : song of tears; शिद्दत-ए-कर्ब : acute grief; गुफ़्तार – conversations; गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम :tenderness of a heart which died ]