वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
शब्-ए-तन्हाई में वो याद आई
तो दिल इज़्तिराब से मचल उठा [ इज़्तिराब - restlessness]
सिर्फ चंद लम्हे मिले थे मुझे
और मैं वो अलफ़ाज़ न कह सका
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
ज़ख्म ज़िन्दगी ने जितने दिए
भुला दिए चंद रोज़ में
वो आई जब दर पर मेरे
हाल-ए-दिल को पूछने
दिन ज़िन्दगी के तब से मैंने
नाम उसके कर दिए
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
वक़्त गुज़ारा था जो उसके साथ
हसीन खवाब सा लगने लगा
लम्हे यूँ ही गुज़र जायेंगे
ऐसा तो सोचा न था
एक पल ऐसा भी आया
जब उसने बिछडने की बात की
मैंने भी ख़ामोशी से
मुस्करा के बात टाल दी
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
पर बात उसकी सच ही थी
कुछ ही पल में वो
मुझसे बिछड गई
लेकिन मेरे दिल-ए-बेचैन मैं
अपनी सुन्दर यादें छोड़ गई
न चाहा था कभी उसकी
आँखों में अश्क देखूंगा
पर उस रोज़ वोह भी
कम्बक्त छलक ही गए
उस रोज की ख़ामोशी
एक ख्वाब बन कर रह गई
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
गर मालूम होता मुझे
ज़िन्दगी ऐसी बेवफा होगी
तू मिलकर भी जुदा होगी
और हसरतें यूँ फनाह होंगी
ग़म-ए-दोराह पर
मुलाकात भी होगी कभी
ऐसा कभी सोचा न था
बस यही अफ़सोस है दिल में 'निर्जन'
वो जज़्बात जो थे मेरे दिल के
न वो सुन सकी
न मैं कह सका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया किसी प्रकार का विज्ञापन टिप्पणी मे न दें। किसी प्रकार की आक्रामक, भड़काऊ, अशिष्ट और अपमानजनक भाषा निषिद्ध है | ऐसी टिप्पणीयां और टिप्पणीयां करने वाले लोगों को डिलीट और ब्लाक कर दिया जायेगा | कृपया अपनी गरिमा स्वयं बनाये रखें | कमेन्ट मोडरेशन सक्षम है। अतः आपकी टिप्पणी यहाँ दिखने मे थोड़ा समय लग सकता है ।
Please do not advertise in comment box. Offensive, provocative, impolite, uncivil, rude, vulgar, barbarous, unmannered and abusive language is prohibited. Such comments and people posting such comments will be deleted and blocked. Kindly maintain your dignity yourself. Comment Moderation is Active. So it may take some time for your comment to appear here.