तेरे दिए गुलाब की कलियाँ
मेरे अंतरंग अंतर्मन में
खुलती हथेलियों में
जब गुलाब की पंखुडियां
अलसाई सी आंख खोलती हैं
तब मदमाती, लहराती,
मदहोश कर जाती
महकती गुलाब की भीनी सुगंधी सी
तू आती है
हर सांझ
बनते हैं कई किरदार मेरी कल्पनाओं में
बनते हैं, बिगड़ते हैं
रह जाती है तू
और वही
तेरी गुलाब की पंखुडियां...
गुलाबी अहसास। बढ़िया।
जवाब देंहटाएंइस एहसास पर क्या लिखूं ....
जवाब देंहटाएंनिशब्द कराती रचना
शुभकामनायें !!