क्या इंसान इतना मसरूफ़ भी हो सकता है
के वो हँसना मुस्कराना तक भूल जाये
किसी अपने अज़ीज़ को याद करने के लिए भी
उसके पास वक़्त नहीं होता
क्या आज रिश्तों को भी धोया जाने लगा है ?
क्या रिश्तों की वोह गर्माहट जो मुझे महसूस होती है
उसके दिल में भी कोई ऐसी आग से तपिश होती होगी ?
कुछ पल दिल इन बातों को नहीं मानता
लेकिन
कुछ पल बाद खुद ही जवाब दे देता है
शायद यही सच है...यही ज़िन्दगी का कड़वा सच है
आज के दौर में यही मुकाम रह गया है रिश्तों का...
जवाब देंहटाएंकमाल तो यह है आज आदमी अपनी पसंद का भी कोई काम नहीं कर पाता .खुद से ही नहीं मिल पाता .नकार में जी रहा है-आदमी .
अव्वालोअव्वल तो सिर्फ शीश-ए-चश्म थे..,
जवाब देंहटाएंउग आइ अब लबे-गेसु की क्या कहें.....
sundar sawal h...jinhe jawab ki zarurat h :)
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