गुरुवार, दिसंबर 13, 2012

खोया खोया

मेरा एक और पुराना चमत्कार .... हा हा हा... आज इससे पढता हूँ तो बेहद हंसी आती है क्योंकि यह कविता नतीजा थी मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के दिमाग में उपजे एक ख्याल का जो की सारी जिंदगी ख्वाब बनकर ही रह गया | किस्सा यूँ है के एक लड़की हुआ करती थी हमारी क्लास में और मुझे बेहद पसंद भी थी | अब आपको तो सब पता है के दिल तो बच्चा है जी तो फिर बस उस लड़की को पटाने की हर मुमकिन कोशिशें होने लग गईं | परन्तु शुरू में तो हर प्रयास विफल रहे फिर धीरे धीरे उनसे जान पहचान बढी और दोस्ती का दौर शुरू हुआ पर जैसे आपको पता है उन दिनों क्या होता था और दोस्त कैसे होते थे | टांग खीचने में नम्बर एक | तो फिर क्या था हम भी ठहरे अपनी खोपड़ी से अलबेले चढ गए बांस पर और शुरू कर दिये नए नए ख्वाब बुनने | दोस्तों द्वारा भाभी भाभी का संबोधन सुन सुन कर मस्त हो जाते और स्वपन लोक में विचरण करने निकल पडते | उसी किसी एक विहार के दौरान यह कविता लिखी गई थी | लिखने के पीछे जो सोच थी वोह यह थी के यारों को यह सुनायेंगे और अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे अपने गुट में | और यह भी पूर पूरा आभास था के कोई न कोई मित्र जाके अपनी भाभी को इस कविता के बारे में बतला ज़रूर देगा | क्योंकि दोस्ती जितनी अच्छी होती है उतना ही ज्यादा कमीनापन आपस में होता है | तो उसी कमीनपने कोई ध्यान में रखते हुए यह रचना कर डाली - "जस्ट टू इम्प्रेस दा फ्र्न्ड्स एंड दैट गर्ल"....और हुआ एक दम उल्टा...यारों न उसने हाँ कही और न न कही और जो थोड़ी बहुत यारी दोस्ती थी वोह भी जाती रही समय के साथ | खैर अपने तो मलंग थे और मलंग हैं  कौन आया कौन गया कुछ सोचते नहीं - बस जिंदगी जीना सीखा है तो जी रहे हैं | तो आइये पढ़िए मेरे सपनो में लिखी गई दास्ताँ और आनंद लीजिए -

आज कल मैं खोया खोया रहता हूँ
वो भी कुछ खोई खोई रहती है
मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ
वोह भी कुछ कुछ कहना चाहती है
लेकिन बीच में है एक दीवार
खुद से ही किये कुछ प्रश्नों की बौछार
वो मुझे क्या समझती है ?
कैसा समझती है ?
क्या वो मुझसे मुहब्बत करती है ?
क्या वो भी दिल ही दिल में मुझपर मरती है ?
मैंने भी देखा है
उससे कुछ सोचते हुए
मुझसे झिझकते हुए
लेकिन मैं समझ नहीं पाता
के यह इंकार है या इकरार
इसलिए ही
शायद इसलिए
मैं सोया सोया रहता हूँ
दिन रात उसी के सपनो में
बस खोया खोया  रहता हूँ
बस वो भी इसी तरह
ख्वाबों में खोई खोई रहती हो
इल्तजा है रब से के वो भी
मेरी तरह गम-ए-जुदाई सहती हो
पर क्या मैं भी हूँ उसके सपनो में ?
क्या मैं ही हूँ उसके दिल में ?
यह जान नहीं पता हूँ मैं
इसलिए मैं खोया खोया रहता हूँ

आज भी यह कविता पढ़ी तो सारा मंज़र आखों के सामने घूम गया | शायद मेरी तरह और भी बहुत से लोग होंगे जिनके साथ कुछ इसी तरह का वाकया हुआ होगा | शायद इस कविता के माध्यम से मैं अपने आप को उनके साथ जोड़ पाउँगा और वोह मेरे साथ जुड पाएंगे | 

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