हे ईश्वर
एक चोट
एक पीड़ा
तुम्हारे मन
मस्तिष्क में
सदा ही रहेगी
क्योंकि तुम्हारे
धारा प्रवाह
जीवन में
एक पत्थर
तुम्हारी धारा
को रोकता हुआ
सदैव
स्मृति की
धारा को
रोकता रहेगा
कहता रहेगा
तुम कहीं रहो
पाओगे
अपने आप में
अपने धारा प्रवाह में
एक सुखद अनुभूति
एक सुखद स्पर्श
उस पत्थर से
जो देखने में
पत्थर है पर
है कोमल
ममता भरा
ममता भरी
छाँव में
सोना और जागना
एक स्वर्णिम दिवस में
जहाँ कर्म
और उन्नति
तुम्हारा पथ
निहारती हैं
एक चोट
एक पीड़ा
तुम्हारे मन
मस्तिष्क में
सदा ही रहेगी
क्योंकि तुम्हारे
धारा प्रवाह
जीवन में
एक पत्थर
तुम्हारी धारा
को रोकता हुआ
सदैव
स्मृति की
धारा को
रोकता रहेगा
कहता रहेगा
तुम कहीं रहो
पाओगे
अपने आप में
अपने धारा प्रवाह में
एक सुखद अनुभूति
एक सुखद स्पर्श
उस पत्थर से
जो देखने में
पत्थर है पर
है कोमल
ममता भरा
ममता भरी
छाँव में
सोना और जागना
एक स्वर्णिम दिवस में
जहाँ कर्म
और उन्नति
तुम्हारा पथ
निहारती हैं