प्रेम संबंधी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेम संबंधी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, फ़रवरी 10, 2013

वीणा

हे ईश्वर
तुम्हारी
स्नेह भरी
वीणा को
सुनकर
प्यासा मन
तृप्त हो जाता है
तृप्त हो जाती है
प्यास
जो एक
मरुस्थल पर
शीतल झरने
की तरह
बहते हैं
मेरे जीवन में
मेरी हर श्वाश में

बुधवार, जनवरी 16, 2013

तो क्या होता?

दिसम्बर बलात्कार घटना को बीते अब तकरीबन महीना हो गया | इस पूरे वक्फे के दौरान मैंने समाचार चैनलों  पर, ब्लोग्स पर, अकबारों में, लोगों के मुख से और न जाने कहाँ कहाँ से काफी कुछ पढ़ा और सुना | सबकी अपनी अपनी राय और अपने नज़रिए से अनोखे विचार थे | श्रधांजलि देने का और हादसे पर अपने विचार प्रकट करने का सबका अपना एक अनोखा तरीका था | कितने तो मोमबत्तियां जलने में लगे थे, मार्च पास्ट निकाले जा रहे थे, कहीं गिटार बजा कर दुःख जताया जा रहा था, कुछ बैनर पर टिप्पणियां लिख कर दिखाने में लगे थे, कहीं हाथ पर काले कपडे बांध कर दुःख जताया जा रहा था, कहीं मौन व्रत लिए लोग चुप चाप धरने दे रहे थे, तो कहीं कोई बाबा कुछ बकार रहे थे, तो कहीं नेता अपने आने वाले चुनाव की रणनीति को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष रूप के नाटक करने और टिप्पणियां देने में जुटे हुए थे | इन सब बातों और घटनाक्रम के बीच मैं अपने घर पर बैठा कुछ नहीं कर रहा था सिर्फ सोच रहा था, कुछ ख्याल और सवाल बार बार मेरे मन में दस्तक दिए जा रहा था | वो सब इतने अजीब थे के पहले तो मैं उन्हें अनदेखा करता रहा फिर आख़िरकार जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपने दिल से हार मान कर के उन्हें यहाँ आपके सामने प्रस्तुत करना ही ठीक समझा | शायद कुछ जवाब, कुछ विशेष ख्याल और सुझाव सुनने और पढने को मिल जाएँ । वो ख्याल और सवाल जो उठते हैं कुछ इस प्रकार से हैं :

  1. यदि आज हमारा समाज पुरुष प्रधान न होकर स्त्री प्रधान होता तो क्या होता ?
  2. यदि पुरुष निर्बल और दुर्बल कहलाता और स्त्री सर्वशक्तिमान तो क्या होता ?
  3. मोटे तौर पर पूछूँ तो आज जहाँ पुरुष खड़ा है वहां अगर स्त्री खडी होती समाज में तो क्या होता ?
  4. क्या ऐसी घिनोनी घटनाएँ पुरुषों के साथ भी होती? होतीं तो क्या होता ?
  5. क्या पुरुषों का बलात्कार होता ? यदि होता तो क्या होता ?
  6. क्या पुरुषों को भी सही वस्त्र पहन कर घर से निकलने की हिदायतें दी जातीं ?
  7. क्या रात-बे-रात बहार निकलने से पहले पुरुषों को सोचना पड़ता ? डरना पड़ता ?
  8. क्या पुरुष अपनी माँ, बहन, बेटी, बीवी के साथ ही महफूज़ महसूस करते ? रात को यदि उन्हें कहीं जाना होता तो वो इनमें से किसी न किसी को साथ लेकर ही बहार जाते ?
  9. क्या कोई बाबा पुरुषों को ऐसी सलाह देता के, “यदि उसका बलात्कार होते समय वो किन्ही २-३ महिलाओं को बहन या माँ पुकार कर मदद मांग लेता तो शायद उसके साथ अन्याय कम होता”?
  10. क्या कोई नेता या कोई किसी भी दल का मुखिया ये कहता के, “पुरुषों को मोबाइल नहीं रखने चाहिए और निक्कर, टी-शर्ट, बनियान आदि भड़कीले कपडे नहीं पहनने चाहियें | ऐसी भड़काऊ वेशभूषा से ही उनपर ऐसे यौन अत्याचार होते हैं | वो सामने वाले को मजबूर करते हैं उनके साथ ऐसा करने के लिए | उन्हें पूरे ढके हुए वस्त्र पहन कर घर से निकलना चाहियें” | क्या ऐसी बयानबाजी होती ?
  11. बसों में, रेल में, सार्वजानिक भीड़भाड़ वाले इलाकों में या कहीं भी सट कर चलना, बैठना, बात करना या खड़े नहीं होना चाहियें | क्या पता कोई आकर उन्हें छेड़ दे या मर्दों के साथ ईव-टीजिंग न हो जाये |
  12. क्या पुरुषों के लिए भी इतनी ही पाबंदियां, दोगलापन और ओछापन दिखाई देता समाज में जितना आज स्त्रियों के लिए दिखाई पड़ता है ?
  13. पुरुषों को घर संभालना चाहियें । वो बच्चे पलने और खाना बनाने के लिए ही हैं । बहार का काम तो स्त्री की ज़िम्मेदारी है । यदि ऐसा सुनने को मिलता तो क्या होता ?
  14. क्या उस समाज में स्त्रियाँ भी पुरुषों से तफरी लेतीं, फितरे कसती, सीटियाँ मारतीं, चिकुटी काटतीं, इशारे करतीं ?
  15. क्या पुरुष बार में नाचते और महिलाएं उनपर पैसे उड़ातीं ?
  16. यदि पुरुषों द्वारा मुजरे और देह व्यापार करवाया जाता तो क्या होता ?
  17. क्या बार में जाकर शराब पीने वाले पुरुषों को बदचलन, आवारा और चरित्रहीन करार दे दिया जाता ?
  18. और कहीं पुरुष पुलिस के पास शिकायत करने चला जाता तो क्या उससे ऐसे ही ज़िल्लत झेलनी पड़ती जैसे आज नारी को झेलनी पड़ती है ?
  19. क्या स्त्रियाँ पुरुषों को हीन समझतीं ?
  20. अगर पुरुष भ्रूण हत्या होती तो क्या होता ?
  21. अगर समाज में पुरुषों को खरीदा और बेचा जाता तो क्या होता ?

अगर यह सब सच में होता तो पुरुषों की स्तिथि और उनका मानसिक पीड़ा कैसी होती ? सच कहूँ तो ऐसे सवालों का और सोच का कोई अंत नहीं है | यदि कोई ऐसा समाज होता तो उसका चेहरा कैसा होता ? और पुरुषों की सोच ऐसे समाज में कैसी होती ? मेरे दिमाग में सदा ही ऐसी सोच और ऐसे अजीब-ओ-गरीब सवाल उठ खड़े होते हैं | इनका उत्तर मेरे पास नहीं है । वो इसलिए क्योंकि मैं अपने आप से सवाल करता हूँ | हर एक स्तिथि में मैं पहले खुद को रखता हूँ और फिर अपने आप से सवाल करता हूँ, “अगर तू उसकी जगह पर होता तो क्या होता ?” | जब तक अंतर्मन से जवाब नहीं मिलता तब तक मैं कोई भी फैसला नहीं ले पता | काश! आज का समाज भी ऐसे ही अपने आप से सवाल करता कुछ भी कहने या करने से पहले कम से कम कुछ तो सोचता  | जिसकी पीड़ा है कम से कम उसकी पीड़ा का अनुभव तो करता और महसूस करता ।  तब शायद ऐसी  भद्दी टिप्पड़ियाँ, ऐसी गन्दी और निचली सोच, ऐसे ओछे विचार, ऐसी शर्मनाक हरकतें और ऐसी नकारात्मक मानसिकता पैदा ही न हो पाती | काश! मेरे बस में कुछ होता तो मैं भी उसके लिए शायद कुछ तो कर पाता पर दुःख इस बात का है के सिर्फ मैं अपने आप से और सभी से सवाल ही कर सकता हूँ | इससे ज्यादा कुछ और नहीं | आशा है ऐसे ही सवाल दुसरे भी, आने वाले भविष्य में अपने आप से करने का कष्ट करेंगे और इस समाज को रहने लायक बनाने में योगदान देंगे | आज सिर्फ मैं प्रार्थना कर सकता हूँ के, “परमपिता परमात्मा, उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उससे जल्द से जल्द इन्साफ मिल सके” |

मंगलवार, जनवरी 15, 2013

Poet


No one can ever understand the poet. For he is a notional representation of what transpires in life. The Good, The Bad, the Unthought, The calibration of a World that once existed and co exists amongst us. A poet will smile even when he does not want to, A Poet will let you join his side when you most need to be together with laughter or an uncongruent feeling that you have inside of you that needs to be exposed. The Poet surrenders to you, the Listener and welcomes you to his realm of thought, provocation and abstinence of malicious judgement and fallice. Thy Poet writes in a Harmony of the past, present and future. With him holding the key to an inner salvation that one often seeks when expressing their inner most thoughts.  Thy Poet is stern and irrevocably pristine to the sadacious appetite of the Modern Society.  Even when in doubt the Poet has thy answer to their inner most sanctions of your world.   He often reaches the deep, inner substraints of a well known phenomenon and a well suited lack of understanding that is within all of our reach as we aspire to a final place where we submit.  As the Sun lacks brightness and vigor the Moon catches a Bright Light to bestow amongst humanity.  A Poet reaches the farthest channels of the Universe once benownst by man kind later to be forgotten 
as a a part of History and the common like.  But this is no common like, it actually shines from afar and captivates the human eye till it renders.  The Light is meager pronouncing itself even with a shade of magnitude. The Light deserves presence that is often unappreciated by man and misunderstood my most women. The conquest of Light is the most inexplicable feat that a Man can encounter. The aphorgy or intricateness of the Sun shining upon a specific dwelling controlled by man. inconsecrated.....

रविवार, जनवरी 13, 2013

खुशियाँ

खुशियाँ एक शब्द - बस शब्द ही रह गया था मेरे लिए -
इसका मतलब और इसकी परिभाषा मैं भूल चूका था

कभी यादों के किसी कोने में झाँक कर देखूं
तो याद पड़ता है के शायद इस शब्द के मायने
मेरे लिए क्या हुआ करते थे ;
चॉकलेट, साहसी खेल कूद, तैराकी, जिमख़ाना, सबसे मिलना जुलना, बातें करना, खिलखिलाना, गाना बजाना, नाचना और अच्छा खाना

फिर एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ
मेरा बचपन, उमीदें और खुशियाँ सब टुकड़ों में चूर चूर हो गईं
और बाकि बचा मेरे पास कुछ बिखरी, विदीर्ण, लुप्त, टूटी फूटी यादें
एक नकली हंसी और एक मुखौटा जो चेहरे पर लगाये मैं घुमने लग गया 

उस दिन से मैं अन्दर से मर गया था
अपरिवर्तनीय रूप से हमेशा के लिए बदल गया था
और मुझे पता नहीं था के मैं कभी इस ख़ुशी के मीठे स्वाद को कभी फिर से चख पाउँगा

अचानक फिर
एक दिन
एक  इंसान मिला
उससे मिलकर मानो जैसे
एक अपनेपन का एहसास हुआ
एक लगाव, एक आस
एक उम्मीद जगी 

मुलाकातें बढीं
सोहबत का असर हुआ
सोच में सुधर होना शुरू हो गया
हालत में सुधार होना शुरू हुआ है
मिलकर ख़ुशी का एहसास जागने लगा
आज की मुलाकात के बाद से
अपने आप से प्यार करना शुरू किया है
चेहरे पर मुस्कान छलकने लगी है
ज़िन्दगी फिर से चहकने लगी है
अरमान महकने लगे हैं

अग्रगमन थोडा सख्त और मुश्किल है
पर मैं कर रहा हूँ
कोशिश जारी है
शनै शनै
लौटने लग गया हूँ
उसी मोड़ पर
जहाँ ज़िन्दगी छूट गई थी
फिर से उसका हाथ थमने
और अपने नए व्यक्तित्व से
उसका तार्रुफ़ करवाने

ख़ुशी का आगमन हो रहा है
नई नवेली दुल्हन की भांति
अलता लगाये जीवन में
धीरे धीरे कदम बढ़ा कर
प्रवेश कर रही हैं और उसके साथ
सकारात्मक सोच और ओज
का स्रोत भी मिल चुका है

सहर्ष और आदरपूर्वक
स्नेहपूर्वक और ससम्मान
सादर सत्कारपूर्वक
कोटि कोटि धन्यवाद है
भाई आपका 

बस इतना कहूँगा के -

जब तुमसे से हो गई बंदगी
खुशियों से भर गई ज़िन्दगी
मिट जाएगी  मांदगी
ख़त्म समझो शर्मिंदगी
अब नई होगी छंदगी
अब नई होगी छंदगी...

खुशनुमा ज़िन्दगी जीने के कुछ आसान तरीके

आज मेरे एक बहुत ही अज़ीज़ मित्र, भाई, बंधू, भ्राता ने कहा के ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहो | खुद को इतना मज़बूत रखो के कोई तुम्हे ग़मगीन न कर पाए । ज़िन्दगी ये सोच कर जियो के तुम ही तुम हो और तुम हर गम से ऊपर हो । यदि गम आये भी तो उससे ख़ुशी के साथ जीना सीखो | लिखो तो ख़ुशी के लिए लिखो | ऐसा लिखो जो मरते हुए मैं प्राण फूँक दे, सोते को उठा दे, रोते को हंसा दे, लंगड़े को भगा दे, अंधे को दिखा दे, दुबले को फुला दे और दुखी को सुखी कर दे | तभी लेखनी में जान आएगी | लेखन में वज़न की बहुत अहमियत है । तो वज़न लाना बहुत ज़रूरी है । तो आज से और अभी से ज़िन्दगी में यही कोशिश रहेगी के ख़ुशी का दामन थामे मस्ती की लहरों में गोते लगते हुए जीवन रुपी समुन्द्र को हंसी मजाक में तैर कर पार करूँ | लेखनी में और जान फूँक दूं और जो भी लिखूं वो आनंद देने वाला हो और दिलों को हर्षित करने वाला हो |

"भाई नुक्ते जो बतलाये थे वो दिल में नोट कर लिए हैं | और आगे भी ऐसे ही हिदायतों का और विचारों के आदान प्रदान का इंतज़ार रहेगा | जल्दी ही मिलते हैं | और जो कुछ भी आप मेरे लिए कर रहे हैं और किया है उसके लिए दिल से शुक्रिया | एक बड़े भाई की कमी हमेशा खली है मुझे | बजरंगबली ने आवाज़ सुनकर आज वो पूरी कर दी | और बजरंगबली के साथ उसमें किसी और का भी बहुत बड़ा योगदान है | आप भलीभांति जानते हैं जिन्हें मैं संबोधित कर रहा हूँ - फूपी-सा ;)  | एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद् आप सब को | "

तो नुक्से कुछ इस प्रकार से हैं :
  1. अपने ज़िन्दगी को दूसरों की ज़िन्दगी के साथ तोलना बंद कर दें | जितना है उतने में संतुष्ट रहें |
  2. मेहनत करें, कोशिश करें, उपाय करें और सकारत्मक सोच के साथ जीवन व्यतीत करें |
  3. ज़िन्दगी में परेशानियों को ढूंढना छोड़ दें और जीवन में जो चीज़ें गज़ब है अदभुत है उन्हें देखने आरम्भ कर दें | 
  4. पूजा पाठ, हवन आदि घर में ज़रूर करें ।
  5. तनाव देने के लिए बहुत कुछ मिलेगा | अपना समय उन पर बर्बाद न करें | उन्हें ज़िन्दगी से जाने दें |
  6. दूसरों की तरक्की और ख़ुशी में खुश रहिये भले ही आप उनसे इर्षा करते हों |
  7. ज़िन्दगी सम्पूर्ण नहीं है | इस बात को स्वीकार करें |
  8. आप अनोखे और खूबसूरत है | इस पर विश्वास कीजिय | आप जैसे हैं वैसे ही अपने आप को प्यार करना सीखिए |
  9. ख़ुद की मदद करने का सबसे आसान तरीका है दूसरों की मदद करना |
  10. दूसरों से दिल खोल कर मिलें | नए रास्ते बनते जायेंगे |
  11. दूसरों की बात को सुनना सीखें |
  12. बुरी से बुरी समस्या में भी कम से कम, दिल में एक सकारात्मक ख्याल ज़रूर लायें |
  13. समस्याओं का समाधान भद्रता से करें | अभद्रता केवल आग में घी का काम करेगी |
  14. अपनी ऊर्जा  लड़ाई लड़ने में प्रयोग न करें | अपितु उससे अपने मनपसंद कार्य में उपयोग करें |
  15. एक के बाद एक गलती का नाम ही जीवन है | इसलिए अपने आप पर इतने सख्त न हों |
  16. जो लोग आपसे शालीनता की अपेक्षा रखते हैं उनके साथ शालीन रहें |
  17. ख़राब मिज़ाज में धैर्य से काम लें | अच्छे मिज़ाज के आने का इंतज़ार करें |
  18. अपना गुस्सा, तनाव, कुंठा, निराशा, निष्फलता को खेलकूद और व्यायाम कर के निकलें |
  19. अपने जीवन का अच्छा पहलू सदा यार रखें | उन लम्हों को अपने साथ अपनी डाईरी, डेली जर्नल, ब्लॉग या कहीं भी लिख कर सुरक्षित रखिये |
  20. तकनीक हमेशा साथ नहीं रहती इसे कबूल करें |
  21. किसी भी कार्य को भरपूर उत्साह के साथ करें |
  22. सड़क पर चलते समय राहगीरों को, अनजान चेहरों को देख कर मुस्कराएँ और दोस्तों और अपनों से फौली भरकर मिलें |
  23. कम बोलें | आलोचना तथा अप्रिय शब्दों का प्रयोग न करें |
  24. तनावपूर्ण स्तिथि में दिमाग ठंडा रखें | शांत दिमाग में जवाब आसानी से आ जायेंगे |
  25. जल्दबाजी न करें | जो भी कार्य करें बहुत सोच समझकर और अपना समय लेकर करें |
  26. हमेशा जीवन में अच्छाई के बारे में सोचें | बुराई के बारे में सोच कर अपना दिन नष्ट न करें |

शनिवार, जनवरी 12, 2013

मैं और मेरी बिटिया

मैं और मेरी बिटिया दोनों का कुछ ऐसा रिश्ता है जिसे मैं बयां नहीं कर सकता और न ही करने की कोशिश करता हूँ | इस बंधन को समझाना या बतलाना कठिन होगा मेरे लिए | फिलहाल मैं आपको वो दिखा रहा हूँ जिसे देखकर शायद आप भी अपनी हंसी न रोक पायें | जी बिलकुल मैं अपने नए अवतार का परिचय आपसे करवा रहा हूँ जो मेरी छोटी से ४ वर्षीय गुडिया द्वारा बनाया गया है | यूँ तो वो अक्सर ही अपनी चित्रकला में मेरा वर्णन करती रहती है या मेरे नए नए अवतारों को प्रस्तुत करती रहती है परन्तु यह जो चित्रकारी मैं यहाँ प्रदर्शित करने जा रहा हूँ वो मेरे व्यक्तित्व से बहुत ही मेल खाती है | आप भी एक नज़र डालें और मेरी परी के कलात्मकता का आनंद लें |

मेरी बेटी के नज़रिए से मेरा सुन्दर और मनमोहक चित्रण :



























हाँ जी ये महाशय मैं ही हूँ ऐसा मेरी राजकुमारी का कहना है | अब आप सभी समझदार है | मैं तो बिलकुल मान चूका हूँ के ये मैं ही हूँ सौ फीसदी क्योंकि उसने अपनी प्यार भरी और दुलार भरी दलीलों से मुझे मानने के लिए मना ही लिया | बस अब वो खुश हो गई है | वो खुश तो मैं खुश | और मेरी दुआ है के वो सदा ऐसे ही खुश रहे मुस्कराती रहे |

आप सोचते होंगे की ये कलाकृति आज क्यों पोस्ट कर रहा हूँ दरअसल परिवार के साथ वो गई है घुमने और मैं अकेला बैठा उससे याद कर रहा था | नींद भी गायब है आँखों से | तो इस तस्वीर को देखकर ही मुस्करा रहा हूँ और उसकी बातें याद कर रहा हूँ | आशीर्वाद के साथ ढेर सारा प्यार, लाड़ और दुलार |

गुरुवार, जनवरी 10, 2013

गुलगुले जन्म दिवस की शुभकामनायें

आज जीवन का एक और आनंदमय दिवस बीता | छोटी बेटी जिसे मैं अक्सर गुलगुला, गोलू राम, बम का गोला, जिआन, लालाजी सरीखी उपमाओं से संबोधित कर प्रेमपूर्वक सहज भाव से पुकारता रहता हूँ और वो हंसती और खिलखिलाती, शरारत करती मस्त होकर गजराज की भांति आकर मुझसे लिपट जाया करती है | जी हाँ आज मेमसाब का जन्म दिवस है | ९ जनवरी, ऐसा लगता है के मानो अभी तो छोटी सी वो आई थी मेरी गोद में और आज इतनी बड़ी की भी हो गई  | सुबह से बहुत ही खुश थी | खूब उछल कूद मचा रही थी | हर तरफ़ा धमाचौकड़ी  | मानो आज हाथी की लाटरी लग गई हो |
"आज मेरा हैप्पी बर्थडे है न! हैप्पी बर्थडे टू श्रेया" कहती खुद ही इधर उधर शैतानी करती कूद काद रही थी | जी 'श्रेया' नाम है उसका | आप सोचते होंगे के ये क्या, अजी तो बताये देता हूँ के आज उसने अपने जीवन के ३ वर्ष हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण किये | सुबह से उसके चेहरे के वो मुस्कान और खिलखिलाहट देखने लायक थी | सुबह से नया सिला हुआ फ्रॉक पहन कर इतरा रही भवरे की भांति गुंजन करती, मुझे और घर के दुसरे सदस्यों को बताती, इठलाती-इतराती मटक रही थी मानो कोई खज़ाना हाथ आया हो | मेरी बड़ी बिटिया के साथ मिलकर न जाने क्या क्या खिचड़ी पका रही थी | हालाँकि वो श्रेया से सिर्फ १ वर्ष बड़ी है पर फिर भी वो ऐसे बर्ताव करती है जैसे न जाने कितनी बड़ी है |
 "श्रेया आज तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है | आज तुम्हे केक मिलेगा और गिफ्ट भी | आज शाम को पिज़्ज़ा पार्टी होगी | पापा पिज़्ज़ा लायेंगे | पापा ने बहुत अच्छा डोरेमोन और जिआन वाला केक बनवाया है तुम्हारे लिए | तुम अपना होमवर्क जल्दी से फिनिश कर लो फिर पार्टी होगी पार्टी |"
उत्तर आता है "नहीं आज होमवर्क नहीं करना | कल करुँगी प्रॉमिस | आज तो मेरा बर्थडे है आज हॉलिडे है | होमवर्क का टाइम नहीं है अभी | आजा 'सिद्धि' बहन खेलते हैं |"
बस आज सुबह से यही सब देखदेख कर और सुन सुन कर दिल ख़ुशी के मारे फूला नहीं समां रहा था | दोनों के लिए दिल से दुआएं निकल रही थी के दोनों का प्यार सदैव ऐसे ही बरक़रार रहे | किसी की नज़र न लगे | दोनों की नज़र उतरने का दिल कर रहा था और बालाएं लेने का भी | तो साब इस सब कौतुहल के साथ शाम ने कदम रखा और जी आ गया मेमसाब का केक और होम मेड पिज़्ज़ा का सारा सामान | मैंने घर के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर थोड़ी बहुत सजावट भी की | थोड़े से गुब्बारे और कुछ साजो-सज्जा का सामान सजाया गया | बस हम घर के ही सदस्य थे तो फटाफट टेबल सजा कर केक लाकर रख दिया | कुछ फोटो शोटो भी खींच डाले गए | पर वहां तो जल्दी मच रही थी की केक कब खाने को मिलेगा | जब केक काटने का समय आया तो भोलूराम का मन नहीं माना, जितने मैं मोमबत्तियां लगता उतने में तो श्री गणेश भी हो गया | हाँ जी वो आई और झट से एक ऊँगली लगा कर चख लिया केक को | उसका उतावलापन देख इतनी ज़ोर के हंसी आई के पूछो मत | ज़रा सा गुस्सा भी आया क्योंकि अभी तक केक का फोटो तो लिया ही नहीं था | फिर मैंने सोचा के चलो कोई नहीं नज़र का टीका लग गया केक को | अब अच्छे से होगा सब | तो हुज़ूर मोमबत्तियां लग गईं, छुरी थमा दी गई हाथों में और शमा बुझाने को कहा था तो मोटूराम की तो हवा ही निकल गई | दरअसल वो 'मैजिक कैंडल्स' थीं | आप बुझाते रहिये और वो बुझने का नाम भी नहीं लेंगी |
मेरी ओर देख कर बड़े मासूम अंदाज़ में वो तुरंत बोलीं "यह गन्दी कैंडल है, केक कब खाने को मिलेगा" | बस फिर क्या था, आनन फानन तुरंत केक कटवाया गया और हाज़िर कर दिया गया प्लेट में सजा कर | अभी केक खत्म भी न हो पाया था, फरमाइश आई
"अरे मेरा पिज़्ज़ा कहाँ है, अभी वो भी तो खाना है | जल्दी करो न | वो कब बनेगा ? |" हँसते हँसते लोटपोट होते हुए मैंने कहा, "अरे पहले यह तो फिनिश करो | पिज़्ज़ा भी आ रहा है पहले केक तो खा लो |"
फिर साब क्या था डिनर में पिज़्ज़ा परोसा गया और इस तरह आज का दिन संपन्न हुआ |
बस मेरी दुआ इतनी सी ही है के ऐसे ही हँसते-गाते  खेलत-कूदते ज़िन्दगी के सभी दिन बीत जाएँ तो ज़िन्दगी का सफ़र कैसे कट जायेगा पता भी नहीं चलेगा | भगवन हम सभी पर ऐसे ही अपनी कृपा बनाये रखें और अपना आशीर्वाद देते रहें यही मनोकामना है प्रभु से |
हैप्पी बर्थडे टू यू गोलू, मेरा आज का दिन और जीवन का हर एक दिन सुन्दर बनाने के लिए बहुत बहुत लाड़, प्यार और ढेरों आशीर्वाद | मेरी दो छोटी छोटी गुड़ियाँ, चिडकली, मनभावनी, मनमोहिनी, परियां सदा ऐसे ही चहकती रहो, खिलखिलाती रही, मुस्कुराती रहो और मुझे गुदगुदाती रहो |
बहुत बहुत बहुत ढेरों-मटेरों सारा प्यार और आशीर्वाद |





















राष्ट्र भाषा "हिंदी"

लो जी आज फिर से नींद ग़ाफूर हो गई है आँखों से | अभी अभी बिग बॉस देख कर बैठा था | सोचा क्या करूँ तो पुरानी स्कूल वाली डाईरी खंगालने लग गया | सोचा कुछ तो ऐसा होगा जो मज़ेदार हाथ लगेगा और मैं उससे ब्लॉग पर पोस्ट कर दूंगा | तो ये एक कविता सामने आई | पढ़कर लगा के आजकल के माहौल के मुताबिक सटीक बैठेगी | सो आपके सम्मुख प्रस्तुत है पढ़ें, आनंद लें और बताएं के कैसी लगी?

लाड़ेज़ और जेंटलमैन
इंडिया एक बहुत बड़ी कंट्री है
इसमें मैनी लैंग्वेज बोलने वाले लोग हैं
हम सब इंडिया के सिटीजन हैं
हिंदी हमारी मदर लैंग्वेज है
इसलिए हिंदी बोलना कंपल्सरी है
एंड हिंदी लिखना नेसेसरी है
पर आज की यंग जनरेशन
हिंदी बोलने और लिखने में शर्म फील करती है
जब भी अपना माउथ खोलती है
इंग्लिश में ही बोलती है
किसी पर्सन की पर्सनेलिटी को
अन्ग्रेज़ीअत में तोलते हैं
लेकिन हिंदी के इम्प्रूवमेंट के लिए
हमें डेली लाइफ में उसे करनी है हिंदी
हमें हिंदी को वर्ल्ड वाइड पहुँचाना है
हिंदी में इंग्लिश मिलाकर
उसका मिक्सचर मीन्स हिंगलिश नहीं बनाना है
दैन ओनली भारत माता के
ड्रीम होंगे सच एंड हमारी
मदर लैंग्वेज हिंदी की होगी इज्ज़त...

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

मैंने सोचा

मैंने सोचा
मैं रो दूंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

मैंने सोचा
मैं मर जाऊंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

पर अब
मैं सोचता हूँ
उन खुशनुमा
पलों के बारे में
जो कभी साथ बिताये थे
मैं रोता हूँ

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
हम कभी खुश थे

मैं रोता हूँ
क्योंकी
मुझे पता है
अब कभी
नहीं मिलेंगे

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
अब एक दुसरे को
कभी देख नहीं पाएंगे

अब दर्द
धीरे धीरे
कम हो रहा है
दिल भी
मेरे और
ज़िन्दगी से साथ
मर गया है

रविवार, जनवरी 06, 2013

दामिनी की मौत की कहानी, दोस्त की जुबानी (पढ़िये पूरा सच)

दिल्ली गैंगरेप की पीड़ित लड़की जिसकी मौत हो चुकी है उनके पुरुष मित्र और इस केस में एकमात्र गवाह ने शुक्रवार को पहली बार इस मसले पर ज़ी न्यूज़ से बात की। बातचीत में पीड़िता के दोस्त ने बताया कि 16 दिसंबर 2012 की रात हैवानियत वाली घटना के बाद भी उनकी दोस्त जीना चाहती थी। 
उस भयावह रात क्या-क्या हुआ, उसे विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस की तीन-तीन पीसीआर वैन आई और पुलिस थानों को लेकर उलझी रही। उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक का समय लगा दिया गया।
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस आई और उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक समय लगा दिया। उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। गैंगरेप के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। 
उन्होंने कहा, ‘इस भयावह घटना पर मीडिया में बहुत सारी चीजें आई हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि हमारे साथ उस रात क्या हुआ। मैं बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने उस रात किन-किन मुश्किलों का सामना किया।’  उन्होंने उम्मीद जताई कि इस त्रासदपूर्ण घटना से अन्य लोग सबक सीखेंगे और दूसरे का जीवन बचाने के लिए आगे आएंगे। 
उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने 16 दिसंबर की रात उन्हें बस में चढ़ने के लिए प्रलोभन दिया। पीड़ित लड़की के दोस्त ने बताया, ‘बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे। बस में सवार लोग पहले भी शायद अपराध में शामिल थे। 
ऐसा लगा कि बस में सवार आरोपी पहले से तैयार थे। ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा बस में सवार अन्य सभी यात्री की तरह बर्ताव कर रहे थे। हमने उन्हें किराए के रूप में 20 रुपए भी दिए। इसके बाद वे मेरी दोस्त पर कमेंट करने लगे। इसके बाद हमारी उनसे नोकझोंक शुरू हो गई।’
उन्होंने बताया, ‘मैंने उनमें से तीन को पीटा लेकिन तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड लेकर आए और मुझ पर वार किया। मेरे बेहोश होने से पहले वे मेरी दोस्त को खींच कर ले गए।’ पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘हमें बस से फेंकने से पहले अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए उन्होंने हमारे मोबाइल छीने और कपड़े फाड़ दिए।’ 
पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘जहां से उन्होंने हमें बस में चढ़ाया, उसके बाद करीब ढाई घंटे तक वे हमें इधर-उधर घुमाते रहे। हम चिल्ला रहे थे। हम चाह रहे थे कि बाहर लोगों तक हमारी आवाज पहुंचे लेकिन उन्होंने बस के अंदर लाइट बंद कर दी थी। यहां तक कि मेरी दोस्त उनके साथ लड़ी। उसने मुझे बचाने की कोशिश की। मेरी दोस्त ने 100 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसका मोबाइल छीन लिया।’
उन्होंने कहा, ‘बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें बस से कुचलकर मारने की कोशिश की लेकिन समय रहते मैंने अपनी दोस्त को बस के नीचे आने से पहले खींच लिया। हम बिना कपड़ों के थे। हमने वहां से गुजरने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की। करीब 25 मिनट तक कई ऑटो, कार और बाइक वाले वहां से अपने वाहन की गति धीमी करते और हमें देखते हुए गुजरे लेकिन कोई भी वहां नहीं रुका। तभी गश्त पर निकला कोई व्यक्ति वहां रुका और उसने पुलिस को सूचित किया। 
पीड़िता के दोस्त ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि बस से फेंके जाने के करीब 45 मिनट बाद तक घटनास्थल पर तीन-तीन पीसीआर वैन पहुंचीं लेकिन करीब आधे घंटे तक वे लोग इस बात को लेकर आपस में उलझते रहे कि यह फलां थाने का मामला है, यह फलां थाने का मामला है। अंतत: एक पीसीआर वैन में हमने अपनी दोस्त को डाला। वहां खड़े लोगों में से किसी ने उनकी मदद नहीं की। संभव है लोग ये सोच रहे हों कि उनके हाथ में खून लग जाएगा। दोस्त को वैन में चढ़ाने में पुलिस ने मदद नहीं की क्योंकि उनके शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था। घटनास्थल से सफदरजंग अस्पताल तक जाने में पीसीआर वैन को दो घंटे से अधिक समय लग गए। 
दिवंगत लड़की के दोस्त ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ किसी ने भी हमें कपड़े नहीं दिए और न ही एम्बुलेंस बुलाई। उन्होंने कहा, ‘वहां खड़े लोग केवल हमें देख रहे थे।’ उन्होंने बताया कि शरीर ढकने के लिए कई बार अनुरोध करने पर किसी ने बेड शीट का एक टुकड़ा दिया। उन्होंने बताया,‘वहां खड़े लोगों में से किसी ने हमारी मदद नहीं की। लोग शायद इस बात से भयभीत थे कि यदि वे हमारी मदद करते हैं तो वे इस घटना के गवाह बन जाएंगे और बाद में उन्हें पुलिस और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे।’
उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि अस्पताल में हमें इंतजार करना पड़ा और मैंने वहां आते-जाते लोगों से शरीर पर कुछ डालने के लिए कपड़े मांगे। मैंने एक अजनबी से उनका मोबाइल मांगा और अपने रिश्तेदारों को फोन किया। मैंने अपने रिश्तेदारों से बस इतना कहा कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं। मेरे रिश्तेदारों के अस्पताल पहुंचने के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो सका।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर पर चोट लगी थी। मैं इस हालत में नहीं था कि चल-फिर सकूं। यहां तक कि दो सप्ताह तक मैं इस योग्य नहीं था कि मैं अपने हाथ हिला सकूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार मुझे अपने पैतृक घर ले जाना चाहता था लेकिन मैंने दिल्ली में रुकने का फैसला किया ताकि मैं पुलिस की मदद कर सकूं। डॉक्टरों की सलाह पर ही मैं अपने घर गया और वहां इलाज कराना शुरू किया।’
उन्होंने कहा, ‘जब मैं अस्पताल में अपनी दोस्त से मिला था तो वह मुस्कुरा रही थीं। वह लिख सकती थीं और चीजों को लेकर आशावान थीं। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह जीना नहीं चाहतीं।’ उन्होंने बताया, ‘पीड़िता ने मुझसे कहा था कि यदि मैं वहां नहीं होता तो वह पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती। मैंने फैसला किया था कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाऊंगा।’
पीड़िता के दोस्त ने बताया कि उनकी दोस्त इलाज के खर्च को लेकर चिंतित थी। उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का हौसला बढ़ाए रखने के लिए मुझे उनके पास रहने के लिए कहा गया।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने महिला एसडीएम को जब पहली बार बयान दिया तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। उन आरोपियों ने मेरी दोस्त के साथ जो कुछ किया, उस पर मैं विश्वास नहीं कर सका। यहां तक जानवर भी जब अपना शिकार करते हैं तो वे अपने शिकार से इस तरह की क्रूरता के साथ पेश नहीं आते।’
दिवंगत लड़की के दोस्त ने कहा, ‘मेरी दोस्त ने यह सब कुछ सहा और उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि आरोपियों को फांसी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें जलाकर मारा जाना चाहिए।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने एसडीएम को जो पहला बयान दिया वह सही था। मेरी दोस्त ने काफी प्रयास के बाद अपना बयान दिया था। बयान देते समय वह खांस रही थीं और उनके शरीर से रक्तस्राव हो रहा था। बयान देने को लेकर न तो किसी तरह का दबाव था और न ही हस्तक्षेप। लेकिन एसडीएम ने जब कहा कि बयान दर्ज करते समय उन पर दबाव था तो मुझे लगा कि सभी प्रयास व्यर्थ हो गए। महिला एसडीएम का यह कहना कि बयान दबाव में दर्ज किए गए, गलत है।’
यह पूछे जाने पर कि इस तरह की घटना दोबारा से न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वह क्या सुझाव देना चाहेंगे। इस पर दोस्त ने कहा, ‘पुलिस को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो अस्पताल पहुंचाया जाए। पीड़ित को भर्ती कराने के लिए पुलिस को सरकारी अस्पताल नहीं ढूढ़ना चाहिए। साथ ही गवाहों को भी परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि कोई मोमबत्तियां जलाकर किसी की मानसिकता को नहीं बदल सकता। उन्होंने कहा, ‘आपको सड़क पर मदद मांग रहे लोगों की सहायता करनी होगी।’ उन्होंने कहा, ‘विरोध-प्रदर्शन और बदलाव की कवायद केवल मेरी दोस्त के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी होना चाहिए।’
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा समिति से वह चाहते हैं कि वह महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर करने और शिकायतकर्ता के लिए आसान कानून बनाने के लिए उपाय सुझाए। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ढेर सारे कानून हैं लेकिन आम जनता पुलिस के पास जाने से डरती है क्योंकि उसे भय है कि पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज करेगी अथवा नहीं। आप एक मसले के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह फास्ट ट्रैक कोर्ट हर मामले के लिए क्यों नहीं।’
पीड़िता के दोस्त ने खुलासा किया, ‘मेरे इलाज के बारे में जानने के लिए सरकार की तरफ से किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया। मैं अपने इलाज का खर्च स्वयं उठा रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का इलाज यदि अच्छे अस्पताल में शुरू किया गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती।’ 
बता दें कि गैंगरेप पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में किया गया था। इसके बाद उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया। पीड़िता के दोस्त ने यह भी बताया कि पुलिस के कुछ अधिकारी ऐसे भी थे जो यह चाहते थे कि वह यह कहें कि पुलिस मामले में अच्छा काम कर रही है। 
उन्होंने बताया, ‘पुलिस अपना काम करने का श्रेय क्यों लेना चाहती थी? सभी लोग यदि अपना काम अच्छी तरह करते तो इस मामले में कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती।’ पीड़िता के दोस्त ने कहा, ‘हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है। मेरे परिवार में यदि वकील नहीं होते तो मैं इस मामले में अपनी लड़ाई जारी नहीं रख पाता।’
उन्होंने कहा, ‘मैं चार दिनों तक पुलिस स्टेशन में रहा, जबकि मुझे इसकी जगह अस्पताल में होना चाहिए था। मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मामले में दिल्ली पुलिस को स्वयं आकलन करना चाहिए कि उसने अच्छा काम किया है अथवा नहीं।’
उन्होंने  कहा, ‘यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं तो उसकी मदद कीजिए। उस रात किसी एक व्यक्ति ने यदि मेरी मदद की होती तो आपके सामने कुछ और तस्वीर होतीं। मेट्रो स्टेशन बंद करने और लोगों को अपनी बात कहने से रोकने की कोई जरूरत नहीं है। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जिसमें लोगों का विश्वास कायम रहे।’
उन्होंने बताया, ‘हादसे की रात मैं अपनी दोस्त को छोड़कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा। ऐसी घड़ी में यहां तक कि जानवर भी अपने साथी को छोड़कर नहीं भांगेंगे। मुझे कोई अफसोस नहीं है। लेकिन मेरी इच्छा है कि शायद उसकी मदद के लिए मैं कुछ कर पाया होता। कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने ऑटो क्यों नहीं किया, क्यों अपनी दोस्त को उस बस तक ले गया।’

गुरुवार, जनवरी 03, 2013

पराजय, नुकसान, असफलता, द्वेष, इर्ष्या के लक्षण

वो सर्वप्रथम स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है | आप भूल जाते हैं आप क्या कर रहे थे, क्या किया था तथा क्या करने वाले थे | विचार शीघ्रगामी तरीके से मस्तिष्क छोड़ने लगते हैं जब तक खालीपन की प्रतिध्वनि सुनाई नहीं देने लगती | फिर सपने | फिर विलम्ब, सम्मिश्रण, प्रतिगम - परिवर्तन | फिर अनुभव | फिर भाषा | फिर सन्तुलन | और इसके पश्चात आपकी मृत्यु |

आपका मस्तिष्क कुतूहलपूर्ण ढंगे से जल्दी जल्दी आपको विचलित करेगा | अलगाव की भावना सामान्यतः प्रारम्भिक प्रतीक है: आपने अपने आप को बिसूरना प्रारंभ कर दिया है | जैसे जैसे मर्ज़ अग्रगमन करता है, आप नुक़सान करने लगेंगे और पराजित होने लगेंगे | आप मुलाक़ात और मेल मिलाप में असफल होने लगेंगे जो आपकी ज़िन्दगी की तरक्क़ी में अहमियत रखती हैं | आपक निजी जीवन अस्त व्यस्त होने लगेगा | आपका मंजन आपके घर की चाबी और चाबियाँ आपकी बीवी और बीवी आपकी दुश्मन और दुश्मन आपके माता पिता बन जायेंगे |

इस परिस्थिति की सम्पूर्णता एक अनाम वियोग के इन्द्रियज्ञान से अधिकृत होगी | आप संभवतः समझेंगे और प्रतीत होगा जैसे आप भूतग्रस्त, आत्मसात्, अपहृत, मृत, बदले हुए इंसान हैं | आपके ज़िन्दगी के ज़ायके पुनर्भिविन्यासित होंगे | आप नई उत्कट इच्छाओं, अधिहृषता, अंधभक्ति की उधारना करेंगे | इसी समय आपकी अरुचि विसर्जित होने लगेगी | समस्त संसार से विच्छेद होने लागेगा | आपके विचार स्वयं प्रभावशून्य होते प्रतीत होंगे |

प्रारंभिक आसार अहानिकर होंगे; सामान्य परिणाम जैसे तनाव और हार्मोनल असंतुलन: हलकी अन्यमनस्कता, एकाग्रता में कठिनाई, स्तब्ध भावनाएं, कुत्सित स्मृति | लपस के लिए आकस्मिक उत्तेजना | काल्पनिक विचारधारा का सत्याभास होना | ख्वाबों का अत्यंत आक्रामक होना और सपनो को स्मरणशक्ति द्वारा याद करने में क्षीर्ण होना | अनिश्चितता के भाव द्वारा अनुसरण अन्यथा प्रत्यक्ष वस्तुएं के लिए जैसे स्पष्ट सरूपता | संदेह, सामान्य स्तिथि में सभी वस्तुओं पर |

सनकीपन - ज़बर्दस्त प्रवृत्ति उत्पन्न होना | विश्वास, क्रियापद्धति तथा अन्य ज्ञानरहित आचरण - जिसमें बढ़ी हुई आध्यात्मिकता - असामान्य नहीं है | संभवतः आप अंतर्निहित दिमाग़ी संवेदना से त्रस्त - खाना, पीना, सोना, करना, धोना सभी निष्फल होंगे |

आप प्रायः तुच्छ तथा निरर्थक वस्तुओं से, सम्भावित वस्तुओं से और पूर्वकालिक वस्तुओं से भयभीत होंने लगेंगे | आपके विचार जो अपने दिमाग में दौड़ रहे होंगे - ऐसे प्रतीत होंगे जैसे किसी बंद परिपथ पर रफ़्तार से दौड़ रहे हों | और समय के साथ वो विचार अस्पष्ट, अस्पृश्य और सहभागी करने योग्य नहीं रहेंगे | आपकी चित्त वृत्ति का प्रकृति प्रत्यक्षीकरण का भी यही हाल होगा जब तक वो गूढ़ नहीं होते और फिर बाद मे वह धुंधले पड़ने लग जायेंगे |

ध्यान केन्द्रित करने, तर्क सिद्ध निष्कर्ष निकलने, संचारण करने, जानकारी ग्रहण करने में कठिनाई उत्पन्न होगी | दूसरों के सुझाव, वार्तालाप, व्याख्यान सभी व्यर्थ लगेंगे | आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा | आपकी सोचने, समझने, सुनने, देखने, जानने की क्षमता कुंद हो जाएगी | आप रंग भेद का फर्क भी अलग दिखने लगेगा | ये भी हो सकता है के इस स्तिथि में आप पढ़ना-लिखना, चेहरे पहचानना भूल जाएँ | यह भी मुमकिन है और सत्याभास है के आप मतिभ्रम हो जाएँ या आगे जाकर पूर्ण रूप से दृष्टिहीन हो जाएँ | आप दूसरों पर चढ़ने लगें, उन्हें गिराने लगें, ठोकरें खाने लगें तथा आखिर में पूर्ण रूप से ध्वस्त हो जाएँ |

अंत में वो घूम फिर कर आपकी याददाश्त में वापस आता है | आप भूल जाते हैं आप कौन हैं | आप किस तरह ज़िन्दगी जीते हैं | किस तरह कार्य करने में विश्वास रखते हैं | इस बीमारी के कुछ विशेष निर्धारित लक्षण होते हैं जो अच्छे से अच्छे व्यक्ति की स्मृति, प्रवीणता, कौशल, विवेक, निपुणता, विद्या, हुनर तथा गुण को नष्ट कर देते है | आपको जकड़ लेते हैं | यदि आप इसकी ओर ध्यानाकर्षित करते हैं, इसका इंतज़ार करते हैं तो समझिये आप ख़त्म और उसके आगे, उसके बाद कुछ नहीं है |

अतः इन लक्षणों से सदा ही बच कर जीवन जियें |

बुधवार, जनवरी 02, 2013

Last Day of 2012


Its very much like just another day in my daily routine life. Family, Kids, Computer and Sleep. Nothing new as such. Life is such a routine nowdays. My morning started with cup of tea with family members which is usually a daily event because without this the bowel movement seems impossible. After having that special sip of lovingly prepared Ramdev tea and playing with children and all the ho-halla of the morning events comes the time to freshen up  get relaxed. In this chilling winters of Delhi, its really next to impossible to survive without the hot water even for the daily motion activity I wish I can have it. So next comes the relaxation part when I came and sit in front of my laptop. My room, my bed, my quilt and my laptop with wifi internet. As soon as I lay there, start surfing my daily websites, checking out my mails and blogs and just as I open up the notepad to scribble a few lines there came the voice calling out my name.

"Beta! Aaj khane mein kya pasand karoge?" 

Gosh!! its Ma. She was asking what would i like to have in lunch. 

The moment i can give a respond to her question another bouncer came from her. 

"Idli bani hain. Wahi kha lena. Baache to wahi khayenge"

I generally don't like Rava Idlis very much so I said why not have some rice dosa or rice idli. She said ok but you have to go and buy some stuff from the market. I was feeling a bit lazy so requested my sister and wife to go and get the stuff from the market and specially the dosa batter and Nariyal for chutney from the Keralite shop. The went to the market and got the stuff. 

During all this time I was enjoying with my kids, teaching them how to do their holidays homework of hindi, english and maths. Followed up by the Art Session after all that work. Immediately, after getting over with art session, was the request to play Doraemon or Ramayan movie on television. I just tell you today's kids have a bag full of energy in them and they can never get tired. I was literally exhausted after all this session and went to rest.

To cut the long story short its that we all had dosa, kids had idli with the coconut chutney prepared by me and sambhar prepared by my wife. 

After all that long day with family came the night. I was busy fixing up my laptop operating system. Oops! Oh! Sorry! I forgot to tell this that I messed around with my laptop OS the other day, when I was trying to upgrade it and install Windows 8 64bit version over Windows 7 32bit but end up fucking up my laptop. 

So it's several minutes past midnight of December 31st 2012. Two and a half hours ago, my family had just eaten dinner. Mother had made her typical desi ghee dosa, sambar and coconut chutney. It was delicious. I ate a lot. Then the round of sweet dish chana chikki, gazak, moongphali chikki, til chikki and gazak biscuits the speciality of the day. Off course we all had the dinner together and enjoyed a lot. 

Like I said, I had eaten a lot, so I felt having a promenade around my house stairs. I immediately reentered my house stairs: the smell of gunpowder gets on my nerves. 

Its really been chilling winters going on so me and my family are not very observing of New Year local traditions. Meeting other people, going or visiting here and here. We just have our own way of enjoying by spending time together and chit chatting. Two hours past the former events, i was thinking to ignite a few fireworks with my kids. We have saved a few of phooljhadis from diwali to have a good time at new year midnight. 

Midnight arrived. Yes! its midnight! Unsurprisingly, the level of noise has risen. The fog has grown more thicker. Its really chilling as we go up the house terrace, from where we can see fireworks coming even from places far from the house. I don't just notice the fireworks; the sky is red: freaking blood red. I wanted to ignite the fireworks; but each time i see towards the sky i see fireworks soaring into the black and red dense night, leaving behind the grey cloud of gases and dust. Soon after, seening all that i dropped the idea of igniting the phooljhadi because of my kids health issues as its freezing cold. We all agreed to come down and close all the windows and doors becuse of the heavy noice and gunpowder released into the air. Later, I must have acknowledged that the smell of the gunpowder that i described earlier was trival; the smell of gunpowder pas midnight is mundane, at least comparatively. Because of winters the people down on the streets burn all sorts of things like paper, wood, plastic and what not. Imagine what's the smell of the air in a country where half the population is burning waste things at the same time. 

Also, I can hear the drunk people shouting Happy New Year and all sorts of other dramatics with local slang abuses, songs and slogans. People are enjoying it but I feel they are also crossing the limits. A few young guys, I saw from my terrace were drinking at the corner of the street and then throwing the empty bottles and breaking them. There was noise and shout everywhere. It was not really human like behaviour. 

Well all these described activities releases dangerous amount of gases into the air. Both fireworks and firecrackers and other noise makers usually contain gunpowder, which releases sulphur salts and carbondioxide into the air. Burning plastics, paint boxes, wood and papers provokes combustion of these things. Both fireworks and firecrackers also contribute to noise pollution for days: people like kids, old and medical patients have to suffer a lot. Color giving salts from fireworks are made of metals in cholorate or perchlorate form, resulting in a thicker airborn particle density. Fireworks worsen light pollution which has been inconspiciously detrimental to human health for decades.  I have not yet taken into account the danger posed by storage, commercial or domestic, of fireworks and firecrackers. Oops, I just did. also, let's take into account the amounts of paper, wood, plastics and whatever materials consumed for production of these novelties. Really, I could make an extensive list of inflammatory but sensible accusations at them, but i just wanted to be "brief".

Its about time I openly admit it: I hate fireworks, firecrackers and people who burn things in open in winters. Plus, I'm Hindustani, which makes my disdain for fireworks pretty much interesteing. I grew up in Delhi, which makes my disdain for these things as much peculiar. Firecrackers make a mess out of my house. I had to ask the sweeper in the morning to sweep it off. 

Frankly, its not like I have a grudge against holidays or celebrations: but only Diwali and New Year Celebrations. But, alas! no one can help to stop all this. After all this tamasha i came back to my room, after my kids are sleep and the whole house was quite at 3.00am in the morning i was sitting on my chair and fixing up my laptop operating system issues. Nothing special was there in the last day of the year too. It was just the same as on in the usual daily life. 

By the way, have a Blasting and Prosperous New Year. Ji Aaya Nu Nava Saal. Enjoy.

गुरुवार, दिसंबर 06, 2012

In My Dreams

I hear her whispers in my ears in my dreams
I hear her murmuring my name when i love her in my dreams
I hear her moans and groans in my dreams
I hear her saying make love to me in my dreams
I hear her telling me that i am the only one for her in my dreams
I hear her everyday and i love it so much

I see her falling into my arms in my dreams
I see her glowing face lightning up my darkness in my dreams
I see her fighting my problems in my dreams
I see her wiping off my tears in my dreams
I see her facing my fears in my dreams
I see her everyday and i love it so much

I smell her body fragrance, as i hold her in my dreams
I smell her hair conditioner, as i hug her in my dreams
I smell her mouthwash, as i kiss her in my dreams
I smell her excitement, as she cuddle in me in my dreams
I smell her aroma, as she looses herself in my arms in my dreams
I smell her everyday and i love it so much

I feel her fingers in my hair in my dreams
I feel her hot breath on my neck in my dreams
I feel her body pressed so close to mine in my dreams
I feel her lips on my throat in my dreams
I feel her hands move on my body in my dreams
I feel her everyday and i love it so much

I taste her lips in my dreams
I taste her tongue in my dreams
I taste her moistness in my dreams
I taste her salts in my dreams
I taste her love, passion and kisses in my dreams
I taste her everyday and i love it so much

I hear her in my dreams
I see her in my dreams
I smell her in my dreams
I feel her in my dreams
I taste her in my dreams
I do all this everyday and i love it so much

I am finally with her
She is finally with me
I love this so much
I love her all my life
Till i die, Till i die.

गुरुवार, अगस्त 30, 2012

For Me Love is ....


Love is Aroused
Love is Adoration
Love is Avid
Love is Adult
Love is Autoerotic
Love is Antiseptic
Love is Beautiful
Love is Blue
Love is Care
Love is Caress
Love is Coquettish
Love is Captivating

Love is 'Deep'
Love is Desire

Love is Dare
Love is Eternal
Love is Erotic
Love is Excite
Love is Fondle
Love is Flirtatious
Love is Forever
Love is Gamey
Love is Gold
Love is Gamy
Love is Hot
Love is Horny
Love is Highly Sexed
Love is Happiness
Love is Hunger
Love is Intimate
Love is Infected
Love is Immature
Love is Irreplaceable
Love is Joined
Love is Jazz
Love is Juicy
Love is Kept
Love is Kisses
Love is Lascivious
Love is Lustre
Love is Lustful
Love is Lubricious
Love is Leering
Love is Leering
Love is Lecherous
Love is Luscious
Love is Lewd
Love is Libidinous
Love is Magical
Love is Mature
Love is Natural
Love is Naughty
Love is Nude
Love is Overpowering
Love is Oversexed
Love is Open
Love is Orgiastic
Love is Precious
Love is Prurient
Love is Penetration
Love is Pornographic
Love is Purple
Love is Predicate
Love is Provocative
Love is Quaint
Love is Quiet
Love is Quirky
Love is Quiver
Love is Rare
Love is Racy
Love is Ruttish
Love is Randy
Love is Red Hot
Love is Raunchy
Love is Risque
Love is Stroke
Love is Satisfaction
Love is Sin
Love is Sexual
Love is Salacious
Love is Septic
Love is Spicy
Love is Sexy
Love is Sexed
Love is Steamy
Love is Shared
Love is Starve
Love is Truth
Love is Toothsome
Love is Titillating
Love is Thirst
Love is Unconditional
Love is Unify
Love is Undying
Love is Undress
Love is Upbeat
Love is Understanding
Love is Valued
Love is Valentine
Love is Vixon
Love is Voluptuous
Love is Vivacious
Love is Wind
Love is Want
Love is Warmth
Love is XXXXXX
Love is Yours
Love is Young
Love is Yearning
Love is Zealous
Love is Zatch
Love is Zazzy
Love is Zonked
Love is Zappy
Love is Zany
Love is Zesty

मंगलवार, अगस्त 21, 2012

I Want You to Fuck Me

I realized i failed at being erotic, so i wrote this monstrosity to be more blunt, yet quite amusing, not vulgar like it had the potential to become.

I don't need artistic and stylish words
To tell you that I want you to fuck me
I mean, dammit, you should know
You're fucking sexy, sensual and juicy
And I can't help but want you
Just hold me down and fuck me
As much as you want
Just one look at you
Makes me aroused than I can bear
I'll lock myself in my room
And take care of it myself
Though it's your responsibility
Gone and made me wet?
I'll let it slide this time
But, whether you like it or not,
Someday, I'll get you
And I'll fuck you and I guarantee
You'll never forget it

रविवार, जुलाई 08, 2012

Why am i writing ?

I often write words that just comes to me. But, how come everyone writes nowadays? I mean, I am writing a blog! Someone – let’s call her ‘Mysterious Girl’- once said I am the most pathetic, cruel and unromantic person on this planet earth! And why do I have a blog ?
So what is this obsession to write or should I say “expression”? Someone once said, that people write blogs because they want attention and want to be “sexy and get noticed. Really? Since when did writing become attention seeking or noticable or sexy? It’s one of the most mundane and ancient activities. That is what i personally feel.
I think people write to share things they can’t always talk about. They write to find themselves and sometimes to bring down their pain. The thoughts, the feeling, the emotions that they cannot bring to words while talking. So that brings me to, why the need to share? It’s because only when it’s shared, it becomes real.
If something happens to me- death,  life, good, bad, funny, silly, sad, touching- it only appears real when I tell someone about it. And these writings are actually or preferably or mostly shared with the most important person in ones life. At least one person. If I can’t do that, then that experience does not seem real. Like it never happened. Weird? Probably, but that is my reasoning on at least why I am writing.
Other people probably write for other reasons- they actually have something meaningful to say (or think they do), are professionals e.g. authors, poets etc. (I so admire authors! Sexiest profession as per me, second only to travellers- involves travelling, meeting new people, exploring new cultures, traditions and so much more: so masculine, and creativity: so inspirational- what could be sexier and fun? But hey, I digress).
Other people who write probably prefer it to talking, so they write as a way to communicate. While some others write to simply brag.
I do wish however more people would read- not my blog- just in general...people should read more than they write and not the other way round. I don’t think myself as a judgemental person (but then who does, right?). But I REALLY am not one. Except for people who don’t read books. I judge them. I find them boring, shallow and dull.
So if you want to be (or at least appear to be) interesting and thus sexy, go pick up a book. If, not book at least go pick up and read something. Ideally something from the classics or entertainment.
P.S. read my other posts below before judging my writings and poems ;)

रविवार, जनवरी 01, 2012

Will I ?

Will I embarrass you if I ask if I could make love to you?
I will lay you down on a bed of rose petals made just for us two

Will I cause you to blush as I remove your clothes?
I will look you in the eyes, and then kiss you on your nose

Will I cause you to close your eyes when I kiss your lips?
I will pull you real close, my hands holding your hips

Will I cause you to shiver as I kiss you from head to feet?
I will pause for a moment at intervals, to admire your beauty and greet

Will I cause you to tremble as I taste the essences of your love?
I will create a synergy between our worlds as I release and free your dove

Questions I am asking because this is what I want to do
Make love to you all day and night, with unbridled passion that is true...

Please Stay

Now you will think that what has happened to me in this very first day of the new year. Have i gone wild,dirty and insane ? So its right here that I’ve been struggling with the muses for years now, and last night I forced myself to mess with words until I had something. It’s not much, but it’s not nothing either. And this first day of this new year is what i felt the right moment to express myself so that this year i would have more dreams - hopefully with....

Fingers too twitchy
to put keys to keyboard
wanting to dig 'deep'
into your flesh
typed with impressions
bruises of grip

Body too tense
to vocalize desire
wanting to pierce
to cum into you
the totality of
my need

Word-deserted
I speak instead
with concussions
The sharp sound
of bodies
in impact

Read what I can’t write
Hear what I can’t say
And stay

Please Stay

The Endless Search

Literally love this poem which i read some tym back.  It comes under erotic poetry and i am seriously a big fan of this kind of erotic writing. Hats off to the poet's vision, thought, the depth over sex, love and eroticness in human life.

Seeing myself as some integral part
of  all that looks to love as a solution,
aching to find significance of the heart
and puzzled by its threatened dissolution.
Trying to preserve the present  wastes
our time and effort.  Change isn’t tradable,
whether  memories  of a lover’s tastes
or  his desire for you,  it’s not evadable.
In our city’s waste of streets and houses
huddling  behind our walls and fences
we miss the presence of  our hoped for spouses
cut off from love by our own  defences.
Yet there’s a need that can not be denied
as each one needs to find a mate
a lover or a mistress from outside,
to end the loneliness of staying celibate.