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मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

एक शाम उसके नाम




















‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे 
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे 
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है 
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ 
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं 
ठहर जाएँ तो सागर हैं 
बरस जाएँ तो शबनम हैं 
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में 
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा 
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की 
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है 
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है 
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को 
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है 
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात 
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है 
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे 
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ 
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ 
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक 
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था 
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था 
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया 
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं 
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है 
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा 
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है 
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा  
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए 
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का 
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का 
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही 
दोस्ती में, 
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन' 
तो शब् भर रात रोती हैं 
ये दुनिया तंग दिल इतनी 
दिलों में कांटे चुभोती है 
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ 
मैं हमदम से भी इतरा कर 
तेरी महफ़िल आकर तो 
बड़ी तकलीफ होती है 

बुधवार, दिसंबर 18, 2013

तेरा ही रहेगा













तेरे आने की जब खबर चहके
तेरी महक से सारा घर महके
तेरे रौशन चेहरे से दिन लहके
तेरी आहों से मेरा दिल बहके
तेरे होठों से मेरे अरमां दहके
तेरी बोली से ये जीवन कहके
कहता है 'निर्जन' रह रह के
तेरा ही रहेगा कुछ भी सहके....

शनिवार, दिसंबर 14, 2013

मुक़म्मल इंसान हो तुम














गैरों के एहसास 
समझ सकते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लोगों की परख 
रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

बेबाक़ जज़्बात 
बयां करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आँखों से हर बात 
कहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ल्ब* को साफ़ 
किये चलते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

दिल से माफ़ी 
दिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आशिक़ी बेबाक 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लबों पर मुस्कान 
लिए रहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

खुल कर बात 
किया करते हो, तो   
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़त्ल बातों से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ौल* का पक्का 
रहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ायदा* गर्मजोशी
का रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ज़बां पर ख़ामोशी
लिए रहते हो, तो  
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आफ़त को बिंदास
हुए सहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

गुज़ारिश दिल से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ग़म को चुप्पी से 
पिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जिगर शेर का  
रखा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जज़्बा बचपन सा 
लिए जीते हो, तो 
'निर्जन' हो तुम...

मुक़म्मल - पूर्ण / Complete 
क़ल्ब - दिल
क़ौल - बात
क़ायदा - तरीका 

शनिवार, अप्रैल 20, 2013

बदल रहा है

















दुनिया बदल रही है
ज़माना बदल रहा है
इंसानी फितरत का
फ़साना बदल रहा है

भूख बदल रही है
भोजन बदल रहा है
विकृत हाथों का
निशाना बदल रहा है

आचार बदल रहा है
विचार बदल रहा है
भेड़िये दरिंदों सा
किरदार बदल रहा है

सलीका बदल रहा है
तरीका बदल रहा है
विकृत यौनइच्छा का
पैमाना बदल रहा है

बीवी बदल रहा है
बेटी बदल रहा है
हैवानी हदों का
जुर्माना बदल रहा है

दिल्ली बदल रही  है
दिल वाला बदल रहा है
वीभत्स कुकृत्यों से
दिल्लीनामा बदल रहा है

लिखना बदल रहा है
सुनाना बदल रहा है
'निर्जन' फरमाने को
अफसाना बदल रहा है

ऐ मुर्दों अब तो जागो
कब्रों से उठ के आओ
अब सोते रहने का
मौसम बदल रहा है

शनिवार, मार्च 30, 2013

एकाकी












एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

शुक्रवार, मार्च 08, 2013

पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...















मानव जन्म क्या
एक बुदबुदा है
और उसका जीवन
एक कर्म,
कर्म अपूर्व कर्म पर
जब यह कर्म
अधूरा रह जाता है
किसी के प्रति, तब
एक कसमसाहट
कुछ यंत्रणाएँ
असहनीय तड़प
अव्यक्त पीड़ा
मन मस्तिष्क
में लिए
वो बुदबुदा
नया रूप लिए
फिर आता है
क्यों क्या, का
कर्म पूरा करने को
या किसी को, कर्म में
सहभागी बनाने को
नहीं जानता, जीवन
तू अपने नाम
में पूर्ण है, लेकिन
आत्मा में पूर्ण नहीं
वो तुझसे कहीं परे
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है
तुझमें छिपी है
शायद तुझे
मान, सम्मान
यश देने को
उस की आवाज़ सुन
उस की बात गुन
उस के संस्कार चुन
तभी तू पूर्ण जीवन
कहलायेगा,
कहलायेगा
पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, मार्च 28, 2011

गुफ़्तगू














साथ जिसके सजाये थे ख्व़ाब कितने
अब मिलता है वो सिर्फ़ ख़्वाबों में

आहट से जिसकी मचल उठता था दिल
अब सुनाई देता है वो सिर्फ़ आहटों में

साथ बिताये थे जिसके हसीन पल कई
अब गुज़रते हैं बन याद वो रातों में

बातें साथ करते थे जिसके बेहिसाब
अब रह गया है हिसाब सिर्फ यादों में

राहों से चुने थे जिसकी ख़ार हमने
छोड़ गया है वो 'निर्जन' अब काँटों में

चाहत में जिसकी हो रही है ये गुफ़्तगू
वो शख्स मिलेगा अब सिर्फ चाहतों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

Sath jiske sajaye the khwaab kitne
ab milta hai wo sirf khwaboon mein

Aahat se jiski machal uthta tha dil
Ab sunai deta hai wo sirf aahaton mein

Sath bitaye the jiske haseen pal kayi
Ab guzarte hain ban yaad wo raaton mein

Baatein sath karte the jiske behisab
Ab reh gaya hai hisab sirf yaadon mein

Raahon se chune the jiski khaar humne
Chhod gaya hai wo 'nirjan' ab kaanton mein

Chahat mein jiski ho rahe hain ye guftgoo
Wo shakhs milega ab sirf chahaton mein

-- Tushar Raj Rastogi ---

सोमवार, मार्च 14, 2011

सफ़र

मंज़िल कितनी है दूर अभी,
लम्बा मेरा सफ़र बहुत है
उस मासूम दिल को मेरे,
देखो तो मेरी फ़िक्र बहुत है
जान ले लेती तन्हाई मेरी,
सोचा मैंने इस पर बहुत है
सलामत है वजूद 'निर्जन',
उनकी दुआ में असर बहुत है...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक दोस्त








आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

शाम-ए-ज़िन्दगी फिर ढली सी है
ख़लिश ये दिल में फिर बढ़ी सी है

तेरी ख्वाहिश दिल में जगी सी है
एक आग ख्वाहिशों में लगी सी है

कभी किसी रोज़ तो बहारें आएँगी
साथ अपने हज़ार खुशियाँ लायेंगी

बस ये सोच आँख अभी लगी सी है
सपनो में मुझे ज़िन्दगी मिली सी है

आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

उसकी यादें














ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?

जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?

क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?

क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?

क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?

क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?

गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?

वो बिन तेरे जो खुश है अगर 
फिर 'निर्जन' हर पल क्यों मरता है ?

सोमवार, अगस्त 09, 2010

अंतर की वेदना












अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं

दुःख की संयोजना का
कोई पंथ नहीं

जो मेरा है
वो मेरा सर नहीं

जिसमें जीवित हूँ
वो मेरा संसार नहीं

रक्त रंजित अधर हैं
फिर भी मैं गा रहा हूँ

रुधिर बहते नयन हैं
फिर भी मुस्करा रहा हूँ

व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ
आक्रोश हूँ पर मौन हूँ

सत्य सह मैं
सत्य पर मिथ्या रहा हूँ

अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं अब

'निर्जन' जो होता है
अभिव्यक्त समक्ष वो

सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, अगस्त 03, 2010

खुशियों के चार पल















खुशियों के चार पल, मैं सदा ढूँढता रहा
क्या ढूँढना था मुझको, मैं क्या ढूँढता रहा

बेईमानों के शहर में, मैं अदना सा शख्स़
लेने को सांस थोड़ी, बस हवा ढूँढता रहा

मालूम था के उसकी, नहीं है कोई रज़ा
फिर भी मैं वहां, उसकी रज़ा ढूँढता रहा

मालूम था कि मुझे, नहीं मिल सकेगा वो
फिर भी मैं उसका, पता सदा पूछता रहा

फिर यूँ हुआ के उस से, मुलाक़ात हो गई
अब ताउम्र 'निर्जन', अपना पता पूछता रहा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, अगस्त 02, 2010

ये रात
















अलग सा एहसास, दिलाती है ये रात
दिलासा देती है, पास बुलाती है ये रात
लिपट के सोने को जी करता है इसके साथ
हालात हैं कि दिन की रौशनी से डरता हूँ
डर लगता है कि टूट न जाएँ ये हसीं ख्वाब
डर लगता है कि कोई मुझे यूँ देख न ले
देख ना ले कि मैं आज भी अकेली है मेरी रात 
तेरी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए साथ
उम्मीद है बस दिल में यादें सँवारने के लिए पास
कभी तो मिलेगी कहीं तो मिलेगी वो मुझसे
यकीन अपने से ज्यादा 'निर्जन' उस पर क्यों है ?
आकर देख ज़रा कि भरोसा ज्यों का त्यों है
अलग सा एहसास दिलाती है यह रात