तुझसे हैं सुबहें मेरी
तुझेसे ही शामें मेरी
तुझसे रातें दहकती मेरी
तुझसे हैं बातें मेरी
जिस्म में दिल की जगह
अब तू ही तू धड़कती है
आईना देखूं जो मैं
मेरे अक्स में तू झलकती है
जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं
जो तू है तो सब कुछ यहीं
तेरा हूँ मैं और तू मेरी
‘निर्जन’ की है कल्पना तू ही
तुझसे हैं...
--- तुषार राज रस्तोगी ---
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंजन्नत में जल प्रलय !
सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकविता बहुत अच्छी बनी है |
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
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