श्यामल श्यामली बाला
मायावी मोहित रंगशाला
लोचन मृगनयनी हाला
अधर मृद मधुशाला
दिव्य व्यक्तित्व मतवाला
कहती हम कहते "तुम", तुम को
क्यों कहते तुम "आप", हो हमको
हम कहते ये आदत अपनी
आप बिगड़ती हैं क्यों इतनी
"आप" शब्द में है अपनापन
"तुम" बेचारा है पानी कम
आप में "आ" से "आना" है
"प" से "पास" बुलाना है
तुम संधि पर जायेंगे
सच सामने पाएंगे
तुम का "तु" कहता तुनक कर
"म" मिजाज़ है खड़ा अकड़कर
तुम अनजाना ही लगता है
और बेगाना भी दिखता है
दिल पर अपने न चढ़ता है
जब दो दिल बतियाएंगे
शब्द दो ही फरमाएंगे
या वो "आप" बुलाएँगे
या "तू" कहकर जतलायेंगे
विचार आपने दिया हमें
शायद वर्णन सही जमें
अपनी राय फरमाइए
आप, तुम और तू का
अंतर बतलाइए
बात तो सही कही है आपने ...
जवाब देंहटाएंशुरूआती पंक्तियाँ काफी अच्छी लगी :-)
बेहतरीन रचना !
क्या बात है तुषार जी...अनुप्रास कि तो छटा ही बिखेर दी आपने... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआप ,तुम ,तू का अच्छा पोस्ट मार्टम किया -रोचक एवं मनोरंजक
जवाब देंहटाएंlatest post होली
जवाब देंहटाएंआप से अजनबी की बू आती थी ....
तुम से परिचय सा लगता ....
सबसे प्यारा तू लगता ...........
सुंदर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआप से अच्छा तुम
जवाब देंहटाएंऔर तुम से बेहतर तू
खूब .... बढ़िया पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंTushar Raj Rastogi kyuki mujhe khud "tum" khna achha lagta hai to maine assume kar liya ki wo shyamal baala mai hi hun ...ab mera jawab suniye ..श्यामल श्यामली बाला ने ..
जवाब देंहटाएंविचार अनोखा दे डाला ..
तुमने कहा "आप" शब्द में ..
लगता तुमको अपनापन है ..
हम कहते हैं "आप" शब्द में ..
औपचारिकता के सारे गुण हैं ...
हो घर के बड़े या नाते-रिश्तेदार ..
कोई अजनबी ,पडोसी या दुकानदार ...
देते हम सबको आदर अपार ...
"आप" से हम वाक्य का श्रृंगार कारातें हैं ..
औपचारिकता ,आदर के सारे नियम निभाते हैं ..
किन्तु
"तुम" जो लगता तुमको पानी कम है
उसी से मिलता अपना मन है
तुमको "तुम" लगता तुनकमिजाज
"तुम" में ही हैं प्यार और स्नेह के सारे राज ..
"तुम" में तू है जो ज्यादा करीब होने का एहसास कराता है ...
"तुम" में म है जो मन को मन से मिलाता है ...
"तुम" औपचारिकता के पुल को लांघकर .
दो जन को एक ही किनारे ले आता है ...
"तुम" न तू की तरह तीखा है ..
ना "आप" की तरह औपचारिक है ..
सबको अपना बना ले ..
ऐसा जादू बस "तुम" में है ...
"तुम" में कितना स्नेह है बार बार बतलायेंगे ..
हम तो "तुम" कहकर ही अपनापन जतलायेंगे ...
--पारुल'पंखुरी'
:-) :-) :-)
बहुत खूब .. आप तुम ओर तू का अंतर ...
जवाब देंहटाएंमस्त रचना है तुषार जी ...
वाह कितनी खूबसूरती से लिखा है आप ने ...आप और तुम ...में फर्क / आप शब्द में अपनापन तुम सहबद में पानी कम ...क्या ख्याल संजोया और पिरोया है...बेहतरीन अभियक्ति एवं सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों का तहे-दिल से धन्यवाद् और आभार | आप सभी की सहयोग से मेरा लेखन सार्थक हो पाया है | बहुत बहुत आभार आपका, मेरा साथ देने के लिए | आगे भी आप लोगों से ऐसी ही आशा रहेगी | आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सम्बन्धपरक कविता।
जवाब देंहटाएंसम्बोधनों की अत्यन्त सुन्दर व्याख्या! बधाई!
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंसम्बन्धो की सुन्दर व्याख्या
जवाब देंहटाएंसुन्दर.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया माँ ....
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