मंगलवार, फ़रवरी 19, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग ३

अब तक के सभी भाग - १०
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गाजे बाजे और रौनाकों के बीच से होते हुए, एक दुसरे का हाथ थामे वे दोनों हवेली के अन्दर चल दिए | अनारो देवी और गंगासरन अपने पिताजी और माताजी के साथ हवेली के प्रवेश द्वार पर पहुंचे | वहां पहले से ही परिवार के लोग स्वागत की तयारी किये मौजूद थे | चावल से भरी हांड़ी को हवेली की ड्योढ़ी पर रखा गया था | और नव युगल के आरते का थाल लिए परिवार के अन्य सदस्य बड़ी ही बेसब्री से दोनों की बाट जोह रहे थे | द्वार पर पहुँचते ही कलावती देवी ने अनारो के कान में धीरे से फुसफुसाया,

"बिटिया आरते के बाद, दाहिना पाँव उठाकर धीरे से ठोकर देकर चावल की हांड़ी को गिरना |"

अनारो ने धीरे से गर्दन हिलाकर समझने का इशारा किया | कलावती देवी तुरंत घर के अन्दर प्रवेश करती हैं और आरते की थाली लेकर दोनों की आरती उतरती हैं और फिर नज़र से बचने के लिए दोनों के सर से लाल मिर्ची वार फेर कर के आंच में डलवा देती हैं | अनारो धीरे से हांड़ी को पाँव से गिराकर ग्रेहप्रवेश करती हैं | प्रथम कदम घर में रखते ही उनके सामने सिन्दूर से भरा थाल प्रस्तुत कर दिया जाता है और कहा जाता है के,

"बहुरानी तुम तो लक्ष्मी का रूप हो, अब अपने दोनों पाँव इस आलते के थाल में रखकर खड़ी हो जाओ | फिर पहले अपना दायाँ पाँव बहार निकलना और ज़मीन पर इस सोच और प्रभु से प्रार्थना के साथ रखना के, हे प्रभु! मेरे और मेरे परिवार के जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि, अन्न-भोजन, लाड-प्यार, करुना-दुलार, आचार-विचार, आशा-अभिलाषा और मान-सम्मान की सदैव नदिया बहती रहें | मेरे पति के कारोबार में वृद्धी-समृद्धि बनी रहे | आरोग्य जीवन तथा निरोग्य काया हमेशा बरक़रार रहे | समस्त परिवारजन का स्नेह-आशीर्वाद मेरे सर पर बना रहे |  इस सोच, विचारधारा और सुमति के साथ ही अपने शुभ चरण कमल के निशान से हमारे घर आँगन को पवित्र करना |"

अनारो देवी ने ठीक वैसा ही किया | बुजुर्गों की बात और मंशा का मान रखते हुए उन्होंने अपना सर्वप्रथम चरण अपने नेक इरादों और मंगल मनोकामनाओं के साथ आहिस्ता से ज़मीन पर रखा | अपने पीछे पावों के निशान फर्श पर छापते और छोड़ते हुए वो धूम धाम और पूरे आदर सत्कार के साथ घर में दाखिल हो गईं |  

एक नव विवाहित स्त्री के लिए उसकी सच्ची और सुलझी हुई सकारत्मक, आशावादी, धनात्मक, प्रत्यक्षवादी और निर्णायक सोच ही प्रायः उसके जीवन में आने वाले सुखों का कारण बनती है | बुजुर्गों ने कहा भी है के "जैसी होती सोच वैसा मिलता भोज" | इसी के साथ अनारो देवी के नए जीवन की नई सुबह आरम्भ हुई | 

विवाह उपरान्त के बाद सुसराल में सहजता से मन लगाने के लिए और सबसे घुलने मिलने के लिए अनेकों तरह के खले उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे | ये खेल इसलिए खेले जाते हैं के नई दुल्हन को स्वच्छंद और आरामदेह माहौल मुहैया कराया जा सके | जिसमें वो रमती चली जाये और आने वाले समय में उसे किसी भी तरह का कोई संकोच करने की ज़रुरत महसूस न हो |

इन सभी रस्मों रिवाज़ों से निवृत होते होते कब दोपहर हो गई पता भी न चला | अब दोनों पति पत्नी पूर्णतः पस्त हो चुके थे | अलसाई आँखे लिए दोनों जैसे तैसे रीति रिवाज़ों को पूरा कर रहे थे और मेहमानों की हंसी ठिठोली के पात्र भी बन रहे थे | तभी गंगासरन जी के पिताजी जानकी प्रसाद जी की कड़क आवाज़ आई,

"अरे भागवान, यदि सभी रस्में और कसमें निबट गईं हो तो अब लल्ला और बिटिया को थोड़ी देर आराम भी करने दो | बच्चे कब से जाग रहे हैं | देखो ज़रा दोनों की शक्लें नींद के मारे कैसे मुरझाये जा रही हैं | और बाकी सब मेहमानों को भी आराम कर लेने दो | हंसी मजाक के लिए तो अब ये दोनों यही हैं | सारी ज़िन्दगी है अभी मजाक्बाज़ी के लिए |  बहु बिटिया अब अपनी ही है कोई पराई नहीं |"

इतना कहते हुए वो दोनों के पास आए, सर पर हाथ फेरा और कलावती देवी से उन्हें अन्दर ले जाने को कहा |

अपने कमरे में दाखिल होते ही थकान से चूर चूर दोनों निढाल होकर धप्प से बिस्तर पर ऐसे गिर पड़े मानो कोई पेड़ काटने के बाद धरती पर गिरता है | कब दोनों निंद्रा की गोद में समां गए मालूम ही न चला | अब दोनों स्वछन्द रूप से स्वप्न नगरी में भ्रमण-विचरण कर रहे थे | सभी मेहमान भी आराम करने चले गए थे और सम्पूर्ण घर में एक सुखमय शांति का वातावरण जागृत हो गया था | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
 

4 टिप्‍पणियां:

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