गुरुवार, जून 09, 2011

आज एक बाज़ार लगा देखा मैंने

इस कविता के पीछे एक छोटी सी कहानी है | एक दिन जब मैं व्यायाम शाला से घर वापस लौट रहा था | अचानक मेरी नज़र एक ठेले वाले पर पड़ी | वो आम बेच रहा था | ऊँचे दाम और डंडी मार तोल | दोनों तरीकों से पैसे बटोर रहा था | फिर भी लोग मक्खी की तरह उसके ठेले पर भिनभिना रहे थे | वहीँ करीब में एक छोटा सा बच्चा फटे चिथड़ों में खड़ा बेबस और ललचाई आँखों से आमों को देख रहा था | सोच रहा था के शायद कोई उसे भी कुछ दे दे | पर कोई भी इंसान उसकी तरफ़ नज़र घुमाने तक को तयार नहीं था | उसकी उस हालत को देख और उसकी आँखों में उमड़ती भावनाओं को पढ़ मेरा मन विचलित हो उठा | मैंने आगे बढ़ कर दो आम खरीद कर उसे खाने को दे दिए | आमों को देख उसके चेहरे पर आई मुस्कान ने मेरा ह्रदय गद गद कर दिया | घर आकर मैंने इस कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखने का प्रयत्न किया और जो प्रत्यक्ष देखा और महसूस किया वो शब्दों में पिरो दिया | आशा करता हूँ आपको मेरी यह कोशिश पसंद आएगी |

आज एक बाज़ार लगा देखा मैंने 
जम कर हो रहा था व्यापार 
बेच रहे थे बेबाक बेधड़क 
झूठ, सच, भूख, आइयाशी
साथ में थे 
दिल, जान, जिस्म और इमान
ढेर लगा था चापलूसी का 
भ्रष्टाचार पड़ा था सीना तान
भीड़ ऐसी लदी पड़ी थी 
जैसे फ्री मिल रहा हो जजमान
जिसको देखो चीख चीख कर 
कर रहा था गुणगान
इन चीजों के सौदे लेकर 
हर एक बन फिर रहा था धनवान 
आज एक बाज़ार लगा देखा मैंने 
जम के हो रहा था व्यापार 

बाजु वाले ठेले पर भी 
कुछ बेच रहा था एक इंसान 
सीधा साधा भोला भला 
शायद थे उसके भी कुछ अरमान 
प्यार, वफ़ादारी, सपने थे 
या कुछ उमीदें थी अनजान 
कुछ बेजुबान अफसाने भी थे 
और भी न जाने क्या क्या था सामान 
शराफत से आवाज़ लगा के 
कहता ले लो जी श्रीमान 
पर कोई ग्राहक ना आया 
और न बिकता उसका सामान 
लगता था इमानदार है, बेचारा 
जितना बोलता उतना तोलता 
पर कोई चवन्नी भी न देता 
अगर मिल भी जाती तो यह ज़हर खा लेता 
गला फाडेगा बस दिन भर खाली 
और खायेगा लोगों की गाली 
न बिकेगा कभी इसका सामान 
आज एक बाज़ार लगा देखा मैंने 
जम के हो रहा था व्यापार 

मैं दूर से ताड़ रहा था 
ज़िन्दगी का यह अजब तमाशा 
बेईमानी, चोरी, चालाकी, भ्रष्टाचार
घूसखोरी, झूठ, सच, भूख, आइयाशी
और इन जैसे कई और आइटम भी
बिक रहे थे जिंदाबाद
भाव रहे थे छु आसमान 
वहीँ पास में 
हो रही थी किसी की ज़िन्दगी वीरान
दम तोड़ते पड़े थे ठेले पर 
शराफत, सपने और अरमान
प्यार, मोहब्बत, ईमानदारी भी 
आखरी सासें ले रहे थे 
थे दाने दाने को मोहताज
आज एक बाज़ार लगा देखा मैंने 
जम के हो रहा था व्यापार

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