सोमवार, जून 06, 2011

किसी से प्यार न करना तू

दिल कहता है मेरा कबसे
किसी से प्यार न करना तू
समझाऊं कैसे तुझको

तरस न जाये तू कहीं
मंजिल-ए-वफ़ा  के लिए
तू अपि आहों में भी
सिला-ए-वफ़ा न पायेगा
हर शक्स हंसेगा तुझपर
जिसे भी तू
ज़ख्म-ए-फवाद सुनाएगा
दिल कहता है मेरा कब से
किसी से प्यार न करना तू
समझाऊं कैसे तुझको

न उठेंगे
फिर तेरे हाथ
महफ़िल-ए-यार में
इज़हार-ए-इश्क के लिए
न उम्मीद-ए-वफ़ा
तलाश कर तू
इस ज़माने में
दिल नहीं पत्थर
बसते हैं
इन वीरानो में
वोह देंगे सिर्फ
सितम और जफ़ाएं तुझको
दिल कहता है मेरा कब से
किसी से प्यार न करना तू
समझाऊं कैसे तुझको

इस दुनिया में
ज़ालिम लोग बसते हैं
यहाँ मोहब्बत के लिए
सच्चे दिल तरसते हैं
आब-ए-तल्ख़ से
लबरेज़ हैं निगाहें तेरी
सितम हज़ार मिलेंगे
वफाओं को तेरी
दिल कहता है मेरा कब से
किसी से प्यार न करना तू
समझाऊं कैसे तुझको


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