उसके जाने के बाद
ज़िन्दगी क्या है
समझ आ गया
खुशियाँ उन्ही से हैं
जो अपने हैं
एक छोटी सी बात पर
मुह फुला कर
गुस्से में
मैंने कुछ बोल दिया
उसने भी उस बात को
इतना बड़ा बना कर
बेकार मोल दिया
किसकी गलती ?
कौन जाने
बस नज़र बाट जोहती है
शायद कोई दस्तक दे कभी
मेरे दरवाज़े पर
और क्या कहूँ ?
क्या लिखूं ?
क्या करूँ ?
किस से बात करूँ ?
आस पास भीड़ है बहुत
पर फिर भी रह गया हूँ अकेला
थक गया हूँ
रोज़ खुद ही से
लड़ते लड़ते
उसके बिना ज़िन्दगी के पल भी अधूरे हैं
उसके बिना प्याले भर चाय में भी मिठास कहाँ
जब वोह होगी सामने तो ज़िन्दगी कट जाएगी
न भी हो तो 'निर्जन'
एक दिन तेरी
मौत पर तो ज़रूर
तशरीफ़ लाएगी
ज़रूर लाएगी ......