गुरुवार, दिसंबर 13, 2012

My School - Class XI

A poem written about my school, class and friends. Those were the best days of my life. Still miss my class XI - XII and all my friends.

I study in Vidhyapeeth 
But i feel everybody there is stupeed
There are nice and beautiful teachers 
But they are more or less preachers
My principal is nice 
But i always have to wish him 'Good Morning' twice
I'm in class eleven 
I always think my class is a heaven 
My seat is in the middle 
So i don't have to fiddle
My partner is always sitting on my lap
I feel like giving him a tight slap
We don't have any monitor
Otherwise he would have been a man eater
My best friend's name is 'Choty'
And he always seems to be naughty
We have eight classes
So, most of the time i have to wear glasses
I am nearly always taking a rest
But i like my school and its the best

School Function Speech - 1997

14th November 1997, Children's day speech for school function. Today, when i was reading it and just thinking about it, a small question just striked my mind, was it all worth ? was it all true ? did our education system and the preaching were based on facts from the history or everything was just rubbish ? I don't have answers for these question now. But in those times here is what i used to think seriously but as the time passes by the mode of thinking changes. That's what i have realized so far. 

So here goes the speech :)

Today is Children's Day i.e. the birthdate of Pandit Jawaharlal Nehru, first Prime Minister of free India. The whole world is very excited today not only the children but the elders too. Functions must being organised at every level of the society and each class will enjoy the happiness of this day according to his caliber. But i am not at all participating in any of these happenings and feel myself neglecting my duties towards the nation. But i can't do anything because i am really full of complexes inside me. Whenever i thought of doing something my complex comes against me and grabs my feet so that i could fall morally and changes my mind due to the compression of my feelings and thoughts that are always negative in nature. Yes i am really a negative thinker. 

I just want to come out of this problem and i have tried many times but i am overpowered by my heart. I don't know why i listen to my heart than my mind. 

I don't know what will i do in my future but i know that i and my house mates are ruining my present life. 

Oh God ! Please show me the path on whcih i could get the goal of my life and attain the power of self confidence which is not at all present in my attitude. 

I am really feeling very sad and helpless because i am getting bored while sitting at home and just getting glued to the TV set from morning till my eyes and mind becomes tired to bear it any more. 

I don't know which way i should go. I have become a 'Trishanku' who is fastened between the earth and the sky. 

So, please God show me the orbit on which i could revolve on to achieve my sky of success and touch the sun. 

Thank You....

खोया खोया

मेरा एक और पुराना चमत्कार .... हा हा हा... आज इससे पढता हूँ तो बेहद हंसी आती है क्योंकि यह कविता नतीजा थी मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के दिमाग में उपजे एक ख्याल का जो की सारी जिंदगी ख्वाब बनकर ही रह गया | किस्सा यूँ है के एक लड़की हुआ करती थी हमारी क्लास में और मुझे बेहद पसंद भी थी | अब आपको तो सब पता है के दिल तो बच्चा है जी तो फिर बस उस लड़की को पटाने की हर मुमकिन कोशिशें होने लग गईं | परन्तु शुरू में तो हर प्रयास विफल रहे फिर धीरे धीरे उनसे जान पहचान बढी और दोस्ती का दौर शुरू हुआ पर जैसे आपको पता है उन दिनों क्या होता था और दोस्त कैसे होते थे | टांग खीचने में नम्बर एक | तो फिर क्या था हम भी ठहरे अपनी खोपड़ी से अलबेले चढ गए बांस पर और शुरू कर दिये नए नए ख्वाब बुनने | दोस्तों द्वारा भाभी भाभी का संबोधन सुन सुन कर मस्त हो जाते और स्वपन लोक में विचरण करने निकल पडते | उसी किसी एक विहार के दौरान यह कविता लिखी गई थी | लिखने के पीछे जो सोच थी वोह यह थी के यारों को यह सुनायेंगे और अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे अपने गुट में | और यह भी पूर पूरा आभास था के कोई न कोई मित्र जाके अपनी भाभी को इस कविता के बारे में बतला ज़रूर देगा | क्योंकि दोस्ती जितनी अच्छी होती है उतना ही ज्यादा कमीनापन आपस में होता है | तो उसी कमीनपने कोई ध्यान में रखते हुए यह रचना कर डाली - "जस्ट टू इम्प्रेस दा फ्र्न्ड्स एंड दैट गर्ल"....और हुआ एक दम उल्टा...यारों न उसने हाँ कही और न न कही और जो थोड़ी बहुत यारी दोस्ती थी वोह भी जाती रही समय के साथ | खैर अपने तो मलंग थे और मलंग हैं  कौन आया कौन गया कुछ सोचते नहीं - बस जिंदगी जीना सीखा है तो जी रहे हैं | तो आइये पढ़िए मेरे सपनो में लिखी गई दास्ताँ और आनंद लीजिए -

आज कल मैं खोया खोया रहता हूँ
वो भी कुछ खोई खोई रहती है
मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ
वोह भी कुछ कुछ कहना चाहती है
लेकिन बीच में है एक दीवार
खुद से ही किये कुछ प्रश्नों की बौछार
वो मुझे क्या समझती है ?
कैसा समझती है ?
क्या वो मुझसे मुहब्बत करती है ?
क्या वो भी दिल ही दिल में मुझपर मरती है ?
मैंने भी देखा है
उससे कुछ सोचते हुए
मुझसे झिझकते हुए
लेकिन मैं समझ नहीं पाता
के यह इंकार है या इकरार
इसलिए ही
शायद इसलिए
मैं सोया सोया रहता हूँ
दिन रात उसी के सपनो में
बस खोया खोया  रहता हूँ
बस वो भी इसी तरह
ख्वाबों में खोई खोई रहती हो
इल्तजा है रब से के वो भी
मेरी तरह गम-ए-जुदाई सहती हो
पर क्या मैं भी हूँ उसके सपनो में ?
क्या मैं ही हूँ उसके दिल में ?
यह जान नहीं पता हूँ मैं
इसलिए मैं खोया खोया रहता हूँ

आज भी यह कविता पढ़ी तो सारा मंज़र आखों के सामने घूम गया | शायद मेरी तरह और भी बहुत से लोग होंगे जिनके साथ कुछ इसी तरह का वाकया हुआ होगा | शायद इस कविता के माध्यम से मैं अपने आप को उनके साथ जोड़ पाउँगा और वोह मेरे साथ जुड पाएंगे | 

नाखुश

बीते दिनों की धरोहर सन १९९८, कक्षा ११ शायद तभी लिखी थी यह कविता और उसी संकलन से एक और मोती आपके पेश-ए-खिदमत है | गौर फरमाएं....

आज मैं नाखुश हूँ खुद से
भटक गया हूँ अपनी मंजिल से
आज मैं भटक गया हूँ अपनी राहों से
भूल गया हूँ वो मार्ग
जिसकी आकांशा कुछ लोग करते थे मुझसे
लेकिन कसूर सिर्फ मेरा नहीं है
वो भी इसमें शामिल हैं
मैं बचपन से जीतता आया था
उनका प्यार पाता आया था
लेकिन
जब एक बार गया हार
सहनी पड़ी सब की दुत्कार
मन को शांत करने के लिए
मैं ढूँढने लगा मार्ग
लेकिन वो मार्ग मुझे कहाँ ले जा रहा है
ये मैं नहीं जानता हूँ
आज मैं नाखुश हूँ खुद से
भटक गया हूँ अपनी मंजिल से
कुछ दोस्त मिले नए
सब लगे अच्छे
उन्ही के चलते अपना कुछ
गम भुला पाया हूँ
लेकिन मेरे अपनों को मुझ पर
नहीं है विश्वास
वे नहीं करते मेरा एतबार
इसलिए मैं आज भटक गया हूँ
अपनी मंजिल से
आज मैं नाखुश हूँ जिंदगी से...


धोखा

अपने पुराने पिटारे से एक और कविता नज़र है आपके उम्मीद है पसंद आएगी...

मेरा मन कितना कहा था
मत कर तू दोस्ती
क्योंकि
बचपन से ही तू धोखा खाता आया है
लेकिन मैंने भी कर ही ली दोस्ती
हाँ तुम से दोस्ती
और आज तुम ही
ठुकरा कर जा रहे हो
मेरा मन कितना कहा था
करो न किसी से दोस्ती
लेकिन
आखिर ये दिल तुमसे लगा ही लिया
लेकिन
आज तुम भी यह दिल तोड़ कर जा रहे हो
आज पता लग रहा है
दुनिया कैसी है
कोई किसी का नहीं है
सब कुछ बस पैसा है
आज तक मैं समझता था
अभागा अपने को
लेकिन यह दुनिया तो
अभागों से भरी पड़ी है 

उलझन

आज अलमारी की सफाई करते वक्त एक पुरानी डाईरी हाथ आ गई । कुछ पुराने पल और कुछ पुरानी कवितायेँ मन मस्तिष्क में तरो ताज़ा हो गए । वही पल और यादें आपके साथ बाँट रहा हूँ अपने इस ब्लॉग पर और आपकी क्या सोच है इनके बारे में जानना चाहूँगा । यह कविता मैं कक्षा ११ में लिखी थी जब मैं बैक बेन्चेर  हुआ करता था और ज़्यादातर पेरिओड्स में सोया रहता था । या दो ऐसे ही कुछ न कुछ उट पटांग कुछ भी लिखता रहता था अपनी डाईरी में या फिर अध्यापक की रोचक किस्म की तस्वीरें बनाता रहता था । ज़्यादातर इसीलिए डांट खाता था या कक्षा से बाहर कर दिया जाता था ।

ये उम्र का कौन सा मोड है मेरे जीवन का
जिसे जितना समझना चाहता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ
कोई समझता नहीं है मुझे
मेरी भावनाओं को
यह कौन सा मोड है
मेरे जीवन का
जिसे जितना समझता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ

कोई काम करो, तो बड़े हो गए हो
दूसरा कोई करना चाहो तो, अभी बहुत छोटे हो
चारों तरफ से मिलती हैं नसीहतें
यह दुनिया मुझे समझती क्यों नहीं ?
कितना भी समझाओ
कुछ समझना ही नहीं चाहती है

ये उम्र का कौन सा मोड है मेरे जीवन का
जिसे जितना समझना चाहता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ

तलाश

हे इश्वर
हर मानव
अपने अधिकारों को
बचाने के लिए
क्या दूसरों की
आत्मा का
हनन करता है ?

या फिर अपनी
झूठी शान, अहंकार
और घमंड के लिए
अपने ही खून का खून
करने को तयार रहता है ?
क्या उम्र भर
सबके अधिकार
उसमें सिमटे रहेंगे ?
कब निकल पायेगी ?
एक सय्याद के हाथों से
एक निर्बल की जान
जिसे उसने अपनी
वसीयत में से
सिर्फ आंसू ही
के रखे हैं
जिसकी साँसे तक
सय्याद के पास
क़ैद हैं

अब जीवन किसी की
क़ैद से मुक्त
खुले आकाश में
विचरते पक्षी की तरह
उड़ना चाहता है
अनंत जीवन की
तलाश में
फिर वापस
एक सुन्दर संसार
एक सुन्दर घर
जो मानव समाज के लिए
कल्याणकारी हो
किसी सय्याद की
छाया से दूर 

बुधवार, दिसंबर 12, 2012

अतीत

ये दिल भी
मेरा है
मेरा है 'निर्जन'
एक चीख
आत्मा
ने की
एक दिल यथार्थ का
होते हुए भी
अतीत के
पुराने यथार्थ
को खींच
लाया
मेरे समक्ष
क्या अतीत
ज्यादा सुखद था ?
क्या अतीत ज्यादा कोमल था ?
तभी तो चिपका रहा
मुझ से
पुराने रोग की भांति
एक समय  से
दूसरे समय तक
ये रोग (स्मृतियाँ)
किस प्रकार का है ?
नहीं जानता
नहीं जानता
पर रोग अब
बहुत पुराना होने पर भी
पुराने अन्न की भांति
अधिक पचन
शक्ति वाला
प्रतीत होता है
या मुझे
अच्छा  लगता है
मेरी भ्रान्ति
आत्मा को
भ्रमित किये हुए है ??

महक

ये संकरी गलियां
क्यों
मुग़ल उद्यान की
सुगंध की तरह
अपने में
खींचे चली
जाती है
नहीं जानता था
जब तक
तब भी
एक शराबी
के बहके
क़दमों की
भांति
उस पर दौड़ा
चला जाता था
वो अपरिचित
सुगंध
किसकी है
वो मेरे
बिछुडे हुए
अतीत के
गुलिस्तान की
महक है

तू ही है

आब-ए-चश्म भी तू ही है
दरीचा-ए-फ़िरदौस भी तू ही है
मेरे दिल-ए-बेहेश्त की हूर भी तू ही है
तूने मेरे जज्बातों की सदाक़त को न पहचाना
अब मेरी रफ़ाक़त को तरसती भी तू ही है
इश्किया मफ्तूनियत से गुज़र किसका हुआ है 'निर्जन'
चांदनी शब् में
सितारों से सजी
पालकी में झूमते अरमान लिए
तू मेरे और करीब आ जाएगी
महकते जज़बातों के फरमान लिए
रहीम-ओ-करीम तू ही है
दिल-ए-हबीब तू ही है
तेरे अबसार वही हैं
आरिज़ भी वही हैं
तेरे सिफ़त भी वही हैं
तेरी खराबे भी वही हैं
तेरी लफ्फाज़ी का लहज़ा-ए-तरीक़ा भी वही है
जो अलफ़ाज़ कहे थे मेरी तन्हाई पे तूने
मेरे फ़वाद पे आज तलक नक्श वही हैं
तू ही है जिसने दिए दर्द-ए-दिल्दोज़ मुझे
विसाल-ए-यार-ए-इज्तिरात में बन आब-ए-तल्ख़
दीद से मेरे बरसा भी वही है....

[आब-ए-चश्म - tears;
दरीचा-ए-फ़िरदौस - window to paradise;
दिल-ए-बेहेश्त - hearty paradise and heaven;
हूर - beautiful woman of paradise;
जज्बातों - feelings;
सदाक़त - sadness;
रफ़ाक़त - closeness;
इश्किया - love and excessive passion;
मफ्तूनियत - madness;
चांदनी -  moonlight;
शब् -  night;
गुज़र - a living;
रहीम-ओ-करीम - kind and generous;
दिल-ए-हबीब - heartly beloved;
अबसार - eyes;
आरिज़ - lips;
सिफ़त - talents;
खराबे - craziness;
लफ्फाज़ी - talktiveness;
लहज़ा - accent, tone;
तरीक़ा - manner, style;
अलफ़ाज़ - words;
फ़वाद - heart;
नक्श - mark;
दर्द-ए-दिल्दोज़ - heart piercing pain;
विसाल-ए-यार - meeting/union with beloved;
इज्तिरार - helplessness;
आब-ए-तल्ख़ - tears;
दीदः - eyes;]

रविवार, दिसंबर 09, 2012

Laud Someone Home

Today i am expatiating
During the wee hours
Of todays' chilling sunday winters
I am actually thinking nothing

My mind is totally empty
My heart is totally filled with affliction
But still i miss someone
Maybe that smile
The way they fills my soul with prosperity

Years have gone past
That have made my heart and myself
Grow despondent

May be someone out there
Can put it back together
I really miss those days
I really miss those people
I really miss the ways
They make me laugh and smile

My real smile
Is now buried under
My big shoddy laugh
But i know that
There is someone 
Still out there 
Have been on the 
Long, 
Flinty road 
To my heart
And 
Will peer at the stars

And i will 
Laud that someone home

शनिवार, दिसंबर 08, 2012

मैं भी शायद जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगरचे केवल तकदीर ने
मेरे लिए यह चुना है
तो एक बार फिर
मैं तकदीर से लडूंगा
और फिर से एक
आज़ाद मौत मर जाऊंगा
अपनी ख्वाइशों को
बंदिशों में बांध कर
और सिसक सिसक कर
जिंदगी बिताना 
क्या इस तरह जीने को
जिंदगी कहते हैं ?
क्या इस तरीके से
जीवन जीना मैंने चुना है ?
अपने सपनो के लिए
अपनों के लिए
मर मिटना
और दिल मैं कोई
अफ़सोस न रखना
यही मेरे जीने का मकसद है
कोई भी इस उत्साह
कोई इस उमंग को
मुझ से छीन नहीं सकता
मेरे मज़बूत इरादों को
अब कोई तोड़ नहीं सकता
चाहे अरमानो के
खून की नदियाँ बह जाएँ
चाहे मुस्कराहटों पर
अँधेरा छा जाये 
चाहे जिंदगी तीरों की बौछार करे
या फिर गोलियों की बारिश
अपनी जिंदगी की आखरी जंग
मैं मरते दम तक लड़ता रहूँगा
जब तक सांस में सांस है
जिंदगी
तेरे से ऐसे ही भिड़ता रहूँगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

गोकि हारने का गम
अब दिल से जाता रहा
जिसपे रोता हूँ
वो हालात नज़र आता रहा
वो लोग जिन पर
दिल-ओ-जां लुटाए थे कभी
वो नासूर बनकर चोट करते हैं अभी
फिर भी लड़ना तो मुझे है
आखरी दम तक मेरे
इसलिए मैं, मैं हूँ
और यही है तरीका मेरा
हथियार डालूँगा नहीं
है खुद सी ही
यह वादा मेरा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगर कभी मैं स्वर्ग पाउँगा 
तो उन लम्हों को जीना चाहूँगा
जिंदगी के वो पल
जो कहीं खो गए हैं
जिनमें मेरे मिजाज़ के अनुकूल
लम्हे हुआ करते थे
जिन्हें मैं जीता था
और
हमेशा जीना चाहता था
पर अब वो पल
शायद ही वापस आयेंगे
पर सोचने में क्या जाता है
कोई न कोई तो है
जो उन्हें
खुद ही वापस लौटाएगा 
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

आखरी दरवाज़ा सिर्फ एक ही है
वो सिर्फ जीत की दस्तक देता है
आगे आने वाली पीढ़ी को
यह बात दीगर है के पीढ़ी
मेरी हो या किसी और की
खुद से लड़ कर
खड़े होने की प्रेरणा देता है
आज मेरे सपने शायद हार जाएँ
मेरी उम्मीदें ध्वस्त हो जाएँ
मेरे होंसलें पस्त हो जाएँ
पर अंत में तो विजय ही है
विचारधारा कभी हार नहीं सकती
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

कल कुछ लोग देख्नेगे
मेरी जीत के जश्न को
वो एक बेहतरीन पल होगा
जब मैं जीतूंगा और
वो हार जायेंगे
मैं खड़ा रहूँगा सामने
स्वाभिमान
आत्मसम्मान
गौरव
और मानसम्मान
के साथ
वो वक्त तो ज़रूर आएगा
इतना तो मालूम है मुझे
बेशक मैं गिर जाऊंगा
पर मेरे होसलों को कोई
छु भी नहीं पायेगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा