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बुधवार, दिसंबर 19, 2012

ज़रा सोचिये

इटालियन बाई का राज है और ऐसी छोटी मोटी वारदातें तो होती ही रहती हैं बड़े बड़े देशों में | बलात्कार, डकैती, मर पिटाई और भी न जाने क्या क्या सब आम बातें हैं | इनकी जड़ सिर्फ एक है निकम्मे और नाकारा नेता, भ्रष्ट शासन तंत्र और जनता जिसे इन सूअरों की गुलामी की आदत पड़ चुकी है | औरों को दोष देने से कुछ नहीं बदलेगा जब तक सभ्य और शिक्षित समाज आगे आकर अपने हक के लिए नहीं लड़ेगा और सही सरकार को चुनेगा | जिस सरकार में चोर उचक्के, डकैत, बलात्कारी, कातिल और माफिया के लोग भरे हो आप ऐसी सरकार के राज में ऐसी छोटी मोटी वारदातों के बारे में क्या तो सवाल करेंगे और क्या ही आप को जवाब मिलेगा | ज़रा सोचिये और आगे आने वाले चुनावों में सही को चुनिए | अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद कीजिये |

दिल्ली की लड़कियों के साथ साथ सभी नारी जाती से मेरा निवेदन है के अब दब्बू बन कर चुप बैठने का समय गया | आप अपने पुर्से में हमेशा एक मिर्ची का स्प्रे, एक छोटा चाकू और एक कर्रेंट वाला छोटा हथियार ले कर चलें जिससे ज़रूरत पड़ने पर आप उसका उपयोंग अपनी रक्षा के लिए कर सकें | आज ज़रूरत है अपनी मदद अपने आप करने की | आत्म रक्षा के लिए आज युद्ध कौशल में पारंगत होना अनिवार्य है | मेरी गुज़ारिश है स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं से, कॉलेज जाने वाली लड़कियों से के कम से कम और कुछ नहीं तो आप लोग थोड़ी बहुत युद्ध कौशल तो ज़रूर सीखें चाहे वो कोई सा भी क्यों न हो | ये शिक्षा मेरी सोच के हिसाब से तो हर जगह अनिवार्य होनी चाहियें खास तौर पर लड़कियों के लिए |

भाषण देना, धरने देना, प्रोटेस्ट मार्च निकलना, मोर्चे करने से कुछ नहीं होगा अब ज़माना है भगत सिंह का, चंद्र शेखर आजाद का , उधम सिंह का | जब तक इस बहरी सरकार के कान पर एक ज़बरदस्त धमाका नहीं होगा तब तक इसके कान पर जू नहीं रेंगेगी | मेरी राय मैं तो इन बलात्कारियों जैसे भेदियों को हाथ के हाथ मौत की सजा होनी चाहियें वो भी जिसके साथ यह अभद्र व्यव्हार हुआ है उसी के हाथों | आप सबकी क्या सोच है इसके बारे में बताएं ?

मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

ममत्व

इस रसहीन जगत में
इस मरुस्थल  जैसे जगत में
एक ममत्व का रस
शोरगुल में
खोया जाता है
माँ से या बच्चे से ?
नहीं जानती मैं
नहीं जानती
अधिकारों में
या
कर्त्तव्य की बेदी
पर मैं
खुद भी
आंसू लिए
खोजती हूँ
अपने ममत्व को
आशीर्वाद भरे
उस आलिंगन को
ममता के
उस हाथ को
जो फेरा था
कभी उसके सर पर
उस सिहरन को
जो मेरे लाल के
पास होने से
आती थी
उस चाँद को
जिसकी याद में
ये जीवन एक तड़प
एक प्यास ही रह जायेगा
कोई प्रश्न कोई उत्तर
किसी के पास
नहीं है
क्योंकि ममता
एक सपना तो नहीं
संतान का मोह
कहीं मोक्ष का
द्वार तो नहीं
नहीं जानती, नहीं जानती

आंसू

ए जिंदगी 
थोड़े आंसू
और उधर दे दे 
जिससे मैं
अपने आप पर 
या अपने जीवन की 
भाग्य विडंबना 
पर जी भर 
रो तो सकूँ 
ए जिंदगी 
मुझे जीवन नहीं 
प्यार चाहियें 

शनिवार, दिसंबर 08, 2012

मैं भी शायद जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगरचे केवल तकदीर ने
मेरे लिए यह चुना है
तो एक बार फिर
मैं तकदीर से लडूंगा
और फिर से एक
आज़ाद मौत मर जाऊंगा
अपनी ख्वाइशों को
बंदिशों में बांध कर
और सिसक सिसक कर
जिंदगी बिताना 
क्या इस तरह जीने को
जिंदगी कहते हैं ?
क्या इस तरीके से
जीवन जीना मैंने चुना है ?
अपने सपनो के लिए
अपनों के लिए
मर मिटना
और दिल मैं कोई
अफ़सोस न रखना
यही मेरे जीने का मकसद है
कोई भी इस उत्साह
कोई इस उमंग को
मुझ से छीन नहीं सकता
मेरे मज़बूत इरादों को
अब कोई तोड़ नहीं सकता
चाहे अरमानो के
खून की नदियाँ बह जाएँ
चाहे मुस्कराहटों पर
अँधेरा छा जाये 
चाहे जिंदगी तीरों की बौछार करे
या फिर गोलियों की बारिश
अपनी जिंदगी की आखरी जंग
मैं मरते दम तक लड़ता रहूँगा
जब तक सांस में सांस है
जिंदगी
तेरे से ऐसे ही भिड़ता रहूँगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

गोकि हारने का गम
अब दिल से जाता रहा
जिसपे रोता हूँ
वो हालात नज़र आता रहा
वो लोग जिन पर
दिल-ओ-जां लुटाए थे कभी
वो नासूर बनकर चोट करते हैं अभी
फिर भी लड़ना तो मुझे है
आखरी दम तक मेरे
इसलिए मैं, मैं हूँ
और यही है तरीका मेरा
हथियार डालूँगा नहीं
है खुद सी ही
यह वादा मेरा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगर कभी मैं स्वर्ग पाउँगा 
तो उन लम्हों को जीना चाहूँगा
जिंदगी के वो पल
जो कहीं खो गए हैं
जिनमें मेरे मिजाज़ के अनुकूल
लम्हे हुआ करते थे
जिन्हें मैं जीता था
और
हमेशा जीना चाहता था
पर अब वो पल
शायद ही वापस आयेंगे
पर सोचने में क्या जाता है
कोई न कोई तो है
जो उन्हें
खुद ही वापस लौटाएगा 
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

आखरी दरवाज़ा सिर्फ एक ही है
वो सिर्फ जीत की दस्तक देता है
आगे आने वाली पीढ़ी को
यह बात दीगर है के पीढ़ी
मेरी हो या किसी और की
खुद से लड़ कर
खड़े होने की प्रेरणा देता है
आज मेरे सपने शायद हार जाएँ
मेरी उम्मीदें ध्वस्त हो जाएँ
मेरे होंसलें पस्त हो जाएँ
पर अंत में तो विजय ही है
विचारधारा कभी हार नहीं सकती
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

कल कुछ लोग देख्नेगे
मेरी जीत के जश्न को
वो एक बेहतरीन पल होगा
जब मैं जीतूंगा और
वो हार जायेंगे
मैं खड़ा रहूँगा सामने
स्वाभिमान
आत्मसम्मान
गौरव
और मानसम्मान
के साथ
वो वक्त तो ज़रूर आएगा
इतना तो मालूम है मुझे
बेशक मैं गिर जाऊंगा
पर मेरे होसलों को कोई
छु भी नहीं पायेगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

बुधवार, दिसंबर 05, 2012

मुझे नफरत है खुद से

मुझे नफरत है खुद से, उस सब के लिए जो मैंने आज तक किया
मुझे नफरत है खुद से, जिंदगी जीने के कोशिश करने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने जज़्बात दिखने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, प्यार करने की कोशिश करने के लिए

मुझे नफरत है खुद से, इस कामोन्माद में जलने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, जो कुछ भी मैं हूँ उसके लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने आँखों को आंसू देने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, खुद खड़ा होने की कोशिश के लिए

मुझे नफरत है खुद से, अपने वादों को पूरा न कर पाने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने अपनों को दुखी देखने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने एहसासों को मार देने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने कर्मों को पूरा न कर पाने के लिय

मुझे नफरत है खुद से, जो कुछ बदल नहीं सकता
मुझे नफरत है खुद से, अपनी जिंदगी जीने से
मुझे नफरत है खुद से, खुदखुशी के विचारों से
मुझे नफरत है खुद से, अपने डर के एहसासों से

मुझे एहसास है, मैं जकड़ता जा रहा हूँ
अपनी खुद की नफरत में
एहसास है उस खुदा के ठन्डे हाथ का
एहसास है उसकी कठोर पकड़ का
एहसास है उसके निकृष्टतर मिजाज़ का
उसने मुझे एक खुश मिजाज़ जिंदगी से
उठा कर इस अकेली सडन भरी मुर्दा जिंदगी में ला पटका

मुझे नफरत है इस जिंदगी की वजह से
मुझे नफरत है अपने इस छुपने की वजह से
मैं सच में यही सोचता हूँ, इससे अच्छा तो मौत मिल जाये
ऐसी बेनाम, रूखी, बेनूर, बेकार, सूनी, अकेली, लाचार, अत्याचारी जिंदगी से तो बेहतर
मौत क्यों न आ जाये, मौत क्यों न आ जाये, मौत क्यों न आ जाये

एहसास

जिंदगी रेत की तरह
हाथों से फिसल रही है
हर एक लम्हा बीत रहा है
तेरी यादों में
बिना जाने किस तरह
तुझको चाहूँ मैं
किस तरह से तेरी
उन सोई पलकों को
छु लूं मैं

सपने बदल रहे हैं यहाँ
तेरे साथ पाने को बेताब है रात

किसी सूखे दरख़्त के नीचे
छनते सूरज की गर्माहट

साँसों का हौले से आना जाना
एक कब्र खोद रहा हूँ मैं
अपने माज़ी की
तेरे साथ अपने मुस्तकबिल की
और खुद की भी

इतनी जल्द
इतनी तेज़ी से

कुछ पूर्वाभास
या मेरी किस्मत
या सब कुछ जो है
वो मतलब से है

ओझल कभी कुछ नहीं होता
अपना नामोनिशां छोड़े बिना

अपनी हथेलियों पर निराशा लिए
शायद अब नाच भी नहीं सकता
बिना नीचे गिराए उसे

नीचे जिंदगी के गलीचे पर 
कहीं रिस कर
उनमें न समां जाये

पर तेरे हाथ में देखा है
मैंने
मेरी जिंदगी को सोकने के लिए
वो सफ़ेद तौलिया
और वो तेरी हंसी की आवाज़
जैसे कागज की चिड़ियाँ
चहक रही हों शाखों पर
और वो पेड उग रहा है
मेरे दिल से

ये एक एहसास
दम तोड़ रहा है
धीरे धीरे...

मंगलवार, नवंबर 27, 2012

मुझे नफरत है के मैं तुम्हे प्यार करता हूँ...

मुझे नफरत है के तुम
मेरे हर ख्याल में रहती हो
मेरी सुबह तुम्हारे साथ होती है
मैं सोता हूँ तुम्हारी हंसी को सोच कर

मुझे नफरत है के मैं
तुम्हे इतना पसंद करता हूँ
तुम्हारी सुन्दर आँखें
तुम्हारे नमकीन होटों
को चखने के लिए
मैं तरसता हूँ

मुझे नफरत है
जिस तरह से तुम मुझे
महसूस करने को मजबूर करती हो
जैसे मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
जीवित रहने के लिए
जैसे तुम्हारे बिना सांस लेना
अत्यंत कष्ट दायक है

मुझे नफरत है के मैं
तडपता हूँ तुम्हारे लिए
मुझे तृष्णा है तुम्हारे स्पर्श की
हर लम्हा
हर दिन

मुझे नफरत है
जिस तरह से मैं तुम्हे
चाहता हूँ
अपने अधम ह्रदय
के हर एक धडकन के साथ
तुम्हे चाहना
मुझे जीवित रखता है
फिर भी अकेला रखता है मुझे....

समाज नाज़ेबा है...मैं नहीं

समाज नाज़ेबा है
मैं नहीं

सुंदरता परिभाषित होती है
हमारे व्यवहार से
नाकि पैमाना पर खुदे अंकों से

भूखे रहना काम नहीं करता
परिष्करण काम नहीं करता
गोलियाँ काम नहीं करती

जो इंसान का अक्स
तुम देखते हो
आईने में
संपूर्ण है वो
हर तरह से
जिस तरह भी वो है
अभी

अब खफा क्या होना
यदि वो खरा नहीं उतरा
आपकी अन्तरंग
उम्मीदों पर

उपमार्ग काम नहीं करता
रुदन काम नहीं करता
मरना काम नहीं करता

याद है मुझे
समाज नाज़ेबा है
मैं नहीं

दोस्त किसे चाहियें ?

प्यारे अकेलेपन,
क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे ?
क्योंकि मैं देख रहा हूँ एक दौर,
मेरी दुनिया बिस्तर तक सिमट गई है |

प्यारे ग़म,
क्या तुम मुझे मेरी मुस्कान दे पाओगे ?
क्योंकि खुशियाँ मुझसे मीलों दूर हैं,
जैसे हर एक चीज़ जो मैंने सोची थी |

प्यारे निराशावाद,
क्या तुम मेरी मदद करोगे ?
क्योंकि आशाएं मेरी जिंदगी से फिसल गई हैं,
कुछ अपनों का अपनापन सह सह कर |

प्यारे कष्ट,
क्या तुम मुझे मजबूती दे पाओगे ?
क्योंकि एक तुम ही हो जो मुझे रोक पायेगा,
वो करने से जो मैंने सोचा है अरसे से |

प्यारे निधन,
क्या तुम मुझे जिला पाओगे ?
क्योंकि मैं और जीवित रहना नहीं चाहता,
ऐसे संसार में जो मेरी इतनी परवाह करता है |

प्यारे यमलोक,
क्या तुम मुझे साधू बना पाओगे ?
क्योंकि मैं योग्य नहीं हूँ, दिव्य सुखों का,
अपने कर्मों से मैं दोषी बन चुका हूँ |

प्यारे दोस्तों,
क्या तुम मुझे अपनी भावुकतापूर्ण कथा बनाओगे ?
क्योंकि आपको चाहियें अपनाअहंकार और वैभव
जिंदगी में जहाँ कभी मैं गिरा था |

मंगलवार, नवंबर 20, 2012

दुकान तो सजेगी ही

एक और शाम स्वाह हुई
दिल को फिर से गम् हुआ
एक नया दिन फिर आ गया
हर रोज की तरह
इन्तेज़ार जिसका था
वो नहीं आया
हमेशा की तरह
नए दिन में
फिर से सज गई
कुछ उम्मीदों और अरमानो की दुकान
अब और क्या कहूँ
उसूल है कारोबार का
कोई आये या न आये
दुकान तो सजेगी ही
दुकान तो सजेगी ही...

रविवार, नवंबर 04, 2012

जिंदगी

दों कानो के बीच की दूरी है जिंदगी
एक अनसुना गाना भी है जिंदगी
एक अनछुई इबारत है जिंदगी
बर्फ में खिलती हरी घास है जिंदगी
आतिश-ए-इश्क ही तो है जिंदगी
हाथ से फिसलती रेत है जिंदगी
खुदही पर हँसती मसखरी है जिंदगी
खुदा की लिखी कविता है जिंदगी
ठण्ड रातों की कपकपी है जिंदगी
कहता है 'निर्जन' मुस्करा के जी लो जिंदगी
क्योंकि खुशनुमा ही नहीं मौत भी है जिंदगी....

गुरुवार, नवंबर 01, 2012

जीवन का सच

क्या हमारे पास कोई वजह है अपना जीवन जीने की ?
ये सवाल मैं अक्सर सोचता हूँ
क्या बहार दुनिया में कोई ऊँची शक्ति है ?
कोई बड़ा काम है ? जो मेरे लिए हो
पर सच कुछ को नहीं बहुतों को चोट देगा
लोगों को सच से सामना करने में दिक्कत होती है
जिंदगी में उससे बड़ा कोई नहीं है
वो जो हमेशा हम पर नज़र रखता है
वो वही है जो हमें हमारे पीछे से देखता है
उसका सामना करो, रोना धोना छोडकर
अपनी राह खुद बनाओ
अपनी जिंदगी के लम्हों को खुद संतुलित करो
अपनी जिंदगी जीने के जिम्मेदार हम खुद हैं
यह किसी और की गलती नहीं है
जब हमें वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं
अगर किसी को सितारों की चाह है
तो उससे उन सितारों को अपने हाथों से ही तोडना होगा
जिंदगी में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता
जीवन का हमसे कुछ भी देने का कोई वादा नहीं है

सवाल अब भी वही है, हम यहाँ क्यों हैं ?
जिन्हें विश्वास नहीं है, श्रद्धा नहीं है
उनके लिए जवाब बहुत ही दर्दनाक और साफ़ है
हम आज में जीते हैं और अगर हम भाग्यवान हैं
तो एक अच्छा कल भी होगा
हमारे लिए कोई परवर्ती जीवन नहीं है
जो कभी कोई दुःख लेकर न आये
तो सबसे अच्छा तरीका है खुद को सुधारना
भीतर से भी और बहार से भी, अभी और इसी वक्त
हमारा रवैया हमेशा नकारात्मक होता है
अपने श्रेष्ठ होने की मिथ्या धारणा को लेकर
पर असल व्यक्ति वही होता है जो जिंदगी के हर मोड पर
अपने आप को उसके अनुसार ढालता रहे
अपनी आत्मा को संतुलित किये बिना
कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से इंसान नहीं बन सकता

ज्ञानी के लिए ज्ञान, और
इस एक चीज़ के लिए हमें प्रयास्रित रहना है
नजरिया कभी अंधा भी होता है
यथार्थ में क्या है हमें वो देखना है
हमारा अतीत हमें ज्ञान देता है
अगर हम अपनी आँखें खोल कर देख लें तो
पर दुःख की बात यह है के ज़्यादातर लोग
झूठ और बनावट के जाल में फंसे रहते हैं
आत्म ज्ञान की प्रगति अवलोकन से होती है
और दूरदर्शिता उसकी कुंजी है
दृष्टि हमें सत्य परखने की क़ाबलियत देती है
पर कुछ ही होते हैं जो उसका सामना कर पाते हैं
बाकि उसका सामना कर ही नहीं पाते
हम में से जो इस सत्य की रह पर चल सकते हैं
उनके लिए अनेक दरवाज़े खुले हैं
भविष्य में उनका जीवन प्रकाशमय होगा
हम परिपूर्णता के लिए प्रयास करते हैं
तब जाके हमें बेहतर जीवन प्राप्त होता है

ताकत जीवन का एक और अभिप्राय है जो हम खोजते हैं
कमज़ोर को जीवन कुछ नहीं देता
यदि जीवन में बड़ा बनना है तो ताकतवर भी होना होगा
अहंकाररहित व्यक्ति विरासत में कुछ नहीं लाता
उसका शाशनकाल बहुत छोटा होता है
दुर्भाग्यवश यदि ताकत से विकृति उत्पन्न होती है
तो उसे खत्म कर देना होगा
कमज़ोर दिमाग के लिए ताकत अर्थहीन है
अपितु उसके लिए वो मज़े का पर्याय है
सामर्थ्यवान संभवतः कठोर परिश्रम करे परन्तु
ईमानदारी से कहूँ तो वोह कभी सही नहीं हो पाता
परन्तु सत्य यह भी है के इतिहास
लड़ाई में जीतने वाले के कारण ही लिखा जाता है
हालाँकि वो बुरा भी हो सकता है
किन्तु शक्ति बेहतरीन ढंग से सबसे महत्वपूर्ण औजार है
आत्मसुधार के पथ पर अनेकों बेवकूफों से सामना होगा
बहुत से ऐसे लोग हैं जो सच का सामना नहीं कर सकते
वो कोशिश करेंगे क्षति पहुचाने की
या फिर इस स्रोत को खत्म करने की
पर यदि आप ताकतवर है और विवेकपूर्ण हैं
तो आपको डगर से कोई नहीं डिगा सकता

आत्मसुधार चाहे सबसे मुख्य है किन्तु जीवन की एक और कुंजी है
प्रजनन जीवन की स्वाभाविक और सहज प्रवृत्ति है
आपके लिए भी और मेरे लिए भी
सच कहें तो, मृत्युपर्यन्त जीवन जीने का एक ही पथ है
और वो है प्रजनन, आपके जीवन की रचना होना अर्थात अंडे का बनना
बच्चे जीवन की अत्यंत सुन्दर रचना हैं
वो जीवन की शक्ति हैं, वो आपको जीवन जीना सिखाते हैं
बच्चों के साथ आपको एहसास होता है के आप सही मायनो में जीवित हैं
वे आपके जीवन की दुर्व्यवस्था और अन्धव्यवस्था को प्रकाश देते हैं
और जीवन पथ पर आपको अभिप्रेरणा प्रदान करते हैं
बिना बच्चों के व्यक्ति कभी भी पूर्ण नहीं कहला सकता
मेरा ऐसा मानना है के उनके जीवन में
एक अत्यावश्यक अंश का अभाव होता है
वो एक विशिष्ट व्यक्ति, जिसके लिए आप जीवन में
हर एक किरदार को जीते हैं
उस एक खालीपन को एक नन्हे से फ़रिश्ते के सिवा कोई पूरा नहीं कर सकता
जिंदगी ने हमें यह शक्ति दी है
के हम जीवन का सृजन करें
वो जीवन जिसके चेहरे में जादू है
जिसके व्यक्तिव में असीम आनंद देने वाला आकर्षण है
इसलिए एक नए जीवन का निर्माण अत्यंत ज़रूरी है

मैंने जिंदगी के सवालों के जवाब देने की कोशिश की
अपने तरीके से
शायद कुछ लोगों को जो मैंने कहा पसंद न आये
उनको मैं सिर्फ मुस्कराकर, नमस्कार कर, विदाई के देता हूँ
क्योंकि मुझे उनका सच भी पता है
मैं अपने ख्याल किसी पर थोप नहीं सकता
पर उन्हें बतलाने की कोशिश और
समझाने का प्रयत्न हमेशा करता रहूँगा
मेरे इस नज़रिए का तोहफा उनके लिए हैं
जो जिंदगी के झूठ को करीब से देखना चाहते हैं
उससे समझना चाहते हैं
मैं भी कभी ऐसे ही अंधकार में जी रहा था
पर अब मैं सब कुछ साफ़ साफ़ देख सकता हूँ
जैसे भी यह हुआ पर हो गया और
यह भगवान ने नहीं किया है
मैंने अपना आत्मसुधार स्वयं किया है
अपने दो पैरों पर चलकर
मैं अब जिंदगी में कभी भी परास्त नहीं हो सकता
मैं हर परिस्थिति का सामना करने में शक्षम हूँ
जब बुरा वक्त होता है तब मैं अपने पैरों पर गिरकर प्रार्थना नहीं करता
मैं सामना करता हूँ जो कुछ भी जैसे भी
मेरे सामने आकार चुनौती देता है
और गर्व के साथ खड़े रहकर उससे जवाब देता हूँ
मैं एक साधारण कोटि का व्यक्ति की भांति भीड़ में खड़ा नहीं रहना चाहता
मुझे कुछ अलग करना है और मैं एक दिन ज़रूर करूँगा

जिंदगी सच में बहुत सख्त है
यह एक असीम सत्य है
लोगों को इसे समझना होगा
और एक समय ऐसा भी आएगा जब
इस मरुस्थल में आप अकेले खड़े होंगे और
आपको किसी साथी के मददगार हाथ की ज़रूरत होगी
इस बात से भी मैं पूर्णतः सहमत हूँ
मेरी मुश्किलें उन लोगों के साथ होती हैं
जो मेरे कन्धों पर बैठकर अपना जीवन जीना चाहते हैं
यदि आप दूसरों के बाजू पकड़कर रोते रहेंगे
तो आप कभी भी उठकर खड़े नहीं हो सकते
आप खुद ही अपने आत्मसुधार को रोक देंगे
अगर आपके स्वयं ही अपनी माँसपेशियों ही क्षीणता को बढाओगे
तो आप कभी भी एक सकारात्मक कदम नहीं ले पाओगे
संतान, उन्नति, प्रगति, और संयम के बिना जीवन निरर्थक है व्यर्थ है
ये वही जीवन होगा जिसे आप
सूंघ सकते हैं, देख सकते हैं, पर स्वाद का आनंद नहीं ले सकते
शायद मैंने आज काफी ज्ञान बाँट दिया है
जो दिनभर के चिन्तन करने के लिए काफी है
जिंदगी से रोज सवाल करे और उसके जवाब भी ढूंढे
या फिर हमेशा एक हिमाच्छादित जीवन व्यतीत करते रहिये...

मंगलवार, अक्तूबर 30, 2012

my Pain is...

my Pain is...

my Anger
my Dissapointment
my Lost hopes
my Shattered dreams
my Total failure
my Unsucessfulness
my Unavalible skills
my Small achievements
my Fight
 

...my Fuel for living

मुझे कोई दर्द नहीं है...

तुमने मेरे ज़हन पर कोई निशान नहीं देखे
तुमने मेरी आँखों में कोई आंसू नहीं देखे
तुमने मेरे चेहरे पर कोई दर्द नहीं देखा
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...

मैं खुद से कभी रोता नहीं
रातों को मैं सोता नहीं
घबरा कर अचानक उठ जाता हूँ
कुछ ख्वाब ऐसे आते हैं मुझे
कभी लगता है जान ले लूं अपनी
पर फिर सोचता हूँ
अँधेरे से भागना कैसा
चुप्पी को साधना कैसा
अपने आप से छुपना कैसा
अपनों की आँखों से बचना कैसा
जिन आँखों से प्यार झलकता है
जो कहते हैं मैं इंसान हूँ
और मुझे मुस्कराने की वजह देते हैं

तुमने मेरे मुह से कभी मेरा दर्द-ए-बयां न सुना होगा
तुमने मेरे माज़ी के दर्द की दास्ताँ न सुनी होगी
तुमने मेरे जिगर से वो दर्द भरे शब्द न सुने होंगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...

मैं अपने दर्द में चिल्लाता नहीं
मैं अपने कमरे की दीवारों को जगाता नहीं
मैं लातों और घूसों से दर्द को दिखता नहीं
मैं शराब की बोतल में डूब जाता नहीं
मैं नश्तर भी अपने सीने में उतरता नहीं
चुप रहकर लबों को सीकर ही
बर्दाश्त करता हूँ मैं सबकुछ
इस उम्मीद पर के दर्द भूल जाऊंगा
एक दिन वो सवेरा होगा
जिस दिन मैं भी मुस्कराऊंगा

तुम्हे मेरे दुःख मेरे दर्द
न दिखाई देते हैं
न सुनाई देते हैं
तुम तो वही देखते हो
जो मैं तुम्हे दिखता हूँ
तुम वही सुनते हो
जो मैं तुम्हे सुनाता हूँ
तुम्हे कुछ नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या किया
तुम्हे तो कुछ भी नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या नहीं किया
मेरे दर्द का एहसास
तुम्हे नहीं
तुम्हे वही मालूम है
जो मैंने तुम्हे बतलाया है
या फिर क्योंकी तुम
वो देखना और सुनना ही नहीं चाहते
तुम्हारी इस सोच का मतलब ये नहीं
के मुझे दुःख और दर्द नहीं हैं
मैं सिर्फ मैं हूँ
मेरा दर्द सिर्फ मेरा है
मेरे अंतर्मन में बंद एक दास्ताँ
जो कभी बयां नहीं होगी
हमेशा मेरे साथ ही रहेगी
और मेरे साथ ही चली जायेगी

तुम मेरा दर्द कभी देख ही नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी सुन भी नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी पढ़ नहीं पाओगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...

शुक्रवार, अक्तूबर 05, 2012

मेरा बिस्तर

एक परित्यक्त और एकांत अजीरा
बन गया है बिस्तर मेरा
जो कभी क्रीड़ास्थल था
आज बन्दी गृह बन गया है मेरा
बाध्य हो गया हूँ मैं
तुम्हारे सान्निध्य से
या की तुम्हारे अभाव से

अब अकेला ही पसरा हूँ
अपने ख्यालों के साथ
संवेदिक स्मरणशक्ति
प्रयत्न करती है
तुम्हे फिर जिलाने को
अवयव उलझे,
कुंचित, आश्वासक हैं
शायद मैं भी धीरे धीरे
खो जाऊं निद्रा में
और खो जाऊं
महत्वाकांशी स्वप्न नगरी में
वापस तुम्हारे पास...

कोई न आया

दिल की दरी पर
गुज़र गई सियाह रात
नज़रों की मचान पर
भटकते रहे बीते साये
मेरे दामन में कोई
सितारे भरने नहीं आया
मेरी उलझी जिन्दगी को
कोई समझने नहीं आया
कितने मौसम बीत गए
कितने त्यौहार चले गए
मेरे जज़्बात की मुंडेरों पर
कोई लौ न रोशन करने आया ...

मुझे

मुझे हर ज़ख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया
मैं मरना चाहता था पर मुझे जीना नहीं आया
मेरी और तेरी जिंदगी में बस फर्क इतना है
मुझे कहना नहीं आया तुझे सुनना नहीं आया...

समझा रहा हूँ तुझे

मेरा जज्बाती तजुर्बा है बतला रहा हूँ तुझे
वो जो दिल खो गया था जब, अब दिखला रहा हूँ तुझे
बिछड के अब, दोनों से जिया जाये कैसे ?
जो कभी खुद ही न समझा, क्यों समझा रहा हूँ तुझे ??

मंगलवार, अक्तूबर 02, 2012

अभी भी संभल जा ऐ दिल मेरे

अभी भी संभल जा ऐ दिल मेरे
उसको याद न कर जिसने आना नहीं
उसके आने की तू आस न कर
तेरा दर्द जिसने मिटाना नहीं
थपेड़े खा न तू उन तूफानों के
दिल में प्यार जिन्होंने जगाना नहीं
न कर बर्बाद इन्तेज़ार के पलों को अपने
उसने तेरे दिल का कुंडा खडकाना नहीं
जिसे याद करता है ये मेरा दिल
उसने कभी पास आना नहीं
अभी भी संभल जा ऐ दिल मेरे...

Deep down in my heart I'm still dying to give

There once was a day I dying to live
That same day I was dying to breathe
Deep down in my heart I'm still dying to give
In that same way I'd die to receive

There are many things that we'd like to possess
But that one thing we all want is love
Everyone has that someone they'd love to impress
And I've learned that love comes with a shove

It takes you by surprise and explodes upon impact
Then it blasts you straight off to cloud nine
That thing you once doubted you accept as a fact
In your world all the stars will align

And this warm vibrant feeling you're dying to find
Now you search for that key to your heart
You don't know where to look and you're feeling so blind
Maybe they've been quite close from the start

We're all dying to have that one person to hold
That one star to come down from the sky
You've been searching for something more precious then gold
Maybe that one true love is nearby