मंगलवार, जनवरी 29, 2013

भक्ति

भक्ति
जबकि स्वयं
स्त्री स्वरुप है
फिर भी
भक्ति को
क्यों तलाश है
किसी बुत की
जो की
स्वयं में
एक अथाह सागर है
फिर क्या
उसे प्यास है
किसकी
चिरकाल में
अनंत समय तक
क्यों
कोई नहीं जानता

1 टिप्पणी:

  1. भक्ति एवं बुत एक दुसरे के पूरक हैं। रामायण में तुलसीदास जी ने भी कहा है की जिस तरह ओले और बूँद एक ही (वर्षा ) हैं केवल रूप भिन्न हैं वैसे ही भक्ति साकार या निराकार एक सामान है .

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