रविवार, जुलाई 15, 2012

इतवार

फुर्सत ने दस्तक दी आज इतवार के दिन
पुरानी यादों का बस्ता झोले में लाया था
गुज़रे लम्हों की गर्द हटा कर अंदर झाँका
मेरे रिश्तों का बहीखाता पहले हाथ आया

पुरानी आदत है हिस्साब शुरू से रखता हूँ मैं
पीले पड़े पहले पन्ने पर जा हाथ थम गया
एक सिहरन सी उठ गई अंदर तक
जग उठा सोया दिल भी और अरमान बोल पड़े
दर्ज था उस पहली मुलाकात का किस्सा वहाँ

कितना मासूम था अपना रिश्ता तब
गुलाब की अनछुई अधखिली कली की तरह
न रिश्ते थे न नाते थे और न कोई गुस्ताख पल
तुम से शुरू मुझ पर सिमटता था दायरा अपना

आखिर ज़माने की रवायत ने कर दिया हमको जुदा
पन्ने पलटता रहा, हर्फ़ बढते, चाहतें घटती रहीं
दुनिया, रुतबा, शोहरत, पैसे से पीछे रह गया मैं
साथ साथ फासले भी बढ़ गए थे दरमियां

पुरानी आदत है मुड कर कल देखता नहीं कभी
फुर्सत को माज़ी के हवाले कर आज को कहा
कह दो, फुर्सत को,
के दिल के दर्द को लेकर यहाँ से चली जाए
आज इतवार है मैं छुट्टी मानाने जा रहा हूँ
कॉकटेल रिलीज़ हुई है वही देखने जा रहा हूँ...

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