‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं
ठहर जाएँ तो सागर हैं
बरस जाएँ तो शबनम हैं
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही
दोस्ती में,
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन'
तो शब् भर रात रोती हैं
ये दुनिया तंग दिल इतनी
दिलों में कांटे चुभोती है
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ
मैं हमदम से भी इतरा कर
तेरी महफ़िल आकर तो
बड़ी तकलीफ होती है