शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

गुलपोश














गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है

अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं

उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में

सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है

गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अहसासों को समेटे रचना

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  2. गुलपोशों-दामन वाबस्ता, शोला-बयाँ रुखसार तिरा..,
    इज़ाफ़तो-उल्फ़त में फ़ना, हाले-तबाह बीमार तिरा..,
    ग़म ख़ारी में शामिल कुल्फ़त भी सदाएं देती हैं..,
    इजहारी ये तकरीरी मिरी हाय बारहा इंकार तिरा.....

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर रचना....
    सुन्दर...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  4. गुलपोश चेहरे पर उसके
    गुलाबी हंसी गुलज़ार है
    मंद मुस्कान होठों की
    उस रुखसार में शुमार है

    अदा उसके इतराने की
    दिल में वाबस्ता रहती हैं
    सोच कर क्या मैं लिख दूं
    हसरतें मेरी जो कहती हैं

    बहुत ख़ूबसूरती ख्याल दरिया सा उठा। और आख़िरी तक भाव लयबद्ध रहा ।

    लफ्जों के मायने बता कर सरस कर दिया पाठकों के लिए

    खूब भाई

    जवाब देंहटाएं

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