रविवार, जुलाई 22, 2012

तुमने भी तो

तुमने भी तो
मेरी तरह ही
जीवन की दौड़ में
बहुत फ़ासले
तय किए होंगे

तुमने भी तो
मेरी तरह ही
कल के साए
आज की स्याही में
दफ़ना दिए होंगे

तुमने भी तो
मेरी तरह ही
स्याह हुआ
मेरा अक्स
दिल के आईने में
अब देखा नही होगा

तुमने भी तो
मेरी तरह ही
हुमारी दोस्ती की
किताब पर बुना
मकड़ी का जाला
हटाया नहीं होगा

और

मेरी तरह ही
तुमने भी तो
पलट कर कभी
उस दरख़्त को
नही देखा होगा
जो दिल के कोने में
मायूस और तनहा खड़ा है
टूटी ज़ख़्मी उसकी दीवारें
आज भी हमारे
दोस्ती के दिनों को
अपने आगोश में समेटे खड़ी हैं

तुम्हे शायद याद हो

उस दरख़्त पर कभी
हुमारी दोस्ती के बीज से 
मीठे फल हुआ करते थे
आज वहाँ बरगद का
एक सूखा सा ठूँथ खड़ा है....

मंगलवार, जुलाई 17, 2012

क्या पेश करूँ?

दिल अपना पेश करूँ
या जान अपनी पेश करूँ
हालात  अपने पेश करूँ
या कोई नगमा-ए-जज़्बात
तुझे पेश करूँ
पता तो चले कुछ
क्या पसंद है तुझको
ताकि फ़िर चीज़ वही
दिलनवाज़ तुझे पेश करूँ
जो तेरे दिल को दुख दे
वो अलफ़ाज़ मालूम नहीं मुझको
क्यूँ न फ़िर तेरे ही कोई
अलफ़ाज़ तुझे पेश करूँ.

कभी कहीं यूँ भी होता

कभी कहीं यूँ भी होता है
दिल के शहर बनाने वाले
जाब्त आज़माने वाले
दूर कहीं खो जाते हैं
फिर ख्वाब चुप की
चादर ओढ़े
ख़ामोशी से
सो जाते हैं ....

अफसुर्दा कर दिया

आज बारिश ने मुझे
अफसुर्दा कर दिया
वोह फुहारें मेरी खुशी बहा ले गईं
पता नहीं क्यों फिर से एक बार
कुछ पर के लिए दिल मेरा दुःख गया
आज बारिश ने मुझे
अफसुर्दा कर दिया

लगता था ऐसे जैसे
रोता है आसमान भी
मेरी तरह
समझा नहीं क्या हुआ
बस आँख नम हुई
और दिल भर गया
आज बारिश ने मुझे
अफसुर्दा कर दिया

दिल तड़प गया
दिल मचल गया
बूंदों ने छुआ भी नहीं
और यादों से मैं
भीग भी गया
आज बारिश ने मुझे
अफसुर्दा कर दिया

थोडा हुआ गुमसुम
नहीं मालूम
ऐसा क्यों हुआ
हर बूद पड़ने पर
लगता था के तुमने छुआ
चौंकता था बदल की
हर गडगडाहट पर
लगता था के मानो
आसपास तुम हंस रही हो
देखा पलट कर
आसपास कहीं नहीं थी तुम
यह बात ने मुझको
अवनत कर दिया
आज बारिश ने मुझे
अफसुर्दा कर दिया

*अफसुर्दा - अवनत - dejected

रविवार, जुलाई 15, 2012

इतवार

फुर्सत ने दस्तक दी आज इतवार के दिन
पुरानी यादों का बस्ता झोले में लाया था
गुज़रे लम्हों की गर्द हटा कर अंदर झाँका
मेरे रिश्तों का बहीखाता पहले हाथ आया

पुरानी आदत है हिस्साब शुरू से रखता हूँ मैं
पीले पड़े पहले पन्ने पर जा हाथ थम गया
एक सिहरन सी उठ गई अंदर तक
जग उठा सोया दिल भी और अरमान बोल पड़े
दर्ज था उस पहली मुलाकात का किस्सा वहाँ

कितना मासूम था अपना रिश्ता तब
गुलाब की अनछुई अधखिली कली की तरह
न रिश्ते थे न नाते थे और न कोई गुस्ताख पल
तुम से शुरू मुझ पर सिमटता था दायरा अपना

आखिर ज़माने की रवायत ने कर दिया हमको जुदा
पन्ने पलटता रहा, हर्फ़ बढते, चाहतें घटती रहीं
दुनिया, रुतबा, शोहरत, पैसे से पीछे रह गया मैं
साथ साथ फासले भी बढ़ गए थे दरमियां

पुरानी आदत है मुड कर कल देखता नहीं कभी
फुर्सत को माज़ी के हवाले कर आज को कहा
कह दो, फुर्सत को,
के दिल के दर्द को लेकर यहाँ से चली जाए
आज इतवार है मैं छुट्टी मानाने जा रहा हूँ
कॉकटेल रिलीज़ हुई है वही देखने जा रहा हूँ...

बुधवार, जुलाई 11, 2012

जो और वो ....

जो अल्फाज़ कभी किसी से कह नहीं पाए
वो कलम से यहाँ सामने मेरे उतर आये

जो जज़्बात कभी किसी से मिल नहीं पाए
वो आंसुओं में डूब कर शब्द बन आये

जो हालात कभी किसी को नज़र नहीं आये
वो सपना बन सामने चलते नज़र आये

जो आगाज़ तेरे दिल से बन नहीं पाए
वो हिम्मत यहाँ देख ले बैठी है सर उठाये

अबाउट मी / मेरे बारे में

१. मेरा जन्म हुआ १९७९ में |

२. मेरी पैदाइश दिल्ली की है |

३. मैं कर्म से, धर्मं से और मर्म से पूरी तरह हिन्दुस्तानी हूँ |

४. हिंदी मेरी मातृभाषा है |

५. मुझे चिंता होती है आजकल के नौजवानों के रवैये से जिन्हें हिंदी समझ नहीं आती |

६. अंग्रेजी के विरूद्ध मैं कभी नहीं था | मुझे अंग्रेजी भाषा भी पसंद है |

७. मैं जिंदगी में जल्दी सेवा-निवृत्त होना चाहता हूँ |

८. सेवा-निवृत्त से मेरा तात्पर्य है के मैं "जीने के लिए बहुत लंबे समय तक कार्य नहीं करना
चाहता"
|

९. मुझे घूमना भी बहुत पसंद है |

१०. मैं बहुत घूमना चाहता हूँ | दूर दराज़ के देश विदेश देखना चाहता हूँ | नई संस्कृतियों को जानना चाहता हूँ | उनको जीना चाहता हूँ |

११. नए लोगों के साथ मिलना जुलना और बातें करना चाहता हूँ नए दोस्त बनाना चाहता हूँ |

१२. नई नई जगहों पर रहना चाहता हूँ |

१३. नई नई भाषाएँ सीखना, पढना, लिखना चाहता हूँ |

१४. मैं नाचना सीखना चाहता हूँ | खास तौर पर मैं ज़ुम्बा और सालसा सीखना चाहता हूँ |

१५. मुझे गाने का भी शौक है | गुनगुनाना पसंद है पुराने नए गाने जो दिल को भा जाएँ |

१६. मुझे गिटर बजाना पसंद है और ड्रूम बजाना भी सीखना चाहता हूँ पर समय के साथ ये शौक भी ज़िन्दगी से गायब हो गए हैं |

१७. मुझे लिखने का भी शौक है | मैं अच्छा कविताकार और लेखक शायद बन सकता हूँ |

१८. तसवीरें खींचना और खिंचवाना भी पसंद है मेरी पर अब नही हो पाता | एक्सीडेंट के बाद से कुछ झिझक सी होती है |

१९. मुझे कसरत करना पसंद है | पॉवर लिफ्टिंग मेरा पसंदीदा खेल है | मुझे साहसी और खतरनाक खेल बहुत पसंद हैं जिसमें मौत का खतरा ज्यादा हो |

२०. मेरे सीधे हाथ की आधी बाजू पर बजरंगबली का टट्टू बनवाने का भी मन है |

२१. मैं आशावादी जीवन जीने में विश्वास रखता हूँ |

२२. मुझमें बहुत संयम है |

२३. पर मुझे गुस्सा भी बहुत आता है |

२४. मुझे सच्चा प्यार क्या होता है मालूम है परन्तु मैंने उसे अभी तक महसूस नहीं किया है |

२५. मैं सदा मुस्कराते रहना चाहता हूँ | मरते वक्त भी मेरे चेहरे पर मुस्कराहट हो बस |

२६. मेरी मुस्कराहट हमेशा सच्ची हो |

२७. मुझे स्वाभाविक रहना पसंद है |

२८. झूठ, दिखावे और झूठे आडम्बर से मुझे नफरत है |

२९. मुझे पढ़ना पसंद है और लिखना भी |

३०. मैं सब कुछ पढता हूँ |

३१. मुझे संगीत भी पसंद है | मेरा पसंदीदा संगीत है फ़िल्मी, गज़ल, रोमांटिक इंग्लिश गाने |

३२. पसंदीदा कलाकार हैं रफ़ी, किशोर, मुकेश, मन्नाडे, ब्रयां अदाम्स, बेकस्ट्रीट बोयस, सलीन डियोन, शकीरा, बेयोंसे और भी हैं ... |

३३. फिल्में देखना मुझे बेहद पसंद है | पसंदीदा फिल्में हैं एक्शन और रोमांस |

३४. मैं सभी लोगों की इज्ज़त करता हूँ | मेरा जिंदगी जीने का फलसफा है इज्ज़त करोगे तो इज्ज़त मिलेगी |

३५. मुझे चरम सीमा के पार प्यार करना और प्यार पाना दोनों बेहद पसंद है |

३६. मैं बहुत ही रोमांटिक इंसान हूँ | मेरे जीवन में श्रृंगार रस का खास महत्व है |

३७. मुझे अपने आप से तब जलन और नफरत भी होती है जब मुझे कोई महिला पसंद आती है और मैं उसके शरीर पर आँखें केंद्रित करता हूँ और उसके वक्षस्थल निहारता हूँ |

३८. मुझे पतली लड़कियां पसंद नही हैं | मुझे सांवली हरी भरी और हृष्टपुष्ट महिलायें अच्छी लगती है |

३९. मुझे अपनी प्रियेसी में बड़ी, गहरी गोल आँखें, गोल गाल, भरे हुए बड़े वक्षस्थल, गदराए और उत्तेजित नितम्ब और भरे हुए उरू पसंद हैं |

४०. मुझे बचपन से अपने से बड़ी और परिपक्व नारियां पसंद आती हैं | एक समय पर मैं अपनी टीचर के साथ भी रोमांस करना चाहता था | मुझे मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से परिपक्व महिलाएं हमेशा से पसंद आती हैं | उनके साथ वार्तालाप करना और उनकी शारीरिक सुन्दरता को निहारना मुझे असीम आनंद की अनुभूति देता है |

४१. मुझे राजनीती पसंद नहीं है | मुझे लगता है सभी राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों को खत्म हो जाना चाहिएँ अर्थात मर जाना चाहिएँ |

४२. मुझे कुछ समय नग्नतावादी होना भी पसंद है |

४३. मैं पैसे को जिंदगी में अहमियत नहीं देता | मेरे लिए वो हमेशा दूसरे दर्जे पर आती है पर ज़रूरी भी है |

४४. मुझे जिंदगी की पहली अहमियत के बारे में भी कुछ नहीं पता | पर मुझे पता है के मेरे जीवन में जो सबसे ज्यादा अहम हैं वोह है प्यार, दिमागी सुकून, तसल्ली बक्श जिंदगी, शांत मौत, जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना, जिंदगी में वही करना जो चाहो, और जीवन जीने के लिए वो करना जिसमें आप अपना १००% दे सको |

४५. मैं अनाथ बच्चों, बेसहारा बुजुर्गों और विकलाँगों के लिए कुछ करना चाहता हूँ |

४६. मुझे कभी कभी पेंटिंग करना भी पसंद है | पर अब वो भी नहीं करता एक अरसा हो गया |

४७. शायद मेरे से कुछ लिखना रह गया है, कुछ न कुछ तो छूट गया है पर कोई नहीं समय के साथ वो भी लिख दूँगा |

४८. अरे हाँ ! अपना नाम तो बताया ही नहीं अभी तक, खैर नाम में क्या रखा है, जाने दीजिए |

४९. मैंने एक बार अपनी डेली डाईरी में लिखा था :
"हम जिंदगी में कितना कुछ करने और कहने के लिए सोचते हैं और यह भी सोचते हैं के शायद वो सब हम पूरा कर पाएंगे अपनी इस छोटी सी जिंदगी में, कितना कुछ है जिस पर हम विश्वास करना चाहते हैं और सोचते हैं हम पूरा कर पाएंगे | लेकिन फिर अचानक मृत्यु का आगमन होता है और अचानक से वो उस व्यक्ति को अपने साथ ले जाती है जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं, जो आपके दिल से सबसे करीब है | उसके बाद क्या ? उसके बाद कैसे ? सारे सपने बिखर जाते हैं, कोई तमन्ना बाकी नहीं रहती, कुछ पाना और खोना मायने नहीं रखता अगर कुछ बाकी रह जाता है जिंदगी में तो वो होता है - "समय" - और आपको पता नहीं होता के उससे कैसे खत्म करें |"

५०. जिंदगी में जो करें दिल से करें मेरा ऐसा मानना है और मैं जो भी करता हूँ दिल से करता हूँ | इसलिए दर्द ज्यादा है जिंदगी में |

जो जिंदगी रही तो यहाँ लिखे पोइंट्स भी आगे बढते रहेंगे । फिलहाल के लिए इतना ही |
बाकि समय के साथ जारी रखा जाएगा.....

यार तू चुप हो जा

ऐ मेरे दिल
यार तू चुप हो जा
क्यों बोलता रहता है
तू हर वक्त बेवजह
तू गलत होता है
हमेशा
हर मौके पर
और हर जगह

न कोई मौका
मिलेगा
और न तुझे 
हक है कोई
तू चुप रहेगा
सदा
और बस
सहेगा
हर एक की
कही

तू बेजान बुत
बन जा
और कब्र में
दफन हो जा
यह दुनिया नहीं
तेरे लिए
तू कही दूर
कही दूर
चला जा
ऐ मेरे दिल
यार तू चुप हो जा...

दूरी हो जाती है

जब दिल में दूरी हो जाती है
तब किस्मत अधूरी हो जाती है

फिर आँखों में नींद नहीं आती
हर रात अधूरी हो जाती है

जब पहले तू होती थी चाहत
क्यों अब मजबूरी हो जाती है

कुछ दीवानों की लम्हा भर में
क्यों हर ख्वाइश पूरी हो जाती है

शायद हद्द से प्यार गुजार जाए तो
अक्सर दूरी हो जाती है...

तेरा चला जाना

तेरा चला जाना मैं देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को अब क्या रह गया

तेरी बेरुखी को देखता रह गया
अल्फाज़ दफन हो गए मैं खड़ा रह गया

तेरी आँखों से कैसे छलकने लगा
मेरे होटों पर जो माजरा रह गया

ऐसे बिछडा कोई जिंदगी के मोड पर
आखरी हमसफ़र रास्ता रह गया

सोचा था के कुछ दूर साथ रहेगा यहीं
तू भी दिलदार दम तोड़ कर रह गया

तेरा चला जाना मैं देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को अब क्या रह गया

रविवार, जुलाई 08, 2012

DELETE COMMAND

Wouldn’t it be great if we could delete people from our memory as easily as we DELETE files from our computers and laptops? We simply click ‘yes’ for the prompt that says ‘Are you sure?’ and then that’s it. The person is gone from our memories…forever!

Every pain they ever caused us is forgotten. Evert hurt they ever gave us is gone. Every tear we shed because of them is dry. They have disappeared from our life like they never existed.

If I could that, I could move on. Else I get stuck with the “What-if” syndrome. The scenarios range from the bleak to the blissful. The latter much scarier than the former. As my imagination runs wild creating these false illusions of ever lasting happiness. When the reality is far far far from it.

Why do we expect people to feel about us the same way we feel about them? And when they don’t, we despair. Broken hearts for the extreme-minded like yours truly come to play. In such situations the DELETE FROM MEMORY function would be a boon.

Flight of fantasy again…we can’t delete people from our memories. Not going to happen. But we do have the power to choose the memories. Choose the cheerful ones, the ones that fill your heart with delight. Just remember what gives you peace and happiness. For the unpleasant ones, well, they will make an appearance….acknowledge their existence and then hit the imaginary DELETE button in your mind. POOF! It’s gone.

Now if I can only convince myself to act in this manner….

My Heart

Do they have a term for foolish acts done in past in an aware state of mind? It’s not a mistake- as I knew what I have done in my life so far. It’s not impulsive- as I have been thinking about it. And it’s certainly not smart or right.

So why did I do it? My heart desired. It begged me to indulge it. To make it flutter once again. To make it hope. To make it love.

And I abided. Knowing full well that my heart will break...sooner or later. For its sake, I hope it’s later.

But I had to take the chance. I needed that leap of faith. Will I land on feet or on my face and break my nose, I don’t know. My brain tells me it will be the latter and is warning me of the consequences.

My heart however, is dreaming again. Hoping again. Desiring to love again. A teeny part of it knows, the dreams will be shattered, the hopes will be unfulfilled, the desires will need to be tamed. But right now my heart awaits...with bated breath...for its destiny to come for it.