हर शब् आते रहे
बहके महके ख़्वाब
ज़हन में
तुम्हारा आवा दरफ्त
जारी रहा
बेचैन दिल में
सन्नाटे का शोर
चीख चीख कर
कहता रहा
क्यों देखता है ख़्वाब
इस नींद के खुमार में
कुछ सोच कर
जब वापस गया
तो सारे ख़्वाब
टूट चुके थे
खो गए थे
काली रात के अंधियारे में
बिस्तर की सिलवटों में
तकिये पर सर रख कर
'निर्जन' फिर से खो गया
एक नए ख़्वाब के
इंतज़ार में ....