शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

गुलपोश














गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है

अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं

उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में

सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है

गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं 

रविवार, फ़रवरी 02, 2014

तुम्हारे लिए





















मेरी कविता, मेरे अलफ़ाज़
मेरी उम्मीद, मेरे उन्माद
मेरी कहानी, मेरे जज़्बात
मेरी नींद, मेरे ख्व़ाब
मेरा संगीत, मेरे साज़
मेरी बातें, मेरे लम्हात
मेरा जीवन, मेरे एहसास
मेरा जूनून, मेरा विश्वास
सब तुम्हारे लिए ही तो है
फिर क्या ज़िन्दगी में
तुमसे कह नहीं सकता
मेरे जीवन का हर क्षण
तुम्हारे लिए ही तो है
तुम भी अपनी साँसों में
मेरी हर एक सांस को
बसा सकते हो क्या ?
इस ज़िन्दगी में तुम
हर पल हर क्षण यही
गीत गा सकते हो क्या ?

एक गीत एक कविता
फिर कहानी सुनाएगी
कहेगी, बतलाएगी
मेरी मस्ती में तुम भी
शामिल हो जाओगी
निश्छल निर्मल
अनोखी सरल
शरारती दिल्लगी
तुम्हारे जीवन में
संचार करेगी तिश्नगी
जब तुम पा जाओगे
इश्क की मंजिल वही
ज़िन्दगी के हर लम्हे में
हर मोड़ पर हल पल में
फैल जाएगी सुगन्ध
महक मेरे पागलपन की
तसव्वुर में तुम्हारे
तब बेचैन हो उठोगे
अपने आप को
मेरी पहचान में
शामिल करने को.....

शुक्रवार, जनवरी 31, 2014

रात के आगोश में





















रात के आगोश में...

छा रहीं मदहोशियाँ
धीमी सरसराहटें
कर रहीं सरगोशियाँ
ख़ामोशी की ज़बां
कहती है कहकशां
तेरी वो गुस्ताखियाँ
जाज़िब बदमाशियाँ

रात के आगोश में...

बातें बस यूँ ही बनीं
उसने जो कुछ कही
उन बंद होटों से सही
दिल से इबादत यही
कर जज्बातों को बयां
जुस्तजू-ए-ज़ौक़ रही
मौन रह सब मैंने सुनी

रात के आगोश में...

चलती मुझसे गुफ़्तगू
छोड़ कर सोने चली
भूल ख्वाबों से मिली
'निर्जन' बे कस बैठा
बे क़द्र रातें कोसता
लफ़्ज़ों को सोचता
ज़ह्मत को परोसता

रात के आगोश में...

जाज़िब : मनमोहक, आकर्षक
जुस्तजू : खोज, पूछ ताछ, तलाश
ज़ौक़ : स्वाद
बे कस : अकेला, मित्रहीन
बे क़द्र : निर्मूल्य
ज़ह्मत : मन की परेशानी, विपदा, दर्द

सोमवार, जनवरी 20, 2014

क्या कहूँ
















अमा अब क्या कहूँ तुझे हमदम
नूर-ए-जन्नत, दिल की धड़कन 
जान-ए-अज़ीज़, शमा-ए-महफ़िल 
गुल-ए-गुलिस्तां, लुगात-ए-इश्क़
हर दिल फ़रीद, दीवान-ए-ज़ीस्त
अलफ़ाज़ होते नहीं मुकम्मल मेरे 
पुर-सुकून शक्सियत तेरी जैसे 
महकती फ़ज़ा-ए-गुलशन 'निर्जन'
हो सुबहो या शामें या रातों की बेदारी  
तुझको देखा आज तलक नहीं है
फ़िर भी 
तुझको सोचा बहुत है हर पल मैंने.... 

लुगात : शब्दकोष, dictionary
दीवान : उर्दू में किसी कवि या शायर की रचनाओं का संग्रह, collection of poems in urdu
ज़ीस्त : ज़िन्दगी, life
अलफ़ाज़ : शब्द, words
मुकम्मल : पूरे, complete
पुर-सुकून : शांत, peaceful/tranquil
बेदारी : अनिद्रा, wakefullness

बुधवार, जनवरी 15, 2014

देखे होंगे


















मेरी तरह उसने भी तो रातों में
चाँद से लिपटते तारे देखे होंगे
चांदनी के आगोश में सिमटते
वो मदहोश नज़ारे देखे होंगे
रात के आसमान में धीरे से
खिसकते बादल देखे होंगे
छत की मुंडेर को थामे वो
रातों में मुझे ढूँढ़ते तो होंगे
सियाह रात के सर्द कुहरे में
बंद होठ धीरे से मुस्कुराते होंगे
अनकहे अनछुए एहसास उसके
दिल में भी धड़कते मचलते होंगे
बस कह नहीं पाता है वो
दिल की बात 'निर्जन' तुझसे
ये बात दीगर है कि सपने तो
उसने भी वही देखे होंगे...

मंगलवार, जनवरी 07, 2014

दिल का पैगाम





















उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल दरिया है, रूप कमल है, सोच है आह्लम
हंसी ख़ियाबां, नज़र निगाहबां, ऐसी हैं ख़ानम
ख़ुदाई इबादत, इश्क़ की बरकत, जैसे हो ईमान
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल अज़ीज़ है, अदा अदीवा है, मिजाज़ है शबनम
खून गरम है, बातें नरम हैं, शक्सियत में है बचपन
लड़ती रोज़ है, भिड़ती रोज़ है, जिरह उनका काम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

जब से मिला हूँ, तब से खिला हूँ, बनते सारे काम
मुस्कुराहटें, सरसराहटें, रहती सुबहों और शाम
दुआ रब से, मांगी है कब से, मिल जाये ये ईनाम
सोच रहा है 'निर्जन' उनको दे, कैसे दिल का पैगाम

आमद : आने
आह्लम : कल्पनाशील
ख़ियाबां : फूलों की क्यारी
निगाहबां : देख भाल करने वाला
ख़ानुम(ख़ानम) : राजकुमारी
अज़ीज़ : प्रिय
अदा : श्रृंगार, सुन्दरता
अदीवा : लुभावनी
शबनम : ओस
जिरह : बहस

गुरुवार, जनवरी 02, 2014

बना करते हैं

















तेरी ज़ुल्फ़ के साए में जब आशार बना करते हैं
बाखुदा अब्र बरस जाने के आसार बना करते हैं

तेरे आगोश में रहकर जब दीवाने बना करते हैं
अदीबों की सोहबत में अफ़साने बना करते हैं

तेरी नेकी की गौ़र से जब गुलिस्तां बना करते हैं
ख्व़ार सहराओं में गुमगश्ता सैलाब बना करते हैं

तेरी निगार-ए-निगाह से जब नगमें बना करते हैं
अदना मेरे जैसे नाचीज़ तब 'निर्जन' बना करते हैं

आशार : शेर, ग़ज़ल का हिस्सा
अब्र : मेघ, बादल
आगोश : आलिंगन
अदीबों : विद्वानों
सोहबत : साथ
अफ़साने : किस्से
नेकी : अच्छाई
गौ़र : गहरी सोच
गुलिस्तां : गुलाबों का बगीचा
ख्व़ार : उजाड़
गुमगश्ता :  भटकते हुए
निगार : प्रिय
निगाह : दृष्टि
नज़्म : कविता
नगमा : गीत
अदना : छोटा
नाचीज़ : तुच्छ

नज़र उसकी











अदा उसकी
अना उसकी
अल उसकी
आब उसकी
आंच उसकी

रह गया फ़कत
अत्फ़ बाक़ी 'निर्जन'
बस वो तेरा, फिर तेरी

जान उसकी
चाह उसकी
वफ़ा उसकी
क़ल्ब उसकी
ग़ज़ल उसकी

जो कुछ बाक़ी
रहा हमदम
गोया मुस्कुराते
कर देगा

नज़र उसकी
नज़र उसकी ...

*अदा : सुन्दरता, अना : अहं, अल : कला, आब : चमक, आंच : गर्मी, अत्फ़ : प्यार, क़ल्ब : आत्मा, नज़र : समर्पण

मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

रिश्ते















कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं
जो दिल में बस जाते हैं
आदत बनकर रहते हैं
छूटे से छूट ना पाते हैं

ख़ुशबू बन कर जीते हैं
गुलशन जैसे महकते हैं
गुलाब से खिल जाते हैं
कांटो में साथ निभाते हैं

'निर्जन' बस ये कहता है
ऐसे रिश्तों को खो न देना
जीवन को यही सजाते हैं
वो दिल से जहाँ बनाते हैं 

सोमवार, दिसंबर 30, 2013

मेरा रहबरा














ओ रे मितवा, तू है मेरा रहबरा
बन रहा है, तुझसे मेरा राबता

दिल से मेरे है अब, तेरा वास्ता
तू ही दिखा दे अब, आगे रास्ता

तू रहगुज़र-ए-दिल-ए-खुशखीरां
लग रहा है तू ही, मेरा कहकशां

खुदा हो रहा 'निर्जन' पर मेहरबां
मिलते हैं उसकी रहमत से कद्रदां

गुरुवार, दिसंबर 26, 2013

यह किसकी दुआ है
















ऐ मेरी तकदीर बता
किसकी दुआ है
दिल में उमंग
जिगर में तरंग
यह किसकी दुआ है

मेरे जीवन की
मेरे मन की
चमक दमक तो
संवर गई अब
जुगनू सा
प्रकाशमय जीवन
जगमग सितारों सी
रौशनी है
यह किसकी दुआ है

मन को मोड़ा
तन को जोड़ा
साँसों की तारों
को झकझोरा
यह किसकी दुआ है

एक आवाज़
ह्रदय को हर्षाती
प्रार्थना को भेदती है
आत्मा के यौवन को
खुशियों से प्राणों
से जोड़ती है
यह किसकी दुआ है

अपनों के बंधन
सच्चे और मीठे
साँसों का
हर कतरा झूमा है
यह किसकी दुआ है

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा
एक-एक करके
मेरे मन मस्तिष्क में
हर क्षण, हर पल
कुछ ना कुछ
गाता है, गुनगुनाता है
पूछता है कहता है
'निर्जन'
यह किसकी दुआ है

यह किसकी दुआ है 

मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

एक शाम उसके नाम




















‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे 
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे 
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है 
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ 
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं 
ठहर जाएँ तो सागर हैं 
बरस जाएँ तो शबनम हैं 
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में 
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा 
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की 
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है 
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है 
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को 
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है 
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात 
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है 
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे 
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ 
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ 
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक 
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था 
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था 
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया 
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं 
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है 
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा 
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है 
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा  
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए 
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का 
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का 
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही 
दोस्ती में, 
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन' 
तो शब् भर रात रोती हैं 
ये दुनिया तंग दिल इतनी 
दिलों में कांटे चुभोती है 
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ 
मैं हमदम से भी इतरा कर 
तेरी महफ़िल आकर तो 
बड़ी तकलीफ होती है 

बुधवार, दिसंबर 18, 2013

तेरा ही रहेगा













तेरे आने की जब खबर चहके
तेरी महक से सारा घर महके
तेरे रौशन चेहरे से दिन लहके
तेरी आहों से मेरा दिल बहके
तेरे होठों से मेरे अरमां दहके
तेरी बोली से ये जीवन कहके
कहता है 'निर्जन' रह रह के
तेरा ही रहेगा कुछ भी सहके....

सोमवार, दिसंबर 16, 2013

ज़िन्दगी इनसे बर्बाद है











कुछ महके हुए ख्व़ाब
कुछ बिछड़े हुए अंदाज़
कुछ लफ़्ज़ों के एहसास
कुछ लिपटे हुए जज़्बात
ज़िन्दगी इनसे बर्बाद है

कुछ बातों में शरारत
कुछ नखरों में अदावत
कुछ इश्क़ में बनावट
कुछ जीवन में दिखावट
ज़िन्दगी इनसे बर्बाद है

कुछ लम्बी तनहा राहें
कुछ सुलगी चुप आहें
कुछ कमज़ोर वफाएं
कुछ उलझी जफाएं
ज़िन्दगी इनसे बर्बाद है

कुछ बेगाने अपने
कुछ अनजाने सपने
कुछ मुस्कुराते चेहरे
कुछ ग़म भी हैं गहरे
'निर्जन' इनसे आबाद है 

शनिवार, दिसंबर 14, 2013

शाम तनहा है


















शाम तनहा है
रात भी तनहा
चाँद मिलता है
अब यहाँ तनहा
शाम तनहा है...

टूटी हर आस
थम गया लम्हा
कसमसाता रहा
ये दिल तनहा
शाम तनहा है...

इश्क भी क्या
इसी को कहते हैं
लब तनहा है
जिस्म भी तनहा
शाम तनहा है...

साक़ी ग़र कोई
मिले भी तो क्या
जाम छलकेंगे
दोनों तनहा
शाम तनहा है...

जगमगाती
चांदनी से परे
सूना सूना है
एक जहाँ तनहा
शाम तनहा है...

याद रह जाएगी
दिलों में मेरी
जब चला जायेगा
'निर्जन' तनहा
शाम तनहा है...

मुक़म्मल इंसान हो तुम














गैरों के एहसास 
समझ सकते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लोगों की परख 
रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

बेबाक़ जज़्बात 
बयां करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आँखों से हर बात 
कहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ल्ब* को साफ़ 
किये चलते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

दिल से माफ़ी 
दिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आशिक़ी बेबाक 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लबों पर मुस्कान 
लिए रहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

खुल कर बात 
किया करते हो, तो   
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़त्ल बातों से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ौल* का पक्का 
रहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ायदा* गर्मजोशी
का रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ज़बां पर ख़ामोशी
लिए रहते हो, तो  
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आफ़त को बिंदास
हुए सहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

गुज़ारिश दिल से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ग़म को चुप्पी से 
पिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जिगर शेर का  
रखा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जज़्बा बचपन सा 
लिए जीते हो, तो 
'निर्जन' हो तुम...

मुक़म्मल - पूर्ण / Complete 
क़ल्ब - दिल
क़ौल - बात
क़ायदा - तरीका 

गुरुवार, दिसंबर 12, 2013

जीवन - मृत्यु

जेठ की सुबह जब ‘प्रालेय’ बिस्तर से उठकर बैठा तो दिल में कुछ अलग सा एहसास अंगड़ाईयां ले रहा था | ह्रदय विचलित हो रहा था और नामालूम क्यों एक अनकहा सा डर दिल को ज़ोरों से धड़का रहा था | कुछ सोचते हुए उसने इधर-उधर नज़रें दौड़नी चाहि पर अलसाई अधखुली आँखों ने धुंधले परिदृश्य सामने उकेरने शुरू कर दिए | हथेलियों को ऊपर उठा धीरे से पलकों को मूँद कर अर्ध-निंद्रा से बोझिल होती आँखों को मसलना शुरू किया और जोर के अंगडाई के साथ बड़ी सी जम्भाई ली | 

“जय श्री राम”, का नाम लेते हुए उसने फिर अपनी दोनों हथेलियों में भगवान् की उकेरी हुई लकीरों को धीरे से चूमा और मन ही मन प्रभु को धन्यवाद् करने लगा | 

“हे प्रभु! आपने मुझे जो जीवन प्रदान किया है मैं उसके लिए आपका धन्यवाद् करता हूँ | आप ही हैं जिन्होंने मेरा परिचय जीवन से करवाने हेतु इस धरा पर अवतरित करने के लिए मेरी माता के रूप में मेरे लिए सबसे सुन्दर अप्सरा को भेजा | आप ही हैं जिन्होंने जीवन यापन के लिए मेरे पिता को मेरे रक्षक के रूप में ज़ालिम संसार से लोहा लेने के लिए और मेरे सर पर बरगद सरीखी छाँव बना कर रखने के लिए अपने आशीर्वाद के रूप में भेजा | आप ही हैं जिन्होंने छोटी माँ के रूप में मुस्कुराता चेहरा लिए मुझसे लड़ने, झगड़ने, जिद करने और अपनी मनमानी करने के लिए और एक सच्चे दोस्त की तरह दोस्ती निभाने के लिए मेरी छोटी बहन को इस संसार में मेरा साथ निभाने के लिए भेजा | आपकी इस परम पूजनीय कृपा दृष्टि के समक्ष मैं नतमस्तक हूँ और आपके इस उपकार और कृपा दृष्टि के लिए मैं सदैव आपका ऋणी और हमेशा आभारी रहूँगा | प्रारब्ध की ऐसी पूँजी प्रदान करने के लिए आपको कोटि-कोटि नमन |”

इतना कुछ अपने ह्रदय में सोच कर उसने नीचे झुक कर धरती माता को उँगलियों से स्पर्श कर माथे से लगाया, उनका शुक्रिया अदा किया और बिस्तर से उठ खड़ा हुआ | 

चप्पल पहन मोबाइल उठा कर सीधा दौड़ कर घर की छत पर पहुँच गया | मुंडेर पर हाथ टिका उदय होते सूर्य देवता की आभा को निहारने लगा | मन ही मन में अरुणोदय को अपने प्रकाश से इस समस्त जग को प्रकाशमान करने के लिए प्रणाम किया और फिर उनके अलौकिक चमत्कार को पूर्ण होते हुए निहारता रहा | 

भोर का समय था | आसमान पर एक भीनी-भीनी लालिमा का अनावरण था | मंद-मंद पुरवाई उसके गालों को छु शरीर में सिहरन बढ़ा रही थी | पक्षी नभ में कल्लोल करते विचरण कर रहे थे | क्षितिज तक फैले व्योम में विचरते परिंदे और उनका चहचहाना ह्रदय को आत्मविभोर कर रहा था | बादलों की कतारें नव-निर्मित गगन में ऐसी प्रतीत हो रहीं थीं जैसे कोई भाप-यंत्र से निकलती धुएं की लकीरें हों | दूर तक फैले दृश्य में यदि आँख उठा कर देखो तो सिर्फ ऊँची-ऊँची इमारतें और सड़क से आती वाहनों की गड़गड़ाहट, पों-पों करती भोंपू का शोर सुनती गाड़ियाँ कानो में हलाहल घोल रही थीं | परन्तु पास के मंदिर में बजती घंटियाँ, पिछवाड़े की मस्जिद से गूंजती अज़ान की ध्वनि और पड़ोस वाली चाय की दुकान में धुलते, पटकते बर्तनों की मिश्रित ध्वनियों ने इस शानदार प्रभात-बेला में चार चाँद लगा दिए थे | 

छत पर बने अपने छोटे से बागीचे को निहारता रहा और उन में नव अंकुरित पुष्पों को सजीव हो झूमते देख कर उसका ह्रदय गद-गद हुआ जा रहा था | जेब से मोबाइल निकाल खिलखिलाते पत्तों, फूलों, और उन पर मंडराते जीव जंतुओं का छाया चित्र निकाल उसने उन पलों को अपने मोबाइल की एल्बम में कैद कर लिया | काफी देर ‘प्रालेय’ खड़ा रहकर कुदरत की इस अद्भुत और विहंगम चित्रकारी का रसपान करता रहा | फिर वापस अपने कमरे में लौट आया और बिस्तर पर लेट गया | अभी भी थोड़ा सा आलास चित्त में अठखेलियाँ कर रहा था | अभी एक और छोटी से झपकी लेने की सोच ही रहा था कि तभी आवाज़ आई, 

“बेटेजी उठ गए क्या ? राजा साहब की सवारी नाश्ते पर कब तशरीफ़ ला रही है ? मुहूर्त निकला या नहीं अभी तक या किसी को पत्रा ले कर भेजूं ?” 

“आता हूँ माँ | आप भी कभी चैन से सोने नहीं देती हो | आपको पता कैसे चल जाता है इस सब का ? मैं जाग रहा हूँ या सो रहा हूँ ?” 

“मैं माँ हूँ तुम्हारी तुम मेरी माँ नहीं हो | समझे ? अब ज़रा आने का कष्ट करो वरना चाय ठंडी हो जाएगी | महानुभव् अपने चरण कमलों को थोड़ी यातना दो और ऊपर आ जाओ | तुरंत |”

वो उठा और बालों को खुजलाते नाश्ते की मेज़ पर जा बैठा | 

“आइये ज़िल्लेसुभानी ! तशरीफ़ का टोकरा उठाये किधर को आये मियां ? आज इतनी सुबह इधर का रास्ता कैसे भूल गए जहाँपनाह ? अभी तो सिर्फ छह ही बजे हैं | आज सूरज देवता ज़रूर पश्चिम नहीं दक्षिण से निकले होंगे...जो आपके दर्शन इस समय हो गए |” छोटी बहन ने सुबह-सवेरे से चुटकी लेना प्रारंभ कर दिया | 

“चुप कर जा, दिमाग ना खा यार | आज पता नहीं कुछ ठीक नहीं लग रहा | अचानक से सुबह आँख खुल गई और मन में विचित्र विचारों के सैलाब उमड़ रहे हैं | पता नहीं क्या होने वाला है |”

“लो भई...! और सुनो लेखक महोदय आज भोर से ही जाग उठे | चाय पीयो भाई चाय | दिमाग ज्यादा ना चलाओ | दिल ठंडा रख भाई | चिल्ल कर यार |”

अचानक...! मोबाइल की घंटी बज उठी | माँ ने फ़ोन उठाया | 

“हेल्लो...कौन ?”

“अरे! मैं बोल रहा हूँ दीदी...कैसी हो ?” 

“ठीक हूँ...तू बता कैसा है | इतनी सुबह कैसे फ़ोन किया आज ? लगता है रात भर मेरी याद में सोया नहीं तू तभी आवाज़ में आलास भरा है तेरी | घर पर सब कैसे हैं ?”

“दी...कुछ ठीक नहीं है | मम्मी की तबीयत बहुत ख़राब है | अचानक से बिगड़ गई | दो दिन हो गए अस्पताल में एडमिट हैं | डायलिसिस पर हैं | हो सके तो आ जाओ | मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है | दिल बहुत घबरा रहा है |”

इतना सुनते ही माँ कुर्सी पर धक् से बैठ गईं | ‘प्रालेय’ उठा और फ़ोन माँ के हाथ से लेकर बात करने लगा |
“हाँ...क्या हुआ कौन ?”

“अरे यार मैं बोल रहा हूँ | तू आजा यार | मम्मी अस्पताल में है | सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया | एक दम से पता नहीं क्या हो गया | दो दिन हो गए भर्ती हुए | उनके गुर्दों में संक्रमण हुआ है | वो डायलिसिस पर हैं पिछले दो दिन से |”

प्रालय बोला – “दो दिन से क्या कर रहा था ? आज बता रहा है | आ रहा हूँ फ़िक्र ना कर | बस पहुँचने में जो समय लगेगा उतना सब्र कर | बाक़ी बात आकर करूँगा | चल बाय |”

फ़ोन काट सीधा माँ के पास गया, उनके हाथों को अपने हाथों में लेकर बोला “कुछ नहीं होगा माँ | उनके साथ हम सब हैं | मैं जा रहा हूँ | अभी तुरंत निकलता हूँ | जैसी भी स्तिथि होगी मैं ख़बर करता रहूँगा | आप चिंता ना करो | आपकी सेहत पर असर पड़ेगा | फिर ब्लड प्रेशर बढ़ जायेगा |”

दस मिनट में तयार होकर प्रालय घर से निकल पड़ा | बस पकड़ी और सीधा घर पहुँच गया | भाई इंतज़ार कर रहा था | पहुँचते ही उसने पुछा, “अब कैसी तबीयत है ?”

भाई बोला – “अरे यार ! बस पूछ मत | बस यह समझ ले ऊपर वाले ने सुध रख ली | अब सेहत में सुधार है थोड़ा पर स्तिथि चिंताजनक बनी हुई है | सबके हाथ पैर फूल गए थे इसलिए पहले फ़ोन कर के बता नहीं पाया | चल अस्पताल चलते हैं मैं तो तेरा ही इंतज़ार कर रहा था |”

भाई ओ गले लगा कर उसने उसकी परेशानी बांटते हुए कहा, “यार सब सही होगा | फ़िक्र क्यों करता है | अब तो मैं भी आ गया हूँ | हम दोनों सब संभाल लेंगे |”

मोटरसाइकिल उठा कर दोनों अस्पताल पहुंचे | आज बरसों के बाद फिर कोई अपना ऐसी जगह था जहाँ प्रालय को जाना कभी अच्छा नहीं लगता था | पिछली दफ़ा भाई की तबीयत बिगड़ने पर उसने वो पंद्रह दिन वहां कैसे बिताये थे यह वो ही जानता था | आज एक बार फिर उसी जगह खुद को पाकर उसका मन फिर से विचलित हो उठा था | 

भरी क़दमों से वो भाई के पीछे पीछे कमरे की और चल पड़ा | कमरा नम्बर - २०३ में जैसे ही दाख़िल हुआ एक बार को तो उसकी आँखें भर आईं | अस्पताल का माहौल उसे कभी पसंद नहीं था | डॉक्टरों से तो उसका छत्तीस का आंकड़ा था | कमरे में जाते ही पहला दृश्य देखा कि बिस्तर पर सफ़ेद चादर बिछी हुई है | सिरहाने पर लगी लम्बी रौड और उस पर लटकी ग्लूकोस की बोतल और साथ में इंजेक्शन की शीशी | उससे जुडी सुई और पाइप जिसका दूसरा सिरा उनकी हथेली के ऊपर वाले हिस्से में घुसा हुआ है | हाथ सूज कर कुप्पा हो रखा है | वो बेसुध बिस्तर पर लेटीं हैं | 

बराबर में रखी बैंच पर एक गद्दे पर सफ़ेद चादर लिपटी है और उस पर मौसी बैठी हैं | प्रालेय भी चुप चाप सिरहाने बैठ गया | भरी हुई आँखों से उनके चेहरे पर उभरते पीड़ा के भावों को पढ़ना प्रारंभ कर दिया | तकरीबन पंद्रह मिनट तक वो ख़ामोशी का जमा ओढ़े टकटकी बांधे तकता रहा | भगवान् से उनकी सलामती की दुआ करता रहा | फिर हिम्मत जुटा कर भरी आवाज़ में मौसी से पुछा, 

“अब तबीयत कैसी है ?”

कहने को तो बिस्तर पर जो लेटीं थीं उसकी मामी थीं पर प्यार हमेशा माँ की तरह किया था | हमेशा हंसती और खिलखिला कर बात करने वाली जीवंत महिला आज दर्द से बेचैन गफलत में खामोश बिस्तर पर लेटीं थी | चाहते हुए भी प्रालेय उनसे आज हमेशा की तरह हंसी मज़ाक नहीं कर सकता था | 

मौसी ने उसकी कमर को सहलाया और सर पर हाथ फेरकर बोलीं – “परेशान मत हो | अब तबीयत पहले से बेहतर है | बस खैर हो गई | ये समझ दूसरा जीवन मिला है | अचानक से दोनों किडनियों ने काम करना बंद कर दिया था | पूरे शरीर में इन्फेक्शन फैल गया था | शुगर इन्हें पहले से ही हैं | अभी एक हफ़्ता पहले आँख का ऑपरेशन हुआ था | उसी की कोई दवाई थी जिससे रिएक्शन हो गया और बस यहाँ पहुंचा दिया | पर अब धीरे धीरे सेहत में सुधार हो रहा है | समय पर सही डॉक्टर द्वारा सटीक उपचार मिलने से स्तिथि काबू में आ गई |”

यह सुन प्रालय की जान में जान आई | तुरंत मोबाइल से माँ को घर पर फ़ोन लगाया और सारी स्तिथि से अवगत कराया | उसकी बातों को सुनकर माँ का मन भी शांत हुआ और कुछ निश्चिंतता हुई | माँ ने पुछा – “तू कहाँ है बेटा ?” वो बोला – “मैं हॉस्पिटल में ही हूँ आप फ़िक्र ना करना अब मामी के ठीक होने के बाद अपने साथ लेकर ही वापस आऊंगा | फिर बाद में आप भी आ जाना उनसे मिलने के लिए |”

“ठीक है | जो भी हो मुझे खबर करते रहना |”

“हाँ माँ – बताता रहूँगा रोज़ फ़ोन करूँगा और जो भी ब्यौरा होगा अपडेट करता रहूँगा | अब रखता हूँ आप भी अपनी सेहत का ख्याल रखना | बाए |” 

इतना कह उसने फ़ोन काट दिया | 

आज चार दिन हो गए थे हॉस्पिटल में भर्ती हुए पर मामी की हालत में कुछ ख़ास सुधार नहीं हो पाया था | उनके मुंह में छाले पड़ गए थे | थोड़े थोड़े समय के अंतराल में उन्हें चम्मच से पानी ग्रहण करवाया जा रहा था | सेहत सुधारने के लिए थोडा बहुत लौकी और खीरे का रस भी दिया जा रहा था | 

एक बेहतरीन इंसान और बेहद जिंदादिल शख्सियत की मालकिन जिनका व्यक्तित्त्व हमेशा उनकी हंसी के साथ झलकता था आज आँखे मूंदे मरीज़ बन हॉस्पिटल के बिस्तर पर अपने दर्द से लड़ रहीं थीं | यदा-कदा अपनी आँखें खोल कर आस-पास के लोगों को पहचान पाने की कोशिश करतीं | कभी धीरे से मुस्कुराने की कोशिश भी करतीं पर दर्द हर बार जीत रहा था | दर्द इतना ज्यादा था कि अपने चेहरे के भावों से उसे छिपाने की कोशिश में वो नाकाम हो रहीं थीं | उनकी टीस का आंकलन उनकी आँखों से गिरते आंसुओं से ही हो जाता था | दिन के पंद्रह से ज्यादा इंजेक्शन, दसियों ग्लूकोस की बोतलें और बिस्तर पर पड़े पड़े ना हिल-डुल पाने की स्तिथि में कोई कैसा महसूस करता होगा अब वो समझ रहा था | इसी कवायत के चलते दिन बीत रहा था | शाम हुई और डाक्टर साहब रूटीन राउंड पर चेकअप  के लिए कमरे में आये | डाक्टरी रिपोर्ट और मौजूदा हालातों को देख उन्होंने आश्वासन दिया कि अब पहले से सेहत में सुधार हो रहा है | 

बातचीत होती रही | रिश्तेदारों और भाई बन्धु के साथ वो भी कुछ इधर-उधर की बातें डॉक्टर सब के साथ करने लगा | माहौल को थोड़ा हल्का करना भी बेहद ज़रूरी था | थोड़ी इस बातचीत के पश्चात अपने डॉक्टर भी जान पहचान और रिश्तेदारी में निकल आए | फिर क्या था प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर वाला रवैया छोड़ कर उन्होंने भी अपनापन दिखाया और रिपोर्ट्स का और गहरा अध्ययन कर सही सही स्तिथि सामने रखी | दवाइयों के साथ साथ लाफ्टर थेरेपी प्रयोग कर माहौल को हल्का किया जा रहा था | उसकी बातों से मामी का मन भी खुश हो रहा था | हंसी मज़ाक वाले माहौल में उनकी हालत में भी सुधार होने की पूरी उम्मीद की जा रही थी | उनके दर्द से कराहते चेहरे पर हंसी और मुसकराहट लाने में अब थोड़ी सी कामयाबी हासिल हुई थी | 

रोज़ की तरह रात को मामी के साथ हॉस्पिटल में रहने का फैसला कर वो ताज़ा होने और कपडे बदलने घर वापस गया | भाई और वो पिछले कुछ दिनों से रात को एक साथ उनके पास रुक रहे थे | अभी घर पहुंचा ही था कि मामा जी से उसका सामना हुआ | वो तभी दूकान से वापस लौटे थे | उन्होंने देखते ही सबसे पहले यह सवाल किया, 

“अब क्या हाल है ? क्या कहा डॉक्टर ने ?” 

लुंगी और बनियान में वो अभी नहाने जाने की तैयारी में कुर्सी का सिरहाना पकड़े खड़े थे | ऊपर से भले ही कितने ही कड़क दीखते हों परन्तु सवाल करते वक़्त प्रालेय उनकी नज़रों में छिपे दर्द और प्यार को भली भांति पढ़ सकता था | 

उसने बताया कि अब हालत में थोडा सुधार है | चिंता की बात नहीं है और मामी जल्दी ही सही हो जाएँगी | उसका जवाब सुनकर कुछ लम्हा खामोश खड़े रहे और फिर धीरे से सर हिलाकर गुसलखाने में नहाने चले गए | 

उनके चेहरे के हाव-भाव और चाल-ढाल से उनकी चिंता स्पष्ट थी | पैंतालीस वर्ष के रिश्ते में भले ही उन्होंने अपने प्यार को बोलकर कभी ज़ाहिर ना किया हो परन्तु उनके दिल में मामी के लिए जो इज्ज़त, सम्मान और प्यार का अपार भण्डार छिपा था वो आज उसने पहली बार मामा की आँखों को पढ़कर महसूस किया था | उसे अच्छे से मालूम हो गया था कि उनके दिल में मामी की एक खास जगह है जिसे वो कभी भी बोल कर किसी के भी सामने बयां नहीं कर सकते | वही लोग जो उन्हें दिल से समझते हैं वे ही उनकी आँखों से झलकती उस चिंता और प्यार को पढ़ सकते हैं |

सारी रात उसने हॉस्पिटल में बैठे बैठे आँखों में गुज़ार दी | कहीं मामी को किसी चीज़ की ज़रुरत ना पड़ जाए | रात भर एक नई और आशा की किरण लिए आने वाली सुबह का इंतज़ार लगा रहता | बस यही सोचता रहता कि कब वो एक बार फिर से अपने भाइयों, मामी और परिवार जन के साथ घर पर फिर से हंसी-मज़ाक के उन पलों को जीवंत देख सकेगा | सब के साथ बैठकर एक दफ़ा फिर से मामी के साथ छेड़खानी और ठीठोली करेगा | कब मामी अपने अंदाज़ में एक बार फिर उसे कहेंगी – 

“हम से मज़ाक करते हो रुक जाओ आने दो तुम्हारे मामा को उनसे शिकायत कर देंगे |” 

यही सब सोच विचार करते भगवान् से प्रार्थना कर रहा था की उसकी मामी जल्द से जल्द स्वस्थ और तंदुरुस्त होकर घर वापस आ जाएँ | ईश्वर उन्हें लम्बी आयु और निरोगी रखे | उनका घर संसार हमेशा हँसता, खिलखिलाता और मुस्कुराता रहे | सभी रोग मुक्त रहें | उनका साया और आशीर्वाद सभी बच्चों पर सदा बना रहे | इन सब ख्यालों में पता ही नहीं चला कब सुबह हो गई | पूरी रात ऐसे ही आँखों-आँखों में कट गई | 

तकरीबन ग्यारह बजे डॉक्टर राउंड पर आया और परीक्षण कर बोला ठीक ही चल रहा है सब | आज एक और डायलिसिस होगा | घर से भाई भी आ गया था | सब कुछ सही चल रहा था | सब यही सोच रहे थे की अब सेहत में सुधार है और दो तीन डायलिसिस के बाद बस घर भेज देंगे | परन्तु नियति को कुछ और ही मंज़ूर था | एक बजे उन्हें डायलिसिस रूम में ले जाया गया | तब तक सब कुछ ठीक था | दिल ना होते हुए भी प्रालेय अपने छोटे भाई की जिद पर उसके साथ घर तयार होने चला गया | मामी के साथ बड़े भैया थे और मौसी का बेटा था | थोडा हंसी मजाक करते मामी के ठीक होने की राह तकते सब इसी इंतज़ार में थे कि अब सब सही होगा | अभी दोनों घर पहुंचे ही थे कि उसके मोबाइल की घंटी बजी और दूसरी तरफ से आवाज़ आई – 

“यार बहुत गड़बड़ हो गई जल्दी आ हॉस्पिटल – तुरंत .... !!!” 

उसने भाई को आवाज़ लगाईं और उलटे पाऊँ दोनों वापस हो लिए | गोली की तेज़ी से मोटरसाइकिल दौड़ाते वापस पहुंचे तो सन्न रह गए | मामी आई.सी.यू में थीं | उन्हें बिजली के झटके दिए जा रहे थे | लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर उनका शरीर निर्जीव अवस्था में प्राणरहित मिटटी हुआ रखा था | डॉक्टर, नर्स और बाकि सभी भाग दौड़ कर रहे थे | कोई ऑक्सीजन लगा रहा था कोई उनके मुंह में बॉल पंप कर रहा था | पंद्रह मिनट के भीतर सारा नज़ारा ही बदल गया था | आख़िरकार सभी कोशिशें व्यर्थ हो गईं | 

डॉक्टर ने बहार आकर सर हिला कर कहा – “नहीं”

इतना सुनते के साथ ही सबकी कहानी वहीँ रुक गई | प्रालेय वहीँ एक कोने में खड़ा सब कुछ देखता रहा | ना रोते बनता था न कुछ कहते | बस एक टक मामी की तरफ देख रहा था | उनके साथ बिताया हर एक लम्हा सिनेमा की तरह उसकी नज़रों के सामने घूम गया | पर इस बार मामी धोखा दे गईं | सबके साथ छुट्टियों में घूमने चलने का वादा था | अब अकेले ही घूमने निकल गईं | विचार कितने ही उसके विचलित दिल में पनपते रहे | विचारों के चलते आंसू तक सूख गए | आँखें वीरान और खुश्क थीं | जीवन और मृत्यु का तमाशा भी उसने बहुत करीब से देख लिया था | जो अभी साथ था वो अगले ही पल रेत की भाँती हाथों से फिसल गया और साथ छोड़ गया | जीवन और मृत्यु का अर्थ अब उसकी समझ आ गया था | जो आया है उसे तो जाना ही है | इसलिए जाने वालों को रोकर विदा करने की जगह हंस कर विदा करो | जिस से वो उस संसार में भी वैसे ही खुश रहें जैसे यहाँ आपके साथ थे | 

कमबक्त ज़िन्दगी बहुत कुत्ती शय है, ये ना जाने क्या-क्या देखने, झेलने और सहने को विवश कर देती है | आज भी जब मामी की याद आती है तो आँखें पत्थर हो जाती है और प्रालेय थोडा सा उदास हो जाता है पर फिर उनकी मुस्कान को याद कर जीने का हौसला जगाता है, आगे कुछ नया देखने के लिए और एक नई शुरुवात के लिए तयार हो जाता है |

किसी ने सच कहा है ना - एक समृद्ध, जिंदादिल और खुशहाल जीवन जीने का रहस्य है - नई शुरुवात ज्यादा और अंत कम से कम :)

सोमवार, दिसंबर 09, 2013

नथिंग - समथिंग - एवरीथिंग

‘निहार’ शाम से अपने शयनकक्ष में अकेला बैठा है | सोच रहा है कि अपने आप को किस तरह से मसरूफ़ रखने की कोशिश करे | समय विपरीत चल रहा है | कुछ एक ही साथ देने को रह गए हैं | ज़रूरत के समय में साया भी साथ छोड़ देता है यह तो दुनियादारी वाले लोग हैं | सभी हाथ छुड़ा अपने-अपने रास्ते निकल लिए हैं | परन्तु उसके साहस और धैर्य में कोई कमी नहीं आई है | शांत रहकर होठों पर मंद मुस्कान लिए अपने असह्य समय के साथ संघर्ष रहा है | तंगहाल ज़हन को अब रफ़ू की ज़रूरत आन पड़ी है पर ख़ुशी बहुत है | ज़हन में सुकून का सैलाब पैवस्त है | अपने इसी जोश और जज़्बे को दिल में लिए वह हर पल ज़िन्दगी में आगे बढ़ रहा है | शांति, सब्र, धर्य और सहनशीलता उसके चरित्र की खासियत हैं जिनके सहारे से अपनी ज़िन्दगी में जितना उसे मिला है उसे संजोये खुदा का शुक्रिया अदा करता है | यार दोस्त जो इस समय में उसके साथ हैं उन्हें दिल से सलाम और प्यार भी करता है | जो दिल में आता है करता है और जो भी सोच के सैलाब में उमड़ता है वही कलम उठा कर कागज़ पर शब्दों में सज़ा कर उतार देता है | आज भी एक ऐसी ही कहानी दिल-दिमाग में सुनामी बन कर आगे बढ़ रही है | अपने अन्दर उठते इस सैलाब को आज शब्दों में यहाँ उतार रहा है |

अपने आसपास के लोगों में यदि झाँक कर देखता है तो एक ही नाम याद आता है ‘सारिका’ | उसके इर्दगिर्द ही इस कहानी का तानाबाना बुनने बैठ जाता है | स्याही और शब्दों के अताह सागर में डुबकियाँ लगता है | अपनी सोच के आकाश में धूमकेतु बन उसका मन कुछ नए और काल्पनिक ख्यालों में उड़ान भरने लगता है |

‘सारिका’ - तुम ही एकमात्र ऐसी शख्स हो जो शायद मुझे सही और पूरी तरह से समझ सकती है | पर तुम्हे भी तो अपने से दूर...बहुत दूर कर रखा है मैंने जैसे तुमने मुझे अपने से जुदा...एकदम जुदा रखा है |

आज रह-रह कर तुम्हारी बहुत याद आ रही है | एक सूनापन महसूस हो रहा है |  बीते वक़्त के गुज़रे पलों में जीने को दिल कर रहा है |  मुझे याद आ रहा है कैसे तुम्हे चुपके से मैंने पहली दफ़ा सबसे नज़रें चुराकर देखा था | दूसरों की नज़रों से बचते बचाते टेड़ी कनखियों से तुम्हे पहली बार लाल साड़ी पहने देखा और अपना सब कुछ हार बैठा था | तब से लेकर आज तक तुम्हारी छवि मेरे ह्रदयपटल पर अंकित है | अब तुम इसे मेरा बचपना कह लो या कुछ और पर सिर्फ तुम ही मेरी सच्ची दोस्त, हमदम, हमसाया और हमराज़ हो |  तुम्हारी उन शोख अदाओं और नरगिसी मुस्कान पर मन फ़िदा हो गया है |  रोज़ाना तुम्हे ऐसे ही नज़रें चुराकर देखना आदत बन गया है | जहाँ तहाँ रास्तों पर, बस स्टॉप पर, मेट्रो में, भीतर-बहार, घर के सामने हर एक शख्स में तुम्हारा अक्स नज़र आने लगा है | तुम्हारी एक झलक पाने की उत्सुकता दिल में लगातार बनी रहती थी |

मुझे याद है जब तुमने उस दिन नज़रें उठाकर पहली बार जब मुझे देखा था और फिर झट से नज़रें बचाते हुए तुम इधर उधर देखने लग गईं थी | ऐसा लगा था जैसे मुंडेर पर बैठी कोई चिड़िया आस पास गर्दन घुमाकर कुछ ढूँढ रही है | तुम इतनी व्यस्त होती नहीं हो जितना तुम दिखाने की कोशिश करती हो | थोड़े ही समय में हमारी दोस्ती इतनी मज़बूत हो जाएगी कभी सोचा ना था | पर अब शायद दोस्ती से आगे बढ़ने का मक़ाम आ गया है | बातें तो तुम भी खूब बना लेती हो | पर शायद दिल की बातें ज़बां तक आते आते मन की काली अंधरी कोठरी में कहीं गुम हो जाया करती हैं | बातों के दरमयां सवालात के वक़्त तुम्हारा जवाब में ‘नथिंग’ कहना बहुत कुछ कह देता है | देखो तो! इतनी बहस, लड़ाई झगड़े, तू-तू मैं-मैं के बाद भी हम तुम दोस्त है | हमारे बीच एक दुसरे से नाराजगी फिर रूठना मानना भी खूब होता है पर आज भी तुम्हारे और मेरे बीच यह मुआ ‘नथिंग’ ही चल रहा है | आज तुम अपने आप में व्यस्त हो...शायद कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो और मैं अपने आप में | हम दोनों शायद एक ही सोच वाले बाशिंदे हैं पर फिर भी एक दुसरे से बहुत अलग हैं |

आज तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है |  एक फ़ोन करने तक की फ़ुर्सत नहीं है |  मैं भी तुम्हारी तरह व्यस्त हो सकता हूँ |  अपनी व्यस्तता का उलाहना दे कर तुम्हे भुला सकता हूँ पर ऐसा करने के लिए दिल गंवारा नहीं करता |  दोस्त हूँ तो दोस्ती निभाना जानता हूँ | मेरे व्यस्त होने का मतलब यह कतई नहीं कि मैं तुम्हे भुलाना चाहता हूँ | मैं तो अपना हर पल तुम्हारे साथ ही गुज़ारना चाहता हूँ | कितना कुछ पाना चाहता हूँ पर इस कितने कुछ को पाने की दौड़ में तुम्हे नहीं खोना चाहता | ऐसा न हो के सब कुछ पाने के चक्कर में जीवन तुम्हारे बिना ‘नथिंग’ बनकर रह जाये | मैं तो अपनी हर ख़ुशी, हर ग़म, हर बात, हर सफलता, हर विफलता, जीवन का हर एक लम्हा, हँसना, रोना, मुस्कुराना, गुनगुनाना, तुम्हारे साथ बांटना चाहता हूँ पर किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर है | वो बेचारी तो अब तलक ‘नथिंग’ पर अटक कर रह गई है |

तुम ही तो हमेशा मुझ से कहती हो,

“तुम्हे समझना बहुत ही मुश्किल है | तुम कितने ‘जटिल’ हो | बहुत ही ज्यादा रहस्यात्मक व्यक्तित्त्व वाले इन्सान हो | क्या हो तुम ?”

मैं भी हंसकर जवाब में बस इतना ही कहता हूँ ‘नथिंग’... क्योंकि शब्दों में बता नहीं सकता और हर बात तुम्हे जताना मुनासिब भी नहीं हो पाता | इधर उधर की बातें होती ही रहती हैं | ऐसा हुआ-वैसा हुआ लगा रहता है | यहाँ गए-वहां गए, ये किया-वो किया, यह खाया-वो पिया सब कुछ कितनी सरलता से व्यक्त हो जाता है पर जो बात वास्तव में व्यक्त करनी होती है वहां तक पहुँचते ही शब्दों पर विराम लग जाता है और सिर्फ ‘नथिंग’ ही सामने उभर कर आता है | ऐसा नहीं है मैं तुम्हे या तुम मुझे समझते नहीं हैं | तुम्हारी अनकही और अनसुलझी बातों को मैं बखूबी महसूस करता हूँ और शायद तुम भी करती हो पर कहना कैसे है वो समझ नहीं आता है | कभी कभी जीवन में हम जानते हैं हमें क्या करना है और क्या कहना है पर परिस्थितियों के चलते कभी अपने आपको ज़ाहिर नहीं कर पाते | पर शायद जीवन में जीने के लिए जितना ज़रूरी सांस लेना होता है उतना ही ज़रूरी है अपने विचारों को समझाना और उन्हें व्यक्त करना भी होता है | मुझमें यह सबसे बड़ी खामी है मैं अपनी बातों को बिना कहे नहीं रह सकता | मैं जो जिसके बारे में महसूस करता हूँ उसे बिना वक़्त गंवाए उनके ह्रदय तक अपने अंदाज में पहुंचा ही देता हूँ | तुम्हारा मुझे पता है तुम अपने आप को कैसे व्यक्त करती हो ?

हमारे जीवन में बहुत कुछ घटता रहता है, बहुत से बदलाव आते हैं | बहुत से लोग मिलते हैं बहुत सी बातें होती हैं | ऐसा भी होता है कि कभी-कभी दूसरों की आदतों को हम देख और समझ कर अपने जीवन में अपना लेते हैं | ऐसी ही तुम्हारी कुछ आदतें हैं जो मैंने अपने जीवन में अपनाई हैं और मेरी कुछ बातें हैं जिनको शायद तुम भी अपनाने के बारे में सोचती तो ज़रूर होंगी | अब ये तो पता नहीं चल पाया है कि कब कैसे तुम्हारी पसंद मेरी हो गई है या मेरी तुम्हारी होने की उम्मीद है पर मुझे पूरा यकीन है यदि इस बारे में भी तुमसे कभी कुछ बात होगी तब भी तुम्हारा जवाब एक ही होगा ‘नथिंग’ या फिर ‘नथिंग लाइक दैट’ |

आज भी शाम से तुम मेरे साथ बात कर रही हो | तुम साथ भी हो और दूर भी हो | बहुत से विचारों का आदान प्रदान हो रहा है | फसबुक पर ख़ूब कमेंट्स आ रहे हैं, चैट हो रही है और फिर व्हाट्सऐप पर भी वार्तालाप निरंतर चल रहा है |

बातों के बीच मेरा यह यह सवाल करना के ‘क्या हुआ’ या ‘और क्या हो रहा है’, ‘क्या कर रही हो?’ जैसे सवाल पूछने पर तुम्हारा रटा-रटाया जवाब आता है ‘नथिंग’...अभी भी कितने ही सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब अनकहे हैं और तुम्हारी ‘नथिंग’ पर अटके हुए हैं | ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता है जब तुम मुझसे कुछ पूछना चाहती हो तब मैं भी कुछ इसी तरह जवाब देने लगा हूँ | इन सवालों के जवाब शायद एक दुसरे से मिलने की जगह हम खुद से ही पूछते रहते हैं | यदि सवाल सामने आ भी जाता है तो सहसा एक ही उत्तर ज़हन से बहार कूदकर आता है ‘नथिंग’ | यह सवालों के जवाब से बचने का सबसे उम्दा तरीका होता है | हम इससे आगे निकलकर शायद कुछ सोचना ही नहीं चाहते | मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होती यह बतलाने में कि मैंने तुमको खुद में शामिल कर लिया है | अपनी सुबहों में और शामों में भी तुमको शामिल कर लिया है पर अभी भी कुछ फासलें हैं जो तय करने हैं | देखें तुम कब अपनी शामों को मेरे नाम करती हो, अपने दिल की सुनकर अपने दिमाग से आगे निकलती हो |

यह तो कोई भी नहीं बतला सकता के कल में क्या छिपा है | अपने हाथों की लकीरों में क्या लिखा है | बस मुझे इतना तो पता है कि एक दोस्त है जिसके साथ आज तो बाँट ही सकता हूँ क्योंकि जीवन में किसी भी इंसान से बस ऐसे ही मुलाक़ात नहीं होती है | शायद आज नहीं तो कल तुम भी मेरी इस सोच पर विचार करने के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाओगी और मेरा यकीन करने लगोगे | मेरा अपना ऐसा मानना है जीवन में रिश्ता चाहे कोई भी हो यदि वह सच्चा है तो कभी भी अस्पष्ट सोच, हालातों और परस्थितियों का मोहताज नहीं होता और यदि एक दूसरे के लिए दिल में स्नेह, आदर, सम्मान, एहसास, विश्वास और संवेदनाएं होती है तो ‘नथिंग’ से ‘समथिंग’ तक पहुँचने में देर नहीं लगती और गाड़ी आगे ज़रूर बढ़ती है |

तुम्हारी दोस्ती के कारण अब दिन भी सुहाना लगने लगा है | मौसम खूबसूरत और संगीतमय लगने लगे हैं | फूलों के रंग इन्द्रधनुषी लगने लगे हैं | गुलाब का रंग और ज्यादा गहरा सुर्ख लगने लगा है | तुम्हारे साथ उगते सूरज की पहली किरण और डूबते सूरज की आख़िरी प्रभा देखने का दिल करने लगा है | तुम्हारे दिल को पढ़ने का मन करने लगा है | तुम्हारी मुश्किलों को जानने का मन करने लगा है | तुम्हारी हर बात सच्ची और अच्छी लगने लगी है | तुम्हारे ख्यालों को अपना ख्याल बनाने का दिल करने लगा है | तुम्हे तुमसे ज्यादा जान पाने का दिल करने लगा है | तुम जो रूठ जाओ तो मनाने का दिल करने लगा है | तुम्हारे अपनों को अपनाने का दिल करने लगा है | तुम्हारे ख्वाबों की ताबीर को हकीक़त बनाने का मन करने लगा है | दोस्त की दोस्ती पर कुर्बान हो जाने का दिल करने लगा है |

विचारों का सिलसिला यूँ ही चलता जा रहा था | निहार अपनी कलम से ऐसे ही विचारों को शब्दों में पिरो कर कागज़ पर गढ़ता जा रहा था | उसके सृजन का एक-एक पल जिसे उसने अपने विचारों में जिया है आज वह सब उसके सामने कागज़ पर लिखा गया था | सोचता था कि कैसे अपने विचार और यह पत्र वह सारिका तक पहुंचाएगा | यदि नहीं भी पहुंचा सका तो कम से कम अपनी दोस्ती तो ज़िन्दगी भर वफ़ादारी से निभाएगा | बहुत कुछ लिखा और कितना कुछ कहा पर अभी भी बहुत कुछ अनकहा बाक़ी है | बहुत कुछ ऐसा है जो शब्द बयान नहीं कर पाए | कुछ बातें बताई नहीं जाती हैं सिर्फ महसूस की जाती हैं | कुछ एहसासों को हमेशा यादों में समेट कर दिल में छिपा कर रखना ही मुनासिब होता है | यह शब्दों का कारवां और कहानी का सिलसिला एक दिन थम जायेगा और जीवन भी एक दिन विराम पा जायेगा पर सोच हमेशा के लिए रह जाती है | यादों में तो कम से कम रहती ही है | अपनी सोच को दूसरों की सोच के साथ मिला कर उनके व्यक्तित्त्व और विचारधारा का आदर करने के साथ अपने चरित्र का समन्वय उनके जीवन परिवेश में करना ही तो असल ज़िन्दगी है | यही दोस्ती का प्रथम नियम भी है | जहाँ दोस्ती है वही प्यार भी है और प्यार की कोई सीमा और इन्तेहाँ नहीं होती | वह कदापि समाप्त नहीं होता | वह सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जाता है, समझा जाता है और किया जाता है | यदि दिलों में यह है तो नथिंग को समथिंग और समथिंग को एवरीथिंग बन जाने में ज़रा भी समय नहीं लगता |

दोस्तों भले ही यह कहानी मेरी परिकल्पना है परन्तु आज के परिवेश में हमारे आसपास ऐसा कितनो के साथ घटित हो रहा है | कितने  निहार और सारिका जीवन के ऐसे किनारों पर खड़े मिल जाते हैं | जिनकी कहानी सिर्फ एक ‘कुछ नहीं’ पर अटक कर रह जाती है और कभी आगे नहीं बढ़ पाती | इसमें कभी तो परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती, कभी कोई संकोच आड़े आ जाता है, कभी दोनों की अना एक दुसरे को आगे बढ़ने नहीं देती है, कहीं नकारात्मक सोच साकारात्मकता पर भारी पड़ जाती है और दुसरे बहुत से कारण हो सकते हैं | अब इस कहानी का परिणाम मैं अपने पाठकों पर छोड़ता हूँ | आप ही बताएं निहार और सारिका को क्या फ़ैसला लेना चाहियें ? कहानी इस मोड़ से कैसे आगे बढ़नी चाहियें और किस तरफ आगे चलनी चाहियें ‘नथिंग’, ‘समथिंग’ या ‘एवरीथिंग’....??? सभी मित्रों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में......

गुरुवार, दिसंबर 05, 2013

ज़िन्दगी












रज़ाई ओढ़े सर्दी में अलाव सेकती ज़िन्दगी
ठंडी भोर की बेला में बात सोचती ज़िन्दगी
देसी घी और मेवा का स्वाद देती ज़िन्दगी
बच्चों की ज़िद के जैसी है जिद्दी ये ज़िन्दगी

सुबह महकते एहसासों में लिपटी ज़िन्दगी
दिसम्बर की ठण्ड में कड़कड़ाती ज़िन्दगी
लोई ओढ़ बिस्तर में आराम करती ज़िन्दगी
सोच से सृजन बनाती है आज मेरी ज़िन्दगी

मुश्किलों को प्यार से गले लगाती ज़िन्दगी
तन्हाई में अपने ग़म का जश्न मानती जिंदगी
चुप्पी साधे खड़ी रही मज़बूत बन ये ज़िन्दगी
मुस्कान बनकर जीती है होटों पर ये ज़िन्दगी

खुशियों के सैलाब में गोते लगाती ज़िन्दगी
सनम जैसा प्यार मुझ पर लुटाती ज़िन्दगी
खिलती रही बेबाक सी हंसा कर ज़िन्दगी
मासूम बन मचलती रही बेहिसाब ज़िन्दगी

दिल की वादियों में खिलता गुलाब ज़िन्दगी
जवान धड़कनो में जलती आग है ज़िन्दगी
सावन में बरसती मीठी आग जैसी ज़िन्दगी
तपते सेहरा में जीने की आस भर ज़िन्दगी

खुद की पहचान की ललक लिए ज़िन्दगी
वादों में इरादों पर ऐतबार करती जिंदगी
जी रहा है 'निर्जन' जीने को तो ये ज़िन्दगी
तुझसे मिलने की फ़रियाद है यह ज़िन्दगी 

गुरुवार, नवंबर 28, 2013

Love in the Rain





















When the moon went on a ride 
And stars switched off the light 
And the sun fell asleep 
And the clouds rolled in the sky, 

The pearls of water droped and droped 
And filled all around 
And the grass jewelled and celebrated 
And the flowers danced merry go around 

Then my heart melted down 
And my lips kissed many kisses 
And as my thoughts poured down 
Your lips lipped me in more kisses, 

The rain and the love drizzled together 
Our body melted and hugged 
I touched and made you shudder 
You armed me and I got lost in lovely dreamz, 

Then the evening sun came out 
And the sky redenned and blushed 
And you woke up in my arms 
And smiled in my eyes and blushed.