शनिवार, दिसंबर 14, 2013

शाम तनहा है


















शाम तनहा है
रात भी तनहा
चाँद मिलता है
अब यहाँ तनहा
शाम तनहा है...

टूटी हर आस
थम गया लम्हा
कसमसाता रहा
ये दिल तनहा
शाम तनहा है...

इश्क भी क्या
इसी को कहते हैं
लब तनहा है
जिस्म भी तनहा
शाम तनहा है...

साक़ी ग़र कोई
मिले भी तो क्या
जाम छलकेंगे
दोनों तनहा
शाम तनहा है...

जगमगाती
चांदनी से परे
सूना सूना है
एक जहाँ तनहा
शाम तनहा है...

याद रह जाएगी
दिलों में मेरी
जब चला जायेगा
'निर्जन' तनहा
शाम तनहा है...

11 टिप्‍पणियां:

  1. तन्हाई को जरा आराम क्यों नहीं देते
    बहुत कुछ है यहाँ और वहाँ जरा देखिये
    दूर भी कीजिये अब इसे कुछ ले क्यों नहीं लेते :)

    जवाब देंहटाएं
  2. समुद्र में नाविक अकेला चांदनी रात और प्रेम रोग .................दिल पता नहीं क्‍या हो जाता होगा नाविक का!

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी सुधी रचनाकारों को गीता-जयंती की वधाई !
    सचमुच एक मनोभाव परक् प्रस्तुति !!

    जवाब देंहटाएं

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