पात्र :
प्रताप : नायक / नायिका का प्रेमी
नीति : नायिका
दीपक : नायिका का भाई
सुहानी: नायिका की बेटी
रंजीत: नायिका का पति
ललिता देवी: नायिका की सास
चमनलाल: नायिका के ससुर
नीति जैसा सुन्दर नाम वैसा ही सुन्दर चरित्र | मिडिल क्लास में जन्मी, एक शिष्ट परिवार में पली, २० साल की, बड़े शहर की एक छोटी सी लड़की | पिताजी का अच्छा खासा कारोबार था | माताजी छोटे शहर से अवश्य थी पर बहुत ही शालीन, ममतामयी और समझदार थी | उसकी ४ और बड़ी बहने थी और वो उनमें सबसे छोटी थी | नीति सभी की लाडली थी | औसत कद काठी, सांवला रंग और बुलंद हौसलों वाली जीवंत तितली | शांत इतनी के यदि सड़क चलते कोई कुछ कह दे या नज़र उठा कर देख भी ले तो बस समझो के उसकी शामत आई | फिर तो जो चीज़ हाथ में आ जाती उसी से उस मनचले का स्वागत सत्कार हो जाता | कभी कभार एक आदा थप्पड़ या घूँसा भी रसीद कर दिया जाता था | एक दम संस्कारी और पूरी तरह से भारतीय परिधान प्रेमी लड़की | जब भी घर से निकलती तो बस एक अदद कमीज़ या टी-शर्ट और जींस, पैरों में हवाई चप्पल नहीं तो कानपुरी | साज श्रृंगार ऐसा के सामने वाला देख ले तो बस मन्त्र मुग्ध हो जाये | न लिपस्टिक, न नेलपॉलिश, न चूड़ी, न झुमका, न नथनी बस एक घडी जो कलाई पर बंधी होती थी जैसे समय देखना कोई मजबूरी हो | अगर समय नहीं होता संसार में तो शायद वो घडी भी कभी दिखाई नहीं देती और वो समय पर भी एहसान करने से बच जाती | उसके हेयर स्टाइल का तो कहना ही क्या था | किसी भी अच्छे खासे लड़के को काम्प्लेक्स आ जाये उसके बाल देख कर | कुछ ऐसी ही थी नीति एक दम बिंदास, आजाद ख्याल, बेबाक और स्पष्ट विचारों वाली | रोज़ सुबह साइकिल पर सवार होकर अपने कॉलेज पहुँच जाया करती और मस्ती किया करती थी | टिपिकल लड़कियों वाले कोई भी गुण और शौक़ उसे दूर दूर तक छु कर भी नहीं निकले थे | वो अबला नहीं निरी बला थी जो एक बार पीछे पड़ जाये तो छटी का दूध, नानी, दादी, परदादी इत्यादि सभी को साथ याद दिला दे | ज़रुरत पड़ने पर मदद करने में सबसे आगे | दूसरों के हक के लिए लड़ने मरने में सबसे तेज़ | एक शब्द में अगर उसके बारे में कहूँ तो वो एक दम "झल्ली" हुआ करती थी | टिक्की, चाट पकोड़ी, गोल गप्पे, आइस क्रीम, चूरन और तरह तरह की सुपारी खाना उसके शौक़ हुआ करते थे | चूरन खरीदने के लिए तो वो कहीं भी जा सकती थी बस कोई नई वैरायटी का चूरन बता दे कोई | बस एक बात जो उससे हमेशा खाए जाती थी के "हाय! मैं कहीं मोटी तो नहीं होती जा रही हूँ ?" | इसकी बैचैनी और चिंता उसे जब भी रहती थी और आज भी बरक़रार है | उसकी सबसे बढ़िया बात जो उसे सबसे अलग करती थी वो ये के समय कैसा भी हो वो हँसना कभी नहीं छोडती थी | वो मुस्कान उसके चेहरे पर हमेशा बनी रहती थी जो उसकी शक्सीयत को सबसे जुदा करती थी |
उन्ही दिनों एक पार्टी में एक दिन अचानक नीति की मुलाक़ात प्रताप से हुई | नीति की सहेली के भाई का दोस्त था प्रताप | एक कॉमन फ्रंड के ज़रिये दोनों की जान पहचान हुई थी | पहले पहल तो दोनों में इतनी तकरार होती थी के पूछो मत | अगर कभी दोनों किसी पार्टी या गेट टूगेदर में मिल भी जाते तो आसमान सर पर उठा लिया करते थे | दोनों कभी भी एक दुसरे की बात से सहमत नहीं होते थे और बहस करते रहते थे | यही बहस करते करते दोनों को धीरे धीरे एक दुसरे की आदत पड़नी शुरू हो गई | उन दोनों को एक दुसरे की कंपनी पसंद आती तो थी पर कहीं न कहीं कुछ कमी थी | नीति की मनभावन अदाओं, उसके पहनावे, उसके अंदाज़, उसकी बातें, उसका अपनी बात को प्रूव करने के लिए किसी भी हद्द तक बहस करना, और हमेशा खुश रहना इन्ही सब बातों की वजह से शायद ही कोई ऐसा लड़का होता जो प्रभावित न होता और उस पर क्यों न मर मिट जाता | वही हाल प्रताप का था | मन ही मन वो उससे चाहने तो लगा था पर जिस प्रेमिका की छवि उसने अपने मन मंदिर में बसा रखी थी नीति उससे कोसों दूर थी | वो नीति को उस परिवेश में अपने सामने खड़ा देखना चाहता था | पर उसने ठान ली थी के वो नीति को बदल कर रहेगा और फिर ही उसके सामने इज़हार-ए-मोहब्बत करेगा |
धीरे धीरे मेल जोल बढ़ने लगा | प्रताप की कंपनी का असर नीति पर भी दिखाई देने लगा | उसकी बातों के आकर्षण से वो बहुत ही प्रभावित हुई | धीरे धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती चली गई | अकेली मुलाक़तों का सिलसिला शुरू हुआ | एक साधारण दोस्ती से बढ़ते बढ़ते कब वो एक दुसरे को पसंद करने लग गए पता नहीं चला | और एक दिन प्रताप ने उसके सामने इज़हार-ए-इश्क कर दिया | मन ही मन वो भी तयार थी | उसने झट से हाँ कर दी | प्रताप के प्यार में उसने अपने नारी स्वरुप को पहचाना शुरू किया | प्रताप के कहने पर उसने अपने को धीरे धीरे बदलना शुरू कर दिया | बाल बढ़ाये, सूट पहनना शुरू किया | बोली में शालीनता और सौम्यता लाइ | कान भी छिदवा लिए | चूड़ियाँ पहनने लग गई और तो और शर्मना भी आ गया | तो साब अब हमारी नीति टॉमबॉय से एक सुन्दर भारतीय नारी और प्रेमिका में तब्दील हो चुकी थी |
नीति का एक भाई था दीपक | हालाँकि सगा नहीं था पर था सगे से भी ज्यादा | दोनों में उम्र का फासला भी ज्यादा नहीं था | यही कोई ४-५ साल का अंतर होगा दोनों में | पर दोनो के बीच ट्यूनिंग कमाल की थी | निति की ज़िन्दगी के हर फैसले में उसका साथ देना और हर मुश्किल मोड़ पर उसके साथ डट कर खड़े रहना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था | एक गज़ब की अनकही और अनसुनी बौन्डिंग थी दोनों में | वहीँ नीति भी उसको छोटा समझ कर कुछ ज़रुरत से ज्यादा ही प्यार जाता देती थी | बात बात पर झापड़ रसीद कर देना, सर का तबला बजा देना या फुटबॉल समझ कर लात जमा देना तो मामूली बात हुआ करती थी | दीपक ने भी कभी इसका बुरा नहीं मन क्योंकि वो नीति को दिल से प्यार करता था और बहुत इज्ज़त देता था | आपस में अगर बात करते तो पूरी शिष्टता से गाली गलोच करते, समस्त दुनिया की माँ-बहन, बाप-बेटी एक करना उनकी बातचीत में आम बात थी | दोनों एक दुसरे से महीनो नहीं मिलते थे न ही कोई बात चीत होती थी | पर जब भी मिलते थे तो ऐसी गज़ब की गर्मजोशी होती जिसका कोई ठीक नहीं | घंटो कैसे गुज़र जाता करते कुछ पता न चलता | घर वाले चीखाम चिल्ली करते रहते आओ खाना खा लो, नाश्ता कर लो पर अपनी बातों में उन्हें कुछ सुने न देता | अपनी इसी छोटी सी और प्यारी सी दुनिया में दोनों बहुत खुश थे | और एक दुसरे से बेहद जुड़े हुए थे |
दीपक नीति की एक एक हरकत से वाकिफ था | वो उसकी एक एक हरकत को नोट कर रहा था | नीति में इतना बदवाल उससे हज़म नहीं हो रहा था | नीति का एकदम से ऐसे बदलना उसके लिए भी अचरज की बात थी | वो भी सोच रहा था के ये कुछ तो छुपा रही है मेरे से | पर नीति भी छुपी रुस्तम थी | अभी तक उसने प्रताप के बारे में उसको कुछ भी नहीं बताया था | भनक भी नहीं लगने दी थी उसने किसी को इसके बारे में | उसने नीति से पुछा भी अचानक इतना बदलाव कैसे, तो जवाब में वो हंस कर टाल देती या कहती,
"अपुन तो बिंदास है, कुछ भी करूँ मेरी मर्ज़ी | मैं अपनी मर्ज़ी की मालकिन हूँ यार | क्यों ये लुक अच्छा नहीं लग रहा क्या ? यार उस लुक से बोर हो गई थी तो सोचा थोडा चेंज कर के देख लूं | शायद घर वाले खुश हो जाएँ और मेरे पीछे पड़ना छोड़ दें |"
दीपक भी समझदार था | उसकी बातों को सुनकर चुप रहता और मुस्कुराता रहता | उससे पता था के कुछ न कुछ खिचड़ी तो पका रही है ये और वक़्त आने पर ही परोसेगी | या फिर उसे ही ऊँगली टेडी करनी पड़ेगी बात पता करने के लिए | वो रग रग से वाकिफ था नीति की | उसे अच्छे से मालूम था के नीति से कोई बात निकलवाना बड़ी टेडी खीर है | जैसा वो खुद था वैसी ही उसकी बहन भी थी | दोनों के दोनों महा कुत्ती चीज़ | बस यही सोचकर वो शांत रहा और समय का इंतज़ार करता रहा |
एक दिन अचानक इधर उधर की बातों बातों में उसने नीति से पूछ ही लिया,
"कमीनी अब तो बता दे कौन है वो इतने दिन हो गए तुझे ड्रामा करते |"
नीति चौंक कर बोली "क्या भाई कोई नहीं है, तू भी सनक गया है क्या? आइन्वाई मेरे पीछे पड़े जा रहा है"
पर दीपक को पता था के अब इसके पिटारे का ढक्कन खुलने का टाइम आ गया है | उसने फिर से कहा,
"चल चल जल्दी बता, इतने महीनो से तेरी नौटंकी देख रहा हूँ | चल क्या रहा है ? मिलवा तो सही |"
अब नीति के पेट में कहाँ पचने वाली थी बात सो उसने सब कुछ उगल डाला जैसे कोई गर्मी में ठन्डे ठन्डे शरबत की बोतल को हलक में उतार डालता है वैसे ही उसने सब कुछ दीपक के सामने उंडेल दिया | दीपक भी दंग रह गया सुनकर | उससे भरोसा नहीं हो रहा था के किसी के लिए नीति ने अपने आप को इतना बदल डाला | वो नीति से बोला के,
"जिस बन्दे ने तेरे जैसी कमीनी को बदल दिया वो कितना बड़ा कमीना होगा | बता जल्दी कब मिलवा रही है जीजा से |"
और बस फिर ऐसे ही नीति की टांग खिचाई चलती रही सारा समय | दीपक दिल से खुश था नीति के लिए | नीति को पता था के दुनिया में सबसे ज्यादा ख़ुशी दीपक को ही हुई होगी और फिर पलक झपकते ही उसने प्रताप से मिलवाने की ख्वाइश ज़ाहिर कर दी | दीपक तो इसी मौके के लिए तयार बैठा था | उसने तुरंत हाँ कर दी |
अगले दिन नीति दीपक को प्रताप से मिलवाने ले गई | प्रताप को देखकर दीपक कुछ देर उससे ऐसे ही देखता रहा | पर्सनालिटी दमदार थी | लम्बा, चौड़ा, हट्टा कट्टा नौजवान | गोरा रंग | मैग्गी जैसे लच्छेदार बाल | दीपक को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा | प्रताप ने आगे बढ़कर दीपक से हाथ मिलाया और बोला,
"और दीपक, कैसे हो ? आओ यार बैठो | और सब ठीक | हाउस में सब बढ़िया चल रहा है ?
दीपक भी कम नहीं था | उसने भी हाथ पकडे पकडे जवाब जड़ दिया दीपक के सवाल पर,
"अरे जीजा ! सब बढ़िया | हाउस में सब आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं | कहों तो ले चलूँ | काफी लोग हैं लाइन में जो मिलने की बाट जोह रहे हैं | और सबसे उतावले तो ससुरजी और सासुमां है | बोलो ले चलूँ ?"
इतना सुनते ही प्रताप की और नीति की हंसी छुट गई | नीति बोली, "सुधर जा, वरना पिटेगा" | दीपक मज़े ले रहा था और हँसे जा रहा था और बेचारी नीति किलस रही थी और तुनककर बोली,
"कुत्ते चुप हो जा ! तुझे बताकर बहुत गलत किया | अब तू मेरी टांग खीचता रहेगा | चुप हो जा वरना तेरे मुहं पर जड़ दूंगी अभी | सब अक्ल ठिकाने आ जाएगी तेरी | "
दीपक और प्रताप दोनों इस मोमेंट को एन्जॉय करने में लगे हुए थे और हंस हंस कर नीति की हालत का मज़ा ले रहे थे | फिर सारा माहौल तीनो के ठहाको से गूँज गया | दीपक ने प्रताप को और प्रताप ने दीपक को कुछ गिफ्ट्स दिए और कुछ देर और मजाकबाज़ी और टांग खिचाई के दौर चलते रहे और फिर इस सब इसके के बाद वो बाय-शाये कर के उसके घर से रवाना हो गए | क्रमश:
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place is purely coincidental.