अब तक के सभी भाग - १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०
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कहने को तो गंगा बाबु मुरादाबाद अपने सुसराल में आ बसे थे परन्तु उनका दिल अब भी उनकी जड़ों से जुड़ा था | वो शहर जो उनके बचपन, अल्हड़पन, जवानी, पिता के वात्सल्य, माता के दुलार, शिक्षकों के स्नेह और फटकार, मित्रों के अनुराग, कारोबारियों की वफ़ादारी, चाकरों की स्वामिभक्ति और उन सभी भवनों, स्थानों, पेड़, पौधे, खेत खलिहानों का साक्षी था जहाँ उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य, सुनहरे, निजी और मंगलमय पल बिताये थे आज बहुत दूर रह गया था | अब कुछ बचा था तो बस उस शहर और वहां के लोगों से जुडी कुछ यादें जिन्हें अपने दिल के भीतर समेट वे आज के जीवन को संवारने में प्रयासरत थे | उनकी उमंगें उनकी भावनाएं उनके मनोभाव और उनकी चित्तवृत्ति सभी उन्हें पुकार कर पूछते,
गंगा तुम इस परिवेश मैं कैसे समायोजन करोगे ? तुम घर जमाई बनकर रहोगे क्या ? तुम्हारे पुरखों ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा | क्या तुम उनका नाम गर्क़ करने पर आमादा हो ? तुम्हे इसके सिवा कुछ और नहीं सूझा ? घर दामाद होने से पहले तुम डूब क्यों न गए ? क्या तुम्हारा यह फैसला सही है ? अपनी इज्ज़त का तो ख्याल किया होता ? अब क्या सुसर के रहमो-कर्म पर रहोगे ? अपने रिश्ते नातेदारों क्या क्या मुंह दिखाओगे ? और भी न जाने क्या क्या सवाल फन फैलाये खड़े हो रहे थे उनके ज़हन में |
मन में ऐसी जददोजहद के चलते वे मायूस रहने लगे | निढ़ाल रहने लगे | माता पिता को खोने और अपने शहर को छोड़ आने के दुःख की अनुभूति भी कम नहीं हुई थी | भूख प्यास सब अलोप थी | व्यापार तो वैसे भी ठप्प हो चुका था और अब किस्मत भी मज़ाक उड़वाने पर आमादा थी | किसी तरह का कोई व्यवसाय समझ नहीं आ रहा था | कई कई दिनों तक कमरे में अकेले बैठे गुज़ार देते | न किसी से हंसी ठिठोली न कोई आमोद प्रमोद | किसी चीज़ में दिल नहीं लगता | उस पर ऐसे खयालातों का दिमाग में घर करना कुछ ठीक शगुन नहीं था | कहते हैं के खाली दिमाग में शैतान का डेरा होता है और ऐसे विचार किसी हानिकर दुष्ट से कम न थे | इसका आभास अनारो देवी को बहुत पहले से हो गया था और वे गंगा सरन जी की इस परेशानी को भांप गईं थी | अनारो देवी ने ऐसे कठिन समय में उनका पूर्णतः साथ निभाया | यह मसला कितना हस्सास है, उन्हें यह भली भांति ज्ञात था | इस नाज़ुक समय में उन्हें किस तरह का आचरण और व्यव्हार करना है उन्हें इसका अच्छे से बोध था | अपनी बातों से, अपने आचरण से और अपने प्रेमभाव, विश्वास और प्रणय अनुभूति से उन्हें कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होने देतीं थीं | उन्हें कभी भी एहसास न होने देतीं के वो सुसराल में रह रहे हैं | यदि कोई भी गंभीर बात या ऐसा कोई भी संवेदनशील वाकया अनारो के समक्ष उभरता और उन्हें प्रतीत होता के उनके सुहाग के मान को इसके कारण ठेस पहुँचने का अंदेशा है तो उसका मुल्यांकन कर स्वयं ही स्पष्ट कर देतीं | वे हमेशा कोशिश करतीं के गंगा बाबु का उत्साह और जोश बना रहे | वे हमेशा उनके प्रति और उनके प्रेम के प्रति प्राणार्पण को तत्पर रहती | किसी न किसी हीले से गंगा बाबु के प्रति अपने प्रेम, आदर और आत्मसमर्पण को जताती रहतीं थीं |
आरम्भ में गंगा बाबू को उनके मन में उठने वाले सवालों ने बहुत कचोटा | मानसिक और जज़्बाती घुटन की अनुभूति भी हुई | परन्तु धीरे धीरे अनारो देवी की कोशिशें और साहू साब के समझाने और तर्क संगत स्पष्टीकरण, मान सम्मान, आदर, लाड और स्नेह ने उन्हें ऐसी नकरात्म सोच से निज़ात दिलाई | घर के नौकर चाकर भी उनका बड़ा मान सम्मान करते और उन्हें उचित आदर प्रदान करते | उनके मन पसंद पकवान और उनकी पसंदीदा चीज़ों और बातों को हमेशा तवज्जो दी जाती | उनकी छोटी से छोटी बात, ख्वाइश और मिजाज़ को सिर्फ उनके हाव भाव के ज़रिये बिना बोले ही समझ लिया जाता और पूरा कर दिया जाता | आख़िरकार सबकी कोशिशें रंग लाई और गंगासरन जी का दिल मुरादाबाद में रमने लगा और उन्हें शहर से इश्क़ होने लगा | यदा कदा अनारो देवी को या साहू साब को, और कोई न मिलता तो मोहल्ले के बालकों को ही लेकर हलवाई के यहाँ जलेबियाँ और मूंग की दाल खिलने लिवा जाते | खाने और खिलने के बेहद शौक़ीन थे | सच कहें तो पूरे भोजनभट्ट थे | साहू साब को भी अपने दामाद की यह बात बेहद पसंद थी | धीरे धीरे सभी दुःख दर्द मादूम होते चले गए | अब वे साहू साब के दामाद न होकर पुत्र हो गए थे | साहू साब की सूनी हवेली में बसंत पधार चुका था | हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी | बच्चों की धमाचौकड़ी थी | हर दिन होली के जैसे और रात दिवाली की मानिंद गुज़रती थी |
गोया समय गुज़रता चला गया | निजी स्तर पर तो दिमाग़ी सुकून था पर कारोबारी कोण से दिक्क़तें पेश आ रहीं थी | समय के साथ गंगा बाबु ने बहुत से व्यापारों में किस्मत आज़माइश की | परन्तु इम्तहान-ए-ज़िन्दगी में सफलता उनकी किस्मत के पूरक चल रही थी | ज़्यादातर व्यवसायों में निराशा ही हाथ लगी | कुछ एक व्यापारों में थोडा बहुत लाभ अर्जित हुआ भी परन्तु वो दोज़ानु किस्मत के चलते दीगर जगह निकल जाता |
साहू साब के कहने पर उन्होंने कुछ एक कामों में जोखिम उठा हाथ-आज़माइश की | जैसे कोयले का काम, मूंगफली, घी, लकड़ी, धान आदि भरने का काम उन्होंने करने की नाकाम कोशिशें भी की | परन्तु ज़्यादातर नुक्सान ही पल्ले पड़ा | अपनी किस्मत तो एक दफ़ा फिर से आज़माने का फैसला कर आखिरी बार उन्होंने सेरों चांदी खरीद कर भर ली | पर चूंकि किस्मत दगा देने पर आमादा थी तो लिहाज़ा नुक्सान तय था | दो दिन बाद से ही चांदी के दाम गिरने लगे | दो महीने गुज़रे और दाम पाताल पहुँच गए | गंगा बाबु को अब चिंता सताने लगी | हर रोज़ बाज़ार में चांदी के भाव गिर रहे थे | वे डर गए कहीं ऐसा न हो के और ज्यादा नुक्सान झेलना पड़ जाये और एंटी से पैसा निकल जाये | सर मुंडाते ओले न पड़ जाएँ इसी सोच के चलते और अपनी परिस्थितियों को देखते बिना सलाह मशवरा किये उन्होंने माल का सौदा एक जौहरी से तय कर दिया | जो नुक्सान होना था सो तो हो चुका था | दो तीन दिन बाद सुबह साहू साब ने उन्हें बुलाया और कहा,
"बेटा चांदी का भाव आसमान छूने लगा है | अब चांदी को बेचने का सही समय है | जाओ और जाकर सौदा कर आओ | "
बेचारे गंगा बाबु अपना माथा पकड़ कर बैठ गए | मुंह लटका लिया और बडबडाने लगे,
"गंगा तेरी किस्मत ही खोटी है | तेरी चांदी से तो अब उस जौहरी की चांदी चांदी हो गई | तुझे चांदी की चमची भी नसीब न हुई | तेरे जीवन में अब कारोबारी सुख नहीं रहा | तेरी पत्री में ही नुक्सान लिखा हुआ है | तेरे ग्रहों पर शनि बैठा हुआ है | अब तू अपनी नाकामियों से कभी उभर नहीं सकता | तेरा बंटाधार निश्चित है |"
साहू साब को सब ज्ञात था | वह बहुत अच्छे से उनके चेहरे की मायूसी को पढ़ चुके थे | उनकी इस स्तिथि को भांप साहू साब बोल पड़े,
"अरे बेटा! कोई बात नहीं व्यापार है, नफा नुक्सान तो लगा रहता है | कुछ नहीं होता कल की सोचो और कुछ नया करने का मन बनाओ | आज के नुक्सान में कल का फायदा छिपा है | इसलिए हमेशा आगे बढ़ो और आने वाले समय को बेहतर बनाने का प्रयास रखो | हिम्मत मत हारो हौंसला रखो | फिर पीछे मैं तो हूँ ही | डर काहे का | मैं संभाल लूँगा |"
गंगासरन जी सर हिलाकर ख़ामोशी से उठ कर चल दिए |
समय की उठा पटक कैसी भी रही हो परन्तु अनारो देवी के जीवन में खुशियों की लहर कभी नहीं थमी | इन कुछ सालों के वक्फ़े ने उनकी गोद अनेकों बार भर दी थी | परन्तु कुछ दफा कुदरत निष्ठुर रही और कई बार खुशियाँ सांस लेती रही थी और नन्ही किलकारियां आँगन में गूंजती रहीं | आज भी जन्मोपरांत अपनी कुछ संतानों को खोने की पीड़ा झेलने के पश्चात भी अनारों देवी को पांच शिशुओं की माता होने का गौरव प्राप्त था |
बड़ी बेटी थीं गार्गी | फिर बेटे सुरेन्द्र | उनसे बाद योगेन्द्र और महेन्द्र उर्फ़ 'मानू' | फिर गोद आए बेटे वीरेंद्र | फिर खुशियाँ लेकर आए सत्येन्द्र | अपने बेटों और बेटी के लालन पोषण में अनारो देवी इतनी मसरूफ़ हो गई थी के इस आपाधापी के चलते बाहरी जीवन किस ओर बहे चला जा रहा था उन्हें कुछ भी एहसास और आभास न था | सुबह से शाम तक बच्चों के साथ समय व्यतीत करतीं | उन्हें उचित संस्कार और सर्वोच्च माध्यम से शिक्षित करने का दायित्त्व पूर्णरूप से अनारो देवी पर ही था | उन्हें अपने धर्म और वेद पुराणों से अवगत करवाना तथा पूजा पाठ में रूचि जगाने का फ़र्ज़ भी अनारो देवी ही के हिस्से था | गंगा बहुत तो कारोबार के चक्कर के चलते इतना समय व्यतीत नहीं कर पाते थे | अतः शिशुओं के पालन पोषण का दायित्त्व अनारो देवी पर ज्यादा था | बच्चे भी बड़े हो रहे थे | सब समझते बूझते थे | वे सभी स्वभाव से विनर्म और आपस में बहुत प्यार से रहते | पढने लिखने के साथ ही माँ का रोज़मर्रा के कार्यों में हाथ बंटाया करते | अनारो देवी द्वारा सिखाई शिक्षा उनके चित्त को भली-भांति दृढ़ करके भीतर तक पैठा गई थी | सभी अपनी माता पिता की स्नेहमय भाषा भली भांति समझते और हमेशा आदर और सम्मान के साथ एक दुसरे से व्यव्हार करते थे | अपने नाना के तो सभी नाती नातिन चहेते थे परन्तु साहू साब को ख़ास लगाव मंझले नाती वीरेंद्र से था | वे हमेशा उन्हें हर कार्य में साथ रखते और अपने कारोबार का काम काज भी सिखाते और दीन दुनिया, दुनियादारी, व्यापार, क़ानून आदि के बार में भी समय समय पर अवगत कराते रहते |
तिथि चाक जीवंत पर्यंत चलता रहता है | वक़्त किसी के लिए नहीं ठहरता | गुज़रते समय के साथ जीवन भी साकार रूप लेता रहा | अंततः गंगा सरन जी के जीवन से दुर्भाग्य का ग्रहण दूर हुआ | एक नया सूर्योदय हुआ और उनका कारोबार चल निकला | उन्होंने देसी थोक कपडे की आढ़त और देसी धागे से बुनी साड़ियों का काम कर लिया था | जो एक बार फिर से दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की की तरफ अग्रसर था | अनारो देवी और साहू साब के परामर्श से और अपने बुद्धि कौशल के बल पर उन्होंने खुदरा व्यापार के लिए बाज़ार में दुकान खरीदी | दुकान का नामकारण 'महिला वस्त्रालय' के नाम से करा गया | कुछ ही समय में उनकी दूकान की प्रखायती सम्पूर्ण मुरादाबाद में और आसपास के प्रदेशों में फ़ैल गई | महिलाएं दूर दूर से वस्त्र खरीदने दुकान पर आतीं | मुल्क आज़ाद हो चुका था और वैसे ही गंगा बाबु अपने दुर्दिनो से मुक्त हो गए थे | उनका कारोबार एक बार फिर से आसमान की बुलंदियों की तरफ परवाज़ कर चुका था और एक नया मक़ाम हासिल करने हेतु अग्रसर था |
वक़्त के साथ अनारो देवी के परिवार में भी इज़ाफा हुआ | ख़ुदा ने उन्हें तीन और संतानों से नवाज़ा | जिसमें दो बेटियां बीना और माधरी तथा बेटे विनोद शामिल थे | अब उनकी कुल नौ संताने थी | क्रमशः
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