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सोमवार, मार्च 14, 2011

सफ़र

मंज़िल कितनी है दूर अभी,
लम्बा मेरा सफ़र बहुत है
उस मासूम दिल को मेरे,
देखो तो मेरी फ़िक्र बहुत है
जान ले लेती तन्हाई मेरी,
सोचा मैंने इस पर बहुत है
सलामत है वजूद 'निर्जन',
उनकी दुआ में असर बहुत है...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक दोस्त








आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

शाम-ए-ज़िन्दगी फिर ढली सी है
ख़लिश ये दिल में फिर बढ़ी सी है

तेरी ख्वाहिश दिल में जगी सी है
एक आग ख्वाहिशों में लगी सी है

कभी किसी रोज़ तो बहारें आएँगी
साथ अपने हज़ार खुशियाँ लायेंगी

बस ये सोच आँख अभी लगी सी है
सपनो में मुझे ज़िन्दगी मिली सी है

आज फिर आँख क्यों भरी सी है
एक अदद दोस्त की कमी सी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

उसकी यादें














ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?

जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?

क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?

क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?

क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?

क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?

गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?

वो बिन तेरे जो खुश है अगर 
फिर 'निर्जन' हर पल क्यों मरता है ?

सोमवार, अगस्त 09, 2010

अंतर की वेदना












अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं

दुःख की संयोजना का
कोई पंथ नहीं

जो मेरा है
वो मेरा सर नहीं

जिसमें जीवित हूँ
वो मेरा संसार नहीं

रक्त रंजित अधर हैं
फिर भी मैं गा रहा हूँ

रुधिर बहते नयन हैं
फिर भी मुस्करा रहा हूँ

व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ
आक्रोश हूँ पर मौन हूँ

सत्य सह मैं
सत्य पर मिथ्या रहा हूँ

अंतर की वेदना का
कोई अंत नहीं अब

'निर्जन' जो होता है
अभिव्यक्त समक्ष वो

सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, अगस्त 03, 2010

अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...











 
बरसों के बाद देखा, एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है, क्या नाम था भला सा

तेवर खींचे खींचे से, आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी, लहजा थका थका सा

अलफ़ाज़ थे के जुगनू, आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में, नहरों का रास्ता सा

ख्वाबों में ख्वाब उस के, यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो, जैसे के रतजगा सा

पहले भी लोग आये, कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर वजह से लेकिन, औरों से था जुदा सा

अगली मोहब्बतों ने, वो नामुरादियाँ दी
ताज़ा रफ़ाक़तों से, था दिल डरा डरा सा

तेवर थे बेरुखी के, अंदाज़ दोस्ती सा
वो अजनबी था लेकिन, लगता था आशना सा

कुछ यह के मुद्दतों से, मैं भी नहीं था रोया
कुछ ज़हर में बुझा था, अहबाब का दिलासा

फिर यूँ हुआ के सावन, आँखों में आ बसा था
फिर यूँ हुआ के जैसे, दिल भी था आबला सा

अब सच कहूँ तो यारों, 'निर्जन' खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत, एक वाकेया ज़रा सा

बरसों के बाद देखा, एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है, क्या नाम था भला सा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, अगस्त 02, 2010

ये रात
















अलग सा एहसास, दिलाती है ये रात
दिलासा देती है, पास बुलाती है ये रात
लिपट के सोने को जी करता है इसके साथ
हालात हैं कि दिन की रौशनी से डरता हूँ
डर लगता है कि टूट न जाएँ ये हसीं ख्वाब
डर लगता है कि कोई मुझे यूँ देख न ले
देख ना ले कि मैं आज भी अकेली है मेरी रात 
तेरी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए साथ
उम्मीद है बस दिल में यादें सँवारने के लिए पास
कभी तो मिलेगी कहीं तो मिलेगी वो मुझसे
यकीन अपने से ज्यादा 'निर्जन' उस पर क्यों है ?
आकर देख ज़रा कि भरोसा ज्यों का त्यों है
अलग सा एहसास दिलाती है यह रात