सोमवार, अक्तूबर 20, 2014

मोह














हे ईश्वर
मानव को
अपने रिश्तों का
मोह क्यों होता है ?
उसके खींची हुई
रिश्तों की कड़ी
ज्यों ज्यों बढ़ती है
उसका मोह
उतनी ही मज़बूत
ज़ंजीर में उसको
जकड़ता है

एक कैदी की
बड़ियों की तरह
हर समय
कष्ट देती है
जैसे कैदी को
इस कष्ट से
स्वयं मुक्ति
नहीं मिल सकती
उसी प्रकार
इन रिश्तों से
उबरने की
कोशिश करने
पर भी
मानव
अपने आप को
टूटा हुआ
होते देख कर भी
शायद
कैदी की भांति
बेबस है
अपने आप में
खोया हुआ
पाता है

मोह से अलग
अपने जीवन को
सोचना और
समझना उसकी
सामर्थ्य से
चेतना से
बहार हो जाता है
जब वो
इस कवच को
उतार फेंकता है
तब दो स्तिथियाँ
उसे मिलती हैं
जीवन में
ईश्वर का मिलन
और दूसरी वो
जिसमें वो
इतना व्याकुल
और बेबस
रहता है जैसे
बिन पानी प्यासी मीन

हे ईश्वर
हर मानव को
जल में
कमल की भांति
रहने की शक्ति दो
वो
जन्म के
कर्म के
मोह के
उस कड़वे
बंधनों से
सदैव मुक्त रहे
पावे तेरा
पावन धाम
अपने जीवन की
अनंत यात्रा में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार मंगलवार 01 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना शनिवार मंगलवार 21 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रथम ग्रासे मक्षिकापातः..............
    गलती हो गई थी
    सुधार ली गई

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर
    और फिर हर आदमी योगी हो जायेगा
    आदमी ढूँढना मुश्किल हो जायेगा ।

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  5. मोह की डोरी से ही यह जगत, परस्पर एक-दूजे से बँधा है,और सधा है नहीं तो सारे संबंध टूट कर बिखर जायें ,यह आवश्य तत्व ही मायावी संसार का संचालक है है (माँ को संतान के प्रति मोह या ममता न हो तो क्या होगा )?

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  6. बहुत प्रभावी शब्द ...
    आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  7. Sunder prastuti...dhanteras va deepawali ki hardik shubhkamnaayein !!

    जवाब देंहटाएं

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