जो बसते परदेसों में हैं
घर उनके आज हैं खाली
धनतेरस, दिवाली पर
सबकी रातें बस हैं काली
घर आँगन तुम्हे बुलाता है
दिल मिलने को कर जाता है
माँ जाये अपनों की चिंता में
दिल माँ का रो-रो भर आता है
दिल को कितना समझती है
पर चिंता से मुक्ति ना पाती है
वो अपने आँचल के पंखे से
नयनो के आंसू सुखाती है
तू भी कितना खुदगर्ज़ हुआ
पैसों की खातिर खर्च हुआ
अपनों का दिल दुखाने का
तुझको ये कैसा मर्ज़ हुआ
दिल तो तेरा भी करता है
वापस जाने को मरता है
क्यों व्यर्थ तू चिंता करता है
मजबूरी की आहें भरता है
अब दिवाली के धमाको में
एक सन्नाटा सा परस्ता है
कैसे कहे दिल उसका भी
मिलने को बिलखता है
आँखें नम हैं यह सुबह से
हाथ भी दोनों हैं खाली
घर से दूर इस जीवन की
कैसी अधूरी यह दिवाली
माँ, मेरा आँगन भी सूना है
आँखों में मेरे भी है लाली
बस हाथ तेरा सर पर है तो
हर दिन जीवन में है दिवाली
वाह...अति उत्तम...दीपावली की शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हुज़ूर
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस माँ का आंगन भी चमकेगा
जब घर का दीपक आयेगा
और इकजोत जलायेगा
फिर मन जायेगी दीवाली।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति । ।
जवाब देंहटाएंछोटी दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें ..........
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जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति...... शुभ दीपावली
शुभ दीपावली !!आशा है कि आप सपरिवार सकुशल होंगे |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !!शिवोमय भावना के साथ !
गुरुवार गोपालदास नीरज की पंक्तियाँ याद आ गयीं
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये !!
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
आप सभी को --
दीपावली की शुभकामनायें-
वाह बहुत ही सुन्दर कितनी अच्छी कविता सृजित की है! आपको दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। ..............(एक सन्नाटा सा परस्ता है) के स्थान पर (एक सन्नाटा सा पसरता है) कर लें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ ।।
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आप काफी संवेदनशील हैं , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
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