गुरुवार, मई 26, 2011

अश्क

कल मुलाक़ात हुई मेरी
उसके अश्कों से 
जो तरस रहे थे
निकलने को उसकी आँखों से
रोना चाहती थी वो
लिपट कर मुझ से 
बहकते दिल में
उम्मीदों के अरमान लिए 
डबडबाई आँखों से
कहना चाहती थी वो
इस दर्द और टीस को 
कैसे सहती हूँ मैं 
वोह जिसे 
आइना कहते हो तुम 
अपने दिल के उस मक़ाम में 
रखती हूँ तुम्हे 
आँखों से बात कर के 
फिर कांपते लबों से 
धीरे से बुदबुदा के 
कुछ कहना चाहती थी मुझसे 
खेलना चाहती थी वोह 
छोटी सी बच्ची बनकर 
उड़ना चाहती थी वोह 
ज़मीन में चल कर 
रहना चाहती थी वोह 
आँचल के साए तले
बहना चाहती थी वोह 
जहाँ इश्क का दरिया बह चले 
कहना चाहती थी के 
इज़हार तो करो 
तुम खामोश न रहो 
मुझसे इकरार तो करो 
तुम लबों से कुछ न भी बोलो 
पर दिल से प्यार तो करो 
उसकी नज़रों की गहराई 
में जब भी झाँका 
अनकहे सवालातों की आंधी पाई 
पूछती हो जैसे 
मुझसे हरपाल 
क्या याद करोगे मुझको ?
जब पास न होंगे हम 
ख्यालों में ही सही 
न जाने मैं क्या क्या कह देता हूँ 
पर तू जब भी सामने होती है तो मैं 
सब कुछ कहते हुए भी 
बेज़ुबान ही रहता हूँ 
कल मुलाक़ात हुई मेरी
उसके अश्कों से ....

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