गुरुवार, जनवरी 31, 2013

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

नीति - भाग २

रस्ते भर दीपक नीति की टांग खींचता रहा | और नीति उसे लातें, घूंसे और गलियां देती रही | और वो हँसता रहा | गज़ब की अंडरस्टैंडिंग थी दोनों में और गज़ब का प्रेम भी | आज तो सगे रिश्तों में भी ऐसी भावना और प्यार देखने को नसीब न हो | प्रताप, दीपक को  बेहद पसंद आया था | वो भी यही चाहता था के नीति को ऐसा ही जीवन साथी मिले | घर वापस पहुंचकर दीपक ने पुछा,

"आगे क्या इरादा है ? सीरियस है या टाइम पास कर रही है?"

नीति सोच में पड़ गई | उसने दीपक से ऐसे संजीदा सवाल की उम्मीद नहीं की थी | उसने खुद भी अभी तक इसके बारे में नहीं सोचा था | दीपक उसके चेहरे के आवभाव से समझ गया था के ये खुद भी अभी तक कन्फ्यूज्ड है | नहीं जानती आगे क्या करना है | उसने सिर्फ इतना ही कहा के, "अब सीरियस हो जा, मजाक का समय गया |" और इतना कह कर वो चला गया |

नीति सारी रात इस बारे में सोचती रही | पर घरवालों को बताने की उसमें ज़रा भी हिम्मत न थी | समाज से पहले उसे घर वालों से डर था | दूसरी बिरादरी का लड़का | पापा तो बिलकुल नहीं मानने वाले | उसे भली भांति ज्ञात था के पापा हार्ट पेशेंट हैं | अगर ये बात सुनकर कुछ उंच नीच हो गई तो मैं सारी ज़िन्दगी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाएगी | इसी जद्दोजहद में पता नहीं कब सुबह हो गई पता ही न चला |

अब दिन रात उसे यही फ़िक्र लगी रहती के वो क्या करे | प्रताप से भी मिलती तो थी, दिल तो उसके पास रहता पर दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहता | एक दिन हिम्मत कर के उसने प्रताप से पूछ ही लिया |

"प्रताप, हम शादी कब करेंगे ?"

प्रताप भी उसके इस सवाल से हैरान रह गया | उसने इस सवाल की उम्मीद इतनी जल्दी नहीं की थी | वो ख़ामोश रहा और कुछ नहीं बोला | दोनों की ख़ामोशी बहुत कुछ कह रही थी पर दोनों मजबूर भी थे, के क्या जवाब दें एक दुसरे को |

दिन बीतते गए  | नीति का कॉलेज भी खत्म होने को था | फाइनल इम्तिहान चल रहे थे और ज़िन्दगी की परीक्षा के लिए भी वो तयार हो रही थी | कॉलेज का आखरी दिन था | वो और प्रताप लंच टाइम पर मिले | करने को बहुत सी बातें थी पर कुछ ऐसा था भी नहीं जिस पर बात करें  | काफी देर तक दोनों खामोश बैठे एक दुसरे का चेहरा तांकते रहे |

यकायक नीति बोली, "मैं चलूँ" |

प्रताप ने चुप्पी तोड़ी और कहा, "मेरे हालत ऐसे नहीं है के अभी शादी के बारे में सोच सकूँ | पिताजी भी बचपन में ही छोड़ कर चले गए थे | अभी तो बहुत कुछ करना है | घर की जिम्मेदारियां भी पूरी करनी हैं | भाई बहनों का भी सोचना है | अभी अपने बारे में नहीं सोच सकता |"

प्रताप की ये बात तीर के जैसे नीति के दिल को अन्दर तक भेद गई | नीति की आँखों में आंसू थम नहीं पाए | फिर भी कोशिश करते हुए रुंधे गले से बोली,

"आई कैन अंडरस्टैंड, चलती हूँ |"

बस वही थी उसकी प्रताप से आखरी मुलाक़ात | कुछ समय बाद नीति के परिवार वालों ने एक लड़का देखकर उसका रिश्ता पक्का कर दिया | लड़का छोटे शहर का था पर पढ़ा लिखा था | नीति के पिता और लड़के के पिता दोस्त थे | नीति को उन्होंने मुंह से माँगा था | लड़के का नाम था रंजीत | नीति ने भी दिल पक्का कर लिया था और शादी के लिए राज़ी हो गई थी |

कुछ दिवस उपरान्त एक अच्छा दिन देख कर दोनों की सगाई कर दी गई | उस दिन आखरी बार प्रताप का फ़ोन नीति के पास आया था |

उसने फ़ोन पर सिर्फ एक ही सवाल किया था, "आर यू एन्ग्गेजड?"

नीति रिसीवर पकडे खामोश खड़ी रही और उसकी ख़ामोशी ने हर सवाल के जवाब दे दिए |

दिवस बीते और नीति की शादी का दिन आ गया | ख़ुशी  से ज्यादा उसके दिल में दर्द था | हालाँकि वो रंजीत से काफी बार मिल चुकी थी | दोनों साथ घूमने फिरने भी जा चुके थे | किन्तु वो दिल का रिश्ता अभी भी नहीं जोड़ पाई थी | इस कमबख्त़ दिल का क्या करती जो हर समय बस प्रताप के बारे में ही सोचता रहता था | इस एक रात के बाद उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदलने वाली थी | वो प्रताप से बहुत दूर जाने वाली थी | क्या उसने शादी के लिए हाँ करके सही किया था ? आगे क्या होगा ? क्या वो प्रताप को भुला पायेगी ? क्या प्रताप उसे भुला पायेगा ? शादी के बाद वो रंजीत के साथ खुश रहेगी? क्या रणजीत एक अच्छा पति साबित होगा? क्या रंजीत को प्रताप के बारे में बताना ठीक होगा? क्या वो इस बात को स्वीकार कर पायेगा?  इन्ही सब सवाल जवाब और ज़िन्दगी की उलझनों के बीच उसने रंजीत के साथ सात फेरे तो पूरे कर लिए और सो कॉल्ड शादी भी हो गई |

बिदाई हो गई | गाडी सुसराल पहुँच गई | सुसराल के दरवाज़े पर देहलीज़ पार करने को खड़ी वो अभी भी इन्ही सब सवालों से झूझ रही थी | क्रमशः

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बुधवार, जनवरी 30, 2013

Thought

"Who you are today is not who you will be tomorrow, to understand this fact takes a very long time and a greater understanding of life."

Deep as the sea

Deep as the sea, deeper than the abyss, further than the ocean. Limits are limitless. Abound I find shore. To close to reach land. Land is distant, distant as the stars in the night filled with crowded spectra or a culmination of stars. Profound as my inner emotion that claims no restrain except when beleagured by humans that claim no identity nor will to live. I derail into a smudgery of unexpressed notion that coexists amongst people I love. Why must I express, this to live and survive. Never did a man look back at his sorrows or unrestrained passion to love, live and learn until one set out to decompass his side. Further than his side he survives to crawl on ocean, land and prevail amongs his no believers and people who choose not to love him nor care. He is strong, he is deep, his side no one knows, as to know this would be to be stronger than will, stronger than man, stronger than who we are.

To know you know me is not enough. For I am deep, deeper than you once thought i was. You express no emotions, I express no regret. Together we comfort each other. I only know joy when I server you or make you happy. When I feel your inner passion you make me a part of you that does not go unnoticed. Life is like a puzzle sometimes we embelish on absolute nonsense until we realize time has taken us by surprise. Yet time has no beginning nor end it is a block of space that we claim and accept as per your pretty woman, I often think about you not knowing how profound you really are. I bask in your lips and succumb to you arms and there I find a peaceful ground owes me to be a person. Allows me to be a part of something bigger.

मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मुखौटा

मेरी तरफ़ा देख ज़रा
चेहरे पर एक मुखौटा है
मुखौटे का विश्वास न कर
मेरी बात को सुन ले ज़रा
मुझसे कोई सवाल न कर
मेरे झूठ का तू ऐतबार तो कर
जो लिखा है मैंने बस वही तू पढ़
मुझसे तू कोई सवाल न कर
बस शब्दों का ऐतबार तो कर

वो एक नज़र मेरे चेहरे पर
तूने जब जब भी है डाली
क्या पता कभी चलने दी तुझको 
दशा मेरे मन और जीवन की
जितनी हलचल, उतनी पीड़ा
दिल बिलकुल है खाली
सोच के तुझको भी दुःख होगा
हालत अपनी छुपा डाली
मौन सदा रहकर मैं बस
यही सोचता हर पल
शायद अब तो झाँकेगी तू
मेरे दिल के तल तक

मुझे अकेला छोड़ राह तूने भी बदली
जो था मेरा सच वो
तू कभी न समझी पगली
खुश रहे सदा तू
चहके, महेके, सूरज सी चमकाए
कोई अड़चन, कोई पीड़ा
अब निकट तेरे न आए

काश! किसी दिन वक़्त निकले
और मिले तू मुझसे
फिर कानो में धीरे से
ये पूछे तू मुझसे
काहे पहने हो मुखौटा ?
का चाहते जीवन से ?
तब आँखों को मूँद के अपनी
दिल को मैं खोलूँगा
बतलाऊंगा दर्द तुझे मैं
शब्दों में बोलूँगा

हाँ, माना के बहुत दुखद है
मुखौटे संग रहना
पर एही एक कला है बिटिया
जो के सिखलाती है
जियो सदा जीवन को हंस के
दुखी कभी न रहना
पड़े चाहे विपरीत परिस्थिति
में भी मर मर जीना

याद तेरी दिलाते हैं

गीली घास पर चलना
नंगे पावों फिरना
घंटो बातें करना
हर एक बात पे लड़ना 
याद तेरी दिलाते हैं

पराठों पर मक्खन डलना  
आइसक्रीम का मिलना
गर्म चाय की प्याली से
पपड़ाए होठों का जलना
याद तेरी दिलाते हैं

किताबों की मचानें
कुछ भूले बिसरे से गाने
नए नए स्वादिष्ट खाने
बाक़ी सब कुछ बेमाने
याद तेरी दिलाते हैं

जीवन से तमगे पाना
चेहरे का खिलखिलाना
बालक का मुस्कराना
अपनों से दर्द छिपाना 
याद तेरी दिलाते हैं

हाथों में थामे हाथ
अमर बेला का वो साथ
निर्भर एक दूजे पर हम 
आँखों से बहते ग़म
याद तेरी दिलाते हैं

शाम का मध्यम सूरज 
अर्श पर छनती चांदनी
गमलों में नन्ही कोपलें 
सन्नाटे की रागनी
याद तेरी दिलाते हैं

हुज़ूमि दुनिया की भीड़
सियाह रात सी तस्वीर
जुगनू से टिम टिम तारे
चमकते नैन कजरारे
याद तेरी दिलाते हैं

शमां की महक
झींगुरों की चहक
इश्क़िया दहक 
ख़ुदाया रहक
याद तेरी दिलाते हैं

भूरिया सर्द पत्तियाँ
कुरकुरी हवा की मस्तियाँ
इस कविता की पंक्तियाँ
शाम-ए-जीवन की झलकियाँ
याद तेरी दिलाते हैं
याद तेरी दिलाते हैं

भक्ति

भक्ति
जबकि स्वयं
स्त्री स्वरुप है
फिर भी
भक्ति को
क्यों तलाश है
किसी बुत की
जो की
स्वयं में
एक अथाह सागर है
फिर क्या
उसे प्यास है
किसकी
चिरकाल में
अनंत समय तक
क्यों
कोई नहीं जानता

सोमवार, जनवरी 28, 2013

ज़िन्दगी - अंतिम भाग

उस दिन सारी रात आँखों आँखों में ही कट गई | बारिश थम चुकी थी | तूफ़ान आके गुज़र चुका था और नुक्सान भी काफी कर गया था | राम सारी रात वहीँ ठण्ड में बैठा रहा और सोचता रहा के ज़िन्दगी ऐसा मज़ाक उसका साथ ही क्यों कर रही है | हर दफ़ा मैं ही क्यों ? मेरी गलती क्या थी ? और ऐसे कई सवालों के जवाब ढूँढ़ते ढूँढ़ते न जाने कब आँखों आँखों में रात कट गई |

अचानक से सन्नाटा टूटा और एक प्यारी से आवाज़ सुनकर वो चौंक गया | सारा उसकी छोटी बेटी उसके सामने खड़ी थी | उसे देखकर वो मुस्कराया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा, "गुड मोर्निंग माई एंजेल, यू वोक उप अर्ली टुडे | क्या हुआ ?"

सारा बोली, ? "पापा स्कूल का टाइम हो गया, जल्दी कहाँ ? जल्दी चलो न वरना लेट हो जायेंगे |"

राम ने तुरंत घडी देखी और ५ मिनट में तयार होकर आ गया | गाडी निकली और सारा को स्कूल छोड़ने चल दिया | रास्ते में सारा ने पुछा,
"पापा, मम्मी कहाँ है ? सोम्य और मम्मी कब वापस आयेंगे ? | आपको मालूम है सोम्य के साथ खेलने में मुझे बहुत अच्छा लगता है | वो मुझे थोडा डांटती तो है और झगड़ा भी करती है पर वो मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड भी है | मैं उससे बहुत प्यार भी करती हूँ और वो मेरे से |"

राम के पास उसके मासूम सवालों और बातों का कोई जवाब न था | वो अपने आंसूओं को छुपाये चुप चाप हलकी सी मुस्कान चेहरे पर लिए उसकी ओर देखता और धीरे से सर हिला देता | स्कूल आ गया था | राम ने सारा के माथे पर चूमा और उसे बाय किया और वहां से निकल पड़ा |

अपने घर जाने की बजाये वो सीधा सारिका और सोम्य से मिलने उसके घर पहुँच गया | घंटी बजाई | सारिका के पिताजी ने दरवाज़ा खोला | उनके आव भाव कुछ तुनके हुए थे | वो अन्दर दाखिल हुआ तो पाया सामने सोम्या सोफे पर बैठी है | उसे देखते ही सोम्या मुस्करा दी और पापा पापा कहती उसकी गोद में आ बैठी | अभी २ मिनट भी नहीं गुज़रे थे के सारिका आई और उसे गोद से उठा कर अन्दर ले गई | राम चुप चाप बैठा रहा | उसके कलेजे पर सांप लोट रहे थे | बेटी के होते हुए भी वो उससे मिल नहीं पा रहा था | कुछ नहीं बोला | चुपचाप बैठा रहा और तमाशा देखता रहा | सारिका के पिताजी उसके पास आकर बैठे और कुछ बोलने की चेष्टा करने ही वाले थे , के राम उठ खड़ा हुआ, उसने भरी हुई आँखों से उनकी ओर देखा और प्रणाम कर के वहां से चल दिया | उस समय उसकी बोली से ज्यादा उसकी आँखें बहुत कुछ कह चुकी थी जिसे समझना अब सारिका के पिताजी को था |

राम ऐसा ही था | अपने दिल की बात किसी से ठीक से कभी कह ही नहीं पाता था | ज़्यादातर वो खामोश ही रहता था | रास्ते भर वो गाडी में ख़ामोशी से जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनता रहा | घर आया और फिर से जाके अपने कमरे में चुप चाप बैठ गया | सिगरेट जलाई और इंतज़ार करने लगा के शायद सारिका का फ़ोन आ जाये | सोम्या की दूर होने की वजह से वो और ज्यादा टूट गया था | सोम्या की उन मासूम आँखों को वो भुला नहीं पा रहा था | पापा पापा की आवाज़ अभी भी उसके कानो में गूँज रही थी |  बार बार सोचता के कॉल करके अपने दिल की बात कह दूं पर मोबाइल के बटन पर ही उँगलियाँ रुक जातीं | अब उसे सिर्फ उस सर्वशक्ति में ही विश्वास था | हर समय दिल ही दिल में उनसे प्रार्थना करता रहता के उसके ऊपर आए बुरे वक़्त को बर्दाश्त करने की शक्ति उसे अदा फरमाएं और उसके होंसलें पस्त न होने पायें | ऐसे समय में वो अपना संयम कायम रख पाए |

दोपहर हो गई थी | सारा स्कूल से आ गई थी | आते ही उसने फिर से पुछा पापा, "सोम्या नहीं आई ? मैं उससे नाराज़ हो गई | उसने मेरे से बात भी नहीं की कल से | कब आएगी वो?" ऐसे ही वो पूरे दिन अपने आप से बातें करती रहती और राम ख़ामोशी से बैठा चुप चाप हताशा के साथ अपने साथ होती इस नाइंसाफी को देखता और सहता रहता | उसके भरोसे का खून हुआ था | किसी पर इतना विश्वास करने की सज़ा वो आज भुगत रहा था | पर क्यों ये जवाब उससे आज तक नहीं पता था |

ऐसे ही काफी दिन बीत गए | कोई बातचीत नहीं हुई | वो इंतज़ार में था के शायद फ़ोन आएगा पर कोई खबर नहीं आई | अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी | हालाँकि सारा उसके पास थी पर सोम्या की कमी उसे हर पर कमज़ोर करती रहती थी | हर एक पल भगवान् से उसके लिए प्रार्थना करता रहता | वो जहाँ भी रहे ठीक रहे | सुखी रहे स्वस्थ रहे | और सबसे ऊपर खुश रहे |

ऐसे ही अरसा बीत गया | न उधर से कुछ बात हुई और न इधर से | आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी पर बुझाने वाला कोई नहीं था | जो भी मिलता उसे भड़काने वाला ही मिलता | बात बिगड़ने वाले हज़ार थे और बात बनाने वाला एक भी न था | फिर इसी बीच एक दिन राम का जन्मदिन आया | वो भूल चुका था के आज उसका जन्मदिन है | ज़िन्दगी के इन उतार चढ़ावों के बीच उसे अपने लिए सोचने का वक़्त ही कहाँ मिला | हालात के थपेड़ों ने उससे ज़िन्दगी जीने की कला बहुत दूर कर दी थी | हर पल उसे एक ही इंतज़ार रहता था और वो अन्दर ही अन्दर घुट रहा था | न किसी से कुछ बात न किसी से कुछ गिला शिकवा करता था | बस अपने आप से और हालातों से झूझने में लगा रहता था | इसके चलते उसके काम और सेहत का भी काफी नुक्सान होने लगा था | पर वो इरादों का मज़बूत इंसान था | उसने कभी भी अपना धर्य नहीं छोड़ा | एक फाइटर था वो | बस जैसे तैसे अपने को संभाल रखा था उसने | जन्मदिन वाले दिन भी वो चुप चाप सुबह से ही बिना बताये कहीं चला गया | सारा और घर के बाकी सभी लोग हैरान थे के सुबह सुबह राम कहाँ चला गया | उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ था | सबको फ़िक्र हो रही थी के क्या हुआ ? ऐसे क्यों और कहाँ चला गया ?

शाम तक राम की कोई खबर नहीं थी | पर फिर भी घर के सभी लोगों ने मिलकर उसका जन्मदिन मानाने की तयारी कर ली थी | अब बस उसके लौटने का इंतज़ार था | रात हो गई ९ बज गए | राम का कुछ अतापता नहीं था | सब का दम सूखा जा रहा था | तभी बहार गाडी की आवाज़ आई | सब सतर्क हो गए और घर की सभी लाईटें बंद कर दी गईं | दरवाज़े की घंटी बजी | राम घर वापस आ गया था | बार बार घंटी बजने पर भी किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला | फिर उसका ध्यान बत्तियों पर गया | घर में घुप्प अँधेरा था | ये सब देखकर हैरान हो गया और अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर अन्दर दाखिल हुआ | उसका दिल ज़ोरों के धड़क रहा था | बार बार यही सोच रहा था के लाईटें बंद क्यों है ? सब लोग कहाँ गए ? क्या हो गया ?

जैसे ही राम ने हॉल में कदम रखा तुरंत ही सारा कमरा जगमगा उठा | हर तरह रंग बिरंगी रौशनी, साज सजावट, गुब्बारे, झालर लगे हुए थे और बीच में टेबल पर केक सज़ा रखा था | सब लोग "हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे टू यू" गा रहे थे | पर उसकी आँखें वीरान थीं | जिसके मुहं से वो ये सुनना चाहता था वो कहीं नहीं थे | वो मूक खड़ा ये तमाशा देख रहा था | अपने को सँभालते हुए फिर उसके चेहरे पर एक मंद से मुस्कान झलकी |

"थैंक यू , थैंक यू प्लीज  एंड वेलकम तो माई होम" वो सभी से बोला

सारा उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ कर उसे केक तक ले गई | और उसके हाथ में चाकू थमा दिया और बोली,

"पापा, जल्दी से केक काटो न बड़ी जोर के भूख लगी है फिर पिज़्ज़ा और छोले भठूरे भी तो खाने हैं "

उसकी इस मासूमियत को देख कर सब हंस पड़े | राम भी जोर से हंस दिया | बोला, "ओके, मेरी माँ अभी काटते हैं चलो |"

केक काटने खड़ा ही हुआ था के पीछे से किसी ने दोनों हथेलियों से उसकी आँखें ढँक ली | वो चुप चाप खड़ा रहा, तभी एक आवाज़ आई,

"पापा, हैप्पी बर्थडे टू यू " ये आवाज़, ये आवाज़ तो सोम्या की थी |

उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, तुरंत उसने अपनी आँखों से हाथ हटाये और मुड़ कर देखा तो सामने सारिका खड़ी थी और साथ में सोम्या भी | इससे पहले के वो अपने मुहं से कुछ कह पता सारिका की हथेली ने उसका मुहं बंद कर दिया और बस आँखों में देखती रही | जो भी गिले शिकवे दूर करने थे वो आँखों ही आँखों में दूर हो गए | सारिका राम से गले लग गई और चारों तरफ तालियों की गडगडाहट गूँज उठी | राम ने अपनी दोनों बेटियों को गोदी में उठा लिया और प्यार से चूमता रहा |

ये उसके जन्मदिन का सबसे बड़ा उपहार था | बस फिर क्या था केक भी कटा और सब ने खूब धूम मचाई | खाना पीना, हंसी मजाक, गाना बजाना सब जम कर हुआ | रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला | दिल ही दिल में राम भगवान् को बहुत बहुत धन्यवाद् दे रहा था और उनका आभार व्यक्त कर रहा था | उसके जीवन की माला को बिखरने से बचने वाले वही थे |

और उसके बाद आज तक उसके जीवन में ऐसी काली रात और ऐसे सियाह दिन फिर कभी नहीं आए | सभी उलझाने बिना कुछ बोले और कहे ही निपट गईं | न उसने सारिका से कोई सवाल किया और न कोई जवाब माँगा | सारिका भी हंसी ख़ुशी ख़ुद-ब-ख़ुद घर चली आई | उससे भी अपनी भूल का एहसास हो चुका था | और वैसे भी अगर सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते |

आज राम का परिवार एक हँसता खेलता, गाता गुनगुनाता परिवार है | एंड दे लिव्ड हैप्पिली एवर आफ्टर |

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आशा है कहानी आपको पसंद आई होगी | मेरी दिल से तमन्ना, उम्मीद और प्रार्थना है ऊपर वाले से जैसे राम की ज़िन्दगी में खुशियों के पल लौट आए वैसे ही संसार में समस्त प्राणियों के जीवन की उलझाने और समस्याएं बिना कुछ बोले ही सुलझ जाएँ | कभी भी प्यार करने वालो को आपस में सवाल जवाब करने की नौबत न आए | क्योंकि मेरा ऐसा मानना है के प्यार की ज़बान नहीं होती | प्यार सिर्फ और सिर्फ एक एहसास है | जो बातें एक बंद ज़बान और भरी हुई आँखें कह सकती हैं वो जीवन में कोई भी शब्द बयां नहीं कर सकते | खुश रहिये | प्यार करते रहिये |
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रविवार, जनवरी 27, 2013

नीति - भाग १

पात्र :
प्रताप : नायक / नायिका का प्रेमी  
नीति   : नायिका
दीपक : नायिका का भाई
सुहानी: नायिका की बेटी
रंजीत: नायिका का पति
ललिता देवी: नायिका की सास
चमनलाल: नायिका के ससुर

नीति जैसा सुन्दर नाम वैसा ही सुन्दर चरित्र | मिडिल क्लास में जन्मी, एक शिष्ट परिवार में पली, २० साल की, बड़े शहर की एक छोटी सी लड़की | पिताजी का अच्छा खासा कारोबार था | माताजी छोटे शहर से अवश्य थी पर बहुत ही शालीन, ममतामयी और समझदार थी | उसकी ४ और बड़ी बहने थी और वो उनमें सबसे छोटी थी | नीति सभी की लाडली थी | औसत कद काठी, सांवला रंग और बुलंद हौसलों वाली जीवंत तितली | शांत इतनी के यदि सड़क चलते कोई कुछ कह दे या नज़र उठा कर देख भी ले तो बस समझो के उसकी शामत आई | फिर तो जो चीज़ हाथ में आ जाती उसी से उस मनचले का स्वागत सत्कार हो जाता | कभी कभार एक आदा थप्पड़ या घूँसा भी रसीद कर दिया जाता था | एक दम संस्कारी और पूरी तरह से भारतीय परिधान प्रेमी लड़की | जब भी घर से निकलती तो बस एक अदद कमीज़ या टी-शर्ट और जींस, पैरों में हवाई चप्पल नहीं तो कानपुरी | साज श्रृंगार ऐसा के सामने वाला देख ले तो बस मन्त्र मुग्ध हो जाये | न लिपस्टिक, न नेलपॉलिश, न चूड़ी, न झुमका, न नथनी बस एक घडी जो कलाई पर बंधी होती थी जैसे समय देखना कोई मजबूरी हो | अगर समय नहीं होता संसार में तो शायद वो घडी भी कभी दिखाई नहीं देती और वो समय पर भी एहसान करने से बच जाती | उसके हेयर स्टाइल का तो कहना ही क्या था | किसी भी अच्छे खासे लड़के को काम्प्लेक्स आ जाये उसके बाल देख कर | कुछ ऐसी ही थी नीति एक दम बिंदास, आजाद ख्याल, बेबाक और स्पष्ट विचारों वाली | रोज़ सुबह साइकिल पर सवार होकर अपने कॉलेज पहुँच जाया करती और मस्ती किया करती थी | टिपिकल लड़कियों वाले कोई भी गुण और शौक़ उसे दूर दूर तक छु कर भी नहीं निकले थे | वो अबला नहीं निरी बला थी जो एक बार पीछे पड़ जाये तो छटी का दूध, नानी, दादी, परदादी इत्यादि सभी को साथ याद दिला दे | ज़रुरत पड़ने पर मदद करने में सबसे आगे | दूसरों के हक के लिए लड़ने मरने में सबसे तेज़ | एक शब्द में अगर उसके बारे में कहूँ तो वो एक दम "झल्ली" हुआ करती थी | टिक्की, चाट पकोड़ी, गोल गप्पे, आइस क्रीम, चूरन और तरह तरह की सुपारी खाना उसके शौक़ हुआ करते थे | चूरन खरीदने के लिए तो वो कहीं भी जा सकती थी बस कोई नई वैरायटी का चूरन बता दे कोई | बस एक बात जो उससे हमेशा खाए जाती थी के "हाय! मैं कहीं मोटी तो नहीं होती जा रही हूँ ?" | इसकी बैचैनी और चिंता उसे जब भी रहती थी और आज भी बरक़रार है | उसकी सबसे बढ़िया बात जो उसे सबसे अलग करती थी वो ये के समय कैसा भी हो वो हँसना कभी नहीं छोडती थी | वो मुस्कान उसके चेहरे पर हमेशा बनी रहती थी जो उसकी शक्सीयत को सबसे जुदा करती थी |

उन्ही दिनों एक पार्टी में एक दिन अचानक नीति की मुलाक़ात प्रताप से हुई | नीति की सहेली के भाई का दोस्त था प्रताप | एक कॉमन फ्रंड के ज़रिये दोनों की जान पहचान हुई थी | पहले पहल तो दोनों में इतनी तकरार होती थी के पूछो मत | अगर कभी दोनों किसी पार्टी या गेट टूगेदर में मिल भी जाते तो आसमान सर पर उठा लिया करते थे | दोनों कभी भी एक दुसरे की बात से सहमत नहीं होते थे और बहस करते रहते थे | यही बहस करते करते दोनों को धीरे धीरे एक दुसरे की आदत पड़नी शुरू हो गई | उन दोनों को एक दुसरे की कंपनी पसंद आती तो थी पर कहीं न कहीं कुछ कमी थी | नीति की मनभावन अदाओं, उसके पहनावे, उसके अंदाज़, उसकी बातें, उसका अपनी बात को प्रूव करने के लिए किसी भी हद्द तक बहस करना, और हमेशा खुश रहना इन्ही सब बातों की वजह से शायद ही कोई ऐसा लड़का होता जो प्रभावित न होता और उस पर क्यों न मर मिट जाता | वही हाल प्रताप का था | मन ही मन वो उससे चाहने तो लगा था पर जिस प्रेमिका की छवि उसने अपने मन मंदिर में बसा रखी थी नीति उससे कोसों दूर थी | वो नीति को उस परिवेश में अपने सामने खड़ा देखना चाहता था | पर उसने ठान ली थी के वो नीति को बदल कर रहेगा और फिर ही उसके सामने इज़हार-ए-मोहब्बत करेगा |

धीरे धीरे मेल जोल बढ़ने लगा | प्रताप की कंपनी का असर नीति पर भी दिखाई देने लगा | उसकी बातों के आकर्षण से वो बहुत ही प्रभावित हुई | धीरे धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती चली गई |  अकेली मुलाक़तों का सिलसिला शुरू हुआ | एक साधारण दोस्ती से बढ़ते बढ़ते कब वो एक दुसरे को पसंद करने लग गए पता नहीं चला | और एक दिन प्रताप ने उसके सामने इज़हार-ए-इश्क कर दिया | मन ही मन वो भी तयार थी | उसने झट से हाँ कर दी | प्रताप के प्यार में उसने अपने नारी स्वरुप को पहचाना शुरू किया | प्रताप के कहने पर उसने अपने को धीरे धीरे बदलना शुरू कर दिया | बाल बढ़ाये, सूट पहनना शुरू किया | बोली में शालीनता और सौम्यता लाइ | कान भी छिदवा लिए | चूड़ियाँ पहनने लग गई और तो और शर्मना भी आ गया | तो साब अब हमारी नीति टॉमबॉय से एक सुन्दर भारतीय नारी और प्रेमिका में तब्दील हो चुकी थी |

नीति का एक भाई था दीपक | हालाँकि सगा नहीं था पर था सगे से भी ज्यादा | दोनों में उम्र का फासला भी ज्यादा नहीं था | यही कोई ४-५ साल का अंतर होगा दोनों में | पर दोनो के बीच ट्यूनिंग कमाल की थी | निति की ज़िन्दगी के हर फैसले में उसका साथ देना और हर मुश्किल मोड़ पर उसके साथ डट कर खड़े रहना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था | एक गज़ब की अनकही और अनसुनी बौन्डिंग थी दोनों में | वहीँ नीति भी उसको छोटा समझ कर कुछ ज़रुरत से ज्यादा ही प्यार जाता देती थी | बात बात पर झापड़ रसीद कर देना, सर का तबला बजा देना या फुटबॉल समझ कर लात जमा देना तो मामूली बात हुआ करती थी | दीपक ने भी कभी इसका बुरा नहीं मन क्योंकि वो नीति को दिल से प्यार करता था और बहुत इज्ज़त देता था | आपस में अगर बात करते तो पूरी शिष्टता से गाली गलोच करते, समस्त दुनिया की माँ-बहन, बाप-बेटी एक करना उनकी बातचीत में आम बात थी | दोनों एक दुसरे से महीनो नहीं मिलते थे न ही कोई बात चीत होती थी | पर जब भी मिलते थे तो ऐसी गज़ब की गर्मजोशी होती जिसका कोई ठीक नहीं | घंटो कैसे गुज़र जाता करते कुछ पता न चलता | घर वाले चीखाम चिल्ली करते रहते आओ खाना खा लो, नाश्ता कर लो पर अपनी बातों में उन्हें कुछ सुने न देता |  अपनी इसी छोटी सी और प्यारी सी दुनिया में दोनों बहुत खुश थे | और एक दुसरे से बेहद जुड़े हुए थे |

दीपक नीति की एक एक हरकत से वाकिफ था | वो उसकी एक एक हरकत को नोट कर रहा था | नीति में इतना बदवाल उससे हज़म नहीं हो रहा था | नीति का एकदम से ऐसे बदलना उसके लिए भी अचरज की बात थी | वो भी सोच रहा था के ये कुछ तो छुपा रही है मेरे से | पर नीति भी छुपी रुस्तम थी | अभी तक उसने प्रताप के बारे में उसको कुछ भी नहीं बताया था | भनक भी नहीं लगने दी थी उसने किसी को इसके बारे में | उसने नीति से पुछा भी अचानक इतना बदलाव कैसे, तो जवाब में वो हंस कर टाल देती या कहती,

"अपुन तो बिंदास है, कुछ भी करूँ मेरी मर्ज़ी | मैं अपनी मर्ज़ी की मालकिन हूँ  यार | क्यों ये लुक अच्छा नहीं लग रहा क्या ? यार उस लुक से बोर हो गई थी तो सोचा थोडा चेंज कर के देख लूं | शायद घर वाले खुश हो जाएँ और मेरे पीछे पड़ना छोड़ दें |"

दीपक भी समझदार था | उसकी बातों को सुनकर चुप रहता और मुस्कुराता रहता  | उससे पता था के कुछ न कुछ खिचड़ी तो पका रही है ये और वक़्त आने पर ही परोसेगी | या फिर उसे ही ऊँगली टेडी करनी पड़ेगी बात पता करने के लिए | वो रग रग से वाकिफ था नीति की | उसे अच्छे से मालूम था के नीति से कोई बात निकलवाना बड़ी टेडी खीर है | जैसा वो खुद था वैसी ही उसकी बहन भी थी | दोनों के दोनों महा कुत्ती चीज़ | बस यही सोचकर वो शांत रहा और समय का इंतज़ार करता रहा |

 एक दिन अचानक इधर उधर की बातों बातों में उसने नीति से पूछ ही लिया,

"कमीनी अब तो बता दे कौन है वो इतने दिन हो गए तुझे ड्रामा करते |"

नीति चौंक कर बोली "क्या भाई कोई नहीं है, तू भी सनक गया है क्या? आइन्वाई मेरे पीछे पड़े जा रहा है"

पर दीपक को पता था के अब इसके पिटारे का ढक्कन खुलने का टाइम आ गया है | उसने फिर से कहा,

"चल चल जल्दी बता, इतने महीनो से तेरी नौटंकी देख रहा हूँ | चल क्या रहा है ? मिलवा तो सही |"

अब नीति के पेट में कहाँ पचने वाली थी बात सो उसने सब कुछ उगल डाला जैसे कोई गर्मी में ठन्डे ठन्डे शरबत की बोतल को हलक में उतार डालता है वैसे ही उसने सब कुछ दीपक के सामने उंडेल दिया | दीपक भी दंग रह गया सुनकर | उससे भरोसा नहीं हो रहा था के किसी के लिए नीति ने अपने आप को इतना बदल डाला | वो नीति से बोला के,

"जिस बन्दे ने तेरे जैसी कमीनी को बदल दिया वो कितना बड़ा कमीना होगा | बता जल्दी कब मिलवा रही है जीजा से |"

और बस फिर ऐसे ही नीति की टांग खिचाई चलती रही सारा समय | दीपक दिल से खुश था नीति के लिए | नीति को पता था के दुनिया में सबसे ज्यादा ख़ुशी दीपक को ही हुई होगी और फिर पलक झपकते ही उसने प्रताप से मिलवाने की ख्वाइश ज़ाहिर कर दी | दीपक तो इसी मौके के लिए तयार बैठा था | उसने तुरंत हाँ कर दी |
अगले दिन नीति दीपक को प्रताप से मिलवाने ले गई | प्रताप को देखकर दीपक कुछ देर उससे ऐसे ही देखता रहा | पर्सनालिटी दमदार थी | लम्बा, चौड़ा, हट्टा कट्टा नौजवान | गोरा रंग | मैग्गी जैसे लच्छेदार बाल | दीपक को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा | प्रताप ने आगे बढ़कर दीपक से हाथ मिलाया और बोला,

"और दीपक, कैसे हो ? आओ यार बैठो | और सब ठीक | हाउस में सब बढ़िया चल रहा है ?

दीपक भी कम नहीं था | उसने भी हाथ पकडे पकडे जवाब जड़ दिया दीपक के सवाल पर,

"अरे जीजा ! सब बढ़िया | हाउस में सब आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं | कहों तो ले चलूँ | काफी लोग हैं लाइन में जो मिलने की बाट जोह रहे हैं | और सबसे उतावले तो ससुरजी और सासुमां है | बोलो ले चलूँ ?"

इतना सुनते ही प्रताप की और नीति की हंसी छुट गई | नीति बोली, "सुधर जा, वरना पिटेगा" | दीपक मज़े ले रहा था और हँसे जा रहा था और बेचारी नीति किलस रही थी और तुनककर बोली,

"कुत्ते चुप हो जा ! तुझे बताकर बहुत गलत किया | अब तू मेरी टांग खीचता रहेगा | चुप हो जा वरना तेरे मुहं पर जड़ दूंगी अभी | सब अक्ल ठिकाने आ जाएगी तेरी | "

दीपक और प्रताप दोनों इस मोमेंट को एन्जॉय करने में लगे हुए थे और हंस हंस कर नीति की हालत का मज़ा ले रहे थे | फिर सारा माहौल तीनो के ठहाको से गूँज गया | दीपक ने प्रताप को और प्रताप ने दीपक को कुछ गिफ्ट्स दिए और कुछ देर और मजाकबाज़ी और टांग खिचाई के दौर चलते रहे और फिर इस सब इसके के बाद वो बाय-शाये कर के उसके घर से रवाना हो गए | क्रमश:

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रिश्ते

आज एक बंधू से कुछ बात चीत हो रही थी | मेरे बहुत ही अभिन्न मित्रों में से एक हैं वो | मित्र क्या भाई के समान ही हैं | उनकी बातों के बाद जो कुछ भी एहसास मेरे दिल में उमड़े और जो जीवन के निष्कर्ष सामने आए वो मैंने यहाँ आप सबके सम्मुख शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास कर दिया  | बहुत ही सुलझी सोच रखने वाले मेरे मित्र को मैं इस कविता के मध्यम से धन्यवाद करना चाहूँगा के ऐसे वक़्त में उन्होंने मेरा साथ दिया, मेरी पीड़ा को समझा, मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे सँभलने में मदद की  | बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त |

जीवन एक जंजाल है भैया
मानवता बेहाल है भैया
रिश्तों की छोड़ों तुम बातें
इनका पैसों में तोल है भैया
इनका कोई मोल नहीं है
इनका तो राहू काल है भैया
नया ज़माना आया है भैया
प्रायोरिटी संग लाया है भैया
रिश्तों को अगर निभाना है भैया
तो प्रायोरिटी वाईस चलाना है भैया
किसका कितना करना है भैया
किसका कितना भरना है भैया
ये प्रीडीसाएडिड गोल है भैया
स्वार्थ का बोल बाला है भैया
शादी के रश्ते को इसमें
सबसे ऊपर डाला है भैया
छोटी छोटी सी बातों पर
बस मोल भाव होता है भैया
मतलब का बस राज है भैया
देता कौन किसी का साथ है भैया
जोर से तुम जो बोलोगे भैया
दिमाग की दही कर लोगे भैया
बच्चे को जो धमकाओगे भैया
बदले में बगलें झांकवाओगे भैया
गर बीवी के बाप का नाम लिया
तो महाभारत छिड़वाओगे भैया
सास ससुर ने कुछ बोल दिया तो
फौरेन घर छोड़ दिया रे भैया
जेठ जेठानी जो कुछ बोलें तो
टाँगे उनकी क्यों तोडें न भैया
बीवी का भाई वाह जी वाह भैया
मियां की बहना न जी न भैया
अगर गौर से देखो तो भैया
बस एक ही दिल में प्यार है भैया
हाँ सारा संसार है भैया
जो बिन मांगे देता है सब सुख
वो 'माँ' का रिश्ता है भैया
देता जीवन भर दुलार है भैया
बिन मांगे बिन पूछे करता
जीवन भर तुमसे प्यार है भैया
जीवन भर तुमसे प्यार है भैया

शनिवार, जनवरी 26, 2013

ज़िन्दगी - भाग १

पात्र :
राम - मुख्य पात्र
सारिका  - पत्नी
सोम्या - बड़ी बेटी
सारा - छोटी बेटी

रात बहुत ही तेज़ तूफ़ान आया था | ओले भी गिरे थे | पर उसे नहीं मालूम था के रात का तेज़ अंधड़ उसके जीवन में भी एक नया बवंडर लेकर आने वाला है | एक ऐसा भावनाहीन चक्रवात जो उसके सभी एहसासों और जज्बातों  को उड़ा ले जायेगा |

उसके लिए तो वो दिन भी सर्दियों की एक मस्ताना सुबह जैसा था  | बारिश अब भी ज़ोरों के बरस रही थी मानो इंद्र देवता कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हों | लगता था रात से इन्द्रजी भी बियर का सेवन कर रहे हैं | बिजली ऐसे चमक रही थी जैसे आज मौसम भी रौद्र रूप में तांडव करने के मूड में हो | ज़िन्दगी की वो हसीन सुबह अपने परिवार के साथ, रोजमर्राह की भागम भाग, नहाना धोना, बच्चों का शोर, स्कूल जाने की तयारी, नाश्ता, टिफ़िन, और वही घरेलु कामकाज के बीच उसके दिमाग में क्या चल रहा था किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी | सुबह हँसते खेलते बच्चे स्कूल जाने को तयार थे | नाश्ते में चाय और पकोड़े बने थे | सब ने साथ मिलकर आलू, गोभी और प्याज़ के पकोड़े खाए और फिर वो बच्चों को स्कूल छोड़ने निकल गई |

राम रात से अपनी स्टडी में ही बैठा था और काम निपटा रहा था | नाश्ते के बाद भी वो स्टडी में जाकर बैठ गया था और थक कर सुबह वहीँ पर सो गया था | नींद में उसका चेहरा ऐसा लगता था मानो जैसे चाँद सोया हो | एक दम शांत और कोमल | ऐसा उसकी छोटी बेटी 'सारा' कहती है | बड़ी बेटी 'सोम्या' और छोटी बेटी दोनों से उसे बेहद प्यार है | एक आँखों का तारा है तो दूसरी ज़िन्दगी का चकोर  | उसका समस्त जीवन उन दोनों के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है | उन दोनों के सिवा उसकी छोटी सी दुनिया में और कोई नहीं है | ऐसा नहीं के और लोग नहीं हैं परिवार में पर उन दोनों के सामने उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता है | उनके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तयार रहता है | अचानक से उसकी आँख खुलती है और पसीनो में तरबतर उठ कर बैठ जाता है | उससे समझ नहीं आता के एक दम से ये शोर कैसा ? फिर सोचा शायद कोई बुरा सपना देखा होगा | बैठा बैठा सोच ही रहा है, के अभी तो सोया ही था फिर इतनी जल्दी आँख कैसे खुल गई ? घडी देखी तो दोपहर के पूरे साढ़े बारह बजे थे  | अचानक से बड़ी बिटिया भागी हुई आई |

"आ गया बेटा स्कूल से"

"हाँ पापा , कहते कहते बिटिया गोद में आकर बैठ गईं"

"स्कूल में क्या किया आज सारा दिन सोम्या बेटा?", राम ने बड़े प्यार से सवाल किया

"कुछ नहीं, आज तो खेलते रहे और शैतानी करते रहे", उसने आँखे चमका कर और इतरा कर जवाब दिया

"पापा, इस सन्डे को पिज़्ज़ा बनाओगे न ?" बिटिया ने बड़े प्यार से पुछा

"हाँ बेटा, ज़रूर पर पहले",

इतना कहते के साथ राम ने अपना गाल आगे बढ़ा दिया | बेटी ने धीरे से दोनों गालों पर चूमा और फिर सीने से लग कर बैठ गई | बस वही एक लम्हा होता था जहाँ राम की सारी थकान मिट जाती, नींद गायब हो जाती, ज़िन्दगी और जीवन का वक़्त थम जाया करता था | एक नई ऊर्जा का तेज उसके शरीर में दौड़ जाता था | बेटी को सीने से लगाकर जो आनंद की अनुभूति होती थी उसे बयां करना उसके बस में न था  | पिता होने का एहसास दिल में उमड़ जाता था और रगों में खून का दौरान एक दम शांत हो जाता था | वो ऊर्जा से हर्शोल्लासित और सजीव हो उठता था |  ऐसा लगता मानो के ये लम्हा यहीं थम जाये और बेटी ऐसे ही हमेशा दिल के करीब रहे |

अचानक राम की बीवी आई और सोम्य को गोदी में उठा कर ले गई | राम अपने लैपटॉप पर मेल चेक करने में लग गया | कुछ देर बाद अचानक से कुछ ऐसा हुआ के दिल में आग जल उठी | कुछ एक घंटों के बाद उसने देखा के घर के और लोग जोर जोर से उससे बुला रहे हैं | वो उठा और जाकर पुछा के क्या हुआ ? पता चला बड़ी बिटिया और उसकी जीवन संगनी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं | तीन घंटे से ऊपर हो गए कुछ पता नहीं कहाँ गए |  तुरंत मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की | परन्तु मोबाइल तो बंद बता रहा था | दिल में हज़ार सवालों के साथ सैकड़ों आशंकाएं उठने लग गईं | क्या हुआ ? कहाँ हैं ? फ़ोन बंद क्यों है ? बहुत कोशिश की परन्तु कुछ पता नहीं चला | शाम को राम के मोबाइल की घंटी बज उठी | परेशान बैठा राम दौड़कर भागा और फ़ोन उठा कर बोला,

"हेल्लो ! कौन"

दूसरी तरफ़ा से आवाज़ आई

"मैं बोल रही हूँ ", आवाज़ राम की पत्नी सारिका की थी

"सारिका तुम और सोम्या कहाँ हो ?", राम ने गुस्से, डर और असमंजस के भावों के साथ सवाल किया

"मैं आ गई ", सारिका ने बतलाया

"आ गई मतलब ?", राम ने हैरानी से पुछा

"मैं सोम्या को लेकर अपने पापा के आ गई", दूसरी तरफ से जवाब आया

"लेकिन अचानक कैसे ? एकदम बिना बताये और वापस कब आना है ? सब ठीक तो है वहां ?", राम ने उत्सुकता से पुछा

"अब कभी नहीं आना, मैं घर छोड़ कर आ गई " बीवी ने तुरंत जवाब दिया और फ़ोन पटक दिया

राम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई | वो बुत बना खड़ा रह गया | चेहरा सफ़ेद पड़ गया | उसे यकीन नहीं हुआ | ऐसे हालातों का सामना उसने पहले कभी नहीं किया था | वो किंकर्तव्यविमूढ़ बावला सा  खड़ा दीवार ताक़ रहा था | लाल नम आँखों में आंसू के साथ आक्रोश और गुब्बार था | उसने कई बार फ़ोन लगाने की फिर से कोशिश की पर फोन स्विचऑफ बता रहा था |

सारा तभी भागी भागी आई और बोली,

"पापा, मेरी भी बात कराओ न | मम्मी का फोन था ? सोम्या कहाँ है ?

उसे और मुझे तो आज गुडिया की शादी रचानी है | वो मेरी गुडिया का दुपट्टा लेने गई है क्या ?

और भी न जाने कितने ही सवाल वो पूछे चली जा रही थी जिनका जवाब राम के पास नहीं था | जैसे तैसे सारा को समझा बुझा कर और खाना खिला कर सुलाया और फिर कमरे में जाकर देखता क्या है के अलमारियां खाली पड़ी हैं | और भी काफी सामान नहीं है | बेटी की अलमारी खाली पड़ी है | उसके खिलौने, किताबें और कपडे गायब हैं | अचानक से 'सोम्या' के छोटे छोटे जूतों पर नज़र गई तो दिल भर आया | ये मंज़र देखकर अगर कुछ था तो नम आँखे, सीने में दर्द, खालीपन और मायूसी थी | राम सन्न खड़ा सोच रहा था ये अचानक कैसा वज्रपात हुआ उसकी हंसती खेलती दुनिया पर | अभी सुबह तक तो सब कुछ ठीक था | हंसी ख़ुशी ज़िन्दगी चल रही थी | इन्ही सभी कठिन परिस्थितियों से बोझिल मन से बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया |

एक सिगरेट सुलगाई और बैठ गया | बारिश अब भी गरज गरज के बरस रही थी | बिजली की चमक ऐसे लगती थी मानो भगवन भी आज उसे चिढाने के मूड में है और उसके इन हालातों की तस्वीर उतार रहा हो | ऐसा लग रहा था जैसे राम की आँखों के आंसू आज आसमान बहा रहा है |  राम ने सर ऊपर किया और आकाश की ओर देखकर सोचने लग गया के ये सब उसके साथ ही क्यों और कैसे हो गया | एक दम से यह पहाड़ कैसे टूट पड़ा | अचानक से घर छोड़ कर चले जाना और फ़ोन भी बंद कर देना | माजरा समझ में नहीं आ रहा था | ज़िन्दगी की हालत ऐसी हो गई थी जैसे किसी गाडी पर १२० किलोमीटर की स्पीड से चलते हुए अचानक ब्रेक लगने के बाद जो नुकसान होता है उसी स्तिथि में राम था | एकदम से ऐसे पत्थर दिल कैसे हो सकती है वो | इतने सालों की शादी, प्यार, मन सम्मान, भरोसे का ये सिला दिया उसने | घर में अक्सर ऐसी छोटी मोटी कहा सुनी तो होती रहती है | इसका मतलब ऐसा करना तो नहीं | वो ऐसे कैसे धोखा दे सकती है ? वो इतना सारा सामान लेकर गई कैसे ? क्या ये सब वो काफी समय से सोच समझ कर प्लान कर रही थी ? क्या वो अब कभी वापस नहीं आएगी ? बेटी कैसी होगी ? बेटी से क्या कहा होगा ? बेटी को मेरी याद आएगी तो कैसे मनाएगी ? बेटी रात को सो भी पायेगी मेरे बिना ? काश! ये सब एक मजाक से ज्यादा कुछ न हो | दिल्लगी कर रही है वो मुझसे |

इसी सब सोच के बीच पिछले कुछ सालों की विडियो रील उसके दिमाग में शुरू हो चुकी थी जिसका नज़ारा वो अपनी आँखों के सामने देख रहा था | वो साथ बिताये लम्हे, हंसी ख़ुशी के पल, बेटियों का जन्म और उनके जन्म दिन, हँसना, रूठना, झगड़ना, मानना सभी का बाईस्कोप उसके सामने चला जा रहा था | और ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत सवालों से जूझता हुआ वो सिगरेट पर सिगरेट सुलगाये जा रहा था और अपने दिल, वक़्त और ज़िन्दगी को जलाये जा रहा था |  क्रमश:

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Thought

" Life will knock you down every moment, But its upto you if you want to stand up again like a winner. Or you just want to stay down there defeated."