रविवार, जुलाई 26, 2015

मुलाक़ात

राज की मुलाक़ात आराधना से कन्याकुमारी जाते वक़्त पांच साल पहले बस में हुई थी और उसने बताया था कि वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है। राज द्वारा क्यों? पूछने पर उसने जवाब दिया, "उसे मालूम नहीं क्यों - पर उसके जीवन में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो उसके भागने के फैंसले को सही साबित कर देंगी।

उसने दायें हाथ में बड़ा कॉफ़ी का मग पकड़ा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद वो उसमें से उठती भाप को लम्बी सांस लेकर सूंघती और आह की ध्वनि के साथ निःश्वास होकर निश्चिंत हो जाती। देखने पर प्रतीत होता था कि उसे कॉफ़ी बेहद पसंद है और वह उसके स्वाद का भरपूर आनंद लेती हुई उसका लुत्फ़ उठा रही है। राज को अहसास हुआ कि उसने उसे एकटक ताड़ते हुए पकड़ लिया है जब उसकी नाक मग के सिरे को छू रही थी, और वो झट से बोल पड़ी कैफ़ीन मेरे दिल की तरंगों के जीवित होने का एहसास कराती है। उसकी आँखें अचरज से ऐसे चौड़ी और खुली हुई थीं जैसे मानो आज तक उसने कभी पलक झपकी ही ना हो, जैसे वो डर रही हो, जैसे...जैसे उसने कुछ खो दिया हो और सूरज उसकी पलकों पर चिड़ियों की भांति ऐसे बैठा था जैसे वो तारों पर बैठ झूलती हैं क्योंकि उसने बताया कि उसे रोना-धोना ज़रा भी पसंद नहीं आता है।

उसे चीज़ों को गिराने की आदत थी और वो चौथी मर्तबा सीट के नीचे झुककर कुछ उठाने के लिए ख़ोज-बीन कर रही थी के, अचानक से ज़ोर के चिल्लाई और उसकी फ़िरोज़ी टोपी राज के हाथ से टकराई और उसके कप से चाय बाहर छलक कर गिर गई। उसने बच्चों की तरह बड़ी मासूमियत भरी नज़रों से देखते हुए, दांतों से अपने नीचे वाले होंठ को काटते हुए माफ़ी मांगी और बोली, "वो ख़ुशी से इसलिए चीख़ी क्योंकि तुम्हारे टखने पर जो टैटू है बहुत प्यारा लगा।" - उसने बताया कि जब वो अट्ठारह बरस की हुई थी तब उसने अपनी कमर पर रंगीन तितली का टैटू बनवाया था और जब भी वो उसे आईने में निहारती है तब अपने आप से फुसफुसा कर सवाल करती है कि, "क्या वो इस तितली की तरह रंगीन,खुशमिजाज़ और चुलबुली है ?"

उस रात वो दोनों एक दुसरे के साथ में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी कहानियां ऐसे अदला-बदली करते रहे जैसे दो प्रेमी आपस में चूमते हुए अपने इश्क़ के शर्बतों को एक दुसरे की आत्मा में उतार देते हैं और जब राज ने उससे कहा, "बत्ति जला लेते हैं क्योंकि हम मुश्किल से ही कुछ देख पा रहे हैं।" - तब इस पर मना करते हुए उसने लाजवाब जवाब दिया कि, "सच्ची और अच्छी आवाज़ों का साथ देने के लिए कभी किसी चेहरे की ज़रुरत नहीं होती है।"

उसकी गुस्ताख़ियों के बावजूद, वो बिलकुल मायावी थी और उसका उत्साह, तत्परता तथा उत्सुकता उसे बेहद मनमोहक बना रहीं थीं; उसके बात करने के अंदाज़ और शब्दों को छनछनाहट में कुछ तो था - जिसे राज समझ नहीं पा रहा था और ना ही कोई नाम दे पाने में सक्षम था और जब ठंडी हवा की लहर में उसकी ज़ुल्फ़ों का लहराना देखा तब ऐसा लगा मानो गर्म सेहरा के कांटो भरे कैक्टस में से अमृत धारा आज़ाद होकर रेगिस्तान में बह निकली हो।

अभी राज अपनी बातों के मध्य में ही पहुंचा था, उसके परिवार और उनकी खैरियत के बारे में सवाल करने ही वाला था कि बस रुक गई और कंडक्टर ने आवाज़ लगा दी की जिन्हें इस गंतव्य पर उतरना है वो आ जाएँ और अपना सामान डिक्की से निकलवा लें। उसने तेज़ी के साथ बातों का रुख मोड़ते हुए अपने कैनवास से बने बैकपैक से पोलारोइड कैमरा निकालकर झटपट एक राज का चित्र और फिर अपना चित्र खींच लिया।

अभी वो चित्रों को हवा में पंखे की तरह हिलाते हुए सुखा ही रही थी, राज ने पूछा, "इस साथ के बाद आगे कभी बात करने या मुलाक़ात का कोई तरीका या ज़रिया होगा?" परन्तु उसने तुरंत मुस्कुराकर नहीं में सर हिलाते हुए सवाल को सिरे से ख़ारिज कर दिया और बोली, "मुझे लगा था तुम मुझे इस सब से बेहतर समझते हो।" और जोर के हंसने लगी

राज के चेहरे पर फ़ीका अप्रकट मायूसी का भाव देख वो बिलकुल दंग रह गई और अपनी रेशमी आवाज़ में उसको उलझाते हुए अपने विदाई के जादुई शब्दों के जाल उस पर डाल दिए। "सुनो, ये लो," उसने खिसककर राज के सीने पर एक तस्वीर रख दी और कहा, "अब तुम्हारे पास मेरी तस्वीर है और मेरे पास तुम्हारी। एक दिन, हम फ़िर से ज़रूर मिलेंगे और शायद हमें यह सब कुछ भी याद ना रहे, पर मुझसे एक वादा करो कि जब तक हो सकेगा तुम इस तस्वीर को अपने साथ रखोगे और वैसा ही मैं भी करुँगी। और किसे मालूम है? शायद किसी रोज़ अपने अंतर्मन के ज्ञान और आवाज़ को सुनकर हम एक दुसरे को ढूँढने में क़ामयाब हो जाएँ। सम्भवतः ये बचपन के खेल छुपन-छिपाई जैसा होगा और यह खेल एक दिन सच हो जाएगा, और वैसे भी बाक़ी सब कुछ छोड़कर पूरी दुनिया हमारे इस खेल का मैदान होगी।" - उसकी आँखें यह कहते हुए चमक रहीं थीं।

पांच साल बाद भी, राज उसे दोबारा नहीं ख़ोज पाया पर उसने उम्मीद का दामन अभी तलक नहीं छोड़ा। वो जहाँ भी जाता उसे ढूँढने की कोशिश ज़रूर करता - हिन्दुस्तान, लंदन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, मलेशिया, मॉरिशस, थाईलैंड, रोम, बुडापेस्ट, श्रीलंका, और भी ना जाने कहाँ-कहाँ पर अफ़सोस उस दिन के बाद से अब तक ऐसी कोई लड़की उसे नहीं मिली जो अपनी जुल्फों में रेगिस्तानी रेत की ख़ुशबू लिए चलती हो।

इतने साल बाद, राज टिकट काउंटर पर खड़ा पेरिस को जाने वाली रात की ट्रेन की टिकट बुक करा रहा था। ठीक उसके पीछे एक लड़की लाइन में खड़ी थी, उसके रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे और फिर गिरकर उसके गालों को चूम रहे थे। टिकट लेकर जैसे ही वो अपना बैग लेकर प्लेटफार्म की तरफ बढ़ रहा था उसके कानो में ये आवाज़ पड़ी और वो रुक गया। वो लड़की टिकट खिड़की पर झुकी हुई थी और अधिकारी को बता रही थी की वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है और इसी प्लानिंग के तहत वो आज यहाँ पहुंची है। राज यह सब सुनता रहा, रुक गया और आसमान की तरफ देख चुपचाप खड़ा मुस्कुराता रहा।

#तुषार राज रस्तोगी  #कहानी  #राज  #आराधना #इश्क़ #मोहब्बत #मुलाक़ात #इंतज़ार  #बस  #सफ़र  #पेरिस

शनिवार, जुलाई 25, 2015

लम्हे इंतज़ार के

ऐ मेरे चंदा - शुभ-रात्री, आज रात मेरे लिए कोई प्रेम भरा गीत गाओ। काली सियाह रात का पर्दा गिर चुका है और तुम्हारी शीतल सफ़ेद चांदनी कोमल रुई की तरह चारों तरफ बरसने लगी है। क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? दिल की खिड़की खुली है और बाहर दरवाज़े बंद हो गए हैं। दुनिया मेरे इर्द-गिर्द मंडरा रही है और मैं हूँ जो रत्ती भर भी हिल नहीं रहा है। मैं अपनी सोच और विचारों के साथ स्थिर हूँ। मैं उस शिखर पर हूँ जहाँ से देखने पर सब कुछ बदल जाता है। मेरी हर सांस के साथ मेरे अरमानो पर पिघलती बर्फ़ के बहते हुए हिमस्खलन जैसा डर लगने लगता है। तुम कितनी दूर हो मुझसे। मैं तुम्हे वास्तविकता में महसूस तो नहीं कर सकता, पर सितारों की रौशनी को देख सकता हूँ। नींद मेरे से कोसों दूर उन बंद अलमारियों के पीछे जाकर छिप गई है। मैं तुम्हे इस चाँद की सूरत में देख रहा हूँ, इसकी बरसती शफ्फाक़ चांदनी में तुम्हे अपनी बाहों के आग़ोश में महसूस कर सकता हूँ, हीरों से चमकते सितारों की जगमगाहट में तुम्हारी मुस्कान की झलक पा रहा हूँ। मैं तो तुम्हारे इश्क़ की मूर्ती हूँ और मेरा दिल इसकी मिटटी को धीरे-धीरे तोड़कर मेरी हथेलियों में भर रहा है। मैं निडर हूँ, फिर भी एक अनजाना डर मुझे तराशता जा रहा है।

मैं अधर में हूँ और जागते हुए भी सोया महसूस कर रहा हूँ, मेरे पैर ठंडे फ़र्श को छू रहे हैं और मैं इस अनिद्रा वाली नींद में चलते हुए अपने घर का खाखा ख़ोज रहा हूँ। मैं ग्रेनाइट से बनी मेज़ छू रहा हूँ और चमड़े से बने सोफ़े पर अपनी उँगलियों में पसीजते पसीने के निशाँ बनाकर छोड़ता रहा रहा हूँ। मैं दरवाज़े तक पहुंच उसे सरका कर बाहर लॉन में ओस से गीली नर्म घास पर खड़ा अपनी आत्मा को तुमसे जोड़ने का प्रयास कर रहा हूँ। तुम यहाँ भी नहीं हो पर तुम यहाँ के कण-कण में व्याप्त हो। समस्त प्रांगण तुम्हारे प्रेम से दमक रहा है। मैं दिक्सूचक बन गया हूँ पर अपनी उत्तर दिशा नहीं ढूँढ पा रहा हूँ। मेरा तीर लगातार घूम रहा है और मुझे नींद के झोंके आने लगे हैं। मैं आसमां की तरफ देखता हूँ तो मेरी आँखें धुंधली हुई जाती हैं, मैं लालायित हूँ, मैं तरस रहा हूँ, मैं अपनी पसलियों को अपनी हथेलियों से थामे खड़ा हूँ और अपने दिल की धडकनों को सीने से बहार निकल पड़ने के लिए संघर्ष करते, दबाव बनाते महसूस कर रहा हूँ। मैं निडर हूँ, फिर भी मेरी हर सांस के साथ एक अनकहा डर सांस ले रहा है।

दुनिया मौन है। मैं पुराने बरगद पर, जिससे तुम्हे बेहद लगाव है, पर पड़े झूले पर औंधा लेट गया हूँ। तुम्हारे होने के एहसास को अपना तकिया बना तुम्हारे सीने पर सर रखकर मैं आराम से लेटा हूँ। पर यह एहसास मेरी मौजूदगी को नकार रहा है। मेरे सपने मेरी हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ कर रहे है। पर मैंने हार नहीं मानी है मैं कोशिश कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे अक्स को इन बाहों में भरता हूँ पर मुझे तुम्हारी अनुपस्थिति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता। मेरा ह्रदय में आज भी तुम्हारे साथ की स्मृतियाँ ताज़ा हैं। मैं तुम्हारी परछाई को इन बेजुबां चीज़ों में छूने की कोशशि कर रहा हूँ और अपने हाथों के स्पर्श से उन अलसाई स्मृतियों को मिटाता जा रहा हूँ। मैं आगे बढ़ एक दफ़ा फिर तुम्हे खोजने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम मुझे चिढ़ाती हो और मेरी आँखें नम हो जाती हैं। तुम ख़ुशी से खिलखिलाकर, प्रफुल्लित हो उठती हो और मैं तुम्हारे प्रेम के गुरुत्वाकर्षण में बंधा चला जाता हूँ। मैं अपने हाथ ऊपर उठा खड़ा हूँ और ऐसा महसूस कर रहा हूँ जैसे इश्क़ की हवा में तैर रहा हूँ और अरमानो के आसमां में तुम्हारी मदहोशी के बादलों में गोते लगता आगे बढ़ रहा हूँ और जल्द ही तुम्हारे करीब, बहुत करीब पहुँच जाऊंगा। मैं इन बादलों से ऊपर, इन वादियों से परे, चाँद सितारों के बीच कहीं किसी ख़ूबसूरत गुलिस्तां में तुम्हारे साथ बैठ बातें करूँगा। यही सोच मैं ख़ुशी से झूम जाता हूँ। मैं अपने वादे से बेहद प्रफुल्लित हूँ। तुम गर्म सांसें छोड़ रही हो, गहरी सांसें भर निःश्वास हो रही हो और तुम्हारा आकर्षण फिर से मुझे तुमसे जोड़ रहा है। आशा, उम्मीद, विश्वास मेरी नसों में खून बनकर दौड़ रहा है और मेरी देह की मिटटी को सींच रहा है। मैं एक दफ़ा फिर से इंतज़ार में बैठा हूँ तकियों को अपने आस-पास जमा किये हुए। अकेला बिलकुल अकेला, ख़ामोशी को पढ़ता और तुम्हारे प्रतिबिम्ब से बातें करता।  में अकेला हूँ सचमुच अकेला।

ऐ मेरे चंद्रमा - शुभरात्रि।
आज रात मेरे लिए कोई अनोखा गीत गाओ।
सुबह के उजाले तक मुझे अकेला इंतज़ार के लम्हों में तड़पता मत छोड़ देना।

#तुषार राज रस्तोगी #कहानी #इंतज़ार

शुक्रवार, जुलाई 24, 2015

दोस्ती - दोस्ती ही रहती है














दोस्ती...

ज़िन्दगी का इम्तिहान है
धैर्य रुपी गरिमा महान है

सच्चे दिलों का ईमान है
धर्म का अद्भुत ज्ञान है

एक साथ मिल हँसना है
एक साथ मिल रोना है

उस प्रेम की तरह होती है
जो कभी बूढ़ा नहीं होता है

गर्म और सुखद रहती है
जब बाक़ी ठंडा पड़ जाता है

'निर्जन' तब भी दोस्ती रहती है
जब जीवन में प्रलय आ जाता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, जुलाई 21, 2015

दोस्ती में मोहब्बत













तेरी दोस्ती गरचे सच नहीं होती
मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई होती

कुछ अपने पशेमान हो गए होते
जो बात ज़बां से निकल गई होती

ग़द्दारों ने सही किया दूर रहे मुझसे
पास होते तो जान उनकी गई होती

'निर्जन' तुझे भी कमज़र्फ़ मान लेता
जो ये दोस्ती पुख़्ता ना हो गई होती

मैं ज़िन्दगी के आज़ाबों में फंसा होता
जो दोस्ती में मोहब्बत ना हो गई होती

गरचे - If
पशेमान - Embarrassed
पुख़्ता - Strong
कमज़र्फ़ - Mean
आज़ाबों - Pain

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक अधूरी प्रेम कहानी

उस रात बारिश में भीगती उस लड़की को देखा। देखने पर तो लगता था वो मुस्कुरा रही है पर सच यही था की वो दर्द था जो उसकी खूबसूरत आँखों से रिसता हुआ उसके गालों को और सुर्ख कर रहा था और फिर बारिश में पानी के साथ गुफ़्तगू करता हुआ अपनी राह को निकल जाता था। वहीं करीब में एक लड़का एकदम खामोश, गुमसुम, खोया हुआ अकेला बैठा अपने अकेलेपन के साथ जद्दोजहद करता हुआ अपने पर रोता नज़र आ रहा था। उन दोनों की पहली मुलाक़ात एक सूनसान सड़क पर हुई थी। यकायक आँखें चार होते ही उनके दिल एक दूजे के लिए धड़कने लगे थे और उन्हें पहली नज़र वाला इश्क़ हो गया था। वो दोनों आपस में आत्मा से जुड़ाव महसूस करने लग गए थे और यह सब इतनी तेज़ी के साथ हुआ जिसकी ना तो उन दोनों को कभी कोई उम्मीद ही थी और ना ही ऐसे किसी हसीं हादसे की उन्होंने कल्पना ही की थी। इसमें बुरा तो कुछ भी नहीं था, क्योंकि अब तो शायद सब कुछ अच्छा ही होना था। उन दोनों को जो भी कुछ चाहियें था वो उन्हें मिल गया था और जो उनके पास नहीं था वो भी आज उनके पास था। उनकी जिंदगियां इश्क़ के अमृत में सराबोर, मीठे गीत गुनगुनाती, बेहद उल्लासित और प्रकाशमय नज़र आ रहीं थी और इस सबके सामने उनकी दिक्कतें, परेशानियाँ और ज़िन्दगी के दीगर मसले बहुत ही छोटे पड़ते नज़र आते थे।

परन्तु यह सब शायद बस कुछ लम्हों तक सीमित था क्योंकि हर वक़्त चाँद सितारों पर होने की कल्पना करना तो बेवकूफ़ी करने जैसा ही होता है और वास्तविकता से परे जीवन जीने का मतलब एक हवा होते सपने में जीने और उम्मीद लगाने से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है। जब जीवन में प्यार जैसा सुखद अनुभव मिलता है तब उससे ज्यादा उत्कृष्ट और कुछ नहीं होता, इससे बेहतरीन जीवन में कुछ और मिल ही नहीं सकता पर इस बात को सभी जानते और मानते हैं जिसे शर्तिया कह सकते हैं कि ज़िन्दगी में अच्छाई का पीछा बुराई कभी नहीं छोड़ती। आख़िर तक दुम पकड़े उसे खाई में धकेलने की कोशिश में लगी ही रहती है। और फिर आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था सब कुछ सही और अच्छा था पर दर्द ने पीछा किया और बिना किसी शक-ओ-शुबा के कहें तो दोनों के दिलों को ख़ाली कर दिया। उन्होंने सोचा था कि उनका इश्क़ और वो परिंदे की तरह आज़ाद हैं पर शायद दुनिया में सही, सम्पूर्ण, दोषहीन, निष्कलंक प्यार जैसा कुछ होता ही नहीं है। ख़ामियों के साथ इश्क़ करना ही परिपूर्ण प्रेम है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जुलाई 18, 2015

एक सपना - एक एहसास

"तुम्हारे बेहद अदम्य, कोमल, नाज़ुक, मुलायम, नज़ाकत भरे हाथों के स्पर्श की छुअन बिलकुल वैसी है जैसी मैं हमेशा से चाहता था और जिनके लिए तरसता था। तुम बहुत ही शरारती इश्क़बाज़ हो और हमेशा मेरे साथ मीठी सी नई-नई शरारतें करती रहती हो जिनके लिए मैं अक्सर अपने आप को अचानक से तैयार नहीं कर पाता हूँ। तुम मुझे अपनी प्यार भरी बाहों में जकड़ लेती हो और मेरे से ऐसे लिपट जाया करती हो जैसे तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ बस मैं ही एक हूँ और जब मैं तुम्हे चूमता हूँ तब भी तुम मुझे हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से विचलित कर देती हो। मैं तुम्हारे दिव्य प्यार को इन होठों की सरसराहट, छुपी हुई कसमसाहट, सिमटी हुई घबराहट और अनकहे कंपन में महसूस कर सकता हूँ। तुम्हारे आगोश में आते ही दिल में बहुत ही उग्र विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु साथ ही तुम्हारे प्रेम की सहनशील स्नेही माधुर्यता, सुखदता और रमणीयता मुझे सहसा ही स्थिर और निश्चल बना देती हैं और तुम्हे मुझसे कसकर लिपटे रहने को बाध्य कर देती हैं साथ ही मेरे मन का एक छोटा सा हिस्सा इस आश्चर्य को मानते हुए मेरे दिल में उठती उमंगो पर क़ाबू पा लेता है जब तुम्हारे जोशीले हाथों का जिज्ञासापूर्ण स्पर्श मेरे तत्व में लीन होने की मनोकामना लिए और अधिक पाने की चाहत करते आलिंगन में इधर-उधर थोड़े पलों में बहुत कुछ तलाशता महसूस देता है। तुम्हारे भोले मनमोहक प्रेम की मोहकता, तुम्हारे व्यक्तित्त्व का तेज़, तुम्हारे गुणों की विशिष्टता, तुम्हारे चरित्र की सौम्यता, तुम्हारी देह की सुगंध, तुम्हारी निकटता की ताज़गी, तुम्हारी मुस्कराहट की मिठास, तुम्हारे अस्तित्त्व की मधुरता और तुम्हरी अंगार सी दहकती साँसों का सान्निध्य मुझे तुम्हारे इश्क़ में दुनिया से बेख़बर होने को मजबूर किए देता है। मेरे दिल के भीतर तुम्हारा भावुक, निर्मल प्रेम मुझे पूर्णता का एहसास करता है, तृप्त करता है, शांत करता है, मेरी बेचैनी और व्याकुलता को संतुष्ट करता है। आने वाले समय में भी मुझे उम्मीद है हमारा प्यार यूँ ही बढ़ता रहेगा और तुम्हारे दिल में मेरे और मेरे इश्क़ की लालसा और तड़प कल भी ऐसी ही बनी रहेगी और आह...! आज एक दफ़ा फिर से दोहराता हूँ कि मैं पूरी तरह अपने तन, मन, वचन से तुम्हारे इश्क़ में गिरफ़्तार हो चुका हूँ। मैं तुम्हारा था, तुम्हारा हूँ और सदा तुम्हारा ही रहूँगा।"

टिंग...टिंग...अभी राज मन ही मन यह सब आराधना से कहने की सोच ही रहा था और अपने ख्यालों में मग्न खोया हुआ था कि लिफ्ट रुक गई और घंटी बजने के साथ ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। एक बार फिर, उसके मन की बात मन में ही रह गई। आराधना उसकी शक्ल देखकर हँस पड़ी और बोली, "कहाँ गुम हो हुज़ूर, किधर खोये हुए हो, घर जाने का दिल नहीं है क्या? मेट्रो स्टेशन आ गया चलो एंट्री भी करनी है।"

राज उसके सवालों को सुनता, चेहरे को निहारता, हाथ थामे मुस्कुराता हुआ साथ चल दिया।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जुलाई 12, 2015

यूं आशार बन जाते हैं



















जब खून के रिश्ते ही दर्द पहुंचाते हैं
तब दिल के ज़ख्म नासूर बन जाते हैं
खून-ए-जिगर भी रोता है ज़ार-ज़ार
रिसते खून से यूं आशार बन जाते हैं

जब अपने ही एहसासहीन हो जाते हैं
अपनों के दर्द से आँख मूँद कतराते हैं
कड़वे बोल भोंक देते हैं दिल में खंजर
दिल के घाव से यूं आशार बन जाते हैं

जब प्यार भरे हाथ साथ छोड़ जाते हैं
तब सरपरस्त ही राहों में भटकाते हैं
दर-ब-दर जब फिरता हैं मारा-मारा
अकेले पलों से यूं आशार बन जाते हैं

जब जन्मदाता बेपरवाह हो जाते हैं
और अपने खून के आंसू रुलाते हैं
हाल-ए-दिल बताएं ये किसे अपना
ऐसे दर्द से यूं आशार बन जाते हैं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जुलाई 11, 2015

पहला प्यार - ज़िन्दगी में कितना ख़ास















पहली नज़र
पहली धड़कन
पहला जज़्बात
पहला एहसास
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली दफ़ा
पहला मौक़ा
पहली कशिश
पहला ख़याल
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला प्यार
पहली माशूक
पहला परिचय
पहली बात
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला ख़त
पहला कार्ड
पहला फूल
पहला उपहार
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली डेट
पहली मुलाक़ात
पहली ट्रीट
पहला साथ
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला इंतज़ार
पहला लफ्ज़
पहला इज़हार
पहला इक़रार
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली गर्मी
पहली बरसात
पहली सर्दी
पहला अलाव
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला स्पर्श
पहला मिलन
पहला चुंबन
पहला अनुभव
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली पहल
सावन में आज 
'निर्जन' करता
दिल की बात
पहले प्यार
का एहसास

ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

ज़िन्दगी में
कितना ख़ास...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जुलाई 08, 2015

तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ













मैं महसूस करता हूँ तेरे हाथों को अपने हाथों में 
मैं महसूस करता हूँ तेरे बदन को मेरे बदन के पास
मैं महसूस करता हूँ तेरे गुलाबी होठों अपने होठों पर
मैं महसूस करता हूँ तेरी साँसों को अपनी साँसों में
मैं महसूस करता हूँ तेरे इश्क़ को अपनी रातों में 
मैं महसूस करता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं सुनता हूँ तुझे कहते कि प्यार हैं मुझसे
मैं सुनता हूँ तेरी फुसफुसहटों में नाम अपना
मैं सुनता हूँ तुझे कहते एक सिर्फ मैं ही हूँ तेरे लिए
मैं सुनता हूँ तेरी धीमी आहों को अपने कानो में
मैं सुनता हूँ तेरी खामोश आवाजों को सोने के बाद
मैं सुनता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं देखता हूँ तू दौड़ कर मेरी बाहों में समा जाती है
मैं देखता हूँ तू सूनेपन में उम्मीद की रौशनी लाती है
मैं देखता हूँ तू मेरे डर को कैसे दूर भागती है
मैं देखता हूँ तू कैसे मेरे आंसू पल में पोंछ जाती है
मैं देखता हूँ तू जब अपनी नज़रों से मुझे देखती है
मैं देखता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं चखता हूँ तेरे नाज़ुक गुलाबी होठों का स्वाद
मैं चखता हूँ तेरी बातों की चहकती मिठास
मैं चखता हूँ तेरे बहकते जूनून का उन्माद
मैं चखता हूँ तेरी मदमस्त जवानी की आब
मैं चखता हूँ तेरे हुस्न की मदहोश पुरानी शराब
मैं चखता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं महकता हूँ तेरी देह की महक के साथ
मैं महकता हूँ तेरे गेसुओं की लहक के साथ
मैं महकता हूँ तेरी हंसी की खनक के साथ
मैं महकता हूँ तेरे जोश में लिपट जाने के साथ
मैं महकता हूँ तेरे इंतज़ार भरे लम्हों के साथ
मैं महकता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं बस तुझे महसूस करता हूँ
मैं बस तुझे सुनता हूँ
मैं बस तुझे देखता हूँ
मैं बस तुझे चखता हूँ
मैं बस तुझसे महकता हूँ
मैं बस इतना करता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जून 28, 2015

किसकी सदा है













किसकी सदा है, ये किसकी सदा
गूंजती है मन में, ये झूमती है तन में
भेदती है आत्मा, तोड़ती है चेतना
धुआं धुआं कर, ह्रदय ये तप उठा
मीठा सा सन्नाटा, हर तरफ फूटता
तन-मन दोनों में, संतुलन है टूटता
अंतर्मन सब, खोने-पाने को मचल रहा
वादियों की कोख़ से, प्रेम रस बरस रहा
उजाला ये कब हुआ, मैं झरनों से पूछता
उत्तर पाते-पाते, ये ह्रदय रहेगा भीगता
रात के उजाले में, चाँद गीत सुना रहा
आसमां के तारों को, धरा पर घुमा रहा
अलसाई कलियों की, थाप सुनाई दे रही
मचलती उमीदें, जाग 'निर्जन' कह रहीं
दिशाएं भी चहक उठीं, आनंद नया पाया
आत्मा और पर्वतों का, दिल भी भर आया
दिन रात तपाया तन-मन को, इश्क़ से तब
बन कंचन प्रेम चमका जीवन के नभ पर
मेरे सूरज ओ मेरे सूरज, अब तू ही बता
ये किसकी सदा है, ये किसकी सदा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जून 24, 2015

ये ज़रूरी तो नहीं














ज़िन्दगी रो रो के बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
आह का दिल पे असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नींद बेपरवाह हो काँटों पर भी आ सकती है
मख़मली आग़ोश हो हासिल ये ज़रूरी तो नहीं

ज़िन्दगी को खेल से ज्यादा कुछ समझा ही नहीं
हर ग़म को मरहम मिल जाए ये ज़रूरी तो नहीं

मैं दुआओं में रब से क्यों मांगू उसको हर रोज़
वो मेरी थी, है औ सदा रहेगी ये ज़रूरी तो नहीं

मेरी दुनिया में बस उसकी ही कमी है 'निर्जन'
परवाह उसको भी मेरी हो ये ज़रूरी तो नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जून 21, 2015

रहती है














लोग मिलते ही हैं औ महफ़िल भी जवां रहती है
वो साथ ना हो तो हुस्न-ए-शय में कमी रहती है

ग़रचे ये नहीं है ख़ुशी मनाने का मौसम तो फिर
जो ख़ुशी मनाऊं भी तो पलकों में नमी रहती है

हर किसी दिल में उफ़नता नहीं सर-ए-उल्फ़त
कुछ दिलों पर सदा गर्द-ए-मायूसी जमी रहती है

इश्क़ मसाफ़त-ए-हस्ती है ज़माने को क्या मालूम
कब तलक किसकी हमसफ़री हमक़दमी रहती है

तू भी उस हूरान-ए-ख़ुल्द पर फ़नाह है 'निर्जन'
जिसके लिए खुदा की धड़कन भी थमी रहती है

सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
गर्द-ए-मायूसी - Trifle of Sorrows
मसाफ़त-ए-हस्ती - Journey of Life
हूरान-ए-ख़ुल्द - Houris of Paradise


--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जून 17, 2015

वो झाँसी की रानी थी



















बनारस में वो थी जन्मी, मनु सबकी दुलारी थी
मोरपंत, मां भागीरथी की, एकमात्र दुलारी थी

पिता छांव में बड़ी हुई, मां क्या है ना जानी थी
वीरांगना बन जाने की, बचपन से ही ठानी थी

हर कौशल में दक्ष रही, बहन नाना को प्यारी थी
राजा संग लगन हुआ, पर हाय भाग्य की मारी थी

सब गंवाकर भी अपना, हिम्मत ना उसने हारी थी
ज्वाला ह्रदय में रखकर, जिगर में भरी चिंगारी थी

सिंहनाद गर्जन कर वो, जब रणभूमि में हुंकारी थी
देह लौह जैसी थी उनकी, कर तलवार कटारी थी

छक्के दुश्मन के छूटे, बन चंडी जब ललकारी थी
शहादत दे अमर हुई वो, जां देश के लिए वारी थी

व्यक्तित्व अनूठा उनका, मन मोम की क्यारी थी
वीर सुपुत्री भारत माँ की, वो लक्ष्मीबाई न्यारी थी  

बुंदेले हरबोलों से सबने, उनकी सुनी कहानी थी
क्या खूब लड़ी थी मर्दानी, वो झाँसी की रानी थी

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, जून 12, 2015

अपना कहते मुझे हजारों में















जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में

जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में

जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में

जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं 
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में

बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जून 06, 2015

दे देते














दिया पानी क्या आँखों का रवानी खून की देते
दिलाती याद उम्र भर निशानी दो जून की देते

जो देनी थी तो होठों की मुस्कराहट ही दे देते
कलाम-ए-पाक रच इश्क़ का तुम साथ दे देते

कोई यादों की नज़्म लिख ज़ुल्फ़ में टांक ही देते
बीते लम्हों की काट कर एक आदा फांक ही देते

छिपाकर दिल में जो संजोये वो एहसास दे देते
तनहा रातों की बेचैनी से भरे वो जज़्बात दे देते

देना ही था कुछ 'निर्जन' जिगर की आग दे देते
दम तोड़ती मोहब्बत का दीवान-ए-ख़ास दे देते

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, जून 01, 2015

हुस्न-ए-मुजस्सम









हुस्न-ए-मुजस्सम बेमिसाल है, तेरी नज़र
ये दरिया-चेहरा बा-कमाल है, तेरी नज़र

ये ज़ुल्फ़ें लब-ओ-रुख़्सार है, तेरी नज़र
बेनियाज़-ए-नाज़ वफ़ादार है, तेरी नज़र

पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है, तेरी नज़र
ख़ुदाया इज़हार-ए-अदावत है, तेरी नज़र

ला-फ़ानी पाकीज़ा अफ़कार है, तेरी नज़र
बा-अदब बेताब-ओ-बेक़रार है, तेरी नज़र

सवाल-ए-विसाल से इनकार है, तेरी नज़र
उल्फ़त-ए-देरीना से इक़रार है, तेरी नज़र

सरापा-ए-मोहब्बत ज़माल है, तेरी नज़र
ज़माना जो देगा वो मिसाल है, तेरी नज़र 

हुस्न-ए-मुजस्सम - Beauty incarnate
दरिया-चेहरा - River face
बा-कमाल - With perfection
लब-ओ-रुख़्सार - lips and cheeks
बेनियाज़-ए-नाज़ - ignorant of pampering
वफ़ादार - faithful, loyal, sincere
पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त - Form of beauty and delicacy, Subtlety
ख़ुदाया - O God
इज़हार-ए-अदावत - Expression of Enmity
ला-फ़ानी - Immortal
पाकीज़ा - Neat, Clean, Pure, Chaste
अफ़कार - Thought
बा-अदब - Respectful, Polite
बेताब-ओ-बेक़रार - Impatient and Restless
सवाल-ए-विसाल - Request for Union
सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
उल्फ़त-ए-देरीना - Love of a long time
सरापा - Delicate figure of a woman


--- तुषार राज रस्तोगी ---



शनिवार, मई 30, 2015

सोशल मीडिया वाले आशिक़







विंडो-ए-चैट में, आया नया बनफूल है,
हाय दिल मचल गया, तो मेरा क्या कुसूर है...

या फिर

मैं तेरा आशिक़ हूँ, तुझसे इश्क़ करना चाहता हूँ,
फेसबुक पर आकर मैं, डूब मरना चाहता हूँ...

या फिर

हम तो चोंचबाज़ हैं, सदियों पुराने,
हाय तू ना जाने, हाय तू ना माने,
हम तो चले आए हैं, तुझको बहकाने,
हाय तू ना जाने, हाय तू ना माने..

या फिर

दिल तो दिल है,
दिल को काबू,
क्या कीजे,
आ गया है,
तुम्ही पर बाबू,
क्या कीजे...

तो मेरे - जॉन जानी जनार्दन दोस्तों यही तो कहानी है आज के युग के ठसबुद्धि, मंदबुद्धि, स्वछंद विचारधारा वाले कुबुद्धिजीवी मनचलों के दिलों की भी।

"अरे...! हमार दिल है तुमसे क्या, तुम पर भी मचल सकता है और देखो तुम्हे भी रेस्पौंड तो करना ही होगा फिर तुम चाहे कोई भी हो, कहीं से भी हो, किसी की भी हो, कोई वांदा नहीं, बस नारी हो ना, यही बहुत है अपने लिए। मैं ना नहीं सुनूंगा - कहे देता हूँ। शीशे में तो तुम्हे मैं उतार ही लूँगा कैसे भी कर के, क्योंकि इतना रसूक और हुनर तो बना ही लिया है यहाँ आकर।"

जी हाँ मेहरबां, बिलकुल यही सोच तैयार हो रही है आजकल के उन नामर्द और दब्बू  सो कॉल्ड सेलेब्रिटी आशिक़ों के बीच जो महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु मात्र समझते हैं और उनका शोषण करने का कोई भी मौका मिलने पर चूकना नहीं चाहते। फिर चाहे ज़रिया कोई भी क्यों ना हों इन्हें सब मंज़ूर है। शर्म, लाज, हया किस चिड़िया का नाम है? ये इन्होंने कभी ना तो सुना ही है ना इसके बारे में जानते हैं। इनको चौबीसों घंटे सिर्फ एक ही हुड़क लगी रहती है "टूट पड़ो" कैसे भी, कहीं भी - बस मिल जाए कोई। हवस की तलब ऐसे जानवरों के ह्रदय में बड़े गहरे में कुलबुलाती है। देह पाने और भोग करने की कसक इनकी सोचने की शक्ति को कसती जाती है । इन जैसों को बड़ी स्वाभाविक और कुदरती चाहत लगती है यह। कई तरह के विरोधाभासी अभावों के गलियारों में ही इनका दिल किलसता, बिलखता, चहल कदमी करता टहलता रहता है, और भूख का कीड़ा कहीं न कहीं हमेशा दिल-दिमाग में रेंगता ही रहता है। इनकी ख़ुमारी का मकोड़ा इनकी बेमतलब हसरतों की खुजली को इतना खरोंचता है कि उसके निशान गाहे-बगाहे इनकी शक्सियत में उभर ही आते हैं। ऐसे लोगों का समूचा तंत्र-प्रणाली सदा बिगड़ा और हिला ही रहता है। इनकी मानसिकता इनके जीवन पर हावी रहती है और हमेशा इनकी जीवन शैली को काम-भोग की इच्छा से प्रभावित करती रहती है। यह एक तरह के मानसिक रोगी होते हैं क्योंकि इनका मन, अस्तित्त्व, चरित्र, चित्त, बुद्धि, अहंकार, अन्नमय कोष, प्राणमय कोष और सोच कुछ भी इनके वश में नहीं होता। सब कुछ इनके हाथ से निकला हुआ होता है। इनके कामुक स्वभाव के भयंकर मनोविकार के ज़लज़ले में इनके विक्षिप्त व्यक्तित्व की चूलें हिल चुकी होती है। यह एकतरफ़ा आग में जलने वाले होते हैं। ऐसे प्लेटोनिक प्रेमी बड़े ही घातक साबित हो सकते हैं। कोई स्त्री यदि इनसे हंसकर बात कर ले तो इनकी इन्द्रियां तुरंत जागृत हो जाती हैं और यह अपने ही बनाए और बुने सपनो के तरंग-भाव के आवेग और आवेश में उड़ने लग जाते हैं। अपनी ही दलदली सोच में गोते लगाकर इनका पाव-डेढ़ पाव खून भी बढ़ जाता है। इनका एकतरफ़ा सो कॉल्ड रोमांस इनकी नज़र में परवान चढ़ने लग जाता है और यह अपने को उम्दा क्वालिटी का आशिक़ प्रोजेक्ट करने के लिए किसी के भी साथ बातचीत में अचानक से वेटिंग फॉर इट, आई वांट टू किस यू, आई लव यू, किस मी, वांट इट, गोइंग फॉर इट, ईटिंग, ईटन, नाऊ इन्सरटिंग, नाउ एजेक्टिंग और भी बहुत सी बेकार वाली अनाप-शनाप बकर-बकर करने लग पड़ते हैं जिससे इनकी दिमाग़ी कामोत्तेजकता शांत होने का एहसास देती है। आचरण के अनुसार कहें तो ऐसे लोगों के मन को अश्लीलता ने ऐसे कब्ज़ा लिया होता है कि शिलाजीत पे शिलाजीत, वयाग्रा पे वयाग्रा सटके जा रहे होते हैं और फिर भी इनके अन्दर अकाल बना रहता है, सूखी रेत से भरे रेगिस्तान में टहलते घूमते फिरते रहते हैं फिर भी - काम नहीं बनता। अजी हुज़ूर समझ जाइए संस्कृत वाला 'काम' - हिंदी वाला नहीं।...  ;)

मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे लोग भीतर से खोखले और शोर करने वाले ढपोलशंख भर होते है। ये सारा जीवन एक मुखौटा पहन कर जीते हैं और ये सारा झमेला, झंझट, अच्छाई का नाटक, नौटंकी बस बिस्तर तक पहुंचने की ही कवायद है। कोई यदि इनसे बात करता है या दोस्त बनता है तो वो अपने मन को और खुद को ही बेवकूफ बनाता रहता है इनके जैसों की दोस्ती के नाम पर। वो समझ नहीं पाता कि यह पाखंड की गहरी साज़िश है, एक मासूम इंसान को बहकाने के लिए और उसकी मासूमियत से खिलवाड़ करने के लिए। मैं यह कहता हूँ कि यदि अंत में यही सब करने की मंशा होती है तो फिर इतना ड्रामा क्यों करते हैं बड़े मियां - जिगरा है तो खुल्लमखुल्ला अभिव्यक्ति कीजिये - इश्क़-रोमांस, अच्छाई-भलाई की बीमारी को एक साइड कीजिये और हिम्मत हौंसले के साथ अपने विचार सबके सामने रखिये। बिलकुल प्यार और दोस्ती की वही ख़ूबसूरत सी बीमारी जो अक्सर पागलपंती में तब्दील हो जाया करती है और जिसकी धज्जियाँ ऐसे लोग अपनी अहमकाना हरकतों उड़ाते हैं, जिन्हें ना तो इश्क़ का मतलब मालूम होता है ना दोस्ती का। असल ज़िन्दगी में तो फिर बड़े ही सड़ियल और अनरोमांटिक नेचर वाले होते होंगे ये - तो काहे बेकार में इतनी शेरो-शायरी करते हैं, कविताबाज़ी करते हैं, दिल जलाते हैं, किताबें छपवाते हैं, गाल बजाते हैं - साला पहले पता हो एंड रिजल्ट ऐसा निकलता है असल में तो इन जैसों को सीधा शुरू से 'बीड़ी जलाइले जिगर से गधे, जिगर मां बड़ी आग है ' और 'कभी कैच किया रे कभी छोड़ दिया रे' सुनकर जुतिया जाए और सर गंजा कर दिया जाए मार-मार कर।

इनके पास माया है, मोहिनी भी और ज़माने के सामने निजी जीवन में ये उनके नटखट हीरो बनकर रहते हैं पर वहीँ इनके भीतर तड़पता रहता है एक बड़ा सा अजगर जो किसी की भी सुन्दर-औसत तस्वीर, गोरी-काली-भूरी चमड़ी, मनमोहक आवाज़, खिलखिलाती हंसी, नव यौवन, मध्य आयु, अधेड़ उम्र की औरत फिर चाहे वो अकेली हो, किसी की बहन, बीवी, बेटी, माँ, भाभी आदि कुछ भी हो को अपने झांसे में लेने की फ़िराक में रहता है, निगलने की मंशा के साथ अपने मद की प्यास में लिप्त, चिपचिपी लार बार-बार, लगातार हर जगह टपकाता रेंगता फिरता है। उसकी निगाहें अपने शिकार को हर पर तलाशती रहती हैं और इसी ताक़ में रहती हैं कब, कैसे, किस तरह उसे अपने चंगुल में जकड़ कर दबोच सके। समाज के बीच वो एक प्रतिष्ठित पुतला बनकर निवास करता है, परन्तु अकेले में वो एक आदमखोर होता है जो सिर्फ औरतों को अपना शिकार बनाता है। आजकल की सोशल मीडिया टेक्नोलॉजी ने ऐसे आदमज़ात भेड़ियों का काम और भी आसां बना दिया है, फिर चाहे लिंक्डइन, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर आदि कोई भी माध्यम हो महिलाएं बदतमीज़ी, शाब्दिक शोषण, बदसुलूकी, फितरेबाज़ी और भी ना जाने कौन कौन से तरीकों की परेशानी से अछूती नहीं रही हैं। हर पल दस में से नौ गिद्ध उन्हें दबोचने के लिए जाल बिछाए बैठे रहते है। दोस्ती करने के नाम पर अश्लीलता, फूहड़ता, निजी ज़िन्दगी में तांक-झाँक, शारीरिक लिप्सा, मानसिक शोषण और ऐसे ही कितने तरीको से उनकी आत्मा को आहत किया जाता है। कुछ तो यह सब ख़ामोशी से बर्दाश्त कर लेती हैं और कुछ विद्रोह कर ऐसे समाज के सम्माननीय लफंडरों का पर्दाफ़ाश करती नज़र आती हैं। मुझे गर्व होता है उन वीरांगनाओं पर जो ऐसी घटनाओं के पश्चात अपनी आवाज़ बुलंद करती हैं और ऐसे सामाजिक कीड़ों को उनके अंजाम तक पहुंचाती हैं।

यह एक बेहद गंभीर और चिंता का विषय है और मेरा ऐसा मानना है कि इसके लिए हम सबको मिलकर आवाज़ उठानी चाहियें और आगे ऐसी घटनाएँ कम से कम देखने-सुनने में आयें उसके लिए कुछ कड़े कदम उठाने चाहियें। जो लोग महिलाओं के साथ ऐसा अभद्र दुर्व्यवहार करते हैं उनका सोशल मीडिया से तो बहिष्कार करना ही चाहिए, उनका मुंह काला कर खच्चर पर सवारी करा कर, जूतों का हार पहना कर, काँटों से ताजपोशी कर सारे नगर में भी घुमाना चाहियें और ख़ास तौर पर उनके अपने परिवारजन के सामने उनका असली चेहरा लाकर उन्हें सरेआम नंगा करना चाहियें जिनकी आँखों में धुल झोंक कर वो आज तक ऐसे काम करते आए हैं। अभी कुछ समय पहले मैंने ऐसे ही पहलु पर चिंता व्यक्त करते हुए एक कविता का सृजन किया था वो आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ मेरे इस लेख और कविता से कुछ प्रतिशत महिलाओं में तो जाग्रति का संचार होगा और वो अपने साथ होने वाली ना-इंसाफी और ऐसा ओछा व्यवहार करने वाले के खिलाफ मोर्चा खोलती नज़र आएँगी।

कविता पढ़ने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें :

http://tamasha-e-zindagi.blogspot.in/2015/04/blog-post_13.html

सोमवार, मई 25, 2015

सज़ा



















आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
पुरानी हर याद-बात भुला दी मैंने

बातें जिनपर वो खिलखिलाती थी
ज़हन से अल्फ़ाज़ मिटा दिए मैंने

बीता हर पल दफ़न कर दिया मैंने
गुलदस्ता यादों का जला दिया मैंने

दिल ये फिर खाख से आबाद हुआ
आतिश-ए-दिल को जला दिया मैंने

यादों की मज़ार पर फिर आई थी वो
मुंह फेर अजनबी उसे बना दिया मैंने

रिश्ता कोई नहीं दरमियां बाक़ी 'निर्जन'
एक नया रिश्ता ख़ुशी से बना लिया मैंने

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, मई 09, 2015

उस रोज़












मुस्कुराते गुलाबों की महक वैसी ना होगी
तेरी शोख हंसी की खनक वैसी ना होगी

तितलियों जैसी शोख़ी तेरी वैसी ना होगी
ख्व़ाब लिए नैनों की चमक वैसी ना होगी

तेरी मीठी बोली की चहक वैसी ना होगी
अल्हड़ जवानी की छनक वैसी ना होगी

उस रोज़ तू होगी मगर ऐसी तो ना होगी

चांदी जैसे बालों से सर तेरा सजा होगा
दमकते चेहरे पर सिलवट का समां होगा

करारी इस बोली से गला तेरा रुंधा होगा
सूरज सी निगाहों पर चश्मे भी जमा होगा

तेज़ क़दमों में तेरे सुस्ती का आलम होगा
थक कर चूर पसीने में भीगा दामन होगा

उस रोज़ तू होगी मगर शायद ऐसी होगी

मगर उन सिलवटों में नूर तेरा यही होगा
ढ़लती आँखों में भी जवां इश्क यही होगा

सुस्त कदम सही मुझ तक ही आना होगा
गला रुंधा सही मुझे से ही बतियाना होगा

दिल से देखा सपना मेरा तब भी पूरा होगा
सांझ ढले मेरे हाथों में बस हाथ तेरा होगा

उस रोज़ भी तू ही होगी साथ तेरा मेरा होगा
तेरा और मेरा यह अब जन्मो का नाता होगा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, अप्रैल 25, 2015

"हम" - एक सूर्योदय

इस तेज़ी से विकसित होती संभ्रांत और शिष्टाचारी नस्ल में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिन्हें रोज़मर्रा की बोलचाल वाली ज़िन्दगी में यदा-कदा ही तवज्जो मिलती होगी। ऐसे असंख्य वचनों की श्रृंखला में कुछ ऐसे भी होते हैं जो दिल को छू जाते हैं और अपने वशीभूत कर मोहित कर लेते हैं। प्राय: उन्हें हम बातों में एक आदत के रूप में प्रयोग तो करते हैं परन्तु उनके कारण जीवन में उत्पन्न होने वाली सृजनात्मक शक्ति और उर्जा को कभी पहचान नहीं पाते। मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे शब्दों के महत्त्व को उजागर करना बेहद ज़रूरी है, उनमें से दो शब्द 'मैं' और 'तुम' हैं - जब ये दो एक साथ मिलते हैं तब एक एतिहासिक, ओजस्वी, विकासशील और अपनत्व से लबरेज़ शब्द की रचना होती है जिसे कहा जाता है - 'हम'...

"हम" वैसे हौले से बुदबुदाये 'अगर' से ज्यादा कुछ नहीं है। या फिर काले घने अंधकार में बने धुंए के छल्ले की तरह है। यह पानी के होंठ पर उफ़नते साबुन के बुलबुले की भाँती है
यह तार्रुफ़ के नक़ाब के ज़रिए से स्पर्श और अनुभव करती चमकदार चमचमाती आँखें और लजाती उँगलियाँ है। "हम" पास-पास पर अलग-अलग, मगर फिर भी एक साथ, कंधे से कन्धा मिलाकर दौड़ती अलैदा क़िताबों का, गलियारा है, जो कभी एक दुसरे को पुकारते नहीं हैं परन्तु फिर भी एक दूजे की गूँज की अनुगूंज के कंपन में अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। "हम" वो अजनबी है, जो अनजान होकर भी किसी के लिए अपरिचित नहीं है। एक परतदार कागज़ के टुकड़े पर अस्पष्ट लिखे वादे की तरह जिसे रात के अंधरे में दरवाज़े की दरार के बीचो-बीच धीरे से खिसका कर दुबका दिया गया है।

हमारे दरमियां आनंददायक चमकदार इन्द्रधनुषी संभावनाओं का सजीला संसार पनप रहा है, हमारी सजग आँखें स्पष्ट रूप से एक दुसरे के इर्द-गिर्द नृत्य का आनंद प्राप्त कर रही हैं। हमें एक ऐसे कमरे में धकेल दिया गया है जहाँ सूरज की किरणों की धुल छन-छन कर चहक रही है, होठ हथेलियों का रूप बना दुआ कर रहे हैं, उँगलियाँ सियाह काले गहरे तेल के छल्लों में फँसी हैं और धुंधले पड़ते गड्ढेदार गालों को तलाश रही हैं। शब्दों और शब्दांश के घुमावदार चक्रव्यू से भविष्य उधड़ रहा है, क्षणभर में सब कुछ बिख़र जाता है और हम सोचते हैं, हमें सब ज्ञात है कि हमारी ज़िन्दगी कहाँ, कब और कैसे आगे जाएगी।

हमारा पूरा वजूद एक परछाई के आगे छलांग लगाने की कोशिश में लगा है वो भी एक ऐसी शक्ति के साथ जो हर उस चीज़ को रौंदकर आगे बढ़ जाएगी जिसे कभी हमने सच समझा होगा। हमें अभी भी हमारे पैर नहीं मिले हैं लेकिन हम दोनों एक साथ उन्हें तलाश करने में जुटे हैं, लड़खड़ाते लुढ़कते कमज़ोर घुटनों और छिलते-छिपटे-चिरते टखनों के साथ ठोकरें खाते हुए, हँसते हुए उन्हें एक साथ खोज रहे हैं क्योंकि इसमें ना तो कुछ नया है और ना ही कुछ पुराना। हम तो बस अपने मिज़ाज, मनोभाव, धड़कन, नब्ज और नाड़ी के स्पंदन को दर्ज कर रहे हैं और उन्हें पूरी रात नाचने के लिए पुनरावृत्ति पर रख रहे हैं।

और अचानक, समस्त संसार में सबसे ख़ूबसूरत लफ्ज़ है 'यदि'... यकायक, सबसे आकर्षक, उत्कृष्ट, दिव्य, रमणीय शायद समूचे विश्वलोक में "हम" है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---