शनिवार, दिसंबर 29, 2012

काश! वो जी पाती

सुबह सवेरे उठकर रोज़मर्रा की दिनचर्या के बाद जब लैपटॉप खोल कर बैठा और फेसबुक खोला तो धक् रह गया | हर तरफ़ा एक ही खबर थी के 'रेस्ट इन पीस् दामिनी' | तब पता चला के वो लड़की जिसके साथ अत्याचार हुआ था, वो ब्रह्मलीन हो गई  | खून में पढ़ते ही उबाल आया | दिल तो किया के उन दरिंदों को जिन्होंने यह काम किया है वही सज़ा मिले जो इस फूल सी बच्ची को मिली है | सरे बाज़ार बीच चौराहे पर मुह कला कर के, नंगा कर के उनके पिछवाड़े में भी गरम गरम दहकता हुआ सरिया डलवा देना चाहियें जिससे उन्हें भी ये एहसास तो हो जाये के दर्द किस चिड़िया का नाम है | परन्तु फिर आक्रोश और गुस्सा दोनों हताशा और निराशा में तब्दील हो कर धीरे धीरे शांत होते चले गए | सोचा घर बैठ कर चुप चाप फेसबुक पर स्टेट्स अपडेट करने से या फिर आपस में बात करने से क्या होने वाला है ? यही सोचने लग गया | क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उसके लिए ? कुछ नहीं बस कुछ नहीं होगा अब | एक और केस बन कर रह जायेगा यह कांड भी | सरकारी दफ्तर में सालों दर सालों धुल में लिपटी पड़ी होगी उसकी फाइल और जो मुजरिम हैं वो मौज ले रहे होंगे |

फिर ख्यालों में रह रह कर एक और बात आती है के अब सिर्फ मौन रहकर या फिर मोम बत्तियाँ जलाकर, या मुह पर काली पत्तियां बांधकर, या सत्याग्रह करने से कुछ हस्सिल नहीं हो सकता | जिस तरह पिछले दिनों इंडिया गेट को जलियांवाला बाग बनाया गया उसको देखते तो आज क्रांति की ही ज़रूरत है | हाथ में मशाल लेकर आज ऐसी भ्रष्ट और नंगी सरकार को फूँक देने का समय है | जिस सरकार राज मैं  नारी का कोई अस्तित्व नहीं, कोई गरिमा नहीं, कोई सुरक्षा नहीं जबकि कहने को तो इस सरकार की मुखिया भी एक स्त्री ही है और फिर भी नारी के प्रति कोई पीड नहीं है उसके मन में | तो ऐसी सरकार का क्या अचार डालना है | गिरा दो ऐसी सरकार को, भस्म कर दो ऐसी दोगली मानसिकता वाली सत्ता की पुजारिन को |

बात भले ही ज़रा तीखी लग रही हो और काल्पनिक भी परन्तु आज भारत फिर से गुलामी की कगार पर है | किसी समय मैं ऐसा वीभत्स शासन मुग़ल और अंग्रेजो द्वारा किया गया था | वही समय आज फिर से लौट आया है | आज एक फिरंगी महिला अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए देश को दीमक की भांति धीरे धीरे अंदर से खोखला कर रही है और हम उससे बर्दाश्त कर रहे हैं और तमाशा भी देख रहे हैं और ताली भी बजा रहे हैं | यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से रोज कहीं नहीं कहीं खून की होली खेली जायेगी, अस्मतें लूटी जाएँगी और अराजकता का नंगा नाच होते देर नहीं लगेगी |

आज जागने का समय है | वो जिसे कहते थे दामिनी, वो जिसे कहते थे अमानत या निर्भया वो तो चली गई पर हमें जागने को कह गई | एक और लक्ष्मीबाई लड़ते लड़ते आज शहीद हो गई पर ज़ुल्म के आगे झुकी नहीं |  किसी भी स्त्री के साथ ऐसा दुर्व्यवहार न हो, कोई और दु:शासन पैदा ही न हो जो नारी का चीर हरण कर सके, उनके सम्मान को गरिमा को चोट पंहुचा सके | अब वक्त है जब की इन भेड़ की खाल में बैठे भेड़ियों को जड़ समेत उखाड फेंका जाये | खत्म कर देना चाहियें ऐसे नामर्द सोच वाले रंगे सियारों को, सरेआम सज़ा मिलनी चाहियें ऐसे सपोलों को जो अपना ही नहीं अपने माता पिता और देश दोनों का नाम खराब करते हैं |

मेरा ऐसा मानना है के यदि इंसान बेटे की कामना करता है, तो उससे जिंदगी के बुनयादी पाठ भी सिखाए | नारी जो एक माँ है, बेटी है, बहिन है, साथी है, दुर्गा सरस्वती का स्वरुप है  उसकी इज्ज़त करना भी सिखाए | उसे यह भी समझाना और एहसास करना चाहियें के समय आने पर नारी काली, कपाली और चंडिका का रूप भी धारण कर सकती है | अथ: उससे कमज़ोर समझने की गलती कभी न करे | और अपनी सोच पर काबू रखें |

बस ईश्वर से अब यही प्रार्थना है के उस बच्ची की आत्मा को शांति प्रदान तब हो जब उसके गुनाहगारों को उसी के जैसी सज़ा मिले और उसके परिवारजन को यह दुःख बर्दाश करने की शक्ति प्रदान करें और लड़ने की भी जिस से वो अपने इस अपमान के इन्साफ के लिए लड़ाई जारी रख सकें |

भगवान हिंदुस्तानियों को अब तो अक्ल दे और सोचने समझने की शक्ति दे | आँखें नम हैं और दिल में विद्रोह की भावनाओं के साथ यही विश्राम देता हूँ | बस यही आखरी भावना आती है मन मैं मेरे

काश! वो बच्ची बच जाती और ठीक होकर अपनी जिंदगी जी पाती....काश!

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

दहेज़

हमें मिटाना है इस देश से दहेज़ का नामो निशान
क्योंकि इससे होती है मानवता बदनाम
जब वधु सुसराल में आती है
शुरुवात में वो बहुत सुख पाती है
फिर जब शुरू होते हैं उसके दुःख के दिन
अपमान, यातनाएं, शोषण वो पाती है
रोज़मर्राह की जिंदगी उसकी नासूर बन जाती है
फिर जब जाती है पुलिस और कोर्ट में वो
मुकदमा दायर करती है
अमानवीय व्यव्हार का सामना
वो वहाँ भी करती है
डरकर और चालाकी से फिर
वही सुसराल वाले
प्यार से उससे बुलाते हैं
सर को भी सहलाते है
घर वापस भी बुलाते हैं
फिर सुसराल वापस जाकर वो
घुट घुट कर जीते हैं
कुछ दिन सुखमय बीतते हैं
फिर वही कलह को पीती है
मर पिटाई गाली गलोच में
हर पर कुढती रहती है
झेल दुःख के पल कुछ और समय
वो षड्यंत्र का शिकार हो जाती है
मूक बधिर कमज़ोर बकरी की भांति
कसाई के हाथों मर जाती है
या जला दी जाती है 

गुरुवार, दिसंबर 27, 2012

भारतीय नारी

ये कविता लिखी गई थी मेरे शुरुवाती शिक्षा के दिनों में | स्कूल मैगज़ीन के लिए मेरा छोटा सा प्रयास था यह उम्मीद भी नहीं थी के यह प्रकाशित होगी परन्तु करिश्मा हुआ और मेरी कविता को छपने का मान मिला | इसलिए आपके साथ आज इसे साँझा कर रहा हूँ |

मुझसे पुछा किसी ने
क्या बताओगे तुम मुझे
मेरी कविता का क्या है विस्तार ?
मेरी कविता का कौन है आधार ?
व्यक्तित्व सम्मोहक
स्वाभाव में शीतलता
अस्तित्व जिसका ममतामयी
छवि भावनात्मक
हृदय में केवल प्रेम, प्यार और दुलार है
काया जिसकी कोमल
एहसास जिसका निर्मल
अपने में परिपूर्ण
चाहत और स्नेह का
जिसके पास भंडार है
जो औरों को समर्पित
जिसके अंचल में बचपन
बाहों में सुन्दर जवानी
जीवन के अंतर्गत में
इन आँखों का मायावी संसार है
क्रोध में ज्वाला
आंसू में शक्ति है
गरिमा मन सम्मान बनाये रखने के लिए
जो हर एक क्षण तलवार है
संसार में इतनी उत्क्रष्ट छवि
जो सचमुच ही महान है
बलिदानों की मूरत है
सत्य का पर्याय है
वो सिर्फ भारतीय नारी है
ऐसा मेरा विचार है 

Cable Mania

This is one poem from a old poetry hamper of mine when i was in school. That time Cable TV was introduced in the Indian market and the year was 1991 or 1992 i hardly remember it now. But i was really happy to have cable t.v at my home. I wrote this poem that during that time only. I hope it will help you recall your past days when you also like to enjoy the cable t.v and the teleserials. 

Has Cable TV really brought 
Entertainment and Fun
Let's peep into a house
Where Cable TV has just come
Oh Dear! Everyone is irritated
At Papa's love for 'BBC'
Didi wants to watch 'Channel V'
Dadi wants to make Pakwans with 'Khana Khazana'
Oh my! This Cable TV has driven everyone 'Deewana'
Mamma is afraid to see horror show in 'Raat'
But now Bhaiya always says 'Banegi Apni Baat'
There are quarrels and shouts
And now there is no 'Shanti' in the house
Books are waiting in their stand
Poor remote control jumps from hand to hand 
Now who will decide, if 
This Cable TV is a boon or a curse on this land

What are you ?

On the walls of many American walls hangs a plaque commemorating the statement of the late President John F. Kennedy: 

"Ask not what your country can do for you, But ask what you can do for your country"

This statement appeared in an article written by Khalil Gibran in Arabic, over fifty years ago. The heading of this article can be translated either as " The New Deal" or "The New Frontier". Gibran's words when translated from Arabic into English are as follows: 

"Are you a politician asking - What your country can do for you or A zealous one asking What you can do for your country".

If you are the first, then you are a Parasite;
If you are the second, then you are an Oasis in Desert. 

शर्मा से शर्मना नहीं

परीक्षा में नक़ल करते एक छात्र को
अध्यापक ने पकड़ा
हाथों में जकड़ा
फिर घुर्रा कर कहा
बदमाश नकल करता है
शर्म नहीं आती
पढाई के वक्त मरता है
हाथों से कापी ली झपट
लिखने लग गए रपट
छात्र ने पहले अपना नाम
फिर अपने पिताजी का नाम
बतलाया
अध्यापक चूँकि था शर्मा
इसलिए
पीछे शर्मा लगाया
शर्मा सुनकर
पहले अध्यापक घबराये
फिर
मुस्कराए और बोले
अरे तो तुम्ही हो
उन शर्माजी के लाल
जिनके हैं
दो कारखाने
तीन फक्ट्रियां
और
चार हैं निजी अस्पताल
तुमने मुझे
पहले क्यों नहीं बताया
माफ़ी चाहूँगा बहुत
समय गंवाया
लो बेटा किये जाओ नक़ल
अब न दूँगा मैं कोई दखल
कुछ चाहियें तो बतला देना
हिचकिचाना नहीं
शर्मा होकर
शर्मा से शर्मना नहीं...


मंगलवार, दिसंबर 25, 2012

जब प्रथम दिवस का कर्म हुआ

हे जीवनदाता
जब तुम्हारे
कर्म को
ज्ञात मैं
करता हूँ
एक असीम
आनंद को
प्राप्त होता हूँ
क्योंकि
सोचता हूँ
गति ही
जीवन है
गतिविहीन जल भी
सड़ जाता है
ये, तो
जीवन है
इसका
ठहरना
रुकना
मेरे लिए
शायद
मरण की
तारिख
लेकर आएगा 

सोमवार, दिसंबर 24, 2012

अंदर से कुछ टूट रहा है

अंदर से कुछ टूट रहा है
अपनापन अब छूट रहा है
कहते थे जिनको हम अपना
रिश्ता हर वो मूक रहा है
हालातों की बलि वेदी पर
अरमानो का खून बहा है
मानवता की गरिमा कर छिन्न-भिन्न
इंसान रिश्तों पर थूक रहा है
दुखी ह्रदय से कहता है "निर्जन"
अश्रु बन यह फूट रहा है
अंदर से कुछ...

एहसास मर गए

आज कुछ और
एहसास मर गए
जो बचे थे अरमान
वो भी कुचल गए
दिल में जगे जज़्बात
चिता चढ गए
अब उम्मीद क्यों करें
किसी से 'निर्जन'
जो कहने को थे अपने
वो किनारा कर गए
आज कुछ और
एहसास मर गए

सृजनहार

हे सृजनहार
क्या तूने
मेरी स्मृतियों
का भी सृजन
किया था
या फिर, मुझे
कठपुतली को
एक वेष में
एक रूप में
बार बार
जीवन के
रंगमंच पर
एक सा अधूरा नाटक
करने को
छोड़ दिया
क्या टू
अपनी सभी
कठपुतलियों को
शरीर से नहीं
आत्मा से
भेदन करने को
छोड़ देता है
उस पीड़ा का
शायद तुझे
अहसास नहीं
तभी तो
एक बार नहीं
बारम्बार
सूली पर
लटकाया है
तूने मुझे
जबकि
येशु भी
एक बार ही
सूली पर
लटके थे
हे ईश्वर
मेरे पहले रंगमंच का
अनायास ही मिलना
फिर दूसरे का
जिसकी मुझे
मिलने की कोई
आशा नहीं थी
और न ही स्वप्न
मिला है
कुछ छिन्न-भिन्न सा 

शनिवार, दिसंबर 22, 2012

Victory or Defeat


















A poem again from my old school days written during the times of Kargil War. Enjoy!

Victory, Victory, Victory
An all round victory - says Atal
A moral victory - says Nawaz 
A marvellous triumph - says Technology
but behind this jubiliations, weeps 
Mankind - desperate in the utter defeat.

Ask the mother - 
Yesterday, with hopes of life in her lap, 
Today, nurses the bodies of dead.

Ask the innocent child - 
Yesterday, the spark of happiess, 
Today, alone in the chilly darkness of fear.

Ask the man whose loyalties pledged - 
Yesterday, a father, a brother, a husband, a son, 
Today, lies unknown, admist unknowns.

Can you return their laughter, their hopes, 
Their precious lives, those dreams you stole?
Wash the blood stains with acid or alcohol?
Wash the tears with perfumed Arabian Kohl ?

When vanity, greed and ambition don the mantle of righteousness
When leaders drunk with power
Forget their roots, their fellomen
When weeds of death cover the garden of life
There in every land, in every heart looms
The dark cloud, the black hand of 
Defeat, Defeat, only Defeat!

कोई तो आंसू पोछ दे

बधाई हो दिल्ली वालो....साउथ दिल्ली में अब विदेशी लड़की से गैंग रेप
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चलती बस में गैंग रेप पर इतने हो-हल्ले के बीच देश की राजधानी में एक विदेशी लड़की से गैंग रेप की वारदात हुई है। पीड़ित लड़की अफ्रीकी मूल की बताई जाती है। गैंग रेप की वारदात शुक्रवार रात साउथ दिल्ली में मालवीय नगर इलाके के हौजरानी में हुई। खबर मिलते ही दिल्ली पुलिस के आला अफसरों में हड़कंप मच गया।

रात को ही पीड़ित लड़की को मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। बताया जाता है कि युवती के प्राइवेट पार्ट्स में गहरी चोटें आई हैं। डीसीपी छाया शर्मा के मुताबिक, 'युवती से ठीक से बात नहीं हो पा रही है। उससे बात करने के बाद ही सही स्थिति का पता चलेगा। लड़की की भाषा समझने के लिए उसके साथियों को बुलाया गया है। वह यदि रेप का बयान देती है तो उसी हिसाब से ऐक्शन लिया जाएगा।'

अभी हाल में हुई इन घटनाओ के क्रम से दिल भर आया है और सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ के दिल्ली में यह क्या होता जा रहा है ? दिल्ली वालों की मानसिकता कहाँ जा रही है ? नारी का कोई अस्तित्व इन जैसे लोगों की नज़र में कुछ रह भी गया है या नहीं ? ऐसे दरिंदे समय आने पर अपनी भूक के लिए क्या अपनी माँ बहनों को छोड़ेंगे ? नारी का ऐसा अपमान ऐसा तिरस्कार कब तक होता रहेगा दिल्ली में ? प्रशासन मूक और बधिर बनी क्यों बैठी है ? यदि यह आज का कलयुग है तो आने वाला कल का कलयुग कैसा होगा ? क्या नारी दिल्ली जैसे शहर में सच में सुरक्षित है ?  इन्ही सवालों से जूझते हुए चंद पंक्तियाँ मेरे ज़हन में आई जो आपके समक्ष प्रस्तुत है | 

श्याम और श्वेत जैसे 
दिल्ली की नारी का जीवन 
हर तरफ से वीरान है  
रंग नहीं 
रौशनी नहीं  
बस धुंधला आसमान है 
ध्वनि नहीं 
शोर नहीं 
संगीत भी अनजान है    
मुस्कराहट नहीं 
धडकन नहीं 
हास भी तूफ़ान है  
पड़ी धरा पर है अकेली 
कितनी निष्प्रभ, कितनी गहरी 
दर्द में सिसकती रही 
रुदन सुनकर भी उसका 
आया अब कोई नहीं  
रोती रही 
बिलखती रही 
आया नहीं कोई पूछने 
काश आगे आये बढ़कर 
कोई तो आंसू पोछ दे 
कोई तो आंसू पोछ दे 

Friendship

This quote comes from my old school days diary. May be i must have noted it down in around 90's. 

Friendship is the only 'Ship' with which one can reach other's thoughts and dreams. It is a two way street; if it 's not fed from both sides, it will atrophy. To dissolve loneliness we need friends and to have friends we need humility. A friend is not an object to be possessed but a subject to be cherished.

गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

जीवन आंकलन

एक २३ वर्षीय सुन्दर युवती
दिन के उजाले में
जिसकी आँखें सूर्य के समान चमकती हैं
जिसकी हंसी से
सारा जग रोशन हो जाता है
जिसके अनेकों दोस्त है
जिसे पागलों की तरह चाहने वाला
एक प्रेमी है
किसी दिन वो भी ब्याह के
एक बड़ी घर में जाने का सपना संजोये है
जिस तरह वो अपने पिता के घर में
उनके साये पली बढी है
एक दिन वो अपनी पढाई पूरी कर
अपनी मनपसंद नौकरी करना चाहती है
या फिर अपनी पढाई पूर्ण कर
एक सजीले नौजवान के साथ
अपना जीवन व्यतीत करना चाहती है
जिसके साथ वो सदा सुखी रहे खुश रहे
उसके खूबसूरत संतान हो
और वो उन्हें पूरे दिल से चाहे
समय बीतने के साथ वो दादी बने, पड़दादी बने
और जब अंतिम समय आये
तब वो शांति के साथ
अपने प्यारे जीवन साथी के पास लेटे हुए
पञ्च तत्व में विलीन हो जाये
यही एक स्त्री की संपूर्ण जिंदगी की सोच होती है

इसके विपरीत पीड़ित

एक २३ वर्षीय युवती
चांदनी में चमकती सर्द रात में
रुदन करते हुए
अपनी तरह टूटी हुई और
मिथ्या मुस्कराहट लिए
एक दम अकेली
कुछ अनजान दरिंदों के बीच
एक अनिश्चित मानसिकता के साथ
संघर्ष करती है
अब वो बड़ा घर एक खालीपन से
भर गया है
सपने चूर चूर हो गए हैं
समाज में दूसरों की मुस्कराहटों को देख
उससे अपनी पुरानी जिंदगी का एहसास होता है
अब कोई राजकुमार नहीं है
जिसे वो सब कुछ सौंपना चाहती थी
जो उससे छिन गया है
उसके वो सुन्दर बच्चे अब नहीं होंगे
अब उसका वो चकना चूर दिल
कभी जुड नहीं पायेगा
वह अपनी माँ से कभी कह नहीं पायेगी
के उनकी वो परिपूर्ण और निपुण बेटी
हमेशा के लिए कहीं खो गई
वह सदा के लिए समाप्त हो चुकी है
अब सिर्फ एक शव समान रह गई है
उन लोगों ने उससे सब कुछ छीन लिया
और अब वो एक परछाई है जो कभी वो हुआ करती थी
उससे सब कुछ छिन्न चुका है
उसकी मुस्कान, उसकी जवानी और उसकी संपूर्ण जिंदगी

बुधवार, दिसंबर 19, 2012

रात के कुछ लम्हे

रात के कुछ लम्हे हैं 
जिन्हें भुलाया नहीं है 
दफनाया भी नहीं है
जो छूट गए हैं 
माज़ी की यादों में
या छोड़ दिए हैं  
उन गुज़री राहों पर 
जिन पर साथ चले थे कभी 
किये थे कुछ कसमे वादे
भूल गए जो अब हम तुम ..

रात के कुछ लम्हे हैं 
जिन्हें बनाया नहीं है 
सजाया भी नहीं है
जो शामिल होंगे शायद 
कल की उन यादों में 
जो बन सितारे बिछ जायेंगे 
आने वाली रातों में 
जिन राहों पर साथ चलेंगे हम तुम 
लेकर नई आशाएं ...

बलात्कार

दिल्ली में घटित एक घिनोनी घटना पर मेरा रोष कुछ इस तरह ज़ाहिर हो रहा है ।

बलात्कार
एक दहशतपूर्ण शब्द
एक डरावना सच
पर जब यह किसी के साथ घटता है
तब और भी ज्यादा भयानक, दहशतपूर्ण और डरावना
बन जाता है

आप सबने इससे फिल्मों में होते देखा होगा
लड़का लड़की पार्टी में मिले
कुछ जाम छलके
दोनों नशे में धुत्त
लड़का लड़की को बहला कर ऊपर ले गया
लड़की नहीं चाहती थी
पर लड़के को इससे कोई मतलब नहीं था
उससे बस वही करना था जो वो चाहता था

मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहता
के ऐसा नहीं होता
क्योकि यह सब होता है
असलियत में भी
पर हर दफा यदि वो आपका कोई करीबी, दोस्त या मंगेतर हों तब ?
जो आपसे बदसुलूकी करता है
बलात्कार करता है

वो आपको अँधेरे में दबोच लेते हैं
गाडी में खीच लेते हैं
सड़क पर , बस में, कमरे में भीच लेते हैं
आपको अकेला पाकर
घात लगा कर आप पर हमला बोल देते हैं
क्योंकि भेडिये ऐसे ही शिकार करते हैं

फिर वो कोशिश करता है
आप वही सोचे जो वो चाह रहा है
वो आपको चूमता है गालों पर
वो आपको चूमता है गर्दन पर
फिर उसके अंदर का जानवर जाग जाता है
और वो सब कुछ करने लगता है
जो उससे नहीं करना चाहियें
क्योंकि जानवर ऐसा ही करते हैं
पर जबतक आपको समझ आता है
के यह हो क्या रहा है
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है

आप चिल्लाती हैं
"नहीं नहीं!
ऐसा मत करो!
रुक जाओ!
मुझे यह नहीं चाहियें!
रुक जाओ!
पर
वो अपने हाथ से आपका मुंह बंद कर देता है
जिससे आपकी चीखें कोई सुन का सके
आप संघर्ष करती हो वो आपसे कहीं ज्यादा
ताकतवर है
वो जो चाहता है करता रहता है

एक बार वो सब कुछ कर लेता है
वो आपको छोड देता है
आप किसी तरह उठ खड़ी होती हैं
अपने अस्त व्यस्त कपडे बिजली की तेज़ी से ठीक करती हैं
सांस लेने की कोशिश कर रही होती हैं
तभी
"अगर किसी से कुछ कहा तो आगे इससे भी बुरा होगा"

आप बाहर आती हैं
अपनी गाडी में बैठ कर
दुगनी तेज रफ़्तार के साथ
सीधा अपने घर पहुच जाती हैं
सबसे पहले झट से आप
अपने स्नान गृह में जाती हैं
और शोवर के नीचे खड़ी हो जाती हैं
जिससे आप उसकी गंध को अपने से
अलग कर सकें

घंटा भर नहाने के बाद आप
रोना शुरू करती हैं
आपको विश्वास नहीं होता
यह जो कुछ भी आपके साथ घटा
वो सच था या नहीं
आप अपने आप से कहती हैं
"कैसे! वो सबसे प्यारा इंसान था जिसे मैं जानती थी....आदि इत्यादि"
और आप एक शब्द भी नहीं बोल पाती

अगले दिन
वो आपको फिर मिलता है
स्कूल में, कॉलेज में, ऑफिस में
सड़क पर, बस में, बस स्टैंड पर
आपकी ओर देखकर मुस्कराता है
आँख मरता है
आप उससे आँख चुराकर, घबराकर
दूसरी दिशा में भागने की कोशिश करती हैं
वो आपका पीछा करता है
और आपका हाथ पकड़ लेता है और फिर
कसकर चिपटने की कोशिश करता है
आप चिल्लाती हैं, "दूर हटो! नहीं तो मैं सबको बता दूंगी!"
वो आपके कानो में कुछ घिनोने शब्द कहता है
"मुझे पता है, तुम्हे वो सब अच्छा लगा था"
आप फिर से चिल्लाती हैं,
"नहीं, नहीं, मुझे अच्छा नहीं लगा! तुमने मेरा बलात्कार किया है!"

आसपास सभी आप दोनों की तरफ देखने लगते हैं
वो आपको छोड कर भागने की कोशिश करता है
पर सभी लोग उससे पकड़ कर उसकी पिटाई और अच्छे से धुलाई कर देते हैं

आँखों में आंसू लिए,
नाक और गाल लाल किये, आप
धीरे से कहती हैं, "और मारो, और मारो, जान ले लो इसकी"
फिर सभी उसे दबोच कर, बेतहाशा उसकी पिटाई करते हैं
आप जोर जोर से रोते रोते
ज़मीन पर गिरते एक एक आंसू के साथ
आगे बढ़ जाती हैं

और तब वो पल आता है
जब आपको एहसास होता है
ये तो किसी के भी साथ हो सकता है
किसी भी लड़की के साथ
कोई भी लड़का
किसी भी पार्टी, सड़क या किसी भी जगह

अगर यह बात आप बीती की बजाये
जब बीती से सीख ली जाए
और सतर्क हो जाया जाये
तो ज्यादा बेहतर होगा
होगा के नहीं ?
वो आपको सोचना होगा
ज़रा सोचें ???

उसने सोचा न था


उसने सोचा न था
जो भी उस पल हुआ
वो चिल्लाती रही
वो रोती रही
छोड दो छोड दो
वो भडिया न रुका
वो भेडिया न थमा
वो पुकारती रही
मदद करो मदद करो
वो दरिंदे सभी
राक्षस थे कहीं
दू:शासन थे वो तो
वो बढते रहे
वो चढ़ते रहे
वो कहती रही
नहीं नहीं नहीं
उसने सोचा न था
जिंदगी थमेगी यूँही
उसने सोचा न था
इंसान गिर जायेगा
इतना भी कभी
वो खोती रही
उसने खोना जो था
खून में लथपथ थी वो
रात भर से यूँही
रक्त भी न थमा
वो भी बहता रहा
उसने सोचा न था
वो छोड कर के उसे
ऐसी हालत में ही
गायब हो गए
ऐसी धुंध में कहीं
सुबह जागी तो वो
पर कभी भूली नहीं
वो रात न थी
एक सूली थी वो
जिसपे झूली थी वो
जिंदगी साथ ले गई
एक दर्द दे गई
उम्र भर के लिए
उसने सोचा न था
उसने सोचा न था

ज़रा सोचिये

इटालियन बाई का राज है और ऐसी छोटी मोटी वारदातें तो होती ही रहती हैं बड़े बड़े देशों में | बलात्कार, डकैती, मर पिटाई और भी न जाने क्या क्या सब आम बातें हैं | इनकी जड़ सिर्फ एक है निकम्मे और नाकारा नेता, भ्रष्ट शासन तंत्र और जनता जिसे इन सूअरों की गुलामी की आदत पड़ चुकी है | औरों को दोष देने से कुछ नहीं बदलेगा जब तक सभ्य और शिक्षित समाज आगे आकर अपने हक के लिए नहीं लड़ेगा और सही सरकार को चुनेगा | जिस सरकार में चोर उचक्के, डकैत, बलात्कारी, कातिल और माफिया के लोग भरे हो आप ऐसी सरकार के राज में ऐसी छोटी मोटी वारदातों के बारे में क्या तो सवाल करेंगे और क्या ही आप को जवाब मिलेगा | ज़रा सोचिये और आगे आने वाले चुनावों में सही को चुनिए | अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद कीजिये |

दिल्ली की लड़कियों के साथ साथ सभी नारी जाती से मेरा निवेदन है के अब दब्बू बन कर चुप बैठने का समय गया | आप अपने पुर्से में हमेशा एक मिर्ची का स्प्रे, एक छोटा चाकू और एक कर्रेंट वाला छोटा हथियार ले कर चलें जिससे ज़रूरत पड़ने पर आप उसका उपयोंग अपनी रक्षा के लिए कर सकें | आज ज़रूरत है अपनी मदद अपने आप करने की | आत्म रक्षा के लिए आज युद्ध कौशल में पारंगत होना अनिवार्य है | मेरी गुज़ारिश है स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं से, कॉलेज जाने वाली लड़कियों से के कम से कम और कुछ नहीं तो आप लोग थोड़ी बहुत युद्ध कौशल तो ज़रूर सीखें चाहे वो कोई सा भी क्यों न हो | ये शिक्षा मेरी सोच के हिसाब से तो हर जगह अनिवार्य होनी चाहियें खास तौर पर लड़कियों के लिए |

भाषण देना, धरने देना, प्रोटेस्ट मार्च निकलना, मोर्चे करने से कुछ नहीं होगा अब ज़माना है भगत सिंह का, चंद्र शेखर आजाद का , उधम सिंह का | जब तक इस बहरी सरकार के कान पर एक ज़बरदस्त धमाका नहीं होगा तब तक इसके कान पर जू नहीं रेंगेगी | मेरी राय मैं तो इन बलात्कारियों जैसे भेदियों को हाथ के हाथ मौत की सजा होनी चाहियें वो भी जिसके साथ यह अभद्र व्यव्हार हुआ है उसी के हाथों | आप सबकी क्या सोच है इसके बारे में बताएं ?

मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

Am I Lovable?


Why do we love someone else? What makes us do that?

While we constantly crib about the fact that no one loves me, how much thought we give about why would someone do it. What is so special or what have I done to make me worthy of affection.

Let’s take a look at examples close by.
















All of us love and adore our children, Why?
  1. They are made by nature that way. Cute little faces, tiny hands and feet, speech that makes you smile and a smile that just melts your heart like ice cream.
  2. They never lie. Say things as they are. You can trust them.
  3. You feel strong and they look vulnerable – physically and emotionally. One feels like its their duty and God’s will to protect them.
  4. If they like you they like you from their heart. If they don’t they will make it obvious with reasons. If you can improve and change you can be their friend.
  5. They never hold anything for a long time. One moment they will fight and the next moment they will be ready to play and laugh and run with you.
  6. They know nothing about jealousy, greed, hatred, contempt. We call it innocence but isn’t it natural for us to feel that way. If you really look at it these are absolutely unnecessary appendages to our mind.
  7. They are always ready to take help as they are always ready to offer it.

As we grow up we loose many of these simple yet powerful reasons so people can adore and like us. The worst part is that instead of consciously working on making ourselves child like we do just the opposite. In the name of growing up and being worldly wise we do everything that we do not want others to. And then we complain.

If you carefully observe a large part of the responsibility even power to make people love us lies with us.
  1. We hate everyone around us and then wonder why it’s coming back.
  2. Look at others with deceit and contempt. Lie at the drop of a hat.
  3. Do not want to take help. Do not want to give it either.
  4. In marriage we treat our partner with disrespect. Hurt to the extent of being revengeful. Take each other for granted.
  5. Hold our feelings as if it is the most important thing to die with a negative emotion or may be it helps you to live longer. Absolutely Wrong.
  6. Ridicule, Gossip and Make Fun to alleviate our own insecurity.
  7. Blame others to hide our guilt.
  8. Almost never use our heart. The tiny calculator keeps working non stop even if it is the closest of relationship.
I have two angles in my life, actually my lifeline and I have been observing their behavior with us, with others and with each other. What I have found is that whatever they do, they do it with spontaneity, with a natural flow. They are so happy with themselves that you want to enter their world to forget what you have been doing to others or what others have been doing to you.

I have come to realize that it is a mechanism that nature has adopted to ensure growth of species since we can observe a similar behavior in almost all other life forms. If it was not so we would have competed with our own off springs.

Just as you need to be employable to be employed, you need to be lovable to be loved.

So next time you feel that you are getting a raw deal or why no one really loves you ask yourself a question – Am I lovable ?

I am working on it and it’s not that difficult. Trust me.

Friendship

Friendship is the only 'Ship' with which one can reach other's thoughts and dreams. It is a two way street; if it not fed from both sides, it will atrophy. To dissolve loneliness as we need friends and to have friends we need humility. A friend is not an object to be possessed but a subject to be chrished.