सिलसिला-ए-गुफ़्तगू चलता रहा तुमसे
इत्तफ़ाक नहीं करता था मैं जानबूझकर
साथ चलते यूँ ही छू जाता है हाथ तुमसे
या तुम छू लेती हो मेरा हाथ जानबूझकर
जानता हूँ सड़क पर चलना आता है तुमसे
थामता हूँ हाथ तुम्हारा मैं भी जानबूझकर
बस गुज़र रहा था, मिलने चला आया तुमसे
मुलाकातें चाहता हूँ मैं मुसल्सल जानबूझकर
'निर्जन' हाल-ए-दिल मेरा छिपा नहीं है तुमसे
ना जाने क्यों करता हूँ इनकार मैं जानबूझकर
--- तुषार राज रस्तोगी ---
खूब.... उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ।
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