रविवार, दिसंबर 14, 2014

साईं संध्या या राजनैतिक अखाड़ा

 ॐ साईं नाथ - ॐ साईं राम

इतनी ख़ुशी मिली है ये दिल आबाद हो गया
साईं की महफ़िल में 'निर्जन' शादाब हो गया

आज शाम अचानक से प्रभु का बुलावा आ गया | अरे यारों! वो वाला बुलावा नहीं जो आप सोचने लग गए हो बल्कि सुअवसर था साईं बाबा के दर्शन करने का, उनके सामने नतमस्तक हो अपने जीवन के लिए सुन्दर कामनाएं करने का और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का | सोचा नहीं था कि खड़े खड़े यकायक यूँही कदम उनसे मिलने की ओर बढ़ते चले जायेंगे | मैं तो रोज़ शाम की तरह कुछ एक यारों की महफ़िल में उनके चुटकुलों और चुटकियों का लुत्फ़ उठा रहा था और सरसब्ज हो रहा था | मालूम हुआ के आज तो हमारे क्षेत्र की धरातल पर 'साईं संध्या' का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है | पहले तो सोचा के टाल कर जाता हूँ परन्तु मेरे अभिन्न मित्र और बड़े भाई के कहने पर रुक गया और उनके साथ चलने को मन ही मन राज़ी हो गया | भैया की अचार की दुकान पर चुनावी सरगर्मियों पर आचार विचार और चर्चाओं के प्रहार के बीच हम सभी दोस्त लोग एक दुसरे की खिंचाई कर आनंद उठा रहे थे | हमारे नवविवाहित वकील साब की शामों और रातों का मुक़द्दमा आजकल हम यारों की अदालत में ज़रा ज्यादा ही जोर शोर से उठाया जाता है | बेचारे वकील साहब शादी कर के अच्छे फेर में फँस गए हैं और आजकल उनकी बोलती भी बंद ही रहती है | मित्र-मण्डली के मज़ाक़ और टांग-खिंचाई के सामने बस वो कुछ ऐसे बेबस मुस्कुराते हुए अपने दर्द को छिपाते नज़र आते हैं जैसे ओसामा ओबामा की क़ैद में फंस गया हो | इसके साथ ही हमारे साथ दुकान पर एक राजनैतिक पार्टी के भावी प्रत्याशी भी चर्चा में शिरकत कर रहे थे | वो कुछ देर पहले ही अपने दल के एक चमचे के साथ दुकान पर पधारे थे | चमचा कहूँ या चुनावी मेंढक जो बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार होकर आया था और उसका हैल्मेट ऐसा लग रहा था मानो द्वितीय विश्व युद्ध के किसी रंगरूट का लोहे का शिरस्त्राण हो अर्थात टोपा हो | उसकी इस वेशभूषा को देखते ही सबकी हंसी निकल गई | कुछ देर उसके साथ दिल्लगी की गई और उसके बाद सभी लोग बातचीत में मशगूल हो गए | सभी रात के ९ बजने के इंतजार में थे | सब ने साईं संध्या में जाने का मन बनाया था | मेरे से भी पुछा गया था परन्तु उस समय तक मैंने अपनी अंतर्मुखी दुविधा के चलते रज़ामंदी अभी तक अपने दिल में ही छिपा रखी थी | आखिरकार ९ बजे और सबने निकलने का विचार किया | बस कुछ ना कहते और सोचते हुए मैं भी सबके साथ चल पड़ा |

सहसा ही बहुत से उन्सुल्झे द्वन्द, सवालात और अनुत्तरित जवाबों को दिल में लिए मेरे कदम मित्रों और भावी नेताजी के साथ हंसी-ठठ्ठा करते संध्या स्थल की तरफ़ बढ़ते चले गए | पंडाल के पास पहुँच कर जब नज़र उठाकर देखा तो नज़ारा जितना मनमोहक था उतना ही आनंदमय वातावरण भी था | हर तरफ चमचमाती हेलोजन और बल्बों की रौशनी, लाल-पीले-हरे-सफ़ेद-गुलाबी रंग के कपड़ों से लगाया हुआ पंडाल | पंडाल के बीचोबीच साईं विराजमान थे | साईं का तेज और उनका प्रभामण्डल देखने योग्य था | उनके ठीक सामने रंगमंच सजा था | रंगमंच पर कलाकार रंग बिरंगी पोशाक में सजे-धजे अपनी कला का प्रदर्शन करने में मगन थे | बेहद श्रद्धा से परिपूर्ण कलाकार भगवान् श्री कृष्ण की झांकी और भजन प्रस्तुत कर रहे थे | सैंकड़ों की संख्या में जनता उपस्थित हो उस मनोहारी परिवेश में भाव विभोर होने से अपने आप को नहीं रोक पा रही थी | कोई खड़ा-खड़ा नाच रहा था तो कोई हवा में हाथ हिला हिला कर हिलोरे ले रहा था | बच्चे खेल कूद में लगे थे | सभी मन्त्रमुग्ध हो साईं की भक्ति में लीन दिखाई दे रहे थे | पंडाल के एक तरफ जूताघर का स्टाल लगाया गया था |  जूता घर के पास ही आने वाले श्रद्धालुओं के लिए साईं का तिथिपत्र भेंट स्वरुप देने का इंतज़ाम किया गया था | उसके आगे हाथ धोने के लिए पानी का स्टाल था | ठीक उसके सामने दूसरी तरफ खाने का इंतज़ाम था जहाँ साईं का प्रसाद ग्रहण किया जा सकता था | साईं के प्रसाद में कढ़ी-चावल और हलवा बनाया गया था | पंडाल में प्रोजेक्टर स्क्रीन का भी इंतज़ाम किया गया था जिससे जनता को कार्यक्रम का आनंद लेने से वंचित ना रहना पड़े |

हम सभी मित्रों ने नेताजी के साथ जैसे ही पंडाल में कदम बढ़ाये हमारे एक और मित्र जो की साईं संध्या के आयोजकों में से एक थे दौड़ कर हमारा स्वागत करने पधार गए | थोड़ी देर के वार्तालाप के बाद हमें वहां के प्रमुख आयोजक से भी मिलने का अवसर प्राप्त हुआ | उन महानुभाव को जब ज्ञात हुआ की हमारे साथ अमुक राजनैतिक दल के भावी प्रत्याशी भी पधारे हैं तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | दौड़ दौड़ कर अपने परिचितों और स्वयं सेवी संस्था के लोगों से उनका परिचय आरम्भ कर दिया | यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक एक दूसरी अमुक पार्टी के पुराने बड़े नेताजी जिन्हें आधिकारिक न्योता संस्था ने पहले ही भेजा हुआ था और जिनका इंतज़ार बड़ी ही बेताबी और बेसब्री से हो रहा था, का आगमन नहीं हुआ | उनके चरणकमल द्वारा जैसे ही पंडाल दुलराया गया वैसे ही सभी लोग जो अब तक हमारे इर्द-गिर्द घूम नेताजी से फ़ौरी गठ-जोड़ बैठा रहे थे, उन्हें गले लगा रहे थे, अपने मोबाइल नंबर का आदान प्रदान कर रहे थे, गले मिल रहे थे या ऐसे मिल रहे थे मानो बरसों के बाद कोई बिछड़ा आज अकस्मात् ही सामने आ गया हो वो तुरंत ही छु-मंतर होते नज़र आए | माना की बड़के भैयाजी पिछले चुनाव में हारे हुए दल से चित हुए उम्मीदवार थे परन्तु वो कहते हैं ना पुराने चावल का स्वाद तो सबसे अलग ही होता है | बस फिर क्या था सभी का रुझान उनकी तरफ़ ही रहा और हम ये तमाशा देख मुस्कुराते रहे |

साईं दर्शन के लिए हमने अपने जूते-चप्पल जूताघर में उतारे, हाथ धोये और साईं दर्शन के लिए कतार में लग गए | हमारे परिचित मित्र पहले से ही साईं मंच के पास पंडित जी को बताने में लगे हुए थे कि नेताजी का आगमन होने वाला है | एक दफ़ा तो उन्होंने हमें सीधे कतार तोड़ कर भी आने का निमंत्रण दे डाला परन्तु हम आम जनता के साथ और उन्ही की तरह दर्शन करने के अभीलाषी थे अतः हम चुपचाप एक पंक्ति बनाकर चलते रहे | नेताजी को सामने देख आनन्-फ़ानन में पंडितजी ने उन्हें माल्यार्पण किया साथ ही दो अमरुद हाथ में थमा दिए और नेताजी हाथ जोड़ आगे बढ़ गए | नेताजी के पीछे हमारे वकील दोस्त भी थे जो प्रसाद के लिए मचले जा रहे थे | उन्होंने भी देखा-देखी प्रभु को शीश नवाया और हाथ बढ़ा दिया | पंडित ने उनकी शक्ल देखी और मुंह फेर लिया मानो कोई भिखारी देख लिया हो | प्रसाद देना तो दूर की बात पलट कर जायज़ा लेने को भी राज़ी नहीं थे | पर हमारे वकील साब तो वकील साब है और उस पर बड़ी बात यह है कि वो भी पंडित प्रजाति के अंश हैं बस फिर क्या था डटे रहे जब तक उनके हाथों में प्रसाद नहीं आ गया | खाद्य सामग्री प्राप्त होते ही वकील साब समपूर्ण स्फूर्ति के साथ नेताजी के पास हो लिए | हम तो ठहरे भाई आम आदमी यानी कॉमन मैन और हम लाइन में थे किसके पीछे, वकील साब के, लिहाज़ा जब वकील साब को पंडितजी ने कुछ नहीं समझा तो हम किस खेत की मूली थे | हमें भी पंडित जी ने नज़रन्दाज़ कर दिया और हम भी हाथ जोड़ कर आगे बढ़ गए |

अब आया खाने का नंबर | देखा तो ये लम्बी क्यू लगी थी खाने के स्टाल पर | पर अपना तो जुगाड़ फिट था | सभी बैठ गए कुर्सियां पकड़ कर और स्टेज पर हो रहे रंगारंग कार्यक्रम का आनंद लेने में मस्त हो गए | एक मित्र ने फ़ोन कर हमारे सूत्र को समझाया के भाई जल्दी आओ और स्टाफ चला कर खाने का इंतज़ाम करो | वो भी दौड़ कर तुरंत आए और सबके लिए फटाफट कढ़ी-चावल की प्लेटों का इंतज़ाम कर दिया | सभी दोस्तों ने तब तक नेताजी के साथ सेल्फी वाला कार्यक्रम निपटा लिया था | बस फिर क्या था सभी टूट पड़े | दे-दबा-दब पत्ते पर पत्ते उड़ा रहे थे कढ़ी-चावल के और प्रसाद का आनंद प्राप्त कर रहे थे | भोज के बाद मीठे की दरकार हुई और हलवा खाने की तलब लग गई | सब ने एक एक दोना हलवा उड़ाया और अपने अपने पिछवाड़े से हाथ पोंछ चप्पल जूते उठाने चल दिए | अपने चप्पल-जूते पहन कर और प्रभु को नमन कर हम सभी अपने अपने घर की ओर कूच कर गए |

कुल मिला कर कहूँ तो साईं-संध्या में आयोजक स्तर पर साफ़ तौर पर आस्था का स्तर कुछ कम ही नज़र आया | प्रभु के नाम पर एक ऐसा राजनैतिक अखाड़ा देखा जहाँ अपनी साख़ बनाने के लिए जद्दोजहद चल रही थी | आयोजकों द्वारा अलग अलग दल के नेताओं को बुलावा भेजा गया था | आने वाले चुनावों में अपनी स्तिथि मज़बूत करने के लिए और अपने अनकहे वर्चस्व के बखान और विधानसभा में अपनी उपस्थिथि दर्ज करवाने के लिए यह संध्या बहुत ही लाभदायक और बेहतरीन ज़रिया सिद्ध हो रही थी | जहाँ पंडित भी नोटों को और शक्लों को देखकर प्रसाद देता हो वहां और क्या अपेक्षा की जा सकती है | लोगों में उत्सुकता तो थी परन्तु कार्यक्रम के लिए कुछ ख़ास नहीं | ज्यादातर का ध्यान या तो खाने के ऊपर दिख रहा था या फिर सामान्य मौज मस्ती में लगे थे या किसी आपसी जोड़-तोड़ में तल्लीन थे परन्तु इसके विपरीत कुछ चेहरे ऐसे भी पढ़ने को मिले जो सच में साईं से रूबरू हो अपनी व्यथा बयां करने के इरादे से आए थे | जिनकी आँखों में एक आस थी और होठों पर साईं दर्शन के अमृत की प्यास थी | उनकी मुस्कराहट बयां कर रही थी, साईं संध्या में आने से ज़िन्दगी सफल हो गई | उनकी मुश्किलों का हल मिल गया है और वो बहुत संतुष्ट हो गए | हम भी यारों उन्ही में से एक थे | शायद आने वाले साल में हमारी दुआ भी क़ुबूल हो जाए और साईं के आशीर्वाद से हमारे काम भी बन जाएँ | उम्मीद तो यही है | देखते हैं और नए साल का इंतज़ार करते हैं ....... :)|

ॐ साईं राम.... ॐ साईं राम.... ॐ साईं राम....

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