तमाशा-ए-जिंदगी
ख्वाबों की दुनिया में बुने एक अलसाये मन के भाव, विचार, सोच, कहानियाँ, किस्से, कवितायेँ....|
गुरुवार, नवंबर 02, 2017
अर्ज़ किया है
अबस बैठना बन गया अफ़सुर्दा होने का सबब 'निर्जन'
क़िस्मत भी कितनी बेरहम है इसने कहाँ लाकर पटका
अबस = बेकार
अफ़सुर्दा = उदासी
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अर्ज़ किया है
तेरी नादानीयों की इन्तेहा क्या ख़ूब है हमदम
तेरी इरफ़ान से 'निर्जन' यहाँ मौसम बदलते हैं
नादानियों : बचपना
इन्तेहां : सीमा
इरफ़ान : प्रतिभा
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