सोमवार, फ़रवरी 06, 2017

सन्देश सदा ही देता है


















तृष्णा से बड़ा, कोई भोग कहाँ
सब पाने का लगा है, रोग यहाँ
अपने अपनों से क्या, बात करें
ख़ुदगर्ज़ हो गए, सब लोग यहाँ
पाषाणों में, जीवन को भरने की
कोशिश में, 'निर्जन' रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

है अंत तुम्हारा, उस चिट्ठी में
जो है, ऊपर वाले की मुट्ठी में
अब मान भी जा, ज़िद पर ना आ
कोई रहा ना बाक़ी, इस मिट्टी में
फिर क्यों, लड़ने की चाहत में
तू पल-पल बलता रहता है?
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

अब बाँध ज़रा, दिल को अपने
और थाम ज़रा, कल को अपने
अल्फ़ाज़ों को करके, मौन तेरे
और ढूंढ बचे यहां हैं, कौन तेरे
अब त्याग भी दे, इस अहम् को
जिसमें हर पल तू मरता रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

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गुरुवार, नवंबर 17, 2016

खुजली खांसी देश का दुश्मन























खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!

पी.एम्. और जनता - राज़ी
फिर भी ना माने - पाजी
पी.एम्. और जनता - राज़ी
फिर भी ना माने - पाजी
ये खुजली ना छोड़े, चल इसको फोड़े
ये बनने ना देगा देश को एक जुट मुकम्मल

देश को बेचे ना समझे
हाँ, ये देशद्रोही है समझे
देश के गद्दारों की ये
गोद में खेले
हाँ, मुंह जब भी खोले
ये,  घटिया ही बोले
हो जाए खुजली - हां जी
ख़ुदा को प्यारा - वाह जी
तब होगी दिल्ली की, खाना आबादी
सुलझ जाएगी पल में देश की उलझन
खुजली खांसी देश का दुश्मन
हाय! हाय!
मेरे देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी देश का दुश्मन
हाय! हाय!
मेरे देश का दुश्मन
हाय! हाय!

दैया रे दैया इसका हाल तो देखो
झूठे वादे कर, इसके सवाल तो देखो
अरे झांसे, धोखे, इसके बवाल तो देखो

अजी, कुछ बरसों में ऐसे
दाल कहाँ गलती है
अजी, कुछ बरसों में ऐसे
माल कहाँ मिलता है
सबको है मालूम, कैसे, कैसे
कैसे चंदे का ये माल जमा करता है
क्या हाल बताऊँ - अरे, हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ जी
सबूत दिखाऊं - अरे, हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ जी
पलटू है दोगला कैसा रंग गिरगिट सा बदले ऐसे
गद्दारों को ऐसे ही रुसवा करते हैं मियां खों खों

खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!

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