ग़ज़ल
नौ-उम्र जज़्बात हैं जबीन-ए-पाक में
बाला-तर जज़्बात हैं दिल-ए-बेबाक में
फ़लक से देख क्यों बरस रहा है लहू?
खूँ रोता है, क्या वहाँ अफ़्लाक में?
आह! वस्ल-ए-यार किस सूरत करूँ?
उम्र हो रही है ज़ाया इन सवालात में
ज़िस्त है बे-नम बर्ग-ए-काह का ढेर
सुलगाओ आग ख़स-ओ-ख़ाशाक में
तुमने भी तो कोई कसर नहीं रक्खी
सुराख़ क्या कम हैं मेरे लिबास में?
ऐसा फ़़रेब-ए-हयात या रब ना दे
हम कहाँ हैं क़िस्सा-ए-लोलाक में
ख़ाक ही इब्तिदा और इंतिहा है जब
क्यों न ख़ुद ही, ख़ुद को, मिला दूँ मैं ख़ाक में!
दम-क़दम कर दी तर्क़ अब मैंने 'निर्जन'
क्या ख़बर कितने अंदोह बैठे हों ताक में
जबीन-ए-पाक - साफ़ शुद्ध धार्मिक दिमाग़
नौ-उम्र - जवान
बाला-तर - बहुत ऊंचा
दिल-ए-बेबाक - निडर दिल
अफ़लाक - फ़लक़ / आसमान की जमा
ज़िस्त - ज़िन्दगी
बे-नम - सूखा
बर्ग-ए-काह - पत्तियाँ और तिनके
ख़स-ओ-ख़ाशाक - सूखी घास फूस
सुराख़ - छेद
लिबास - कपड़े
फ़़रेब-ए-हयात - ज़िन्दगी के धोखे
क़िस्सा-ए-लोलाक - आसमान के मालिक की कहानी
दम-क़दम - जीवन, मौजूदगी
तर्क़ - छोड़ देना
अंदोह - कष्ट, दुख
- तुषार रस्तोगी 'निर्जन'
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नौ-उम्र जज़्बात हैं जबीन-ए-पाक में
बाला-तर जज़्बात हैं दिल-ए-बेबाक में
फ़लक से देख क्यों बरस रहा है लहू?
खूँ रोता है, क्या वहाँ अफ़्लाक में?
आह! वस्ल-ए-यार किस सूरत करूँ?
उम्र हो रही है ज़ाया इन सवालात में
ज़िस्त है बे-नम बर्ग-ए-काह का ढेर
सुलगाओ आग ख़स-ओ-ख़ाशाक में
तुमने भी तो कोई कसर नहीं रक्खी
सुराख़ क्या कम हैं मेरे लिबास में?
ऐसा फ़़रेब-ए-हयात या रब ना दे
हम कहाँ हैं क़िस्सा-ए-लोलाक में
ख़ाक ही इब्तिदा और इंतिहा है जब
क्यों न ख़ुद ही, ख़ुद को, मिला दूँ मैं ख़ाक में!
दम-क़दम कर दी तर्क़ अब मैंने 'निर्जन'
क्या ख़बर कितने अंदोह बैठे हों ताक में
जबीन-ए-पाक - साफ़ शुद्ध धार्मिक दिमाग़
नौ-उम्र - जवान
बाला-तर - बहुत ऊंचा
दिल-ए-बेबाक - निडर दिल
अफ़लाक - फ़लक़ / आसमान की जमा
ज़िस्त - ज़िन्दगी
बे-नम - सूखा
बर्ग-ए-काह - पत्तियाँ और तिनके
ख़स-ओ-ख़ाशाक - सूखी घास फूस
सुराख़ - छेद
लिबास - कपड़े
फ़़रेब-ए-हयात - ज़िन्दगी के धोखे
क़िस्सा-ए-लोलाक - आसमान के मालिक की कहानी
दम-क़दम - जीवन, मौजूदगी
तर्क़ - छोड़ देना
अंदोह - कष्ट, दुख
- तुषार रस्तोगी 'निर्जन'
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