शुक्रवार, जनवरी 11, 2013

तलाश

हे करुनामय
रात के अँधेरे में
जब तुम
सो जाते थे
तब एक आत्मा
भटकती थी
एक घर की
तलाश में
जहाँ मुझ
प्यासे
को पानी, पानी
चाहियें था
कुएं की
छाँव चाहियें थी
पीपल के वृक्ष की
छैया पर
जब तुमने
दिन के
उजाले में
वो घर दिया
तब वहाँ
न तो
पीपल ही था
न था वह
कुआँ
मेर प्यास
एक प्यास ही
रह गई
रह गई
एक भटकन
जो मेरे शरीर में
रहते हुए भी
अहसास कराती है
उस स्वप्न की
जिसकी छाँव
जिसकी प्यास
की मुझे
अनंत जीवन तक
तलाश थी
क्यों
हे नियति
मैं तुझसे
पूछता हूँ
क्या ज़रुरत
थी मुझे
उजाले में
स्वप्न दिखने की
जबकि तू
जानता था
कुआँ और पीपल
मुझे कभी
वापस नहीं
मिल सकता

गुरुवार, जनवरी 10, 2013

गुलगुले जन्म दिवस की शुभकामनायें

आज जीवन का एक और आनंदमय दिवस बीता | छोटी बेटी जिसे मैं अक्सर गुलगुला, गोलू राम, बम का गोला, जिआन, लालाजी सरीखी उपमाओं से संबोधित कर प्रेमपूर्वक सहज भाव से पुकारता रहता हूँ और वो हंसती और खिलखिलाती, शरारत करती मस्त होकर गजराज की भांति आकर मुझसे लिपट जाया करती है | जी हाँ आज मेमसाब का जन्म दिवस है | ९ जनवरी, ऐसा लगता है के मानो अभी तो छोटी सी वो आई थी मेरी गोद में और आज इतनी बड़ी की भी हो गई  | सुबह से बहुत ही खुश थी | खूब उछल कूद मचा रही थी | हर तरफ़ा धमाचौकड़ी  | मानो आज हाथी की लाटरी लग गई हो |
"आज मेरा हैप्पी बर्थडे है न! हैप्पी बर्थडे टू श्रेया" कहती खुद ही इधर उधर शैतानी करती कूद काद रही थी | जी 'श्रेया' नाम है उसका | आप सोचते होंगे के ये क्या, अजी तो बताये देता हूँ के आज उसने अपने जीवन के ३ वर्ष हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण किये | सुबह से उसके चेहरे के वो मुस्कान और खिलखिलाहट देखने लायक थी | सुबह से नया सिला हुआ फ्रॉक पहन कर इतरा रही भवरे की भांति गुंजन करती, मुझे और घर के दुसरे सदस्यों को बताती, इठलाती-इतराती मटक रही थी मानो कोई खज़ाना हाथ आया हो | मेरी बड़ी बिटिया के साथ मिलकर न जाने क्या क्या खिचड़ी पका रही थी | हालाँकि वो श्रेया से सिर्फ १ वर्ष बड़ी है पर फिर भी वो ऐसे बर्ताव करती है जैसे न जाने कितनी बड़ी है |
 "श्रेया आज तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है | आज तुम्हे केक मिलेगा और गिफ्ट भी | आज शाम को पिज़्ज़ा पार्टी होगी | पापा पिज़्ज़ा लायेंगे | पापा ने बहुत अच्छा डोरेमोन और जिआन वाला केक बनवाया है तुम्हारे लिए | तुम अपना होमवर्क जल्दी से फिनिश कर लो फिर पार्टी होगी पार्टी |"
उत्तर आता है "नहीं आज होमवर्क नहीं करना | कल करुँगी प्रॉमिस | आज तो मेरा बर्थडे है आज हॉलिडे है | होमवर्क का टाइम नहीं है अभी | आजा 'सिद्धि' बहन खेलते हैं |"
बस आज सुबह से यही सब देखदेख कर और सुन सुन कर दिल ख़ुशी के मारे फूला नहीं समां रहा था | दोनों के लिए दिल से दुआएं निकल रही थी के दोनों का प्यार सदैव ऐसे ही बरक़रार रहे | किसी की नज़र न लगे | दोनों की नज़र उतरने का दिल कर रहा था और बालाएं लेने का भी | तो साब इस सब कौतुहल के साथ शाम ने कदम रखा और जी आ गया मेमसाब का केक और होम मेड पिज़्ज़ा का सारा सामान | मैंने घर के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर थोड़ी बहुत सजावट भी की | थोड़े से गुब्बारे और कुछ साजो-सज्जा का सामान सजाया गया | बस हम घर के ही सदस्य थे तो फटाफट टेबल सजा कर केक लाकर रख दिया | कुछ फोटो शोटो भी खींच डाले गए | पर वहां तो जल्दी मच रही थी की केक कब खाने को मिलेगा | जब केक काटने का समय आया तो भोलूराम का मन नहीं माना, जितने मैं मोमबत्तियां लगता उतने में तो श्री गणेश भी हो गया | हाँ जी वो आई और झट से एक ऊँगली लगा कर चख लिया केक को | उसका उतावलापन देख इतनी ज़ोर के हंसी आई के पूछो मत | ज़रा सा गुस्सा भी आया क्योंकि अभी तक केक का फोटो तो लिया ही नहीं था | फिर मैंने सोचा के चलो कोई नहीं नज़र का टीका लग गया केक को | अब अच्छे से होगा सब | तो हुज़ूर मोमबत्तियां लग गईं, छुरी थमा दी गई हाथों में और शमा बुझाने को कहा था तो मोटूराम की तो हवा ही निकल गई | दरअसल वो 'मैजिक कैंडल्स' थीं | आप बुझाते रहिये और वो बुझने का नाम भी नहीं लेंगी |
मेरी ओर देख कर बड़े मासूम अंदाज़ में वो तुरंत बोलीं "यह गन्दी कैंडल है, केक कब खाने को मिलेगा" | बस फिर क्या था, आनन फानन तुरंत केक कटवाया गया और हाज़िर कर दिया गया प्लेट में सजा कर | अभी केक खत्म भी न हो पाया था, फरमाइश आई
"अरे मेरा पिज़्ज़ा कहाँ है, अभी वो भी तो खाना है | जल्दी करो न | वो कब बनेगा ? |" हँसते हँसते लोटपोट होते हुए मैंने कहा, "अरे पहले यह तो फिनिश करो | पिज़्ज़ा भी आ रहा है पहले केक तो खा लो |"
फिर साब क्या था डिनर में पिज़्ज़ा परोसा गया और इस तरह आज का दिन संपन्न हुआ |
बस मेरी दुआ इतनी सी ही है के ऐसे ही हँसते-गाते  खेलत-कूदते ज़िन्दगी के सभी दिन बीत जाएँ तो ज़िन्दगी का सफ़र कैसे कट जायेगा पता भी नहीं चलेगा | भगवन हम सभी पर ऐसे ही अपनी कृपा बनाये रखें और अपना आशीर्वाद देते रहें यही मनोकामना है प्रभु से |
हैप्पी बर्थडे टू यू गोलू, मेरा आज का दिन और जीवन का हर एक दिन सुन्दर बनाने के लिए बहुत बहुत लाड़, प्यार और ढेरों आशीर्वाद | मेरी दो छोटी छोटी गुड़ियाँ, चिडकली, मनभावनी, मनमोहिनी, परियां सदा ऐसे ही चहकती रहो, खिलखिलाती रही, मुस्कुराती रहो और मुझे गुदगुदाती रहो |
बहुत बहुत बहुत ढेरों-मटेरों सारा प्यार और आशीर्वाद |





















राष्ट्र भाषा "हिंदी"

लो जी आज फिर से नींद ग़ाफूर हो गई है आँखों से | अभी अभी बिग बॉस देख कर बैठा था | सोचा क्या करूँ तो पुरानी स्कूल वाली डाईरी खंगालने लग गया | सोचा कुछ तो ऐसा होगा जो मज़ेदार हाथ लगेगा और मैं उससे ब्लॉग पर पोस्ट कर दूंगा | तो ये एक कविता सामने आई | पढ़कर लगा के आजकल के माहौल के मुताबिक सटीक बैठेगी | सो आपके सम्मुख प्रस्तुत है पढ़ें, आनंद लें और बताएं के कैसी लगी?

लाड़ेज़ और जेंटलमैन
इंडिया एक बहुत बड़ी कंट्री है
इसमें मैनी लैंग्वेज बोलने वाले लोग हैं
हम सब इंडिया के सिटीजन हैं
हिंदी हमारी मदर लैंग्वेज है
इसलिए हिंदी बोलना कंपल्सरी है
एंड हिंदी लिखना नेसेसरी है
पर आज की यंग जनरेशन
हिंदी बोलने और लिखने में शर्म फील करती है
जब भी अपना माउथ खोलती है
इंग्लिश में ही बोलती है
किसी पर्सन की पर्सनेलिटी को
अन्ग्रेज़ीअत में तोलते हैं
लेकिन हिंदी के इम्प्रूवमेंट के लिए
हमें डेली लाइफ में उसे करनी है हिंदी
हमें हिंदी को वर्ल्ड वाइड पहुँचाना है
हिंदी में इंग्लिश मिलाकर
उसका मिक्सचर मीन्स हिंगलिश नहीं बनाना है
दैन ओनली भारत माता के
ड्रीम होंगे सच एंड हमारी
मदर लैंग्वेज हिंदी की होगी इज्ज़त...

बुधवार, जनवरी 09, 2013

वीणा

मेरे मन मस्तिष्क
के तारों को
वीणा मत बनने देना
भगवन
क्योंकी वह वीणा 
जो स्वर निकलती है
ये परिवेश उसे
नहीं स्वीकार पायेगा
स्वयं मैं भी
पथराया सा
अनजान रास्ते
पर बिना स्वर के
उस वीणा को
छेड़ देता हूँ
जिसके स्वर से
ईश्वर तुझे भी रोना
न आ जाये
वो दर्द तेरी
पत्थर की बुत
को भी तोड़ देगा
देख अपनी वीणा को
जो तूने मुझे सौंपी है
बजाने के लिए
एक नियत
स्वर दे
जिससे मैं
आठों पहर
तेरी वीणा से
तेरे ही राग
गया करूँ
मेरे मन मस्तिष्क
को आयाम दे
जिससे मैं कोई
मंजिल देख सकूँ

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

पीड़ा के तोशक

चंद कोमल सासें चुराकर
भवितव्यता से भौहें भिगोकर
हारते खेल की बाज़ी खेलकर
इश्क में परवाह का जुआ लगाकर

कसक की रजाई ओढ़क्रर
ग़म-ए-ज़िन्दगी की नुमाइश
धोखा देते ज़िन्दगी के साल
खोई युवावस्था के दाग़
परिपक्वता की अभिरंजित सरसराहटें

विद्युन्यय तरंगे
व्यंग्यात्मक फुसफुसाहट
पानी का चटकना
बुखार में तेज़ तपना

शठ कड़कड़ाहट
सरकती झनझनाहट
निष्प्रभ अश्रु
बायां खयाल

मायावी मृगतृष्णा
मतिभ्रम उपभोगन
दिमाग़ी शस्त्राभ्यास
विस्फ़ोटक धडकन

अंततः संगीतमय
अंतिम आकलन
फिर निस्तब्धता
कुछ रुकी श्वास
ख़ामोश वृन्द

इस सबका क्या अर्थ है?

पीड़ा के तोशक ओढ़े
हताशा में भी शांत रहना

मैंने सोचा

मैंने सोचा
मैं रो दूंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

मैंने सोचा
मैं मर जाऊंगा
तुम्हारे जाने पर
पर नहीं

पर अब
मैं सोचता हूँ
उन खुशनुमा
पलों के बारे में
जो कभी साथ बिताये थे
मैं रोता हूँ

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
हम कभी खुश थे

मैं रोता हूँ
क्योंकी
मुझे पता है
अब कभी
नहीं मिलेंगे

मैं रोता हूँ
क्योंकि
मुझे पता है
अब एक दुसरे को
कभी देख नहीं पाएंगे

अब दर्द
धीरे धीरे
कम हो रहा है
दिल भी
मेरे और
ज़िन्दगी से साथ
मर गया है

रविवार, जनवरी 06, 2013

The Power of Silence


Are you there? 
Can you hear me?
Possibly not because I am silence
My authority reigns over me and keeps me reserved
The atrocities I see and hear keep me silent
The violence overwhelming or souls keep me silent
The dispute And uncommon regard has me silent
Your wealth and greed have kept me silent
The lack of wisdom and fairness keep me silent
I do not shed a tear when silent
Because to cry would show my inner emotion
And that is silent
You rule the world as if
You only exist not seeing the truth
You have consumed us of a life
Your silence has confused and belittled us
Because your silence equals authority
What happened to you?
You were kind, compassionate and very loving
I understand how our silence has led us
To knowing what we are feeling
What we are thinking
What we love
What we want
And most of all
What is important
Your silence has led me to my ruin
Your silence has led me to my confusion
Your silence has led me to our disputes
Your silence has led me to a world without love
Your silence has killed many before and after me

हे स्त्री

हे स्त्री
तुझे
आर्थिक रूप से
सामाजिक रूप में
कब तक
दासता में
जीना होगा
जगत धारिणी
जगत जननी
नाम से तुझे
सभी जानते हैं
तुलसी भी
सीता का
पुजारी पर
ढोल, गंवार
पशु के साथ
उसने भी
जोड़ा था
तुझे
क्यों
क्या तू
कोई चल अचल
संपत्ति है
एक सवाल
हर स्त्री
पूछती है
पर
पुरुष प्रधान
समाज में
कोई भी
तुझे
मुक्ति नहीं देगा
कभी पिता, पति
कभी पुत्र
कभी भी
दासता से
नहीं छोड़ सकते
शायद तेरे से
ग़ुलाम ही
बेहतर हैं
एक स्तिथि तक...

पुत्र मोह या मोक्ष मोह

हे पुत्र तुम्हारे कंदन में
शायद
किसी के
सहारे की
या
किसी को
कर्त्तव्य एहसास
करने की
शक्ति थी
तभी तो
मैं
अपनी समृद्धि
के बाद भी
न भूल
पायी
वो आँखें
वो सपना
वो घर
जिसका खोजना
शायद
भगवन के
लिए भी
मुश्किल था
जहाँ
सूरज को भी
आते जाते
शाम हो जाती है
पर उस
उत्तम घर का
स्वामी एक
रत्न है
जिसकी चमक शायद
सूरज से
ज्यादा भी
तभी तो, मैं
अनजाने
परिवेश में
उस को पा गई
तुम्हारे कंदन में
मेरे हृदय की धड़कन
मानो खुद भी
कंदन करने
लगती है
आँखे पथराई सी
धड़कन को
देखना चाहती हैं
सुनना चाहती हैं
पर पुत्र वो
चाहती हैं, अपना
छोड़ा हुआ, वो
सलोना सा मुखड़ा
जिसमें मेरे
दोनों जहाँ थे
अब अपने
कंदन को
कर्म बना डालो
दे दो मुक्ति
मेरे ह्रदय की
धड़कन को
जो शरीर के
रहते भी
उसको विचलित
किये रखती है
मन मस्तिष्क को
मैं तुम्हें
अपार स्नेह स्वरुप
उपहार में देती हूँ
क्योंकि ये शरीर
तुम्हारी ममतामयी का नहीं है

दामिनी की मौत की कहानी, दोस्त की जुबानी (पढ़िये पूरा सच)

दिल्ली गैंगरेप की पीड़ित लड़की जिसकी मौत हो चुकी है उनके पुरुष मित्र और इस केस में एकमात्र गवाह ने शुक्रवार को पहली बार इस मसले पर ज़ी न्यूज़ से बात की। बातचीत में पीड़िता के दोस्त ने बताया कि 16 दिसंबर 2012 की रात हैवानियत वाली घटना के बाद भी उनकी दोस्त जीना चाहती थी। 
उस भयावह रात क्या-क्या हुआ, उसे विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस की तीन-तीन पीसीआर वैन आई और पुलिस थानों को लेकर उलझी रही। उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक का समय लगा दिया गया।
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि छह आरोपियों ने जब उन्हें बस से बाहर फेंक दिया तो कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि पुलिस आई और उन्हें अस्पताल ले जाने में दो घंटे से अधिक समय लगा दिया। उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। गैंगरेप के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। 
उन्होंने कहा, ‘इस भयावह घटना पर मीडिया में बहुत सारी चीजें आई हैं और लोग इसके बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि हमारे साथ उस रात क्या हुआ। मैं बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने उस रात किन-किन मुश्किलों का सामना किया।’  उन्होंने उम्मीद जताई कि इस त्रासदपूर्ण घटना से अन्य लोग सबक सीखेंगे और दूसरे का जीवन बचाने के लिए आगे आएंगे। 
उन्होंने कहा कि छह आरोपियों ने 16 दिसंबर की रात उन्हें बस में चढ़ने के लिए प्रलोभन दिया। पीड़ित लड़की के दोस्त ने बताया, ‘बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे। बस में सवार लोग पहले भी शायद अपराध में शामिल थे। 
ऐसा लगा कि बस में सवार आरोपी पहले से तैयार थे। ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा बस में सवार अन्य सभी यात्री की तरह बर्ताव कर रहे थे। हमने उन्हें किराए के रूप में 20 रुपए भी दिए। इसके बाद वे मेरी दोस्त पर कमेंट करने लगे। इसके बाद हमारी उनसे नोकझोंक शुरू हो गई।’
उन्होंने बताया, ‘मैंने उनमें से तीन को पीटा लेकिन तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड लेकर आए और मुझ पर वार किया। मेरे बेहोश होने से पहले वे मेरी दोस्त को खींच कर ले गए।’ पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘हमें बस से फेंकने से पहले अपराध के साक्ष्य मिटाने के लिए उन्होंने हमारे मोबाइल छीने और कपड़े फाड़ दिए।’ 
पीड़िता के दोस्त ने बताया, ‘जहां से उन्होंने हमें बस में चढ़ाया, उसके बाद करीब ढाई घंटे तक वे हमें इधर-उधर घुमाते रहे। हम चिल्ला रहे थे। हम चाह रहे थे कि बाहर लोगों तक हमारी आवाज पहुंचे लेकिन उन्होंने बस के अंदर लाइट बंद कर दी थी। यहां तक कि मेरी दोस्त उनके साथ लड़ी। उसने मुझे बचाने की कोशिश की। मेरी दोस्त ने 100 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुलाने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसका मोबाइल छीन लिया।’
उन्होंने कहा, ‘बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें बस से कुचलकर मारने की कोशिश की लेकिन समय रहते मैंने अपनी दोस्त को बस के नीचे आने से पहले खींच लिया। हम बिना कपड़ों के थे। हमने वहां से गुजरने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की। करीब 25 मिनट तक कई ऑटो, कार और बाइक वाले वहां से अपने वाहन की गति धीमी करते और हमें देखते हुए गुजरे लेकिन कोई भी वहां नहीं रुका। तभी गश्त पर निकला कोई व्यक्ति वहां रुका और उसने पुलिस को सूचित किया। 
पीड़िता के दोस्त ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि बस से फेंके जाने के करीब 45 मिनट बाद तक घटनास्थल पर तीन-तीन पीसीआर वैन पहुंचीं लेकिन करीब आधे घंटे तक वे लोग इस बात को लेकर आपस में उलझते रहे कि यह फलां थाने का मामला है, यह फलां थाने का मामला है। अंतत: एक पीसीआर वैन में हमने अपनी दोस्त को डाला। वहां खड़े लोगों में से किसी ने उनकी मदद नहीं की। संभव है लोग ये सोच रहे हों कि उनके हाथ में खून लग जाएगा। दोस्त को वैन में चढ़ाने में पुलिस ने मदद नहीं की क्योंकि उनके शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा था। घटनास्थल से सफदरजंग अस्पताल तक जाने में पीसीआर वैन को दो घंटे से अधिक समय लग गए। 
दिवंगत लड़की के दोस्त ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ किसी ने भी हमें कपड़े नहीं दिए और न ही एम्बुलेंस बुलाई। उन्होंने कहा, ‘वहां खड़े लोग केवल हमें देख रहे थे।’ उन्होंने बताया कि शरीर ढकने के लिए कई बार अनुरोध करने पर किसी ने बेड शीट का एक टुकड़ा दिया। उन्होंने बताया,‘वहां खड़े लोगों में से किसी ने हमारी मदद नहीं की। लोग शायद इस बात से भयभीत थे कि यदि वे हमारी मदद करते हैं तो वे इस घटना के गवाह बन जाएंगे और बाद में उन्हें पुलिस और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे।’
उन्होंने बताया, ‘यहां तक कि अस्पताल में हमें इंतजार करना पड़ा और मैंने वहां आते-जाते लोगों से शरीर पर कुछ डालने के लिए कपड़े मांगे। मैंने एक अजनबी से उनका मोबाइल मांगा और अपने रिश्तेदारों को फोन किया। मैंने अपने रिश्तेदारों से बस इतना कहा कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं। मेरे रिश्तेदारों के अस्पताल पहुंचने के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो सका।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे सिर पर चोट लगी थी। मैं इस हालत में नहीं था कि चल-फिर सकूं। यहां तक कि दो सप्ताह तक मैं इस योग्य नहीं था कि मैं अपने हाथ हिला सकूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार मुझे अपने पैतृक घर ले जाना चाहता था लेकिन मैंने दिल्ली में रुकने का फैसला किया ताकि मैं पुलिस की मदद कर सकूं। डॉक्टरों की सलाह पर ही मैं अपने घर गया और वहां इलाज कराना शुरू किया।’
उन्होंने कहा, ‘जब मैं अस्पताल में अपनी दोस्त से मिला था तो वह मुस्कुरा रही थीं। वह लिख सकती थीं और चीजों को लेकर आशावान थीं। मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह जीना नहीं चाहतीं।’ उन्होंने बताया, ‘पीड़िता ने मुझसे कहा था कि यदि मैं वहां नहीं होता तो वह पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाती। मैंने फैसला किया था कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाऊंगा।’
पीड़िता के दोस्त ने बताया कि उनकी दोस्त इलाज के खर्च को लेकर चिंतित थी। उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का हौसला बढ़ाए रखने के लिए मुझे उनके पास रहने के लिए कहा गया।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने महिला एसडीएम को जब पहली बार बयान दिया तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। उन आरोपियों ने मेरी दोस्त के साथ जो कुछ किया, उस पर मैं विश्वास नहीं कर सका। यहां तक जानवर भी जब अपना शिकार करते हैं तो वे अपने शिकार से इस तरह की क्रूरता के साथ पेश नहीं आते।’
दिवंगत लड़की के दोस्त ने कहा, ‘मेरी दोस्त ने यह सब कुछ सहा और उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि आरोपियों को फांसी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें जलाकर मारा जाना चाहिए।’ उन्होंने बताया, ‘मेरी दोस्त ने एसडीएम को जो पहला बयान दिया वह सही था। मेरी दोस्त ने काफी प्रयास के बाद अपना बयान दिया था। बयान देते समय वह खांस रही थीं और उनके शरीर से रक्तस्राव हो रहा था। बयान देने को लेकर न तो किसी तरह का दबाव था और न ही हस्तक्षेप। लेकिन एसडीएम ने जब कहा कि बयान दर्ज करते समय उन पर दबाव था तो मुझे लगा कि सभी प्रयास व्यर्थ हो गए। महिला एसडीएम का यह कहना कि बयान दबाव में दर्ज किए गए, गलत है।’
यह पूछे जाने पर कि इस तरह की घटना दोबारा से न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए वह क्या सुझाव देना चाहेंगे। इस पर दोस्त ने कहा, ‘पुलिस को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो अस्पताल पहुंचाया जाए। पीड़ित को भर्ती कराने के लिए पुलिस को सरकारी अस्पताल नहीं ढूढ़ना चाहिए। साथ ही गवाहों को भी परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि कोई मोमबत्तियां जलाकर किसी की मानसिकता को नहीं बदल सकता। उन्होंने कहा, ‘आपको सड़क पर मदद मांग रहे लोगों की सहायता करनी होगी।’ उन्होंने कहा, ‘विरोध-प्रदर्शन और बदलाव की कवायद केवल मेरी दोस्त के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी होना चाहिए।’
पीड़िता के दोस्त ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा समिति से वह चाहते हैं कि वह महिलाओं की सुरक्षा और बेहतर करने और शिकायतकर्ता के लिए आसान कानून बनाने के लिए उपाय सुझाए। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ढेर सारे कानून हैं लेकिन आम जनता पुलिस के पास जाने से डरती है क्योंकि उसे भय है कि पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज करेगी अथवा नहीं। आप एक मसले के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह फास्ट ट्रैक कोर्ट हर मामले के लिए क्यों नहीं।’
पीड़िता के दोस्त ने खुलासा किया, ‘मेरे इलाज के बारे में जानने के लिए सरकार की तरफ से किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया। मैं अपने इलाज का खर्च स्वयं उठा रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी दोस्त का इलाज यदि अच्छे अस्पताल में शुरू किया गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती।’ 
बता दें कि गैंगरेप पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में किया गया था। इसके बाद उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया। पीड़िता के दोस्त ने यह भी बताया कि पुलिस के कुछ अधिकारी ऐसे भी थे जो यह चाहते थे कि वह यह कहें कि पुलिस मामले में अच्छा काम कर रही है। 
उन्होंने बताया, ‘पुलिस अपना काम करने का श्रेय क्यों लेना चाहती थी? सभी लोग यदि अपना काम अच्छी तरह करते तो इस मामले में कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती।’ पीड़िता के दोस्त ने कहा, ‘हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है। मेरे परिवार में यदि वकील नहीं होते तो मैं इस मामले में अपनी लड़ाई जारी नहीं रख पाता।’
उन्होंने कहा, ‘मैं चार दिनों तक पुलिस स्टेशन में रहा, जबकि मुझे इसकी जगह अस्पताल में होना चाहिए था। मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं दुर्घटना का शिकार हो गया हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मामले में दिल्ली पुलिस को स्वयं आकलन करना चाहिए कि उसने अच्छा काम किया है अथवा नहीं।’
उन्होंने  कहा, ‘यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं तो उसकी मदद कीजिए। उस रात किसी एक व्यक्ति ने यदि मेरी मदद की होती तो आपके सामने कुछ और तस्वीर होतीं। मेट्रो स्टेशन बंद करने और लोगों को अपनी बात कहने से रोकने की कोई जरूरत नहीं है। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जिसमें लोगों का विश्वास कायम रहे।’
उन्होंने बताया, ‘हादसे की रात मैं अपनी दोस्त को छोड़कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा। ऐसी घड़ी में यहां तक कि जानवर भी अपने साथी को छोड़कर नहीं भांगेंगे। मुझे कोई अफसोस नहीं है। लेकिन मेरी इच्छा है कि शायद उसकी मदद के लिए मैं कुछ कर पाया होता। कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने ऑटो क्यों नहीं किया, क्यों अपनी दोस्त को उस बस तक ले गया।’

शनिवार, जनवरी 05, 2013

किसी की नज़र न लगे

तेरी आशिकी का मिजाज़
मुझे क़ातिलाना लगे
जो बुरा न माने तू
कुछ अदाएँ चुरालूं तुझसे
आलम दिल का ये है अब
न जाने क्यों हर बेगाना
मुझे दीवाना लगे

तेरी नज़रों में बहता सागर
मुझे मयखाना लगे
जो बुरा न माने तू
कुछ जाम चुरालूं इनसे
आलम नज़रों का ये है अब
न जाने क्यों सियाह रात
तेरा काजल लगे

अब और क्या कहे
'निर्जन' तुझसे
बस इतनी दुआ है रब से
मेरे इन एहसासों को
किसी की नज़र न लगे

सोच

जागते बीत गयी ज़िन्दगी यूँ ही 
नज़रे गाफिल हैं ख्वाबों से अब तो 
नींद तो अब क्या ही आएगी 'निर्जन'
मौत आएगी तब सो लेंगे ज़रा...