गुरुवार, मार्च 12, 2015

सुनो ना

सुनो ना, कुछ लम्हों के लिए ही सही, सुनो तो सही

अब एकाग्रचित्त होकर लम्बी सांस लो, "हाँ - लो तो सही, अगर सांस नहीं भी लेना चाह रही हो तब भी - लो ना - प्लीज़"। अपने कानो में गूंजती हुई अपने दिल की लरज़ती धड़कनो को ज़रा सुनो तो सही और अपनी नसों में मेरे इश्क़ के जुनूनी लावा को समुंदरी लहरों सा बहता हुआ महसूस करो तो सही। इस कायनात में पसरी ख़ामोशी के स्पर्श को अपनी कोमल देह को छूते हुए अनुभव करो तो सही।

अब ज़रा अपनी आँखें बंद करो और ह्रदय के अंतर तक फैली उस कालिमा का विश्लेषण तो करो। जब तलक तुम्हे अपने मन के श्याम छिद्र में कोई थामने लायक नज़र ना आए तब तक सिर्फ़ उस कालिख़ के आभास का रसपान करो। तब तक इंतज़ार करो जब तक तुम्हारी साँसे इस खेल में तुम्हारे हारने का इशारा नहीं करतीं और फिर धीरे से अपनी आँखों को खोलो,

अरे! और सुनो तो:

देखो, ये तुम हो...

अद्भुत, अनोखी, आश्चर्यजनक, प्रशंसनीय, चमत्कारिक। तुम्हारा होना मुझे सर्दी की उस लोरी की याद दिलाता है, जिस सिर्फ मेरे लिए बड़े ही रहस्मयता के साथ गाया गया था जिससे उसका आनंद कोई और ना उठा सके। पर शायद, ये शर्म की बात है क्योंकि तुम क़ुदरत के सबसे हसीन गीतों में से एक जो हो।

तुम प्रेम की आतिशबाज़ी की वो चमक हो जिससे मेरे जीवन का व्योम प्रकाशमय हो उठा है परन्तु इस अग्निक्रीड़ा के विपरीत तुम सदा मेरी दुनिया को देदीप्यमान, प्रकाशित, प्रज्वलित और उत्साहित करती रहना।

या फिर तुम जैसी हो, जो भी हो वैसी ही रहना, मेरे लिए इतना ही पर्याप्त से अधिक है।

मुझे इतना तो ज्ञात है कि इस संसार में जादू होता है क्योंकि तुम मेरे सामने हो। मनोहर, दिलकश, तिलिस्मी, आकर्षण, रूपवान, मायावी इंद्रजाल जिसने मुझे अपने वशीभूत कर लिया है।

मैं तुम्हे एक ऐसा इन्द्रधनुष उपहार स्वरुप देना चाहता हूं जो इस जीवन की हर मुश्किलातों को मिटा दे। मैं तुम्हे वो दर्पण भेंट करना चाहता हूँ जो तुम्हे दिखाए और जताए कि तुम कितनी निराली और अनोखी हो।

मैं इन महासागरों को सुखा देना चाहता हूँ, यदि यह तुम्हारे डर को मिटा सकता है, मैं उम्मीद, भरोसा, विश्वास, अरमान, आशा, आश्वसन का एक पुलिंदा बनाकर और धरती, अभ्र, पेड़ों, हवाओं, नदी, नालों, झरनों, पर मुस्कुराते चहरों का रंग लेप कर तुम्हे नज़राना स्वरुप पेश-ए-ख़िदमत करना चाहता हूँ यदि ये सब तुम्हारे मासूम से मुलायम गालों पर मुस्कान की चमचमाती लकीर बनाने में कामयाब हो सकें तो। मैं तुम्हारे पास निशा ज्योति की शक्ति भेजना चाहता हूँ जो सभी  कुस्वप्नों, विरूप प्राणीयों, दुःस्वप्नों और भयावह अनुभवों का आजीवन संहार कर सकें। मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारा हाथ थाम कर स्वछन्द उन्मुक्त परिमण्डल में उड़ान भरना चाहता हूँ यदि ऐसा करने से तुम्हारा अकेलापन दूर हो सके तो और इस द्रुतगति के अंत में तुम और मैं ज़मीन पर लेट कर, नीलाभ को तांकते सिर्फ मन्नत मांगने के लिए तमन्ना करते, सिर्फ उम्मीद के लिए उम्मीद करते, और इस सब के अंत में, मैं तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लिए शांति, आनंद, आराम, तृप्ति, संतुष्टि, ऋणमुक्ति हो तुम्हारे साथ संतोष की नींद सो सकूँ।

कभी-कभी, मैं अपने आप में एक ख़ाली मकां जैसा महसूस करता हूँ जो सांसारिक और भौतिकवादी झूठ का लबादा ओढ़े खड़ा है और असत्य के पीछे छिपा है जिसे देखने की गरज़ किसी को नहीं है, ना कोई इसके बारे में सोचता है और ना ही कोई पसंद करता है। इस घर की अस्तित्त्व रुपी खिड़कियाँ और दरवाज़े, दुनिया को दूर रखने के लिए हमेशा बंद ही रहती हैं,

लेकिन सुनो:

इस मकां को घर बनाने की सिर्फ जो एक चाबी मेरे पास है,

मैं पूरे दिल से, हक़ से, प्यार से, इत्मीनान से, भरोसे से, बेख़ौफ़ - वो "तुम्हे" ही देना चाहता हूँ।

और सुनो ध्यान दो:

"मुझे तुम पर खुद से ज़्यादा ऐतबार है, भरोसा है, यक़ीन खुद से ज़्यादा इतना है कि बिना कोई भी सवाल किये और आँखें मूँद कर तुम जहां कहोगी मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।"

बस और कुछ बचा नहीं है कहने को मेरी ज़िन्दगी में जो कुछ भी है वो यहीं इन्ही चंद लफ़्ज़ों में समेट कर तुम तक पहुंचा दिया है।

अच्छा हाँ सुनो तो:

मैं ये इकरार करता हूं और इज़हार करता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बेहद, बहुत, हद से ज्यादा प्यार करता हूँ।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, मार्च 08, 2015

स्त्री













स्त्री होना, एक सहज सा
अनुभव है
क्यों, क्या
क्या वो सब है
कुछ नहीं
नारी के रूप को
सुन, गुन
मैं संतुष्ट नहीं था
बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका
इनका स्वरुप भी
कितना विस्तृत
हो सकता, जितना
ब्रह्मांड, का होता है
जब जाना, नारी 
उस वट वृक्ष
को जन्म देती है
जिसकी पूजा
संसार करता है
जिसकी जड़
इतनी विशाल होती है
कि जब थका मुसाफ़िर
उसके तले
विश्राम करता है
तब कुछ क्षण बाद ही
वो पाता है
शांति का प्रसाद
सुखांत, देता हुआ
उसकी शाखा को पाता है
हँसते हुए, उसके पत्तों को
प्रणय स्वरुप, उसकी जड़ों को

पृथ्वी ( स्त्री ) तू धन्य है
प्रत्येक पीड़ा को हरने वाले
वृक्ष की जननी
तू धन्य ही धन्य है
क्योंकि ये शक्ति आकाश ( पुरुष )
पर भी नहीं है
निर्मल, कोमल, अप्रतिबंधित प्रेम
एक अनोखी शक्ति है
जो एक निर्जीव प्राणी में
जीवन की चेतना का
संचार करती है
एक अनोखी दृष्टि का
जिसमें  ईश्वर
स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है |

उसका ( वात्सल्य, श्रृंगार, मित्रता, काम, वफ़ा, प्रीती )
ईश्वरीय दर्शन
'निर्जन' अब हर घड़ी हर पल चाहूँगा
जिससे कभी मैं अपने आप को
नहीं भूल पाऊंगा
क्योंकि मैं भी
स्नेह से बंधा, प्रेम को समेटे
सुख की नींद सोना चाहता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, मार्च 07, 2015

होली हो ली













होली
रंग बिरंगी
हो ली
मन मस्तिष्क को
रंगती हुई, आई
जीवन की होली
एक दिन हुई
होली में जीवन
एक दिन मिला
खुश हो गए
माता-पिता
बंधू बांधव
पर आज पुराने
जीवन की होली
फिर से खेली
नए बंधू के साथ
मौज मस्ती
की छीटें
सिन्धु से, ये
तकदीर का
तमाशा है 'निर्जन'
एक नट की तरह

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

कलि
















सूर्य की पहली रूपहली किरण
जब इस धरातल पर पड़ी
दमक उठा पर्वतों पर उसका सोना
झरनों नदियों में चमकी चांदी की लड़ी
उसके हँसते ही अंकुर भी लहलहा उठे
कलियों की आँखों में आया पानी
कहता है चमन 'निर्जन'
ऐ मुझे रौशन करने वाले ख़ुदा
अब कोई माली ही मुझे मिटाएगा
हर फूल को चमन से जुदा कराएगा
यूं तो आसमां भी तेरी मुट्ठी में है
चांद तारे भी तेरी जागीर हैं
ऐ मेरे! परवर-दिगार-ए-आलम
क्या ?
एक फूल की इतनी ही उम्र लिखी है
खिलता है ज्यों ही घड़ी भर को वो
उजड़ने की उसकी वो आख़िरी घड़ी है
कोई वहशी किस पल आएगा
ये सोच
आज कलि बेहोश पड़ी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, फ़रवरी 22, 2015

होली की सौगात














इस होली मिलकर चलें
अपनाएं प्रेम की राह
जीवन का स्वागत करें
दिल की यही है चाह
ग़म हो जाए उड़न छू
उन्नति के भर लें रंग
जीवन को प्रेम प्रमाण दें
अपनों को लेकर संग
प्रभु को हम भूलें नहीं
रोज़ करें गुणगान
त्यागें आलस्य सभी 
नित्य दें कर्म पर ध्यान
बातें करें धर्म की सदा
करें अपनों का मान
प्रेम से जियें सभी तो
बढ़े आन और शान
छोड़ जात-पात का भेद
स्नेह बंधन में बांधें सबको
करें एक दाता की बात
जो जीवन देता है सबको
साथ मिल जुल कर बैठें
करें ख़ुशी से अठखेलियाँ
घर आंगन स्वर्ग बन जायेगा
एकता का मंदिर कहलायेगा
वृद्ध युवा बालक बंधू सभी
साथ मिलकर धूम मचाएं
हर एक कोने में हो शोर
खुशियों से घर जाए झूम
खिल जाए तिनका तिनका
जब प्रेम की बांधें मनका
जीवन कटे सन्यासी जैसा
सच्चाई से करो बरजोरी
जो रूठे हैं मना लें उनको
 
यही होती है सच्ची होली
क्षण भर में हल हो जायेंगे
सब गिले शिकवे माफ़
जीवन में रंग लाएगी 'निर्जन'
होली की यही सौगात

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 16, 2015

इश्क़ है उनसे











बिलकुल सच, दिल से कहा है
बेहद-बेशक़ इश्क़ है, उनसे मेरा
प्यार करता हूँ, बे-तहाशा उन्हें
रहता हूँ मैं सच, बेतक़ल्लुफ़
मौज़ूदगी में, उनकी सदा

आग़ाज़-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
दरमियां-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
अंजाम-ए-इश्क़ भी, उन्ही से मेरा
बाक़ी दिल में जो भी, बचा गया है
बख़ुदा वो सब भी, उन्ही से मेरा

हाथ थाम कर उनका मैं, मन में,
कलमा-ए-इश्क़, दोहराता रहा
गुनगुनाता रहा, इश्क़ में ऐसे
जिस तरह भंवरा, कलि से
बेख़ौफ़ इश्क़, फरमाता रहा

साथ जब भी, हम दो हैं होते
दिल ज़ोरों से, धड़कता है मेरा
इससे मुकम्मल, इश्क़ क्या होगा ?
पेट दुखता है, हंस-हंस कर
वजूद तरो-ताज़ा, हो जाता है मेरा

आवाज़ उनकी, अब ना सुनूं तो
'निर्जन' दिन मेरा, ढ़लता नही
उनसे है, रूह्दारी, इश्क़िया ख़ुमारी
बेक़रारी, कलमकारी की बीमारी
उनके बिन, जीवन मेरा चलता नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, फ़रवरी 14, 2015

मुझे इश्क़ है, तुम से















मुझे बेपनाह इश्क़ है, तुम से
मुझे सरोकार है बस, तुम से

मुझे इश्क़ है तेरी मीठी, बातों से
मुझे इश्क़ है तेरे कोमल, स्पर्श से

मुझे इश्क़ है तेरी मधुर, मुस्कान से 
मुझे इश्क़ है तेरे विचारमग्न, ह्रदय से

मुझे इश्क़ है तेरी असीमित, ख़ुशी से
मुझे इश्क़ है तेरे जीवन में, रूचि से

मुझे इश्क़ है तेरी पाक़, रूह से
मुझे इश्क़ है तेरे हर, कतरा-ए-लहू से

मुझे इश्क़ है तेरे, इश्क़-ए-जुनूं से
मुझे इश्क़ रहेगा तेरे, वफ़ा-ए-सुकूं से

मुझे इश्क़ है पूरे दिल से, तुम से
मुझे इश्क़ है हद-ए-दीवानगी तक, तुम से

मुझे इश्क़ है आग़ाज़ से, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा अंजाम तक, तुम से

मैं तेरे साथ हूँ हर पल, हर लम्हा
है अनंतकाल दूर अब, एक कदम से

मेरा जज़्बा-ए-इश्क़, बढ़ रहा है 
दिन-रात हैं मेरे, अब तुम से

तुम्हारे इश्क़ का यह, ख़ज़ाना
संजोता है 'निर्जन' आत्मा से, मन से

मेरी चाहतों में अरमां, हैं कितने
जताता रहूँगा यूँ ही मैं, तुम से

इतना ही कहूँगा अब मैं, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा सदा ही, तुम से

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, फ़रवरी 12, 2015

तेरी आँखें













बद्र-ए-बहार से सुर्ख तेरे चेहरे पर
बादः सी नशीली क़ातिलाना तेरी आँखें

मदहोश मदमस्त सूफ़ियाना नशीली
'अत्फ़-ओ-लुत्फ़ से भरी तेरी आँखें

वो पलकें उठें तो दीवाना कर दें
वो पलकें गिरें तो मस्ताना कर दें

मैं इनके करम का तालिब हूँ
मेरी तो हुब्ब-ए-वस्ल हैं तेरी आँखें

वो तड़पाती तरसाती आवारा बनाती हैं
करें कुछ तो ख़याल मेरा तेरी आँखें

हैं जीने-मरने का सबब मेरे
यह रूह-ए-घरक तेरी आँखें

आरा'इश पलकें आब-ए-आ'इना हैं
खुदा का कमाल-ओ-जमाल हैं तेरी आँखें

अक़ीदा-ए-तअश्शुक हैं अबसार तेरे
हैं काबिल-ए-परस्तिश तेरी आँखें

आशिक बहुत क़त्ल हुए होंगे 'निर्जन'
गुल-ए-हुस्न ज़रा अब संभाल तेरी आँखें

बद्र-ए-बहार - full moon glory, beauty & delight
बादः - wine & spirits
'अत्फ़ - kindness, affection
तालिब - seeker
हुब्ब - desire
वस्ल - union, meeting
रूह - spirit
घरक - drowning
आरा'इश - decorating, adoring, beauty
आब-ए-आ'इना - polish of a mirror
अक़ीदा - religion
तअश्शुक - love, affection
अबसार - eyes
परस्तिश - offering prayer
गुल - rose
हुस्न - beauty and elegance


--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

सवाब-ए-इश्क़














अपने मुस्तकबिल में चाहता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

इश्क़ से लबरेज़ दिल को मेरे
वो शान-ए-हाल मिल जाए

उनकी मदहोश आंखों में
मेरा खोया ख़्वाब मिल जाए

गुज़रते हुए लम्हातों में
इंतज़ार-ए-सौगात मिल जाए

सरगर्म मोहब्बत को मेरी
ख़ुशनुमा एहसास मिल जाए

अछाईयां जो हैं दामन में मेरे 
उनका वो कारदार मिल जाए

आरज़ुओं से तरसती नज़रों को
वो गुल-ए-गुलज़ार मिल जाए

जो हैं ज़िन्दगी से ज्यादा अज़ीज़
वो यार-प्यार-दिलदार मिल जाए

अपने मुस्तकबिल में ढूँढता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

जान-ए-इस्तिक्बाल - Life of our future
सवाब - Blessing
शान-ए-हाल - Dignity of our present
सरगर्म - Diligent
कारदार - Manager


--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जनवरी 25, 2015

ज़िक्र-ए-इश्क़














गुफ़्तगू-ए-इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम समझते ही रह गए उन्हें ख़यालों की तरह

लोग करते रहे ज़िक्र-ए-जुनूं दीवानों की तरह
अरमां जब टूट गए थे मय के प्यालों की तरह

फ़लसफ़ा-ए-इश्क़ उम्मीद है बारिशों की तरह
दिल जो भी भीगा रोशन रहा उजालों की तरह

अंजाम-ए-मोहब्बत जागा फिर वफ़ा की तरह
वक़्त ने पेश किया हमको मिलासलों की तरह

ज़िक्र-ए-इश्क़ जब होगा वां बहारों की तरह
याद आएगा 'निर्जन' उन्हें हवालों की तरह

वां - वहां

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, जनवरी 22, 2015

खुजलीमैंन एंड पार्टी













दिल्ली के चुनावों में, लो नौटंकी सजाए
खुजली मैंन मौकापरस्त, रायता फलाए

मफलर, टोपी, चश्मा ये, धारण कर आए
गाल बजा बजाकर, नित नए गान सुनाए

मानहानि जोड़ कर, ग्यारह केस बनाए
करोड़ो की पूँजी में, इत्तू सा लौस दिखाए

लोकसभा के लालची, लार सदा टपकाए
बिन सबूत दूजे पर, इलज़ाम ख़ूब लगाए

भ्रष्टाचार का बाजा, हरदम ख़ूब बजाए
भ्रष्टाचारी आप ही, धुल में लठ हिलाए

स्वराज-लोकपाल की, धज्जियाँ उडाए
पागल थी जनता जो, घर यूँ ही लुटवाए

चंदापार्टी ख़ूब है, झट सेक्युलर बन जाए
दुबई जा शेखों से, माया झोली में पाए

इरादा क्या खूब है, लोमड़ माइंड फरमाए
भोली जनता को, बीस हज़ारी डिनर कराए

पांच सौ में सेल्फी, साथ जो चाहे खिंचवाए
आम आदमी बन, गोरख धंधा खूब चलाए

बेशर्मी के पेंच ये हरदम, ऊँचे खूब उड़ाए
26/11 के नाम पर चंदा, कैसे मांगे जाए

टिकट लेने जो गए, पहले जेब ढ़ीली कराए
मूर्ख बना ऐसों को, ऊँगली पर खूब नचाए

लंपट बाबा खुद को, बस कॉमन मैंन बताए
बिज़नेस क्लास में कैसे, फिर ये मौज उड़ाए

बाबा ड्रामेबाज़ है, नित नए खेल रचाए
माया पाने के लिए, भिखमंगा बन जाए

चुनाव निकट देख कर, युक्ति नई लगाए
मुंह मुखौटा लाद ये, हाथ जोड़ दिखलाए

झाड़ू टोपी धार कर, गली गली चिल्लाए
मैं युगपुरुष महान हूँ, वोट मुझे ही आए

बुलेट हाथ थमाए के, कार्यकर्ता बनाए
एवज़ में नेता जी, प्रचार अपना करवाए

प्रचार के नाम पर, ये भूखे पेट घुमाए
गिलास भर पानी को, बंदा तरसा जाए

नीतियाँ खोटी इनकी, इनको ही सुहाए
विरोध होता देख कर, भृकुटी तन जाए

बेवक़ूफ़ है वो जो, साथ इनका निभाए
लात ये धरे हैं, जो मतलब निकल जाए

खुदगर्जों की जमात है, चूना खूब लगाए
दिल्लीवासी को 'निर्जन', प्रभु जी ही बचाए

--- तुषार राज रस्तोगी ---

Tat Tvam Asi Review

To start with I must enunciate what a book “Tat Tvam Asi” which explains a lot of concepts in itself. A small Sanskrit word that can be delineated into variegated meanings of life. It’s a combination of three words “Tat” meaning “That”, “Tavm” meaning “You” and “Asi” meaning “Are” that binds as a sentence “That You Are”. According to what I have understood here “That” refers to “God” which exists in each one of us, saying “You are God”. Actually, however, we are not really God but we have a bit of God inside our hearts that makes us do right things at right times and take correct decisions in life. Same conceptual real life stories are being shared here in this title and the stories narrated by the author are just awe-inspiring.

Firstly I will thank the publisher for publishing such nice title and mailing me a copy for review. The cover page is really riveting and intriguing with notional design with the title printed over it, followed by the author’s name in hindi style font. As a debutant writer, Pinky Achary’s writing style is heartfully salubrious, acceptable and pleasantly attractive. The stories are corraled down in a very earnestly and wholeheartedly fashion. It took me decent time to finish this book because after reading the first chapter I did not want to peruse the entire book in rush. The memoirs and experiences of the author have struck a cord with me as a reader. Only a woman with high self esteem and pure thoughts can bind such feelings in words and present it as a book, which is indeed a gift for the society.

There are approximately 24 chapters in the book and each one holds a different flavour from life. The language is easy going and no fancy or unnecessary philosophical vocabulary is used in the content. Flavoured with lots of different spices from real life incidents the book relates to the common person. My personal favourites are ‘Change the World Within’, ‘Seva’, ‘Random Acts of Kindness’, ’The Paatiwalas’, ‘The Prodigal Son’, ‘Mind over Matter’, ‘Life is What You Make It’ and ‘National Pride’. All these have been penned with tremendously thought provoking educational content.

Book runs 116 pages long. Each story spreads in an average of 2-3 pages. Editing is tersely done. Quality of print and paper is good. Couple of chapters are there that need rework but I won’t talk about them here because the book is full of positivity, moral values and truly humanitarian vibes. I loved the writing and totally enjoyed the book.

I will give 4.5/5 to this book. Kudos to the writer, publisher and will recommend this book to every person.

--- Tushar Raj Rastogi ---