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सोमवार, फ़रवरी 04, 2013

नीति - अंतिम भाग

"प्रताप!!!" क्षुब्ध खड़ी नीति के अधरों से नाम निकल गया |

प्रताप भी उसको ऐसे सामने देखकर दंग रह गया |

तभी पीछे कैश काउंटर से आवाज़ आई, "मैडम पैसे"

"हाँ, अभी देती हूँ", कहते हुए उसने प्रताप की तरफ देखा | प्रताप ने तुरंत पांच रूपये पकड़ा दिए | अपने सामान के साथ उसने नीति का सामन भी उठा लिया और बहार आ गया |

नीति भी उसके पीछे पीछे सर झुकाए चली आई | बहार आकर प्रताप ने पुछा, "कॉफ़ी?"

उसने चुप चाप सर हिला कर रजामंदी दे दी और बाईक पर बैठ गई | प्रताप हाईवे के उसी ढ़ाबे पर पहुँच गया जहाँ कभी वो दोनों साथ बैठ कर घंटो गुज़ारा करते थे और चाय नाश्ता किया करते थे |

ढ़ाबे पर पहुँचते ही प्रताप ने आवाज़ लगाई, "प्राजी, दो चा स्पेशल होर मट्ठी ओह वि स्पेशल, वेखो आज कौन आया है"

ढ़ाबे का मालिक दोनों से भली भांति परिचित था | सालों का रिश्ता जो था चाय, मट्ठी और ढ़ाबे का |

"खुशामदीद, जी आया नु, आओ जी आओ | बैठो | अज चाँद किथों निकल आया बादशाहों ? वड्डे अरसे बाद | साड्डी याद किथों लाब्बाई ? होर दस्सो की हाल चाल ? सब तों चंगा ? ओये अज तो मैडम जी वि आए हैं | धन भाग हमारे जो तुस्सी पधारे |"

"चंगा प्राजी, अज वादिय सी चा पिलवा दो" प्रताप ने कहा

"बैठो जी बैठो | हुने आर्डर भिजवाता हूँ | ओये छोटू, टेबल पर कपडा मार, भैया दा आर्डर ले कर आ, छेती, स्पेशल चा मलाई मार के, गरम मट्ठी साथ में |"

इस सब के बीच नीति चुप चाप खड़ी पुराने दिनों में खो गई थी | प्रताप ने कहा, "बैठो" | नीति नज़रें झुका के बैठ गई |

प्रताप इस नीति को देख कर हैरान था | कोयल सी चहकने वाली, आज इतनी खामोश कैसे है | उसने हिम्मत कर के पुछा, "और कैसी हो ? यहाँ  कैसे ? हाउस में सब कैसे है ?"

यूँ तो नीति के पास कहने को बहुत कुछ था | पर आज जुबां लफ़्ज़ों का साथ नहीं दे पा रही थी | वो खामोश रही | मौन आज वो सब कुछ कह रहा था जो उसने कभी शब्दों में भी बयां न किया होगा | प्रताप समझ गया था कुछ दिक्कत है | मामला बहत गंभीर है |

ये सब चल ही रहा था के लड़का चाय और मट्ठी ले आया | प्रताप बोला, "अबे यार प्लेट नहीं लाया, जा दो प्लेट भी ले कर आ फटाफट |"

लड़का प्लेट रख कर चला गया | प्रताप ने गिलास से चाय प्लेट में कर दी और नीति के आगे खिसका दी | "

"शुरू करें ?"

नीति के आँखों से सैलाब उमड़ पड़ा | वो धीरे से रुंधे गले से बोली, "तुम्हे आज तक याद है ?"

प्रताप बीच में बात काटते हुए बोला, "प्लेट में चाय सुड़कने का मज़ा ही कुछ और है, क्यों ठीक कहा न ?"

नीति की नम आँखों से बहते आंसु की बूँद को छूती उसके होटों की मुस्कराहट और गालों की लाली ने स्वयं जवाब दे दिया था |

नीति थोड़ा रिलैक्स हुई और प्रताप को आपनी कहानी सुनानी आरम्भ की | उसके हर्फ़-ब-हर्फ़ प्रताप के दिल में नश्तर जैसे चुभ रहे थे और उसकी लाचारगी को भेद रहे थे | वो अपने को अन्दर ही अन्दर कोस रहा था | अगर उस समय वो पीछे नहीं हटा होता तो आज नीति की ये हालत न होती | अचानक नीति बोलते बोलते रुक गई | उसने पुछा, "क्या हुआ ?" प्रताप बोला, "कुछ नहीं | अब आगे क्या सोचा है ?"

नीति ने कहा, "कुछ नहीं, अगले बुधवार तलाक की आखरी तारीख है | उसके बाद सब कुछ खत्म | बेटी का दाखिला नए स्कूल में करवा दिया है | बस फिर मैं और बेटी ज़िन्दगी को फिर से जीना सीखेंगे | अच्छा सुनो, समय बहुत हो गया है | मेरी बेटी स्कूल से आती होगी | वापस चलें |"

प्रताप ने सर हिला दिया और दोनों निकल पड़े | प्रताप ने नीति को गली के बहार ही छोड़ दिया और निकल गया | रस्ते भर वो अब नीति के बारे में ही सोच रहा था और समय को धिक्कार रहा था | कोई इंसान समय के हाथों इनता मजबूर कैसे हो सकता है | एक वक़्त वो था जब वो मजबूर था आज नीति को भी समय ने उसी स्तिथि में ला पटका है | सारा समय वो बस यही सोचता रहा के कैसे वो नीति के जीवन में खुशियाँ वापस ला सकता है |

उधर नीति की भी यही हालत थी | वो सोच रही थी के उसे अपनी बातें प्रताप से नहीं बतानी चाहियें थी | उसका भी परिवार होगा | ऐसा न हो के मेरे कारण उसके जीवन में कोई तूफान खड़ा हो जाये | कितनी बेवक़ूफ़ हूँ मैं | जल्दी बाज़ी में वो प्रताप का नंबर लेना ही भूल गई थी | और उसके बारे में पूछना भी |

समय कैसे गुज़र गया पता भी न चला | तलक का दिन भी आ गया | नीति को सुबह ही कोर्ट के लिए निकलना था | वो घर से निकली और गली के बहार ऑटो ढूँढ रही थी के उसकी नज़र सड़क के कोने में खड़े प्रताप पर पड़ी | वो दंग रह गई के प्रताप वहां क्या कर रहा है ? प्रताप के पास पहुंची और कहा, "तुम?"

प्रताप बोला, "तुमने बताया था न के आज फाइनल हियरिंग है, तो मैं..." अभी वो बात खत्म भी न कर पाया था के नीति बोल पड़ी, "अभी नहीं, देरी हो रही है, बाद में बात करुँगी",  प्रताप की शर्ट की जेब से पेन निकल कर उसके हाथ पर अपना नंबर लिख दिया और ऑटो मैं बैठ कर चली गई |

तलक हुए अब एक महीना बीत गया था | नीति इस झटके से उबरने की कोशिश में उलझी पड़ी थी | न खाने का होश था न पीने का | बस बेटी और वो, दोनों एक दुसरे का सहारा थे | बाकि रिश्ते नातेदार भी थे पर वो भी कब तक साथ देते | सब अपने परिवार में मस्त थे | माता पिता के न होने पर अकेली लड़की का साथ कौन देता है | इस समाज में अकेली लड़की होना बहुत बड़ी सज़ा है | हर इंसान उसे कमज़ोर समझ कर उस पर हाथ रखने और उसके घर में घुसने की कोशिश करता है | उनकी निगाहों से साफ़ दिखाई देता के उनकी मंशा क्या है | ऐसे में नीति को अकेले इस सब का सामना करना सही में चुनौती भरा काम था वो भी एक चौदह बरस की बेटी के साथ |

अचानक एक दिन उसके मोबाइल की घंटी बजी | उसने फ़ोन उठाया और बोली, "हेल्लो कौन ?"

सामने से आवाज़ आई, "प्रताप, मिलना है अभी बोलो कहाँ और कब मैं लेने आ जाऊंगा | बहुत ज़रूरी है |"

जगह फाइनल हो गई और प्रताप उसे लेने आया और फिर दोनों इस्कोन मंदिर चले गए |  मंदिर में कदम रखते ही प्रताप ने नीति का हाथ पकड़ा और अन्दर ले गया | दर्शन किये, परिक्रमा लगाई और बहार आकर चबूतरे पर बैठ गए | इससे पहले नीति कुछ कह पाती प्रताप ने कह दिया, "मुझसे शादी करोगी ?"

नीति ने कहा,"मेरी बेटी है | वो मेरे से भी बुरे दौर से गुज़र रही है | चुपचाप रहती है | पढाई में भी पिछड़ रही है | गुमसुम रहती है | बहुत सहमी रहती है | खुलकर बात नहीं करती | कभी हंसती नहीं | किसी के साथ खेलती नहीं | घुलती मिलती नहीं | उससे पूछे बिना नहीं कह सकती कुछ भी | ये फैसला मेरी बेटी ही लेगी अगर लेना होगा तो | तुम्हे अपनाना शायद उसके लिए मुश्किल होगा | मुझे वक़्त चाहियें |"

प्रताप ने कहा, "बेटी से मिलना है | आज ही | मुझपर भरोसा है तो चलो अभी |"

नीति बिना कुछ बोले प्रताप को सुहानी से मिलाने ले गई | प्रताप का व्यक्तिव सही में आकर्षक था | उसकी सकारात्मक सोच और प्रभावी शख़्सियत सभी को उसका दीवाना बना देती थी | ये बात नीति को भली भांति ज्ञात थी | उस दिन उसने कई घंटे नीति और सुहानी के साथ बात करते बिताये |

रात को सुहानी ने कहा, "मम्मा, अंकल बहुत अच्छे हैं | आई लाइक हिम अ लौट | वो फिर कब आयेंगे ?" नीति हैरान थी जो लड़की आसानी से किसी से बात तक नहीं करती थी वो प्रताप को इतना पसंद कैसे करने लग गई | पर वो खुश थी क्योंकि वो भी यही चाहती थी |

फिर क्या था मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया | प्रताप ने उन्हें दुःख के दिनों से बहार आने में बहुत मदद की | अब तो सुहानी भी उससे बहुत प्यार करने लगी थी | उसकी हर बात मानती और जो भी वो समझाता उससे ध्यान से समझती और फॉलो करती | वो भी एक पिता की तरह उसका ख्याल रखता था | ऐसे करते कब साल गुज़र गया पता भी न चला | ज़िन्दगी की धुरी अब पटरी पर आने लगी थी |

एक दिन नीति ने दीपक को फ़ोन करके प्रताप के बारे में बताया | दीपक ने सुना तो बहुत खुश हुआ | वो भी दिल ही दिल में यही चाहता था के नीति अपनी ज़िन्दगी को दूसरा मौका दे और अगर इस पारी में प्रताप उसके साथ है तो सब ठीक ही होगा | वो भी इस फैसले में नीति के साथ था |

सुहानी का जन्म दिवस आया | प्रताप एक सुन्दर सा केक बनवा कर उसके लिए लाया और बहुत से खिलौने भी | शाम को सब साथ थे | नीति ने केक काटने से पहले सुहानी से पुछा के उसे अंकल का गिफ्ट और केक पसंद आया ? उसने जवाब में कहा, "हाँ पसंद आया पर उसे कुछ और भी चाहियें |"

प्रताप ने पुछा, "बोलो डिअर, क्या चाहियें ? तुम्हारे लिए सब कुछ हाज़िर है, बस आवाज़ करो"

सुहानी बोली, "आप सोच लो, जो बोलूंगी मिलेगा न, पक्का ?"

"हाँ मेरे चाँद बोलो तो" प्रताप ने उसे गले से लगा कर कहा

सुहानी ने धीरे से उसके कान में कहा, "क्या आप मेरे पापा बनेंगे?" ये बात सुनकर तो प्रताप की ख़ुशी का ठिकाना न रहा | उसकी आँखें छलक गई | उसने सुहानी को कस कर अपनी बाहों में भर लिया और कहा, "ज़रूर बेटा, आप कहते हो तो ज़रूर पर मम्मी से तो पूछ लो | क्या वो रेडी हैं ?"

नीति चुप चाप खड़ी देख रही थे के इन दोनों के बीच आखिर क्या खिचड़ी पक रही है के तभी सुहानी ने पुछा, "मम्मी, अगर अंकल मेरे पापा बन जाएँ तो आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं है?" नीति के पास कोई जवाब न था वो सुहानी के सवाल पर बुत बनी खड़ी थी और प्रताप को देख रही थी | प्रताप चुप चाप खड़ा मुस्करा रहा था | नीति समझ नहीं पा रही थी आखिर ऐसा हुआ कैसे | क्या जादू चलाया | आज उसे कन्फर्म हो गया था के प्यार और सहजता में जो आकर्षण है वो जीवन में और किसी चीज़ में नहीं है | एक दिन प्रताप के प्यार ने उसे बदल के रख दिया था और आज उसकी बेटी को भी |

सुहानी बार बार पूछ रही थी और आख़िरकार नीति ने हामी में सर हिला दिया |  उसे अपने जीवन का सबसे बहुमूल्य तोहफा मिल गया था और सुहानी को भी | वो बहुत खुश थी | प्रताप और नीति भी उसकी ख़ुशी से बहुत खुश थे |

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

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रविवार, फ़रवरी 03, 2013

प्यार की खातिर

रात बिस्तर पर लेट तो गया पर नींद कहाँ ओझल हो चुकि थी मालूम ही नहीं था | आँखों ही आँखों में रात बीते जा रही थी | करवटें बदल बदल कर चादर पर सिलवटें पड़े जा रही थीं । हजारों ख़यालों से लबरेज़ यह दिमाग दिल की दस्तक को बार बार दरकिनार किये जा रहा था के चल उठ जा और लिख डाल एक और कहानी | लिखे बिना तू सोने नहीं वाला | पर हिम्मत थी के जवाब दिए जा रही थी | दिमाग में जो १००० वाट के करंट की तेज़ी से नए नए किरदार घंटी बजाये जा रहे थे उनसे कब तक बचता | आख़िरकार दिल की जीत हुई | कुछ २ या २.३० का वक्फा रहा होगा | चीते की फुर्ती से उठा और लैपटॉप ऑन कर बैठ गया | नोटपैड खोला और लग गया ख़यालात को शब्दों में उतारने |

पात्र:
शरद - नायक
सारिका - नायिका

कुछ आकर्षक बात तो होती ही है उन बेपरवाह प्यार करने वाले लोगों में, असाधारण युगल जोड़ों में, अति काल्पनिक व्यक्तियों में और करिश्माई शख़्सियत वाले किरदारों में जिसके चलते वो अपनी अंदरूनी ताक़त और शक्ति के बल पर अपनी स्नेहपूर्ण सोच और अपने विचारों का जादू चला देते हैं | अपनी अदाओं, बातों और भाव भंगिमाओं से किसी भी चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं | अपनी सशक्त वाक् शक्ति के चलते सामने वाले में आत्मविश्वास और उम्मीद की किरण का संचार कर देते हैं | कुछ लोग सच में ऐसे ही होते हैं | वो अचानक से आपकी ज़िन्दगी में कदम रखते हैं और अपना सब कुछ आपको समर्पित कर आपके हो जाते हैं |  ऐसे लोगों के साथ जीवन भी जीवंत हो उठता है |

ऐसे लोग जीवन में एक ख़ास मुक़ाम रखते हैं, अच्छे लगते हैं, प्यारे लगते हैं और उन पर सब कुछ न्योछावर करने को हम सदैव तत्पर रहते हैं | आजकल की दुनिया में जहाँ स्वयं में डूबे प्राणी, वो दुनिया जहाँ देने की बनिस्बत लेने की मंशा रखने वाले लोग बसते हैं | उस संसार में हमें यदि ऐसे चाहने वाले दिलदारों से वास्ता पड़ जाये तो तुरंत ही उन्हें खुद से बाँध लें, बाहों में जकड़ लें, कसकर लिपट जाएँ, आग़ोश में समां जाएँ और ज़िन्दगी भर उनका साथ निभाएं |

आख़िरकार सारिका के जीवन में भी कोई ऐसा चाहने वाला, कोई ख़ास, उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर लाने वाला, उसके जीवन को सौभाग्य एवं आनंद से सराबोर करने वाला, उसके उन ख़ास पलों में जीवन के मज़े को कई गुना बढ़ने वाला उसके दिल पर दस्तक दे चुका था | शरद नाम था उसका | नाम की तरह उसका मिजाज़ भी एक दम माकूल था | हमेशा हँसता और मुस्कराता रहता और इश्क़ के मामले में अव्वल नंबर था | अब सारिका का सारा जीवन शरद और उसके प्यार के नाम लिखा जा चुका था | सारिका के दिल की हर धड़कन हर सांस सिर्फ उसके प्यार के लिए ही थी |

जाड़े जा रहे थे | गर्मियों का आगमन होने को था | दिन के सूरज से काफी तेज़ी छलक रही थी | वाष्पयुक्त फूटपाथ के फर्श पर हलचल करते और हड़बड़ी मचाते खुशनुमा लोगों की भीड़, सैलानीयों की भरमार और मसरूफ़ समुद्र-तट | यही नज़ारा था गोवा की उस शाम का | सारिका की पसंदीदा जगह | अपने प्यार के साथ वो भी इन पलों के आनंद में भाव विभोर हुए जा रही थी | उसके मुताबिक इस जगह से सुन्दर और कोई भी जगह पूरे संसार में नहीं थी | यहाँ का आकर्षण ही कुछ ऐसा है के जो एक बार आया वो यहीं का हो कर रह गया | इस सबके बीच सबसे सुन्दर बात ये थी के उसके साथ दुनिया का सबसे खूबसूरत, कामाकर्षक, जवां और रोबीला मर्द था | जो उस पर जान छिड़कता था | वो भी उसपर ऐसे ही मरती थी ।

हालाँकि ये ट्रिप किसी प्लान के तहत नहीं बना था | बस बैठे बैठे अचानक से ही शरद के दिमाग में कीड़ा उठा और साथ में समय व्यतीत करने का दिल हुआ और ऑनलाइन टिकटें बुक करवा दीं | सारिका के लिए ये बहुत पड़ा सरप्राईज़ था | दोनों को साथ समय गुज़ारे एक अरसा बीत चुका था | और वो दोनों साथ में कुछ रूमानी पल गुज़ारना चाहते थे | तो गोवा से अच्छी जगह और क्या होती | सारिका की ख़ुशी का ठिकाना न था |

वहां के जादुई समुंद्री तट, गीली रेत में रातों को साथ लेटना, खुली आँखों से हाथ में हाथ लिए सपने देखना, पानी के बहती लहरों से तलवों का भीगना, ठन्डे भीगे तलवों को एक दुसरे के पैर पर लगाना, भीगे जिस्म से निकलती गर्मी का एहसास महसूस करना, रात के चाँद की परछाई का समुन्द्र की लहरों में खो जाना, धीमी धीमी पुरवाई का चलना, हलकी मध्यम ठण्ड से रोंगटे खड़े हो जाना, एक दुसरे की बाहों में सिमट जाना, बाजारों का शोर, नए नए चेहरों का दीदार, जल क्रीड़ा का आनंद, मोटरसाइकिल पर चिपक कर बैठना, गलियों और बाजारों में एवई चक्कर लगाना, समुन्द्र में नावों और जहाजों का आना जाना देखना, नारियल पानी पीना, अच्छा खाना खाना, विंडो शौपिंग करना और भी ऐसे अनेकों उल जुलूल काम करने का आनंद साथ में एक्सपीरियंस करना  | ऐसा सुन्दर, प्यार करने का, एक दुसरे को करीब से जान पाने का समय, माहौल तथा मौका इससे बेहतर कहाँ मिलेगा |

दिनभर तट पर गर्म हवाएं चलती रहीं | सूरज भी नाक चिढ़ता हुआ अपनी चिलचिलाती गर्मी बिखेरता रहा | सारिका और शरद दोनों ही बीच क्लोथिंग में घूमते रहे | गर्मी कुछ ज्यादा ही थी | पसीने से दोनों लथ पथ हो रहे थे | फिर भी अटखेलियों से बाज़ नहीं आ रहे थे | एक दुसरे को बाहों में भरे, चूमते और मस्ती करते घूम रहे थे | फिर थक कर निढ़ाल होकर वही लेट गए और सन टैनिंग के मज़े लेने लगे | शरद भी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आता था, कहता,

"डार्लिंग, इतना सन टैनिंग करोगी तो काली हो जाओगी"

सारिका भी चिढ़ कर जवाब पकड़ा देती के, "काली हो भी गई तो क्या हुआ, दिलवाली तो ऐसी ही रहूंगी | तुम्हे काली होने से परहेज़ है क्या ? काली से प्यार में कमी आ जाएगी क्या?"

शरद जोर के हंसा और बोला, "कल्लो के साथ तो और मज़ा आएगा | नज़र भी नहीं लगेगी किसी की | और काली बॉडी का तो अपना ही चार्म है ;)" वो नटखट अंदाज़ में उसकी कमर पर हाथ फेरता हुआ बोला"

"शट अप ! माइंड यौर हैंड्स मिस्टर" कहती हुई सारिका ने कामोत्तेजक मुस्कराहट के साथ शरद की बात की पुष्टि कर दी और थोडा और पास आकर लेट गई |

सूरज शिथिल पड़ रहा था और धीमे धीमे सागर की लहरों के बीच समा रहा था | समस्त सागर गुलाबी हो गया था और दूर बहती लहरें सितारों की भाँती चमकीली नज़र पड़ रहीं थी | चिड़ियाँ चेह्चाहती आसमान में उडती अपने घोंसलों को वापस लौट रही थीं | कुछ लोग सागर के किनारे पर जॉगिंग करने में लगे हुए थे | कुछ फिरंगी हाथों में हाथ डाले घूम रहे थे | कहीं कोई खोमचों पर खाने उड़ा रहे थे | तो कहीं मालिश वाले तेल लेकर घंटी बजाते आवाज़ दे रहे थे | कहीं बच्चे खेल रहे थे और कहीं अल्हड जवानियाँ अपने यौवन के शिखर पर मदहोश मदमस्त हो झूम रही थीं | सागर में उमड़ती लहरों की फुहारें दोनों के तन को भिगो रही थी | दोपहर से दोनों साथ में लेटे गर्मी, बातों, आसपास के लोगों और नज़रों का आनंद उठा रहे थे | ढलती शाम के साथ रूमानियत भी चरम पर आने लगी थी |

दोनों ने एक दुसरे की ओर देखा और नज़रों में बातचीत आरम्भ कर दी | शब्दों से ज्यादा निगाहों की भाषा समझा रहे थे दोनों एक दुसरे को |

शरद ने धीरे से पलकें बंद की और खोलीं, जानब पूछ रहे थे, होटल रूम वापस चलें क्या ?

सारिका ने नज़रें इधर उधर घुमा कर और धीरे से आँखें मूँद कर जवाब दिया, "नहीं अभी नहीं " |

फिर एक टकटकी बंधकर, शरद की आँखों में आँखें डालकर देखती रही, जैसे पूछ रही हो, "आज रातभर यहीं ऐसे ही लेटे रहते हैं, प्लीज़" |

शरद, मुस्करा दिया, आँखे मूंदी और भवें ऊपर करके हामी भर दी |

बदले में जवाब मुस्कान के साथ मिला और साथ में एक फ्लाइंग किस भी |

रात भर दोनों बीच पर ऐसे ही लेटे लेटे बातें करते रहे | कभी शब्दों में, कभी आँखों में और कभी इशारों में | दोनों बस यही सोच रहे थे के वो दोनों साथ हैं तो प्यार है , और प्यार है तभी वो दोनों आज साथ हैं | कुछ भी कहने के लिए इस पल से सुन्दर समय कोई दूसरा नहीं हो सकता था | शरद को गुमान था के उसकी लेडी लव,  लेडी लक, उसकी जान और सारिका की मासूम मुस्कान उसके साथ थी | टू पीस में लेटी वो कहर बरपा रही थी | छिटकती चांदनी रात में उसकी त्वचा कोमल, मदमस्त, और चमकदार लग रही थी | जैसे किसी जाम में शम्पैन उंडेल दी गई हो और उसके सितारे टिमटिम करते उकसा रहे हों के आओ और हमें अपने गले से नीचे उतार लो | सारी रात वो दोनों एक दुसरे की आँखों से मदिरापान करते रहे और गर्म साँसों के मदिरालय में मदहोश होते रहे | एक दुसरे से ख़ामोशी में उन्होंने वो सब कह दिया जो शायद वो कभी शब्दों में भी नहीं कह पाते | दोनों एक दुसरे की बातों में इतने डूब गए के सुबह कब हो गई पता ही न चला |

शाम की फ्लाइट से दोनों वापस घर आ गए और फिर वही भागदौड़ वाले जीवन का हिस्सा बन गए | पर वो तीन दिन जो दोनों ने एक दुसरे के साथ बिताये थे वो ज़िन्दगी के सबसे यादगार और आरामदेह पलों में से थे | उन छुट्टियों के बाद वो बेहद करीब और करीब आ गए थे | उनका रिश्ता और पक्का हो गया था | दोनों को एक दुसरे पर खुद से ज्यादा विश्वास कायम हो गया था | ये पल उन्हें हमेशा याद रहेंगे और इन छुट्टियों का एहसास उम्रभर साथ रहेगा | मौके ज़िन्दगी और भी बहुत से देगी पर जो रिश्ता इन छुट्टियों बना था वो ज्यों का त्यों रहेगा | आखिर ये जो भी किया था सिर्फ "प्यार की खातिर" ही तो किया था |

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शनिवार, फ़रवरी 02, 2013

नीति - भाग ३

देहलीज़ के उस पर एक दूसरी दुनिया थी | अनजान लोगों की भीड़ से भरी एक ऐसी दुनिया जिसकी परिकल्पना नीति ने कभी नहीं की थी | हर एक इंसान जो उस चौखट के पार खड़ा था एक नए रिश्ते का बोझ उस पर लादने तो तयार था | जैसे तैसे हिम्मत जुटा कर नीति ने ग्रहप्रवेश कर तो लिया लेकिन उन नए चेहरों की भीड़ में वो अभी भी उसी एक चेहरे को तलाश रही थी जिसकी ख्वाइश उसने हमेशा से की थी | सभी रीती रिवाज़ों और रस्मों को पूरा करते काफी रात हो गई थी | थकान के मारे चूर हो चुकी नीति अपने कमरे में पहुँचते ही बिस्तर पर निढ़ाल हो गिर पड़ी और कब आँख लग गई पता ही न चला |

एक नई सुबह के साथ ब्याहता जीवन का प्रथम दिवस आरम्भ हुआ | रंजीत ने उठते ही चाय की फरमाइश कर दी | नई नवेली दुल्हन की तरह वो चुपचाप उठी और जल्दी से रसोई घर में जा पहुंची | ललिता देवी उसकी सास ने टेडी निगाहों से उसकी ओर देखा और तुनक कर बोली,

"नीति, नहाये बिना हमारे यहाँ रसोई घर में कोई कदम नहीं रखता | तुमने रसोई को अपवित्र कर दिया | बेटा अब बहार जाओ और महाराज से बोल दो क्या चाहियें |"

"महाराज, सुनते हो महाराज, गंगाजल छिड़क कर रसोई को पवित्र कर दो और नीति को जो चाहियें दे दो |"

नीति "जी मम्मी, आगे से ख्याल रखूंगी | मुझे मालूम नहीं था |" कहते हुए रसोई से बहार जाकर खड़ी हो गई |

महाराज ने चाय उसके हाथों में थमा दी और वो अपने कमरे में चली गई | उसे इस बात का अंदेशा भी न था के जो उसने अभी अभी देखा था वो सिर्फ ट्रेलर था पूरी पिक्चर तो अभी बाकी थी | धीरे धीरे उस पर किन मुसीबतों का पहाड़ टूटने वाला है इससे वो पूरी तरह से अनजान थी | वो बेचारी तो प्रताप की यादों को भुलाकर रंजीत की दुनिया बसाने की कोशिश में ही उलझ कर रह गई थी | समय गुज़रा और ज़िन्दगी रोजमर्राह के कामों के साथ शुरू होने और खत्म होने लग गई | सुसराल के पचास काम और सुसरालईयों की फरमाईशों के चलते अब उसे अपने लिए वक़्त निकलना मुश्किल होने लगा था | सुबह से शाम और शाम से रात कब हो जाती पता भी नहीं पड़ता था | सभी के मूड को ठीक करने और सभी को खुश करने की कोशिश में वो गधे की तरह दिन रात काम में लगी रहती | पर फिर भी कोई उससे सीधे मुंह बात तक न करता था |

नीति के ससुर चमन लाल बहुत ऊँचे रसूक वाले व्यक्ति थे | पर वो दो मुहें सांप थे | समाज में दिखाने का चेहरा अलग था और घर पर कुछ और ही कलाकारी होती थी  | ललिता देवी घर में कम और घर से बहार ज्यादा समय व्यतीत किया करती थी | उसे अपनी सोशल लाईफ से ही फुर्सत नहीं मिलती थी | नन्द इतनी नकचढ़ी के जिसका कुछ ठीक नहीं था | नंदोई भी अव्वल नंबर का छिछोरा था |

कुछ समय पश्चात नीति ने एक प्यारी और फूल सी बेटी को जन्म दिया | अभी वो पत्नी के रिश्ते के बोझ से उबर भी नहीं पाई थी के माँ के रिश्ते का भार भी उसके नाज़ुक कन्धों पर आ गया | बेटी का जन्म उसके लिए के नए तूफ़ान को साथ ले आया | बेटी के जन्म से वो बहुत खुश थी | एक नया खिलौना उसके जीवन में आ गया था | पर सुसराल वालों के भवें तन चुकी थीं | उस दिन के बाद फिर ज़ुल्मों को सहने और झेलने का एक नया दौर आरम्भ हुआ |

दिन रात सास - ससुर के ताने | नन्द की नक्शेबाज़ी झेल झेल कर उसे डिप्रेशन रहने लग गया | नंदोई की अश्लील फब्तियों और घिनौनी नज़रों से वो मानसिक तौर पर घ्रणित महसूस करने लग गई थी | रंजीत तक उसके साथ ठीक व्यव्हार नहीं करता था | कभी इस चीज़ के लिए तो कभी उस चीज़ के लिए उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ती | बुरी बुरी गालियों का, तानो का और भेद भाव का सामना करना पड़ता | कभी शादी में लाये सामान को लेकर कभी शादी के खान पान को लेकर कुछ न कुछ उसे सुनने को मिलता ही रहता था | कितनी ही दफा उससे इन डायरेक्टली पैसों की मांग की गई | कई बार तो रंजीत ने उसपर हाथ तक छोड़ दिया | पर वो घर की इज्ज़त और बेटी के प्यार के कारण सब बर्दाश्त करती रहती | सब कुछ चुप चाप सहती रही |

इस सब के चलते उसे अगर कुछ सुकून के पल मिलते थे तो वो उसकी बेटी के साथ होते | सुहानी नाम रखा था उसका | और सच में वो बहुत ही सुहावनी थी | मनमोहक थी | गोरी चिट्टी पटाखा से नयन नक्श | उसके साथ समय सागर की लहरों की तरह कैसे बह जाता मालूम ही नहीं पड़ता था | उसको नहलाना, तयार करना, खाना खिलाना, दूध पिलाना, उसके साथ खेलना मस्ती करना, इस सब में वो अपने सारे दुःख दर्द भुला देती थी |

यदा कदा नीति को दीपक की याद भी आ जाया करती थी | हालाँकि वो उससे नाराज़ थी क्योंकि वो नीति की शादी में शामिल नहीं था पर प्यार आज भी बरक़रार था | प्यार का रिश्ता सब गिले शिकवों से बड़ा होता है | अपने दिल का हाल वो और किसी से बाँट भी नहीं सकती थी | जो बात वो दीपक को बतला सकती थी शायद माता पिता से भी न कर पाती | अपना हल-दिल और किसी से इतना खुल कर नहीं कह सकती थी |

दीपक को शुरुवात से ही नीति के इस फैसले पर ऐतराज़ था | वो ज़रा भी खुश नहीं था | उसने नीति को समझाया भी था पर विपरीत हालातों के चलते वही हुआ जो नियति को मंज़ूर था |  उसे न तो रंजीत ही पसंद था न उसका परिवार | यही कारण था के शादी के इतने सालों के बाद भी जो रिश्ता एक जीजा साले के बीच होना चाहियें था वो कभी बन ही नहीं पाया था | दीपक जब भी रंजीत से मिलता उससे एक खलनायक वाली फीलिंग आती और वो किसी तरह बहाना बना कर वहां से निकल जाया करता था | रंजीत की भी दीपक के सामने हवा संट होती थी क्योंकि उसकी शेखी बघारने की आदत दीपक के सामने कभी नहीं चलती थी | दीपक के जवाब सुनकर अक्सर सबके सामने उसकी झंड हो जाया करती थी | इसलिए वो भी दीपक के सामने संभल कर बात किया करता था |

समय पंख लगाये कैसे बीत जाता है पता ही नहीं पड़ता | ऐसे ही घुट घुट मरते जीते १४ साल गुज़र गए | बेटी बड़ी हो रही थी और सभी हालात समझने लगी थी | अब वो भी माँ के साथ देना चाहती थी | अपनी दादी, दादा और पिता की नाइंसाफी को देख कर वो भी सहमी रहती थी | पर उसके बस में भी कुछ न था | आखिर वो एक छोटी बच्ची ही तो थी |

एक दिन अन्याय की सभी सीमायें लाँघ दी गईं | सुसराल वालों ने किसी छोटी सी बात पर नीति को कमरे में बंद कर के मर पिटाई की | उसके कपड़े तलक फाड़ दिए | बेटी के सामने गला दबाने की प्रयास किया | वो तो नीति की ही हिम्मत थी के जो जैसे तैसे अपने और अपनी बेटी को बचाकर वहां से निकल भागी | उसने तुरंत दीपक को फ़ोन किया और आपबीती बयां की | दीपक ने पुलिस में शिकायत करने को कहा | पर वो डरी हुई थी | उसके साथ उसकी बेटी थी | ऐसे में दीपक ने उसका पूरा साथ दिया और उसे घर वापस ले आया |

नीति लौटकर अपने पिता के घर वापस तो आ गई | पर मायके में रहना आसान नहीं था | हज़ार लोग लाखों सवाल | पिताजी और माताजी की तबियत भी बिगड़ रही थी | अभी कुछ अरसा ही हुआ था उसे वहां रहते | अपने साथ हुए हादसे से वो उबर भी न पाई थी के एक और वज्रपात से वो चकना चूर हो गई | उसके माता पिता के अकस्मात् निधन ने उससे पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया | और कहते हैं न के भेड़िये हमेशा मौके की ताक में रहते हैं तो यहाँ भी ऐसा ही हुआ | उसके सुसराल वालों ने ऐसे समय पर उसके ज़ख्मों पर नमक और लाल मिर्ची रगड़ दी | उसके ऊपर तलक का केस कर दिया |

नीति का धैर्य भी अब जवाब देने लग गया था | उसे रातों को नींद नहीं आती थी | वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार होने लगी थी | हल पल चिड़िया के जैसे चहकने वाली लड़की अब बिस्तर से भी नहीं उठती थी | अँधेरे कमरे में अकेले बैठी रोती रहती | उसकी आँखें सूज कर लाल हो गई थी और उनके नीचे काले धब्बे उबरने लग गए थे | अब वो भी किस्मत से हार मान लेने को तयार थी  | पर भगवान् में उसकी आस्था ने उसे कभी ऐसा करने नहीं दिया | दीपक भी हमेशा उसके होसले को बढ़ावा देता रहता था | ऐसे समय में उसके पास सिर्फ यही कुछ सहारे थे | एक अपनी बेटी का प्यार, भगवन में उसकी अटूट भक्ति और दीपक का साथ उस पर भरोसा |

लेकिन साहब वो कहते हैं न भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं | इन सब हालातों के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी | वो इतवार का दिन था | बेटी के साथ वो रिलायंस फ्रेश में साग सुब्ज़ी लेने गई थी | भीड़ काफी थी | उसने देखा के आलू के भाव बहुत कम हो गए हैं | तो सबसे पहले वही लेने आगे बढ़ गई | भीड़ में से उसने के व्यक्ति के कंधे पर थपथपाया और कहा,

"एक्स-क्यूज़ मी प्लीज़, क्या आप थोडा साइड देंगे ? मुझे भी आलू लेने हैं | वह धीरे से साइड हो गया और नीति ने सुब्ज़ी ली और काउंटर पर जाकर पेमेंट के लिए खड़ी हो गई | पेमेंट करते वक़्त काउंटर पर उससे पांच रूपये खुले मांगे | उसने पर्स देखा तो छुट्टे पैसे नहीं थे | उसने आस पास देखा शायद किसी के पास चेंज हो | अचानक उसे वही इंसान नज़र आया जिससे उसने पहले रिक्वेस्ट की थी | उसकी कमर नीति की तरफ थी | एक बार फिर होसला जुटा कर वो आगे बढ़ी और उसकी पीठ पर धीरे से हाथ लगाया और कहा,

" एक्स-क्यूज़ मी, सॉरी फॉर ट्रबल | कैन यू प्लीज़ हेल्प मी ? डू यू हैव चेंज फॉर टेन रुपीज़ ?"

वो व्यक्ति धीरे से मुड़ा | उसका मुस्कराता हुआ चेहरा अब नीति की ओर देख रहा था | नीति ने जैसे ही नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा तो सन्न रह गई | वो प्रताप था | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

गुरुवार, जनवरी 31, 2013

नीति - भाग २

रस्ते भर दीपक नीति की टांग खींचता रहा | और नीति उसे लातें, घूंसे और गलियां देती रही | और वो हँसता रहा | गज़ब की अंडरस्टैंडिंग थी दोनों में और गज़ब का प्रेम भी | आज तो सगे रिश्तों में भी ऐसी भावना और प्यार देखने को नसीब न हो | प्रताप, दीपक को  बेहद पसंद आया था | वो भी यही चाहता था के नीति को ऐसा ही जीवन साथी मिले | घर वापस पहुंचकर दीपक ने पुछा,

"आगे क्या इरादा है ? सीरियस है या टाइम पास कर रही है?"

नीति सोच में पड़ गई | उसने दीपक से ऐसे संजीदा सवाल की उम्मीद नहीं की थी | उसने खुद भी अभी तक इसके बारे में नहीं सोचा था | दीपक उसके चेहरे के आवभाव से समझ गया था के ये खुद भी अभी तक कन्फ्यूज्ड है | नहीं जानती आगे क्या करना है | उसने सिर्फ इतना ही कहा के, "अब सीरियस हो जा, मजाक का समय गया |" और इतना कह कर वो चला गया |

नीति सारी रात इस बारे में सोचती रही | पर घरवालों को बताने की उसमें ज़रा भी हिम्मत न थी | समाज से पहले उसे घर वालों से डर था | दूसरी बिरादरी का लड़का | पापा तो बिलकुल नहीं मानने वाले | उसे भली भांति ज्ञात था के पापा हार्ट पेशेंट हैं | अगर ये बात सुनकर कुछ उंच नीच हो गई तो मैं सारी ज़िन्दगी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाएगी | इसी जद्दोजहद में पता नहीं कब सुबह हो गई पता ही न चला |

अब दिन रात उसे यही फ़िक्र लगी रहती के वो क्या करे | प्रताप से भी मिलती तो थी, दिल तो उसके पास रहता पर दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहता | एक दिन हिम्मत कर के उसने प्रताप से पूछ ही लिया |

"प्रताप, हम शादी कब करेंगे ?"

प्रताप भी उसके इस सवाल से हैरान रह गया | उसने इस सवाल की उम्मीद इतनी जल्दी नहीं की थी | वो ख़ामोश रहा और कुछ नहीं बोला | दोनों की ख़ामोशी बहुत कुछ कह रही थी पर दोनों मजबूर भी थे, के क्या जवाब दें एक दुसरे को |

दिन बीतते गए  | नीति का कॉलेज भी खत्म होने को था | फाइनल इम्तिहान चल रहे थे और ज़िन्दगी की परीक्षा के लिए भी वो तयार हो रही थी | कॉलेज का आखरी दिन था | वो और प्रताप लंच टाइम पर मिले | करने को बहुत सी बातें थी पर कुछ ऐसा था भी नहीं जिस पर बात करें  | काफी देर तक दोनों खामोश बैठे एक दुसरे का चेहरा तांकते रहे |

यकायक नीति बोली, "मैं चलूँ" |

प्रताप ने चुप्पी तोड़ी और कहा, "मेरे हालत ऐसे नहीं है के अभी शादी के बारे में सोच सकूँ | पिताजी भी बचपन में ही छोड़ कर चले गए थे | अभी तो बहुत कुछ करना है | घर की जिम्मेदारियां भी पूरी करनी हैं | भाई बहनों का भी सोचना है | अभी अपने बारे में नहीं सोच सकता |"

प्रताप की ये बात तीर के जैसे नीति के दिल को अन्दर तक भेद गई | नीति की आँखों में आंसू थम नहीं पाए | फिर भी कोशिश करते हुए रुंधे गले से बोली,

"आई कैन अंडरस्टैंड, चलती हूँ |"

बस वही थी उसकी प्रताप से आखरी मुलाक़ात | कुछ समय बाद नीति के परिवार वालों ने एक लड़का देखकर उसका रिश्ता पक्का कर दिया | लड़का छोटे शहर का था पर पढ़ा लिखा था | नीति के पिता और लड़के के पिता दोस्त थे | नीति को उन्होंने मुंह से माँगा था | लड़के का नाम था रंजीत | नीति ने भी दिल पक्का कर लिया था और शादी के लिए राज़ी हो गई थी |

कुछ दिवस उपरान्त एक अच्छा दिन देख कर दोनों की सगाई कर दी गई | उस दिन आखरी बार प्रताप का फ़ोन नीति के पास आया था |

उसने फ़ोन पर सिर्फ एक ही सवाल किया था, "आर यू एन्ग्गेजड?"

नीति रिसीवर पकडे खामोश खड़ी रही और उसकी ख़ामोशी ने हर सवाल के जवाब दे दिए |

दिवस बीते और नीति की शादी का दिन आ गया | ख़ुशी  से ज्यादा उसके दिल में दर्द था | हालाँकि वो रंजीत से काफी बार मिल चुकी थी | दोनों साथ घूमने फिरने भी जा चुके थे | किन्तु वो दिल का रिश्ता अभी भी नहीं जोड़ पाई थी | इस कमबख्त़ दिल का क्या करती जो हर समय बस प्रताप के बारे में ही सोचता रहता था | इस एक रात के बाद उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदलने वाली थी | वो प्रताप से बहुत दूर जाने वाली थी | क्या उसने शादी के लिए हाँ करके सही किया था ? आगे क्या होगा ? क्या वो प्रताप को भुला पायेगी ? क्या प्रताप उसे भुला पायेगा ? शादी के बाद वो रंजीत के साथ खुश रहेगी? क्या रणजीत एक अच्छा पति साबित होगा? क्या रंजीत को प्रताप के बारे में बताना ठीक होगा? क्या वो इस बात को स्वीकार कर पायेगा?  इन्ही सब सवाल जवाब और ज़िन्दगी की उलझनों के बीच उसने रंजीत के साथ सात फेरे तो पूरे कर लिए और सो कॉल्ड शादी भी हो गई |

बिदाई हो गई | गाडी सुसराल पहुँच गई | सुसराल के दरवाज़े पर देहलीज़ पार करने को खड़ी वो अभी भी इन्ही सब सवालों से झूझ रही थी | क्रमशः

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सोमवार, जनवरी 28, 2013

ज़िन्दगी - अंतिम भाग

उस दिन सारी रात आँखों आँखों में ही कट गई | बारिश थम चुकी थी | तूफ़ान आके गुज़र चुका था और नुक्सान भी काफी कर गया था | राम सारी रात वहीँ ठण्ड में बैठा रहा और सोचता रहा के ज़िन्दगी ऐसा मज़ाक उसका साथ ही क्यों कर रही है | हर दफ़ा मैं ही क्यों ? मेरी गलती क्या थी ? और ऐसे कई सवालों के जवाब ढूँढ़ते ढूँढ़ते न जाने कब आँखों आँखों में रात कट गई |

अचानक से सन्नाटा टूटा और एक प्यारी से आवाज़ सुनकर वो चौंक गया | सारा उसकी छोटी बेटी उसके सामने खड़ी थी | उसे देखकर वो मुस्कराया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा, "गुड मोर्निंग माई एंजेल, यू वोक उप अर्ली टुडे | क्या हुआ ?"

सारा बोली, ? "पापा स्कूल का टाइम हो गया, जल्दी कहाँ ? जल्दी चलो न वरना लेट हो जायेंगे |"

राम ने तुरंत घडी देखी और ५ मिनट में तयार होकर आ गया | गाडी निकली और सारा को स्कूल छोड़ने चल दिया | रास्ते में सारा ने पुछा,
"पापा, मम्मी कहाँ है ? सोम्य और मम्मी कब वापस आयेंगे ? | आपको मालूम है सोम्य के साथ खेलने में मुझे बहुत अच्छा लगता है | वो मुझे थोडा डांटती तो है और झगड़ा भी करती है पर वो मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड भी है | मैं उससे बहुत प्यार भी करती हूँ और वो मेरे से |"

राम के पास उसके मासूम सवालों और बातों का कोई जवाब न था | वो अपने आंसूओं को छुपाये चुप चाप हलकी सी मुस्कान चेहरे पर लिए उसकी ओर देखता और धीरे से सर हिला देता | स्कूल आ गया था | राम ने सारा के माथे पर चूमा और उसे बाय किया और वहां से निकल पड़ा |

अपने घर जाने की बजाये वो सीधा सारिका और सोम्य से मिलने उसके घर पहुँच गया | घंटी बजाई | सारिका के पिताजी ने दरवाज़ा खोला | उनके आव भाव कुछ तुनके हुए थे | वो अन्दर दाखिल हुआ तो पाया सामने सोम्या सोफे पर बैठी है | उसे देखते ही सोम्या मुस्करा दी और पापा पापा कहती उसकी गोद में आ बैठी | अभी २ मिनट भी नहीं गुज़रे थे के सारिका आई और उसे गोद से उठा कर अन्दर ले गई | राम चुप चाप बैठा रहा | उसके कलेजे पर सांप लोट रहे थे | बेटी के होते हुए भी वो उससे मिल नहीं पा रहा था | कुछ नहीं बोला | चुपचाप बैठा रहा और तमाशा देखता रहा | सारिका के पिताजी उसके पास आकर बैठे और कुछ बोलने की चेष्टा करने ही वाले थे , के राम उठ खड़ा हुआ, उसने भरी हुई आँखों से उनकी ओर देखा और प्रणाम कर के वहां से चल दिया | उस समय उसकी बोली से ज्यादा उसकी आँखें बहुत कुछ कह चुकी थी जिसे समझना अब सारिका के पिताजी को था |

राम ऐसा ही था | अपने दिल की बात किसी से ठीक से कभी कह ही नहीं पाता था | ज़्यादातर वो खामोश ही रहता था | रास्ते भर वो गाडी में ख़ामोशी से जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनता रहा | घर आया और फिर से जाके अपने कमरे में चुप चाप बैठ गया | सिगरेट जलाई और इंतज़ार करने लगा के शायद सारिका का फ़ोन आ जाये | सोम्या की दूर होने की वजह से वो और ज्यादा टूट गया था | सोम्या की उन मासूम आँखों को वो भुला नहीं पा रहा था | पापा पापा की आवाज़ अभी भी उसके कानो में गूँज रही थी |  बार बार सोचता के कॉल करके अपने दिल की बात कह दूं पर मोबाइल के बटन पर ही उँगलियाँ रुक जातीं | अब उसे सिर्फ उस सर्वशक्ति में ही विश्वास था | हर समय दिल ही दिल में उनसे प्रार्थना करता रहता के उसके ऊपर आए बुरे वक़्त को बर्दाश्त करने की शक्ति उसे अदा फरमाएं और उसके होंसलें पस्त न होने पायें | ऐसे समय में वो अपना संयम कायम रख पाए |

दोपहर हो गई थी | सारा स्कूल से आ गई थी | आते ही उसने फिर से पुछा पापा, "सोम्या नहीं आई ? मैं उससे नाराज़ हो गई | उसने मेरे से बात भी नहीं की कल से | कब आएगी वो?" ऐसे ही वो पूरे दिन अपने आप से बातें करती रहती और राम ख़ामोशी से बैठा चुप चाप हताशा के साथ अपने साथ होती इस नाइंसाफी को देखता और सहता रहता | उसके भरोसे का खून हुआ था | किसी पर इतना विश्वास करने की सज़ा वो आज भुगत रहा था | पर क्यों ये जवाब उससे आज तक नहीं पता था |

ऐसे ही काफी दिन बीत गए | कोई बातचीत नहीं हुई | वो इंतज़ार में था के शायद फ़ोन आएगा पर कोई खबर नहीं आई | अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी | हालाँकि सारा उसके पास थी पर सोम्या की कमी उसे हर पर कमज़ोर करती रहती थी | हर एक पल भगवान् से उसके लिए प्रार्थना करता रहता | वो जहाँ भी रहे ठीक रहे | सुखी रहे स्वस्थ रहे | और सबसे ऊपर खुश रहे |

ऐसे ही अरसा बीत गया | न उधर से कुछ बात हुई और न इधर से | आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी पर बुझाने वाला कोई नहीं था | जो भी मिलता उसे भड़काने वाला ही मिलता | बात बिगड़ने वाले हज़ार थे और बात बनाने वाला एक भी न था | फिर इसी बीच एक दिन राम का जन्मदिन आया | वो भूल चुका था के आज उसका जन्मदिन है | ज़िन्दगी के इन उतार चढ़ावों के बीच उसे अपने लिए सोचने का वक़्त ही कहाँ मिला | हालात के थपेड़ों ने उससे ज़िन्दगी जीने की कला बहुत दूर कर दी थी | हर पल उसे एक ही इंतज़ार रहता था और वो अन्दर ही अन्दर घुट रहा था | न किसी से कुछ बात न किसी से कुछ गिला शिकवा करता था | बस अपने आप से और हालातों से झूझने में लगा रहता था | इसके चलते उसके काम और सेहत का भी काफी नुक्सान होने लगा था | पर वो इरादों का मज़बूत इंसान था | उसने कभी भी अपना धर्य नहीं छोड़ा | एक फाइटर था वो | बस जैसे तैसे अपने को संभाल रखा था उसने | जन्मदिन वाले दिन भी वो चुप चाप सुबह से ही बिना बताये कहीं चला गया | सारा और घर के बाकी सभी लोग हैरान थे के सुबह सुबह राम कहाँ चला गया | उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ था | सबको फ़िक्र हो रही थी के क्या हुआ ? ऐसे क्यों और कहाँ चला गया ?

शाम तक राम की कोई खबर नहीं थी | पर फिर भी घर के सभी लोगों ने मिलकर उसका जन्मदिन मानाने की तयारी कर ली थी | अब बस उसके लौटने का इंतज़ार था | रात हो गई ९ बज गए | राम का कुछ अतापता नहीं था | सब का दम सूखा जा रहा था | तभी बहार गाडी की आवाज़ आई | सब सतर्क हो गए और घर की सभी लाईटें बंद कर दी गईं | दरवाज़े की घंटी बजी | राम घर वापस आ गया था | बार बार घंटी बजने पर भी किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला | फिर उसका ध्यान बत्तियों पर गया | घर में घुप्प अँधेरा था | ये सब देखकर हैरान हो गया और अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर अन्दर दाखिल हुआ | उसका दिल ज़ोरों के धड़क रहा था | बार बार यही सोच रहा था के लाईटें बंद क्यों है ? सब लोग कहाँ गए ? क्या हो गया ?

जैसे ही राम ने हॉल में कदम रखा तुरंत ही सारा कमरा जगमगा उठा | हर तरह रंग बिरंगी रौशनी, साज सजावट, गुब्बारे, झालर लगे हुए थे और बीच में टेबल पर केक सज़ा रखा था | सब लोग "हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे टू यू" गा रहे थे | पर उसकी आँखें वीरान थीं | जिसके मुहं से वो ये सुनना चाहता था वो कहीं नहीं थे | वो मूक खड़ा ये तमाशा देख रहा था | अपने को सँभालते हुए फिर उसके चेहरे पर एक मंद से मुस्कान झलकी |

"थैंक यू , थैंक यू प्लीज  एंड वेलकम तो माई होम" वो सभी से बोला

सारा उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ कर उसे केक तक ले गई | और उसके हाथ में चाकू थमा दिया और बोली,

"पापा, जल्दी से केक काटो न बड़ी जोर के भूख लगी है फिर पिज़्ज़ा और छोले भठूरे भी तो खाने हैं "

उसकी इस मासूमियत को देख कर सब हंस पड़े | राम भी जोर से हंस दिया | बोला, "ओके, मेरी माँ अभी काटते हैं चलो |"

केक काटने खड़ा ही हुआ था के पीछे से किसी ने दोनों हथेलियों से उसकी आँखें ढँक ली | वो चुप चाप खड़ा रहा, तभी एक आवाज़ आई,

"पापा, हैप्पी बर्थडे टू यू " ये आवाज़, ये आवाज़ तो सोम्या की थी |

उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, तुरंत उसने अपनी आँखों से हाथ हटाये और मुड़ कर देखा तो सामने सारिका खड़ी थी और साथ में सोम्या भी | इससे पहले के वो अपने मुहं से कुछ कह पता सारिका की हथेली ने उसका मुहं बंद कर दिया और बस आँखों में देखती रही | जो भी गिले शिकवे दूर करने थे वो आँखों ही आँखों में दूर हो गए | सारिका राम से गले लग गई और चारों तरफ तालियों की गडगडाहट गूँज उठी | राम ने अपनी दोनों बेटियों को गोदी में उठा लिया और प्यार से चूमता रहा |

ये उसके जन्मदिन का सबसे बड़ा उपहार था | बस फिर क्या था केक भी कटा और सब ने खूब धूम मचाई | खाना पीना, हंसी मजाक, गाना बजाना सब जम कर हुआ | रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला | दिल ही दिल में राम भगवान् को बहुत बहुत धन्यवाद् दे रहा था और उनका आभार व्यक्त कर रहा था | उसके जीवन की माला को बिखरने से बचने वाले वही थे |

और उसके बाद आज तक उसके जीवन में ऐसी काली रात और ऐसे सियाह दिन फिर कभी नहीं आए | सभी उलझाने बिना कुछ बोले और कहे ही निपट गईं | न उसने सारिका से कोई सवाल किया और न कोई जवाब माँगा | सारिका भी हंसी ख़ुशी ख़ुद-ब-ख़ुद घर चली आई | उससे भी अपनी भूल का एहसास हो चुका था | और वैसे भी अगर सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते |

आज राम का परिवार एक हँसता खेलता, गाता गुनगुनाता परिवार है | एंड दे लिव्ड हैप्पिली एवर आफ्टर |

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आशा है कहानी आपको पसंद आई होगी | मेरी दिल से तमन्ना, उम्मीद और प्रार्थना है ऊपर वाले से जैसे राम की ज़िन्दगी में खुशियों के पल लौट आए वैसे ही संसार में समस्त प्राणियों के जीवन की उलझाने और समस्याएं बिना कुछ बोले ही सुलझ जाएँ | कभी भी प्यार करने वालो को आपस में सवाल जवाब करने की नौबत न आए | क्योंकि मेरा ऐसा मानना है के प्यार की ज़बान नहीं होती | प्यार सिर्फ और सिर्फ एक एहसास है | जो बातें एक बंद ज़बान और भरी हुई आँखें कह सकती हैं वो जीवन में कोई भी शब्द बयां नहीं कर सकते | खुश रहिये | प्यार करते रहिये |
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रविवार, जनवरी 27, 2013

नीति - भाग १

पात्र :
प्रताप : नायक / नायिका का प्रेमी  
नीति   : नायिका
दीपक : नायिका का भाई
सुहानी: नायिका की बेटी
रंजीत: नायिका का पति
ललिता देवी: नायिका की सास
चमनलाल: नायिका के ससुर

नीति जैसा सुन्दर नाम वैसा ही सुन्दर चरित्र | मिडिल क्लास में जन्मी, एक शिष्ट परिवार में पली, २० साल की, बड़े शहर की एक छोटी सी लड़की | पिताजी का अच्छा खासा कारोबार था | माताजी छोटे शहर से अवश्य थी पर बहुत ही शालीन, ममतामयी और समझदार थी | उसकी ४ और बड़ी बहने थी और वो उनमें सबसे छोटी थी | नीति सभी की लाडली थी | औसत कद काठी, सांवला रंग और बुलंद हौसलों वाली जीवंत तितली | शांत इतनी के यदि सड़क चलते कोई कुछ कह दे या नज़र उठा कर देख भी ले तो बस समझो के उसकी शामत आई | फिर तो जो चीज़ हाथ में आ जाती उसी से उस मनचले का स्वागत सत्कार हो जाता | कभी कभार एक आदा थप्पड़ या घूँसा भी रसीद कर दिया जाता था | एक दम संस्कारी और पूरी तरह से भारतीय परिधान प्रेमी लड़की | जब भी घर से निकलती तो बस एक अदद कमीज़ या टी-शर्ट और जींस, पैरों में हवाई चप्पल नहीं तो कानपुरी | साज श्रृंगार ऐसा के सामने वाला देख ले तो बस मन्त्र मुग्ध हो जाये | न लिपस्टिक, न नेलपॉलिश, न चूड़ी, न झुमका, न नथनी बस एक घडी जो कलाई पर बंधी होती थी जैसे समय देखना कोई मजबूरी हो | अगर समय नहीं होता संसार में तो शायद वो घडी भी कभी दिखाई नहीं देती और वो समय पर भी एहसान करने से बच जाती | उसके हेयर स्टाइल का तो कहना ही क्या था | किसी भी अच्छे खासे लड़के को काम्प्लेक्स आ जाये उसके बाल देख कर | कुछ ऐसी ही थी नीति एक दम बिंदास, आजाद ख्याल, बेबाक और स्पष्ट विचारों वाली | रोज़ सुबह साइकिल पर सवार होकर अपने कॉलेज पहुँच जाया करती और मस्ती किया करती थी | टिपिकल लड़कियों वाले कोई भी गुण और शौक़ उसे दूर दूर तक छु कर भी नहीं निकले थे | वो अबला नहीं निरी बला थी जो एक बार पीछे पड़ जाये तो छटी का दूध, नानी, दादी, परदादी इत्यादि सभी को साथ याद दिला दे | ज़रुरत पड़ने पर मदद करने में सबसे आगे | दूसरों के हक के लिए लड़ने मरने में सबसे तेज़ | एक शब्द में अगर उसके बारे में कहूँ तो वो एक दम "झल्ली" हुआ करती थी | टिक्की, चाट पकोड़ी, गोल गप्पे, आइस क्रीम, चूरन और तरह तरह की सुपारी खाना उसके शौक़ हुआ करते थे | चूरन खरीदने के लिए तो वो कहीं भी जा सकती थी बस कोई नई वैरायटी का चूरन बता दे कोई | बस एक बात जो उससे हमेशा खाए जाती थी के "हाय! मैं कहीं मोटी तो नहीं होती जा रही हूँ ?" | इसकी बैचैनी और चिंता उसे जब भी रहती थी और आज भी बरक़रार है | उसकी सबसे बढ़िया बात जो उसे सबसे अलग करती थी वो ये के समय कैसा भी हो वो हँसना कभी नहीं छोडती थी | वो मुस्कान उसके चेहरे पर हमेशा बनी रहती थी जो उसकी शक्सीयत को सबसे जुदा करती थी |

उन्ही दिनों एक पार्टी में एक दिन अचानक नीति की मुलाक़ात प्रताप से हुई | नीति की सहेली के भाई का दोस्त था प्रताप | एक कॉमन फ्रंड के ज़रिये दोनों की जान पहचान हुई थी | पहले पहल तो दोनों में इतनी तकरार होती थी के पूछो मत | अगर कभी दोनों किसी पार्टी या गेट टूगेदर में मिल भी जाते तो आसमान सर पर उठा लिया करते थे | दोनों कभी भी एक दुसरे की बात से सहमत नहीं होते थे और बहस करते रहते थे | यही बहस करते करते दोनों को धीरे धीरे एक दुसरे की आदत पड़नी शुरू हो गई | उन दोनों को एक दुसरे की कंपनी पसंद आती तो थी पर कहीं न कहीं कुछ कमी थी | नीति की मनभावन अदाओं, उसके पहनावे, उसके अंदाज़, उसकी बातें, उसका अपनी बात को प्रूव करने के लिए किसी भी हद्द तक बहस करना, और हमेशा खुश रहना इन्ही सब बातों की वजह से शायद ही कोई ऐसा लड़का होता जो प्रभावित न होता और उस पर क्यों न मर मिट जाता | वही हाल प्रताप का था | मन ही मन वो उससे चाहने तो लगा था पर जिस प्रेमिका की छवि उसने अपने मन मंदिर में बसा रखी थी नीति उससे कोसों दूर थी | वो नीति को उस परिवेश में अपने सामने खड़ा देखना चाहता था | पर उसने ठान ली थी के वो नीति को बदल कर रहेगा और फिर ही उसके सामने इज़हार-ए-मोहब्बत करेगा |

धीरे धीरे मेल जोल बढ़ने लगा | प्रताप की कंपनी का असर नीति पर भी दिखाई देने लगा | उसकी बातों के आकर्षण से वो बहुत ही प्रभावित हुई | धीरे धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती चली गई |  अकेली मुलाक़तों का सिलसिला शुरू हुआ | एक साधारण दोस्ती से बढ़ते बढ़ते कब वो एक दुसरे को पसंद करने लग गए पता नहीं चला | और एक दिन प्रताप ने उसके सामने इज़हार-ए-इश्क कर दिया | मन ही मन वो भी तयार थी | उसने झट से हाँ कर दी | प्रताप के प्यार में उसने अपने नारी स्वरुप को पहचाना शुरू किया | प्रताप के कहने पर उसने अपने को धीरे धीरे बदलना शुरू कर दिया | बाल बढ़ाये, सूट पहनना शुरू किया | बोली में शालीनता और सौम्यता लाइ | कान भी छिदवा लिए | चूड़ियाँ पहनने लग गई और तो और शर्मना भी आ गया | तो साब अब हमारी नीति टॉमबॉय से एक सुन्दर भारतीय नारी और प्रेमिका में तब्दील हो चुकी थी |

नीति का एक भाई था दीपक | हालाँकि सगा नहीं था पर था सगे से भी ज्यादा | दोनों में उम्र का फासला भी ज्यादा नहीं था | यही कोई ४-५ साल का अंतर होगा दोनों में | पर दोनो के बीच ट्यूनिंग कमाल की थी | निति की ज़िन्दगी के हर फैसले में उसका साथ देना और हर मुश्किल मोड़ पर उसके साथ डट कर खड़े रहना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था | एक गज़ब की अनकही और अनसुनी बौन्डिंग थी दोनों में | वहीँ नीति भी उसको छोटा समझ कर कुछ ज़रुरत से ज्यादा ही प्यार जाता देती थी | बात बात पर झापड़ रसीद कर देना, सर का तबला बजा देना या फुटबॉल समझ कर लात जमा देना तो मामूली बात हुआ करती थी | दीपक ने भी कभी इसका बुरा नहीं मन क्योंकि वो नीति को दिल से प्यार करता था और बहुत इज्ज़त देता था | आपस में अगर बात करते तो पूरी शिष्टता से गाली गलोच करते, समस्त दुनिया की माँ-बहन, बाप-बेटी एक करना उनकी बातचीत में आम बात थी | दोनों एक दुसरे से महीनो नहीं मिलते थे न ही कोई बात चीत होती थी | पर जब भी मिलते थे तो ऐसी गज़ब की गर्मजोशी होती जिसका कोई ठीक नहीं | घंटो कैसे गुज़र जाता करते कुछ पता न चलता | घर वाले चीखाम चिल्ली करते रहते आओ खाना खा लो, नाश्ता कर लो पर अपनी बातों में उन्हें कुछ सुने न देता |  अपनी इसी छोटी सी और प्यारी सी दुनिया में दोनों बहुत खुश थे | और एक दुसरे से बेहद जुड़े हुए थे |

दीपक नीति की एक एक हरकत से वाकिफ था | वो उसकी एक एक हरकत को नोट कर रहा था | नीति में इतना बदवाल उससे हज़म नहीं हो रहा था | नीति का एकदम से ऐसे बदलना उसके लिए भी अचरज की बात थी | वो भी सोच रहा था के ये कुछ तो छुपा रही है मेरे से | पर नीति भी छुपी रुस्तम थी | अभी तक उसने प्रताप के बारे में उसको कुछ भी नहीं बताया था | भनक भी नहीं लगने दी थी उसने किसी को इसके बारे में | उसने नीति से पुछा भी अचानक इतना बदलाव कैसे, तो जवाब में वो हंस कर टाल देती या कहती,

"अपुन तो बिंदास है, कुछ भी करूँ मेरी मर्ज़ी | मैं अपनी मर्ज़ी की मालकिन हूँ  यार | क्यों ये लुक अच्छा नहीं लग रहा क्या ? यार उस लुक से बोर हो गई थी तो सोचा थोडा चेंज कर के देख लूं | शायद घर वाले खुश हो जाएँ और मेरे पीछे पड़ना छोड़ दें |"

दीपक भी समझदार था | उसकी बातों को सुनकर चुप रहता और मुस्कुराता रहता  | उससे पता था के कुछ न कुछ खिचड़ी तो पका रही है ये और वक़्त आने पर ही परोसेगी | या फिर उसे ही ऊँगली टेडी करनी पड़ेगी बात पता करने के लिए | वो रग रग से वाकिफ था नीति की | उसे अच्छे से मालूम था के नीति से कोई बात निकलवाना बड़ी टेडी खीर है | जैसा वो खुद था वैसी ही उसकी बहन भी थी | दोनों के दोनों महा कुत्ती चीज़ | बस यही सोचकर वो शांत रहा और समय का इंतज़ार करता रहा |

 एक दिन अचानक इधर उधर की बातों बातों में उसने नीति से पूछ ही लिया,

"कमीनी अब तो बता दे कौन है वो इतने दिन हो गए तुझे ड्रामा करते |"

नीति चौंक कर बोली "क्या भाई कोई नहीं है, तू भी सनक गया है क्या? आइन्वाई मेरे पीछे पड़े जा रहा है"

पर दीपक को पता था के अब इसके पिटारे का ढक्कन खुलने का टाइम आ गया है | उसने फिर से कहा,

"चल चल जल्दी बता, इतने महीनो से तेरी नौटंकी देख रहा हूँ | चल क्या रहा है ? मिलवा तो सही |"

अब नीति के पेट में कहाँ पचने वाली थी बात सो उसने सब कुछ उगल डाला जैसे कोई गर्मी में ठन्डे ठन्डे शरबत की बोतल को हलक में उतार डालता है वैसे ही उसने सब कुछ दीपक के सामने उंडेल दिया | दीपक भी दंग रह गया सुनकर | उससे भरोसा नहीं हो रहा था के किसी के लिए नीति ने अपने आप को इतना बदल डाला | वो नीति से बोला के,

"जिस बन्दे ने तेरे जैसी कमीनी को बदल दिया वो कितना बड़ा कमीना होगा | बता जल्दी कब मिलवा रही है जीजा से |"

और बस फिर ऐसे ही नीति की टांग खिचाई चलती रही सारा समय | दीपक दिल से खुश था नीति के लिए | नीति को पता था के दुनिया में सबसे ज्यादा ख़ुशी दीपक को ही हुई होगी और फिर पलक झपकते ही उसने प्रताप से मिलवाने की ख्वाइश ज़ाहिर कर दी | दीपक तो इसी मौके के लिए तयार बैठा था | उसने तुरंत हाँ कर दी |
अगले दिन नीति दीपक को प्रताप से मिलवाने ले गई | प्रताप को देखकर दीपक कुछ देर उससे ऐसे ही देखता रहा | पर्सनालिटी दमदार थी | लम्बा, चौड़ा, हट्टा कट्टा नौजवान | गोरा रंग | मैग्गी जैसे लच्छेदार बाल | दीपक को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा | प्रताप ने आगे बढ़कर दीपक से हाथ मिलाया और बोला,

"और दीपक, कैसे हो ? आओ यार बैठो | और सब ठीक | हाउस में सब बढ़िया चल रहा है ?

दीपक भी कम नहीं था | उसने भी हाथ पकडे पकडे जवाब जड़ दिया दीपक के सवाल पर,

"अरे जीजा ! सब बढ़िया | हाउस में सब आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं | कहों तो ले चलूँ | काफी लोग हैं लाइन में जो मिलने की बाट जोह रहे हैं | और सबसे उतावले तो ससुरजी और सासुमां है | बोलो ले चलूँ ?"

इतना सुनते ही प्रताप की और नीति की हंसी छुट गई | नीति बोली, "सुधर जा, वरना पिटेगा" | दीपक मज़े ले रहा था और हँसे जा रहा था और बेचारी नीति किलस रही थी और तुनककर बोली,

"कुत्ते चुप हो जा ! तुझे बताकर बहुत गलत किया | अब तू मेरी टांग खीचता रहेगा | चुप हो जा वरना तेरे मुहं पर जड़ दूंगी अभी | सब अक्ल ठिकाने आ जाएगी तेरी | "

दीपक और प्रताप दोनों इस मोमेंट को एन्जॉय करने में लगे हुए थे और हंस हंस कर नीति की हालत का मज़ा ले रहे थे | फिर सारा माहौल तीनो के ठहाको से गूँज गया | दीपक ने प्रताप को और प्रताप ने दीपक को कुछ गिफ्ट्स दिए और कुछ देर और मजाकबाज़ी और टांग खिचाई के दौर चलते रहे और फिर इस सब इसके के बाद वो बाय-शाये कर के उसके घर से रवाना हो गए | क्रमश:

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शनिवार, जनवरी 26, 2013

ज़िन्दगी - भाग १

पात्र :
राम - मुख्य पात्र
सारिका  - पत्नी
सोम्या - बड़ी बेटी
सारा - छोटी बेटी

रात बहुत ही तेज़ तूफ़ान आया था | ओले भी गिरे थे | पर उसे नहीं मालूम था के रात का तेज़ अंधड़ उसके जीवन में भी एक नया बवंडर लेकर आने वाला है | एक ऐसा भावनाहीन चक्रवात जो उसके सभी एहसासों और जज्बातों  को उड़ा ले जायेगा |

उसके लिए तो वो दिन भी सर्दियों की एक मस्ताना सुबह जैसा था  | बारिश अब भी ज़ोरों के बरस रही थी मानो इंद्र देवता कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हों | लगता था रात से इन्द्रजी भी बियर का सेवन कर रहे हैं | बिजली ऐसे चमक रही थी जैसे आज मौसम भी रौद्र रूप में तांडव करने के मूड में हो | ज़िन्दगी की वो हसीन सुबह अपने परिवार के साथ, रोजमर्राह की भागम भाग, नहाना धोना, बच्चों का शोर, स्कूल जाने की तयारी, नाश्ता, टिफ़िन, और वही घरेलु कामकाज के बीच उसके दिमाग में क्या चल रहा था किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी | सुबह हँसते खेलते बच्चे स्कूल जाने को तयार थे | नाश्ते में चाय और पकोड़े बने थे | सब ने साथ मिलकर आलू, गोभी और प्याज़ के पकोड़े खाए और फिर वो बच्चों को स्कूल छोड़ने निकल गई |

राम रात से अपनी स्टडी में ही बैठा था और काम निपटा रहा था | नाश्ते के बाद भी वो स्टडी में जाकर बैठ गया था और थक कर सुबह वहीँ पर सो गया था | नींद में उसका चेहरा ऐसा लगता था मानो जैसे चाँद सोया हो | एक दम शांत और कोमल | ऐसा उसकी छोटी बेटी 'सारा' कहती है | बड़ी बेटी 'सोम्या' और छोटी बेटी दोनों से उसे बेहद प्यार है | एक आँखों का तारा है तो दूसरी ज़िन्दगी का चकोर  | उसका समस्त जीवन उन दोनों के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है | उन दोनों के सिवा उसकी छोटी सी दुनिया में और कोई नहीं है | ऐसा नहीं के और लोग नहीं हैं परिवार में पर उन दोनों के सामने उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता है | उनके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तयार रहता है | अचानक से उसकी आँख खुलती है और पसीनो में तरबतर उठ कर बैठ जाता है | उससे समझ नहीं आता के एक दम से ये शोर कैसा ? फिर सोचा शायद कोई बुरा सपना देखा होगा | बैठा बैठा सोच ही रहा है, के अभी तो सोया ही था फिर इतनी जल्दी आँख कैसे खुल गई ? घडी देखी तो दोपहर के पूरे साढ़े बारह बजे थे  | अचानक से बड़ी बिटिया भागी हुई आई |

"आ गया बेटा स्कूल से"

"हाँ पापा , कहते कहते बिटिया गोद में आकर बैठ गईं"

"स्कूल में क्या किया आज सारा दिन सोम्या बेटा?", राम ने बड़े प्यार से सवाल किया

"कुछ नहीं, आज तो खेलते रहे और शैतानी करते रहे", उसने आँखे चमका कर और इतरा कर जवाब दिया

"पापा, इस सन्डे को पिज़्ज़ा बनाओगे न ?" बिटिया ने बड़े प्यार से पुछा

"हाँ बेटा, ज़रूर पर पहले",

इतना कहते के साथ राम ने अपना गाल आगे बढ़ा दिया | बेटी ने धीरे से दोनों गालों पर चूमा और फिर सीने से लग कर बैठ गई | बस वही एक लम्हा होता था जहाँ राम की सारी थकान मिट जाती, नींद गायब हो जाती, ज़िन्दगी और जीवन का वक़्त थम जाया करता था | एक नई ऊर्जा का तेज उसके शरीर में दौड़ जाता था | बेटी को सीने से लगाकर जो आनंद की अनुभूति होती थी उसे बयां करना उसके बस में न था  | पिता होने का एहसास दिल में उमड़ जाता था और रगों में खून का दौरान एक दम शांत हो जाता था | वो ऊर्जा से हर्शोल्लासित और सजीव हो उठता था |  ऐसा लगता मानो के ये लम्हा यहीं थम जाये और बेटी ऐसे ही हमेशा दिल के करीब रहे |

अचानक राम की बीवी आई और सोम्य को गोदी में उठा कर ले गई | राम अपने लैपटॉप पर मेल चेक करने में लग गया | कुछ देर बाद अचानक से कुछ ऐसा हुआ के दिल में आग जल उठी | कुछ एक घंटों के बाद उसने देखा के घर के और लोग जोर जोर से उससे बुला रहे हैं | वो उठा और जाकर पुछा के क्या हुआ ? पता चला बड़ी बिटिया और उसकी जीवन संगनी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं | तीन घंटे से ऊपर हो गए कुछ पता नहीं कहाँ गए |  तुरंत मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की | परन्तु मोबाइल तो बंद बता रहा था | दिल में हज़ार सवालों के साथ सैकड़ों आशंकाएं उठने लग गईं | क्या हुआ ? कहाँ हैं ? फ़ोन बंद क्यों है ? बहुत कोशिश की परन्तु कुछ पता नहीं चला | शाम को राम के मोबाइल की घंटी बज उठी | परेशान बैठा राम दौड़कर भागा और फ़ोन उठा कर बोला,

"हेल्लो ! कौन"

दूसरी तरफ़ा से आवाज़ आई

"मैं बोल रही हूँ ", आवाज़ राम की पत्नी सारिका की थी

"सारिका तुम और सोम्या कहाँ हो ?", राम ने गुस्से, डर और असमंजस के भावों के साथ सवाल किया

"मैं आ गई ", सारिका ने बतलाया

"आ गई मतलब ?", राम ने हैरानी से पुछा

"मैं सोम्या को लेकर अपने पापा के आ गई", दूसरी तरफ से जवाब आया

"लेकिन अचानक कैसे ? एकदम बिना बताये और वापस कब आना है ? सब ठीक तो है वहां ?", राम ने उत्सुकता से पुछा

"अब कभी नहीं आना, मैं घर छोड़ कर आ गई " बीवी ने तुरंत जवाब दिया और फ़ोन पटक दिया

राम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई | वो बुत बना खड़ा रह गया | चेहरा सफ़ेद पड़ गया | उसे यकीन नहीं हुआ | ऐसे हालातों का सामना उसने पहले कभी नहीं किया था | वो किंकर्तव्यविमूढ़ बावला सा  खड़ा दीवार ताक़ रहा था | लाल नम आँखों में आंसू के साथ आक्रोश और गुब्बार था | उसने कई बार फ़ोन लगाने की फिर से कोशिश की पर फोन स्विचऑफ बता रहा था |

सारा तभी भागी भागी आई और बोली,

"पापा, मेरी भी बात कराओ न | मम्मी का फोन था ? सोम्या कहाँ है ?

उसे और मुझे तो आज गुडिया की शादी रचानी है | वो मेरी गुडिया का दुपट्टा लेने गई है क्या ?

और भी न जाने कितने ही सवाल वो पूछे चली जा रही थी जिनका जवाब राम के पास नहीं था | जैसे तैसे सारा को समझा बुझा कर और खाना खिला कर सुलाया और फिर कमरे में जाकर देखता क्या है के अलमारियां खाली पड़ी हैं | और भी काफी सामान नहीं है | बेटी की अलमारी खाली पड़ी है | उसके खिलौने, किताबें और कपडे गायब हैं | अचानक से 'सोम्या' के छोटे छोटे जूतों पर नज़र गई तो दिल भर आया | ये मंज़र देखकर अगर कुछ था तो नम आँखे, सीने में दर्द, खालीपन और मायूसी थी | राम सन्न खड़ा सोच रहा था ये अचानक कैसा वज्रपात हुआ उसकी हंसती खेलती दुनिया पर | अभी सुबह तक तो सब कुछ ठीक था | हंसी ख़ुशी ज़िन्दगी चल रही थी | इन्ही सभी कठिन परिस्थितियों से बोझिल मन से बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया |

एक सिगरेट सुलगाई और बैठ गया | बारिश अब भी गरज गरज के बरस रही थी | बिजली की चमक ऐसे लगती थी मानो भगवन भी आज उसे चिढाने के मूड में है और उसके इन हालातों की तस्वीर उतार रहा हो | ऐसा लग रहा था जैसे राम की आँखों के आंसू आज आसमान बहा रहा है |  राम ने सर ऊपर किया और आकाश की ओर देखकर सोचने लग गया के ये सब उसके साथ ही क्यों और कैसे हो गया | एक दम से यह पहाड़ कैसे टूट पड़ा | अचानक से घर छोड़ कर चले जाना और फ़ोन भी बंद कर देना | माजरा समझ में नहीं आ रहा था | ज़िन्दगी की हालत ऐसी हो गई थी जैसे किसी गाडी पर १२० किलोमीटर की स्पीड से चलते हुए अचानक ब्रेक लगने के बाद जो नुकसान होता है उसी स्तिथि में राम था | एकदम से ऐसे पत्थर दिल कैसे हो सकती है वो | इतने सालों की शादी, प्यार, मन सम्मान, भरोसे का ये सिला दिया उसने | घर में अक्सर ऐसी छोटी मोटी कहा सुनी तो होती रहती है | इसका मतलब ऐसा करना तो नहीं | वो ऐसे कैसे धोखा दे सकती है ? वो इतना सारा सामान लेकर गई कैसे ? क्या ये सब वो काफी समय से सोच समझ कर प्लान कर रही थी ? क्या वो अब कभी वापस नहीं आएगी ? बेटी कैसी होगी ? बेटी से क्या कहा होगा ? बेटी को मेरी याद आएगी तो कैसे मनाएगी ? बेटी रात को सो भी पायेगी मेरे बिना ? काश! ये सब एक मजाक से ज्यादा कुछ न हो | दिल्लगी कर रही है वो मुझसे |

इसी सब सोच के बीच पिछले कुछ सालों की विडियो रील उसके दिमाग में शुरू हो चुकी थी जिसका नज़ारा वो अपनी आँखों के सामने देख रहा था | वो साथ बिताये लम्हे, हंसी ख़ुशी के पल, बेटियों का जन्म और उनके जन्म दिन, हँसना, रूठना, झगड़ना, मानना सभी का बाईस्कोप उसके सामने चला जा रहा था | और ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत सवालों से जूझता हुआ वो सिगरेट पर सिगरेट सुलगाये जा रहा था और अपने दिल, वक़्त और ज़िन्दगी को जलाये जा रहा था |  क्रमश:

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गुरुवार, जनवरी 17, 2013

सफ़ेद कपड़ों वाली परी


दिल्ली की एक मस्त शाम । महरौली का इलाका । मौसम-ए-बरसात चल रहा था | माध्यम बारिश की फुहार पड़ रही थी | सारा आसमान हलके संतरी रंग से सराबोर हो रहा था | सूरज अपनी काली रॉयल एनफ़ील्ड बुलेट से उतरा और सड़क पार कर के फूटपाथ पर जाकर खड़ा हो गया | सामने वाली बिल्डिंग पर लगे शीशे की तरफ नज़रे गडा दीं | फिर इधर उधर का मुआएना करने के बाद अन्दर झाँकने लगा | अब तो उसके लिए ये रोज़ का रूटीन बन गया था | रोजाना शाम को आना और उसे उन सफ़ेद शफाक कपड़ों में नाचते हुए देखना |

बस एक वही थी जो इस भीड़ भरी दुनिया में उसकी नज़रों में समां गई थी | वही थी जिसे वो बेहद पसंद करने लगा था | जिसने उसके बेज़ार दिल को धड़कने पर मजबूर कर दिया था | जिसकी एक झलक से वो मंत्रमुग्ध हो जाता और उसके चेहरे पर एक हलकी से मुस्कराहट आ जाती थी | उसको डांस स्कूल में नाचते देखना ऐसा लगता मानो कोई मोर बारिश में थिरक रहा हो | दूसरी नर्तकियों बीच वो ऐसे लगती जैसे सूरज के इर्द गिर्द चाँद और तारे | उसका हर एक भाव और भंगिमा ऐसे प्रतीत होती थी जैसे आकाश में हवा में कोई पंख धीरे धीरे लहरा रहा हो और हिचकोले लेता इधर उधर डोल रहा हो | किरन उसके लिए आसमां थी और उसकी घरती भी | उसकी झलक पाते ही उसका दिन बन जाया करता था | उसका समस्त जीवन उस एक पल थम जाया करता था |

किरन हर लिहाज़ से बेहद खूबसूरत थी | बेहतरीन सुन्दरता | अदभुत कलापूर्ण व्यक्तित्व | ऊँचा लम्बा कद, सुडौल गठीला बदन, तीखे नयन नक्षक | लम्बे काले घने नागिन जैसे बाल | गहरी और मोहित कर देने वाली भूरी आँखें | बनानेवाले की बेजोड़ कलाकृति की मिसाल थी वो | देखने में एक दम गोरी फिरंग लगती थी पर थी सौ प्रतिशत हिन्दुस्तानी |

संभवतः वो भी अपनी ज़िन्दगी में किसी ख़ास व्यक्ति का इंतज़ार कर रही थी | और सूरज बहार खड़ा यही सोच रहा था के काश वो खुशकिस्मत इंसान वो हो |

संगीत शुरू हुआ, और उसने बड़े ही मनमोहक तरह से नाचना आरम्भ किया | डांस फ्लोर पर उसके शांतचित्त, उसकी प्रतिभा, उसके आकर्षण और उसके बला के जलवे को देख कोई भी अचंभित क्यों न हो जाये | वो दूसरी डांसर्स से एक दम अलग थी | सबसे जुदा | किरन का आत्मविश्वास, उसकी मनोहरता, उसके लुभावने अंदाज़, उसकी जिंदादिली और उसकी नैसर्गिक सुन्दरता के अभिलक्षण उसके नृत्य के हर कदम में उसके इख़्तियार की झलक दिखला रहे थे |

सूरज की आँखें लगातार उसका और उसकी हर एक गतिविधि का क्रमवीक्षण कर रही थीं | कुछ घंटों के लिए उसकी ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत जो हो गई थी | शीशे से चिकने और चमकते डांस फ्लोर पर किरन का अक्स साफ़ नज़र आ रहा था | उसके लम्बे काले बालों की गुथी हुई चोटी और सफ़ेद ड्रेस में उसकी विशिष्टता और निखर कर आ रही थी |

सूरज उसकी तरफ नज़रे जमाये चुपचाप खड़े सोच रहा था के काश मैं इस भीड़ के बीच से रास्ता बनाकर किरन तक पहुँच सकता | और उसका हाथ थाम कर उसके साथ कुछ पल बिता सकता । तभी अचानक से संगीत बजना बंद हो गया | डांस खत्म हो गया था | किरन धीरे से आगे बढ़ी तौलिया उठा कर पसीना पोंछती हुई डांस फ्लोर पार कर के सीधा मुख्य द्वार पर आकर रुक गई | उसके रुकते ही ऐसा लगा मानो बसंत आ गया हो | उसने हाथ बढाकर दरवाज़े का हैंडल पकड़कर दरवाज़ा खोला | हाथ आगे बढाकर हथेली बहार निकाल कर देखा | बारिश अभी भी बरस रही थी | सूरज मन्त्र मुग्ध खड़ा उसकी ओर तंकता रहा | अचानक उससे लगा की उसकी नज़रें सीधा उसे ही देख रही हैं | दिल रेल के इंजन सा भक भक करने लगा | पैर जड़ हो गए । होश के होते उड़ गए । गला खुश्क हो गया । तलवों तले ज़मीन खिसक गई | सोचने लगा के अपने एहसास उसके सामने कैसे बयाँ करूँगा ?

तभी फिर से संगीत बजना शुरू हो गया और जो लोग अन्दर थे वो एक बार फिर से शुरू हो गए | किरन ने उसकी तरफ़ मुड़कर देखा और पास आकर बोली

"आप मेरे साथ डांस नहीं करेंगे ?"

सूरज शुतुरमुर्ग की तरह खड़ा भौंचक्का सा किरन की आँखों में देखता रह गया | उसके संगुप्त शब्द उसके दिल की गहराईयों में ही दबे रह गए |

"जिसकी रमणीयता, मनमोहक और अतुलनीय थी और जिसके आज तक वो सपने ही देखा करता था, उसके साथ नाचना, अत्यंत आनंदप्रद और सम्मान की बात थी |"

धीरे से लड़खड़ाती जुबान से शब्द बहार आये | अब तक जो सिर्फ सोच रहा था आज वो बोल दिया गया था | किरन सर झुकाकर मुस्कराई और चमकदर चेहरा लाल हो गया | सूरज घुटनों पर बैठ गया, सर झुका कर धीरे से हाथ आगे बढ़ा दिया | फिर दोनों बारिश में साथ नाचने लगे |

वो सोच रहा था के ये सच नहीं हो सकता | जो भी हो रहा है एक सपना है | पर सच वही था के ये लम्हा उसके जीवन में आ गया था, वो उस लम्हे को जी रहा था | वो नहीं चाहता था के ये खत्म हो | ये साथ कभी न छूटे | ये डांस यूँ ही चलता रहे | उसे अब किसी और चीज़ की कोई परवाह नहीं थी |

बारिश की बूंदों का संगीत सुना जा सकता था | रिमझिम बूँदें धरती पर गिरकर जलतरंग बजा रही थीं | जैसे जैसे बारिश तेज़ हो रही थी वैसे वैसे उनके नाच की लय भी बढ़ रही थी | उसने आगे बढ़कर धीरे से अपने गालों को सूरज के गालों के पास लाकर कान में कुछ फुसफुसाया | उसके सुन्दर चेहरे पर कृतज्ञता और करुणा से भरे भाव थे |

वो दोनों पुर्णतः जीवंत थे, परिपूर्ण थे और आनन्दित थे | चाँद मुंह झुकाए उसके काले बालों की भीगी लटों को निहार रहा था | बरसात का पानी भी उनके क़दमों की हरकतों को पहचान रहा था | बारिश के पानी में और उस पर पड़ते उसके क़दमों में तालमेल था | उसके पैरों से पानी की छपछपाहट भी छनछनाहट सी सुनाई दे रही थी | उसकी पैनी नज़रों में गज़ब की चमक थी और फिर वो ख़ुशी के मारे जोर से हंस पड़ी |

उसकी हंसी से चाँद की चमक और ज्यादा बढ़ गई | उसके सफ़ेद कपडे पूरी तरह से भीग चुके थे | भीगने के बावजूद भी वो पीछे हटने का नाम नहीं ले रही थी | बेपरवाह बस नाचती रही और सूरज उसका साथ देता गया | फिर वो थोडा पीछे हटी और स्वछंद पंछी की भांति उड़ने लग गई | सूरज की नज़रें हर जगह उसका पीछा कर रहीं थीं इस डर से के कहीं उसका ये सपना टूट न जाए | तभी अचानक वो रुकी, सूरज की ओर मुड़ी और सामने आकर खड़ी हो गई |

उसकी सासें तेज़ बहुत तेज़ चल रही थी | ऐसी आवाज़ लग रही थी जैसे इंजन की चिमनी से धुआं निकल रहा हो | उसके चेहरे पर विश्वास था | नज़रों में निश्चल प्यार था | और दोनों के दिल ख़ुशी के मारे जोर जोर के धड़क रहे थे |

"इतनी देर क्यों लगाई?" उसने धीरे से मुस्कराते हुए पुछा

"माफ़ कीजिये" सूरज ने असमंजस भरे स्वर में जवाब दिया

उसने मोतियों जैसी आँखें मूँद लीं | लम्बा सा सांस लिया | आगे बढ़ी और सूरज के गालों को चूम लिया | उसके होटों का स्पर्श किसी कोमल कलि की भांति नाज़ुक था | फिर उसने सूरज को गले लगा लिया और दोनों कुछ देर के लिए कहीं खो गए |

"मुझे और कितनी देर तुम्हारे डांस के लिए पूछने का इंतज़ार करना चाहियें था?" वो फुसफुसाई

सूरज ने अपना जैकेट उतरा और उसे पहना दिया के कहीं बारिश में उसे ठण्ड न लग जाये | फिर धीरे से उसके माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया | प्यार से उसकी कमर पर हाथ फेरा और फिर उसकी गीली लटों को उँगलियों से सुलझाने लगा |

"मैं मरते दम तक तुम्हारा इंतज़ार करता" सूरज ने जवाब दिया

माहौल में शांति और सुकून का वातावरण बन गया | अब सारी सच्चाई साफ़ हो चुकी थी | दोनो एक दुसरे के चेहरों पर अनुराग के भावों को पढ़ चुके थे | दोनों की आत्माएं एक हो चुकी थीं | दोनों वहीँ खड़े भीगते रहे | दोनों सोच रहे थे, के वो एक दुसरे को हद्द से ज्यादा चाहते हैं और हमेशा चाहते रहेंगे |

यकायक बिजली कौंधी | सन्नाटे की चुप्पी टूट गई | दोनों को एहसास हो गया था, दोनों ही एक दूसरे के कहने का इंतज़ार कर रहे थे |

सूरज ने किरन का हाथ थामा और कहा, "चलें?"

"हाँ", उसने जवाब दिया

और इस तरह सूरज को अपनी सफ़ेद कपड़ों वाली परी, अपने सपनो की रानी मिल गई और दोनों अपनी नई दुनिया की तरफ बढ़ चले |

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शनिवार, जनवरी 12, 2013

मैं चाहता हूँ


मैं तुम्हे चाहता हूँ | तुम्हारे प्यार में पड़ना चाहता हूँ | तुम्हे पूरी शिददत से अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना चाहता हूँ | हर तरफ तुम ही तुम हो | मेरी सोच के हर दायरे में तुम्हारा दखल चाहता हूँ | तुम्हारा हाथ पकड़ तुम्हारे साथ खड़ा रहना चाहता हूँ | तुम्हारी ज़िन्दगी में उठे तूफ़ान और बवंडरों का सामना करना चाहता हूँ | तुम्हारी जीत में, मैं भी खुशियाँ मानना चाहता हूँ | शुरू से आखिर तक मैं तुम्हारा साथ चाहता हूँ | तुम्हारी ज़िन्दगी में मैं वो शक्श बनना चाहता हूँ जिसपर तुम आँख मूँद कर ऐतबार कर सको और इस ज़िम्मेदारी के लिए मैं कोई भी कीमत चुकाने को तयार हूँ | मैं कभी भी तुम्हे धोखा नहीं देना चाहता; मैं हमेशा पूर्ण रूप से तुम्हारे साथ ईमानदार और विश्वसनीय बना रहना चाहता हूँ |

मैं वो कन्धा बनना चाहता हूँ जिस पर तुम सर रखकर सो सको | मैं वो छोटी और नर्म बाहें बनना चाहता हूँ जो तुम्हे सीने से लगा सकें जब तुम्हे उनकी ज़रुरत हो | मैं वो इंसान बनना चाहता हूँ जिसे तुम दिल से याद कर सको जब तुम्हे अनुरक्ति की ज़रुरत महसूस हो | मैं तुम्हारे जाने पर तुम्हारा इंतज़ार करना चाहता हूँ | मेरी आरज़ू है के मैं कहीं भी चला जाऊं पर वापस लौट कर तुम्हारे पास ही आऊँ | मैं तुम्हे सब कुछ देना चाहता हूँ जो भी मेरे पास है, मेरा दिल, मेरा प्यार, मेरी आत्मा, मेरा शरीर, मेरी शक्ति, मेरी भक्ति और मेरा अनुराग | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे दिल को देखो और समझो और मुझे अपना प्यार दो | मुझे तुम्हारी कमियों और ख़ामियों से कभी कोई फर्क नहीं पड़ा | अगर मेरी नज़र से देखो तो वो कमियां तुम्हे परिपूर्ण बनती हैं | मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता के तुम्हारा को माज़ी है या था | मैं हमेशा तुम्हारे साथ चलने के लिए तयार हूँ और इन सब को साथ लेकर चलने के लिए | फिर चाहे इनकी गहराई में संसार डूब जाये या फिर मैं |

मैं तुम्हारे साथ रातों को झगड़ना चाहता हूँ | तुम्हारी टी-शर्ट की खुशबू में मदहोश होकर तुम्हे अपने करीब ला अपनी बाहों में जकड़ना चाहता हूँ | मैं तुम्हे अपने से दूर जाने नहीं देना चाहता | तुम्हारे नर्म नाज़ुक गालों को कोमल हाथों में लेकर मैं धीरे से चूमना चाहता हूँ | तुम्हारी सोई पलकों पर में धीमे से अपने अंगूठे को फेरना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे खर्राटों से परेशां होकर जब तक जागना चाहता हूँ जब तक तुम मेरा नाम लेकर न बुदबुदाने लग जाओ | तुम्हारे बर्फ से ठन्डे नाज़ुक पैर जो मुझे रात को छूते हैं मैं उनकी शिकायत तुमसे करना चाहता हूँ | मैं तकियों को लेकर तुमसे लड़ना चाहता हूँ | मैं तुम्हे हर उस तरह से प्यार करना चाहता हूँ जितनी मूर्तियाँ खजुराहो में हैं | मैं तुम्हारे हर एक कण को रेशे को प्यार करना चाहता हूँ क्योंकि वही तुम्हे बनाते हैं जो आज तुम हो | मैं तुम्हारी बाहों में रहना चाहता हूँ जब भी मैं उदास होता हूँ या आहत होता हूँ | मुझे उन बाहों में एक सुकून और महफ़ूज़ होने अहसास होता है | मैं चाहता हूँ जब भी मैं रोऊँ, कमज़ोर पड़ जाऊं या कभी मेरा दिल टूट जाये तो तुम्हे वो इंसान हो जो मुझे संभाले और मेरे कानो में धीरे से फुसफुसा कर कहें "डरो मत सब ठीक है, मैं हूँ" | मैं तुम्हे दिली अमन, चैन और सुकून अदा करना चाहता हूँ |

मैं तुम्हारे अंदाज़ और हरकतों पर जोर से हँसना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे घट्ठेदार चुटकुले और अकथनीय रूप धारण करने पर हँसना चाहता हूँ क्योंकि वो वास्तव् में बहुत ही मज़ाकिया होते हैं ये बात अलग है मैंने आज तक तुमसे इसके मुतालिक कभी खुलासा नहीं किया है | मैं तुम्हे मक्कारी वाली हंसी के साथ मुझे अजीब अजीब नामो से पुकारते हुए देखना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ बैठ कर अपनी और तुम्हारी ज़िन्दगी के बारे में नए नए विचार और सोच बांटना चाहता हूँ | जिन्हें याद कर कर के मैं आखरी दम तक हँसता और मुस्कराता रहूँ | मैं दिनभर तुम्हे अनगिनत सन्देश भेजना चाहता हूँ जो की सिर्फ तुम और मैं ही समझ सकें और जिनका मतलब भी हम दोनों के सिवा कोई और न जान सके | मैं चाहता हूँ तुम उन संदेशों को पढ़कर तब तक हंसती रहो जब तक तुम्हारी आँखों में पानी न छलक जाये और आस पास सभी तुमसे सवाल करने लगें "क्या हुआ, क्या हो गया, इतना मज़ेदार क्या है ?" और तुम उन्हें कुछ भी बयां न कर पाओ और जोर जोर से हंसती रहो जब तक वो यह न समझें के तुम बावली हो गई हो | मैं तुम्हारी मुस्कराहट बनना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ राजनीती, कूटनीति, देश, समाज, घटनाएँ, सुख, दुःख, मान, सम्मान, बड़ी, छोटी, प्यार, ज़िन्दगी, दिन, रात, आकर्षण, जीवन, प्रेम, मरण और भी न जाने क्या क्या, इसका अर्थ समझना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे और अपने बीच प्यार का एक नया फ़लसफ़ा इजाद करना चाहता हूँ | मैं तुम्हे साथ जीवन के कुछ बहुत ही महत्त्व और ज़िन्दगी बदलने वाले फ़ैसले लेना चाहता हूँ |

मैं हर पल में तुम्हारा साथ देना चाहता हूँ, तुम्हारे लिए फेवर करना चाहता हूँ पर ये कहते हुए के, "ओके...बट यू ओ में," इसलियें नहीं के इसकी एवज़ में मुझे कुछ चाहियें, अपितु इसलिए के इसके बदले में मुझे तुम्हारे साथ और ज्यादा वक़्त बिताने का मौका मिल जायेगा | मैं कभी कभी तुम पर इतना गुस्सा करना, झल्लाना चाहता हूँ के अंत में मुझे वो शर्म वाली भावना आये और मैं तुमसे अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगूं | और मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे साथ ऐसा ही करो | मैं चाहता हूँ के तुम अपनी बड़ी बड़ी आँखों को गोल गोल घुमाकर मेरी तरफ़ा देखकर मुझे कहो के "यार, माफ़ करो, मेरा पीछा छोड़ो" जब मैं तुम्हे हद्द से ज्यादा परेशान करूँ और बदले में मैं तुम्हारे पास आकर धीरे से तुम्हे चुटकी काट लूं | मैं चाहता हूँ के तुम भी वापस मुझे चुटकी काटो | मैं चुटकी काटने की एक छोटी से जंग लड़ना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम मुझसे कहो के मैं गलत कर रहा हूँ जिससे मैं दोबारा से चुटकी काट सकूँ और यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहे | मैं तुम्हारे साथ बैठक में कुश्ती लड़ना चाहता हूँ और तुम्हे चित्त कर ज़मीन पर गिराकर मैं तुम्हे बड़ी चाह से देख कर चिढाना चाहता हूँ "मैं जीत गया, मैं जीत गया" | जबकि ये हुम दोनो जानते हैं के ये तुमने मुझे सिर्फ इसलिए करने किया जिससे हम साथ में ज़िन्दगी का एक और प्यारा सा नज़ारा ज़िन्दगी भर के लिए अपनी स्मृतियों में याद रखें |

मैं अपना सर तुम्हारे कंधे पर रखना चाहता हूँ इसलिए नहीं के मुझे नींद आ रही है पर इसलिए के मैं चुपचाप से तुम्हारे करीब आना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम मुझे पीछे से आकर अचानक पकड़ लो और मोहकता से लुभाते हुए मेरे कंधे को चूम लो | मैं तुम्हारी गर्दन के पीछे अपना चेहरा छिपाकर अचानक से अपनी पलकों से तुम्हे गुदगुदाना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ तुम मेरी इस हरकत के लिए तुम मुझे "बेवक़ूफ़" कहो और फिर धीरे से कहो, "पर इन सभी हरकतों के लिए मैं तुम्हे चाहती हूँ और तुमसे बेंतेहा बेशुमार प्यार करती हूँ" | मैं सारा शनिवार और इतवार तुम्हारे साथ एक चादर में एक ही आधार में बिताना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ अच्छी, बुरी, मीठी, खट्टी, बेतुकी, मज़ेदार, हस्याद्पद, उपहास योग्य, मूर्खतापूर्ण, विचित्र, बदमाश, नटखट, नाज़ुक, और न जाने कैसी कैसी यादें बनाना चाहता हूँ जिन्हें हम आपस में अपने अकेले समय में बाँट सकें और अपनी अपनी प्रतिक्रिया एक दुसरे से कह सकें |

तुम्हारे न होने पर मैं दर्द में तड़पना चाहता हूँ; अपने दिल की गहराई में उस पीड़ा को महसूस करना चाहता हूँ | तुम्हारे चले जाने पर में अपने आपको इस दुनिया का सबसे अकेला इंसान होना कैसा लगता है वो महसूस करना चाहता हूँ | और तुम्हारे वापस आने की वो बेक़रारी मैं ख़ुशी से महसूस करना चाहता हूँ | मुझे यह अच्छी तरह से जानकारी है के मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरी हो | और मैं तुम्हे ये बताना चाहता हूँ के मैं हमेशा तुम्हारे पीछे हूँ जिसे तुम कभी भी मुड़कर देख सकती हो और हमेशा अपने पास पाओगी | अगर किसी को हमारा साथ पसंद न भी हो तब भी मैं तुम्हारा हाथ थामे रहूँगा | मुझे हर वो तनाव, निराशा और कुंठा चाहियें जो मुसीबत के समय में एक रिश्ते में होती हैं क्योंकि इनसे पता चलता है के आप संबद्ध है | मैं चाहता हूँ तुम हमेशा मेरे साथ रहो बावजूद इस कारण के कुछ लोग हमारे खिलाफ खड़े है | मैं उन सब स्तिथियों का सामना तुम्हारे साथ मिलकर करना चाहता हूँ | मैं अपनी बाकि की सारी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ पर मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे साथ अपने भविष्य के बारे में सोचो | मैं तुम्हे ज़िन्दगी में आगे बढ़ते देखना चाहता हूँ | न सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि मैं तुम्हे जीवन को खुल के पूरी तरह से ख़ुशी के साथ जीते हुए देखना चाहता हूँ | मैं ये आश्वासन चाहता हूँ के तुम अपनी संभावित ज़िन्दगी खुल कर अपनी शर्तों पर जियो और मुझे उस पर गर्व हो जिस तरह मुझे तुम पर गर्व है |

मैं तुम्हारे साथ युवा प्रेम का अनुभव करना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ हाथ में हाथ डाल कर लोगों के बीच घूम कर उन वयोवृद्ध जोड़ों को सुनना और देखना चाहता हूँ जो जवानों के बारे में बातें करते हैं और उनकी खामियां निकलते रहते हैं | मैं चाहता हूँ के तुम मुझ खूब पर जोर से हंसो जब मैं तुमसे कहूँ, "देखो कभी हम दोनों भी इनकी जगह होंगे और ऐसे ही बातें करेंगे" | मैं चाहता हूँ के मैं और तुम मिलकर एक पूरा दिन अपनी गाडी धोने से शुरू करें और मैं पानी के पाइप से तुम्हारे चेहरे पर पानी छिड़क दूं और तुम्हे गीला कर दूं और तुम मेरे पीछे भागो और मुझे ज़मीन पर गिरा दो और साबुन की बाल्टी मेरे सर पर उंडेल दो | मैं चाहता हूँ हम साथ में बैठ कर हॉरर मूवी देखने और जब तक देखने मैं मशगूल रहें जब तक हमें एहसास न हो के अब डर के मरे सोयेंगे कैसे | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे पास चुपचाप बैठो और मुझे गिटार बजाते हुए वो गीत और कवितायेँ गाते देखो जो मैंने तुम्हारे लिए लिखे हैं | मैं चाहता हूँ के तुम ऐसा सोचो के मेरे से अच्छा तुम्हारे लिए कोई और लिख नहीं सकता | मैं चाहता हूँ के मेरे गीत, मेरे बोल तुम्हे रुला दें और मैं धीरे से तुम्हारे आंसू पोछ दूं | मैं चाहत हूँ के इसके बाद मैं तुम्हारा फ़ायदा उठाऊं और मैं चाहता हूँ के तुम भी यही चाहो के मैं तुम्हारा फायदा उठाऊं | और बदले में मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरा फायदा उठाओ |

मैं चाहता हूँ के हम दोनों चुपचाप के स्वच्छंद, सुविधापूर्ण, आरामदायक ख़ामोशी में बैठे रहे | वहां मैं चुपचाप बिना तुम्हारे जाने तुम्हारा एक चित्र बनाऊं | मैं चाहता हूँ के तुम्हे मालूम हो के मैं क्या कर रहा हूँ पर फिर भी तुम ख़ामोश रहो ताकि वो पल ख़त्म न हो जाए | मैं तुमसे घंटो बैठ कर फ़िज़ूल की बातें करना चाहता हूँ और तुम्हारी उलूल जुलूल बातें सुनकर उन पर धीरे से मुस्कराना चाहता हूँ | अख़बार में आये क्रॉसवर्ड पजल सोल्वे करना चाहता हूँ और कार्टून स्ट्रिप देख देख कर मजाक करना चाहता हूँ | मैं तुम्हे हँसते और मुस्कराते देखना चाहता हूँ क्योंकि इसी एक कारण की वजह से मैं बार बार तुम्हारे इश्क में गिरना चाहता हूँ | मैं अपनी आँखों से तुम्हे अनाभूषित और असज्जित होते देखना चाहता हूँ |

मैं चाहता हूँ के तुम मुझे समझाओ के तुम्हे शृंगार की ज़रुरत नहीं है क्योंकि तुम बिना उसके भी बेहद खूबसूरत दिखती हो | ये बात दीगर है के तुम्हारी उस ख़ूबसूरती को देखकर बहार बच्चे डर के मारे खाना पीना छोड़ देते हैं | मैं चाहता हूँ के तुम मुझे बताओ के जब तुमने अपनी नाक छिदवाई थी और कान छिदवाए थे तब तुम्हे कितना दर्द हुआ था | और मुझसे पूछ के टैटू बनवाते वक़्त मुझे कैसा लग रहा था | मैं तुमसे छोटी छोटी चीज़ों पर झगड़ना चाहता हूँ जैसे कौन सा फ.म रेडियो चैनल सुनना है या फिर टीवी पर कौनसी पिक्चर देखनी है | मैं तुम्हारे साथ बहस करना चाहता हूँ के डोमिनोस का पिज़्ज़ा खाने चला जाये या फिर मकडोनालड का बर्गर जब तलक हम दोनों एकमत न हो जाएँ के आज तो लोटन के छोले कुलचे खाने चलते हैं क्योंकि हम दोनों में से किसी को भी अंग्रेजी खाना पसंद नहीं है | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे साथ विडियो गेमस खेलो जिस तरह मैं तुम्हारे साथ घर के काम में हाथ बंटाता रहता हूँ | मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे अपने पसंदीदा खेल खेलना सिखाऊं और तुम अचानक एक दिन मुझे उसमें हरा दो | और मैं चाहता हूँ के तुम इसके बारे में शेखी बघारना शुरू कर दो और कहो के, "यह कोई नौसिखिये का लक नहीं है ये तो मेरी मेहनत से मिली सफलता है" | और फिर मैं तुम्हारे साथ मुक़ाबला करना शुरू कर दूं | और मैं तुम्हारे साथ नई नई चीज़ों पर शर्तें लगाना शुरू कर दूं |

मैं चाहता हूँ के तुम्हे साथ एक बढ़िया सा सालसा डांस करूँ | बार मैं बैठकर तुम्हारे साथ मदिरा पान करूँ और यह देख कर खुश हो जाऊं के तुम मेरे लिए ज़रुरत से ज्यादा फिक्रमंद हो के कहीं मुझे कुछ हो न जाए | मैं चाहता हूँ के हमारी इस बात को लेकर बहुत नोकझोंक हो और हम फ़िज़ूल की बातों पर बहस करें जिनका कोई मतलब नहीं हो | फिर घर आकर तुम्हे मानाने के लिए मैं तुम्हे प्यार करूँ | मैं चाहता हूँ के तुम्हारे दोस्त मुझे पसंद करें | मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे रोज़मर्रा के काम करते देख निहारता रहूँ | मूल रूप से स्वभावतः मैं हर पल तुम्हारे साथ व्यतीत करना चाहता हूँ | मैं सिर्फ तुम्हारे साथ रिश्ता बनाना चाहता हूँ और किसी के साथ नहीं | मुझे मालूम है के मैं अक्सर मीन मेख नीकालता हूँ और मेरे में बहुत सी कमियां है पर तुमने मेरे दिल को कुछ इस तरह से छुआ है जैसे पहले कभी किसी ने नहीं छुआ और अब तुम्हारे प्यार में जो मैं गिर पड़ा हूँ तो अब उठ नहीं सकता और सिर्फ तुमसे ही प्यार कर सकता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे इस सच को स्वीकारो और अपने प्यार का इज़हार मेरे से कुछ ऐसे ही अंदाज़ में करो | मैं हमेशा तुम्हे ऐसे ही चाहूँगा बिना किसी शर्त के क्योंकि अब तो बस तुम हो और तुम्ही हो दूसरा कोई नहीं | मैं सोचता हूँ के जीवन में हर एक को तुम्हारे जैसा प्यार मिलना चाहियें क्योंकि तुम सिर्फ तुम हो और तुम मेरी हो सिर्फ मेरी |

मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे अपने इस प्यार का एहसास इस तरह से करवाऊं के तुम उससे स्वीकार करो, समझो, और सबसे बड़ी बात जो खास है वो ये के तुमने कभी ख्वाबों में ही ऐसे प्यार की परिकल्पना नहीं की होगी इसलिए मैं चाहता हूँ के तुम भी मुझे ऐसे ही शिददत से चाहो और अपना लो |

इन्ही सभी उपमाओं, विचारों और प्रेमालाप से भरी सोच के सपने देखता लोटन अपनी खाट पर पैर पसारे घोड़े बेच कर सो रहा था के तभी अचानक मालिक ने आकर एक ज़ोरदार और झन्नाटेदार लात उसके पिछवाड़े पर जमा दी और कहा के, "हरामखोर आज क्या सोता ही रहेगा, काम पर नहीं जायेगा क्या? देख कितना दिन चढ़ आया है, सूरज सर पर नाच रहा है और तू सपनो में बकड़ बकड़ का कर रहा है और फिलम बना रहा है" |

लोटन बेचारा आधी खुली और आधी बंद भौंचक्की और अलसाई आँखों से तुरंत उठ खड़ा हुआ और लडखडाता, डगमगाता, बडबडाता जी मालिक.. जी मालिक करता हुआ रसोई की ओर निकल गया |

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ये कहानी लेखन का मेरा प्रथम प्रयास था । उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगा और आशीर्वाद प्राप्त होगा । कोई त्रुटी हो गई हो तो क्षमा चाहूँगा और आपके सुझाव और विचार सादर आमंत्रित हैं । 

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