शनिवार, सितंबर 14, 2013

हिंदी को प्रणाम















आता है साल में एक बार
कहते जिसे 'हिंदी दिवस'
क्यों इसे मनाने के लिए
हम सभी होते हैं विवश

हिन्द की बदकिस्मती
हिंदी यहाँ लाचार है
पाती कोई दूजी ज़बां
यहाँ प्यार बेशुमार है

काश! हिंदी भी यहाँ
बिंदी बनकर चमकती
सूर्य की भाँती दमकती
अँधेरे में ना सिसकती

आओ मिलकर लें अहद
हिंदी को आगे लायेंगे
अपनी मातृभाषा को हम
माता समझ अपनाएंगे

शर्म न आये किसी को
अब हिंदी के उपयोग में
मान अब सब मिल करें
हिंदी के सदुपयोग में

हाथ जोड़े करता वंदन
'निर्जन' हिंदी भाषा को
अर्जी है हम आगे बढ़ाएं
राष्ट्रभाषा, मातृभाषा को 

गुरुवार, सितंबर 12, 2013

बाबाजी की बूटी














बुराई को अच्छाई से
अकडू को सुताई से
महंगाई को सस्ताई से
क्लीन कर दीजिये

भूख को तृप्ति में
आशा को मुक्ति में
भोग को युक्ति में
तल्लीन कर दीजिये

उंचाई को गहराई में
अँधेरे को परछाई में
कसाव को ढिलाई में
लीन कर दीजिये

दिल की रैम से
टेंशन के स्पैम को
री-साईकल बिन में
विलीन कर दीजिये

किस्मत के मारों के
आत्मा के गार्डन को
पॉजिटिव विचारों से
ग्रीन कर दीजिये

अमीरी और गरीबी के
भेद को मिटाइये
सारे समाज को
मिस्टर बीन बनाइये

प्रसारण 'निर्जन' का
सीधा दिखलाइये
रूकावट कहीं भी हो
पर खेद ना बतलाइये

समस्या की
मिडिल फिंगर पर
सोलियुशन की रिंग डाल
मीन बन जाइए

ट्रॉमा को भगाईये
हाथ अपना बढ़ाईये
बाबाजी की बूटी का
एंजोयमेंट आज़माइए

ग़म भूल जाइए
लाइफ को सजाइए
सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए

सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए...

रविवार, सितंबर 08, 2013

दिल मेरा तुझ पर मरता है













तेरी मुस्कराहट में मेरा अक्स झलकेगा
नज़रें झुकेंगी तेरी तब अश्क छलकेगा
पलट के देखेगी सरे राह मुझको पायेगी
तू जो छोड़ेगी मेरा साथ बहुत पछताएगी

हर एक आहट एहसास मेरा करवाएगी
मेरी साँसों की हवा दिल तेरा छु जाएगी
बहते दरिया रोज़ किस्सा मेरा सुनायेंगे
तू ना चाहेगी तब भी मेरी याद आएगी

आज ग़म है तो कल ख़ुशी भी आएगी
रोते रोते ज़िन्दगी कभी तो मुस्कराएगी
आज हालात हैं तू भीड़ में भी है तनहा
कहता है दिल जुदा तू भी जी न पायेगी

तेरे दिल में रहूँगा मैं बस यादें बनकर
तेरे होटों पर रहूँगा मैं मुस्कान बनकर
तू रोकेगी फिर भी मैं आ ही जाऊंगा
तेरे सपनो को आसमान बन सजाऊंगा

सियाह रातों में मैं चाँद बन कर देखूंगा
अपनी चांदनी को तेरे दिल तक भेजूंगा
मोहब्बत 'निर्जन' सोच कर नहीं करता
दिल मेरा यूँ ही तो तुझ पर नहीं मरता 

शुक्रवार, सितंबर 06, 2013

यादें













वो यादें गुज़रे लम्हों की
जिस पल यारों साथ रहे
वो अनजानी दुनिया थी
खुशियों से आबाद रहे
वो उम्र गुज़ारी थी हमने
जब रोते रोते हँसते थे
बस कहते थे न सुनते थे
हम तुम जब मिलते थे
वो अपने चेहरे खिलते थे
पुर्लुफ्त वो आलम होता था
जब रातों को बातें करते थे
मैं सोच के कितना हँसता हूँ
उन बातों पर बचपन की
बस यही पुरानी याद बनी
'निर्जन' बातें उन लम्हों की
लड़ लड़ कर हम साथ रहे
ये यादें है उस अपनेपन की
वो यादें गुज़रे लम्हों की ....

एक दिन देश के नाम - स्वराज मार्ग (स्वयं सेवी संस्था) द्वारा समर्पित एक दिवस देश और देश वासियों के नाम


























































स्वराज मार्ग की छटा नई
एक शाम देश के नाम रही
हर दिल से धारा बही वहीं
जन जन हैं कहता खूब रही

बस जन सेवा की इच्छा से
हर एक व्यक्ति जुड़ा कहीं
बूँद बूँद से बन कर साग़र
नव चेतना सब में लीन हुई

पुरषार्थ से है किया सृजन
जन मानस हो रहे मगन
निशुल्क चिकित्सा सेवा से
मानव ह्रदय में लगी लगन

मित्र वकील भी खूब आये
जनता को अपनी ये भाये
काले सफ़ेद ने नाम किया
लोगों से मिल काम किया

संध्या बेला फिर घिर आई
नव क्रांति स्वराज की लाई
नव अंकुरित शिशुओं ने भी
अपनी प्रतिभा जब दिखलाई

ज्यों ही संध्या विस्तार हुआ
कवि कटार को धार दिया
आगाज़ कवि सम्मेल्लन का
फिर शंखनाद के साथ हुआ

कविता की 'निर्जन' बात करे
रसीले हास्य से शुरुवात करें
वीर, देश प्रेम, श्रृंगार, व्यंग
सभी रसों का रसपान किया

समापन समय जब आया
खुशियाँ और ग़म था लाया
विदा सब को सप्रेम किया
दिल में चित्रों को फ्रेम किया

जन स्वराज फिर लायेंगे
हम लौट के वापस आयेंगे
स्वराज मार्ग पर चलकर
हम देश भविष्य बनायेंगे 

सोमवार, सितंबर 02, 2013

मेरी तौबा

















गल्बा-ए-इश्क़ के गुल्ज़ारों में
खिला गुलाबी रुखस़ार तौबा

दमकता हुस्न बेहिसाब तेरा
रात में खिला महताब तौबा

खिज़ा रसीदा सहराओं में
हसरतें दिल-कुशा तौबा

आब-ए-जबीं पे परिसा जुल्फें
दमकते चेहरे पे नक़ाब तौबा

उससे मुलाक़ात यकीनन बाक़ी
है अधूरा ख्वाब 'निर्जन' तौबा

भरे हैं आब-ए-चश्म से सागर
आतिश आब-ए-तल्ख़ सी तौबा

इश्तियाक़ हसरत-ए-दीदार ऐसी
अफ़साने लिख जाएँ तो तौबा

लिखो इख्लास अब तुम मेरा
मैं कहता हूँ मेरी तौबा ....

गल्बा-ए-इश्क़ - प्यार का जूनून
गुलज़ार - उपवन
रुखस़ार - ग़ाल
खिज़ा - पतझड़
रसीदा - मिला है
सहरा - रेगिस्तान
दिल-कुशा - मनोहर
जबीं- माथा
आब-ए-चश्म-आंसू
आब-ए-तल्ख़ - शराब
आतिश-आग
इश्तियाक़-चाह, इच्छा, लालसा
हसरत-ए-दीदार - ललक , आरज़ू
अफ़साने - कहानियां, किस्से
इख्लास= प्यार, प्रेम

शुक्रवार, अगस्त 30, 2013

दिल जला के उसको याद किया



















चाहत से भरे उस सागर में
बहती लहरों की गागर में  
अपने दिल को आज़ाद किया
दिल जला के उसको याद किया

उन मतवाली रातों में
उसकी नशीली बातों में
चुप रहकर खुद को बर्बाद किया
दिल जला के उसको याद किया

एक नज़र जब उसको देखा
दिल जिगर चाहत में फेंका
जा मस्जिद में फ़रियाद किया
दिल जला के उसको याद किया

इस जीवन के बही खातों में
उन बीते ख्वाबों और रातों में
जाग खुद अपने से बात किया
दिल जला के उसको याद किया

उन कलियों के खिलने से पहले
उन गलियों में मिलने से पहले
आशिक दिल ही दिल आबाद हुआ
दिल जला के उसको याद किया

दिल जला के उसको याद किया 

थी वो





















कभी लगता है ज़िन्दगी थी वो
दिल ये मेरा कहे अजनबी थी वो

वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे

सोचा शरीक-ए-ग़म थी वो
कभी मुझसे मिलके हम थी वो

बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे

दिल से बेज़ार बेज़ुबान थी वो
आरज़ू तार तार बदगुमान थी वो

घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे

दिल से जुड़े लोगों में थी वो
मेरी आँखों में ज़िन्दगी थी वो

शुक्रवार, अगस्त 23, 2013

राखी का बंधन

राखी के पवन पर्व पर अपनी प्यारी बहन के लिए लिखी मेरी कविता....













राखी है बंधन जीत का
भाई बहन कि प्रीत का

रिश्तों का एहसास है 
बहन-भाई कि आस है 

बंधन बचपन के मीत का
पक्के धागे कि रीत का

पर्व राखी का पावन है
जैसे शीतल सावन है

भाई-बहन कि लाज का 
अनकहे जज़्बात का

आँखों का विश्वास है
यह अपनों कि बात है

दिलों कि धड़कन का
साथ में खेले बचपन का

राखी का यह त्यौहार है
इसमें प्यार ही प्यार है

मंगलवार, अगस्त 20, 2013

बी रिलैक्स


एक कविता अपने कुछ विशेष दोस्तों के नाम । 


















दफ्तर अपना खोल के 
रिलैक्स हुए सब जाएँ 
रख कंपनी दा नाम ये 
बैठ स्वयं इतरायें

कुर्सी बड़ी बस एक है
जो दांव लगे सो बैठ
बाक़ी जो रह जाएँ है
हो जाएँ साइड में सैट

बन्दे अपने मुस्तैद हैं 
बकरचंद सरनाम 
दबा कर मीटिंग करें 
कौनो नहीं और काम

काटम काटी पर लगे 
एक दूजे की आप 
काटें आपस में पेंच ये 
फिर करते मेल मिलाप 

मोटा मोटी खूब कहें 
रिजल्ट मिले न कोये
एग्ज़ीक्यूटर फ्रसट्रेट है 
प्लानर बैठा रोये 

पढ़ो पढ़ो का राग है
प्रवक्ता जी समझाएं 
दो मिनट ये पाएं जो 
बात अपनी बतलाएं

पंडत जी बदनाम है 
खाने पर जाते टूट 
भैयन तेरी मौज है 
जो लूट सके सो लूट

हम इमोशनल बालक हैं
करें ईमानदारी से काम
मेहनत कर के पाएंगे
हम अपना ईनाम

मसाला मिर्ची आचार हैं
तैड़ फैड़ का काम
काज सबरे निपटात हैं
न देखें फिर अंजाम

अपने भी शामिल हैं
इन लीग ऑफ़ जेंटलमैन
मुस्करा अवलोकन करें
बैठ उते दिन रैन

कुल जमा ‘निर्जन’ कहे
अब तक सब है ठीक 
कभी कभी मायूस हो 
हम भी जाते झीक 

सच्चे सब इंसान यहाँ 
रखते हैं सब ईमान
ना किसी से बैर भाव 
ऐसे अपने मित्र महान 

शुक्रवार, अगस्त 09, 2013

दिल से जुड़े हुए लोग





















आसमां में उड़े हुए लोग
हवा से भरे हुए लोग
संतुलन की बातें करते हैं
सरकार से जुड़े हुए लोग

भीड़ में खड़े हुए लोग
अन्दर तक सड़े हुए लोग
जीवन की बातें करते हैं
मरघट में पड़े हुए लोग

मुद्रा पर बिके हुए लोग
सुविधा पर टिके हुए लोग
बरगद की बातें करते हैं
गमलों में उगे हुए लोग

भोग में लिप्त हुए लोग
चरित्र से बीके हुए लोग
पवित्रता की बातें करते हैं
गटर से उठे हुए लोग

'निर्जन' मिले जो भी लोग
धरती पर झुके हुए लोग
देशभक्ति की बातें करते हैं
दिल से जुड़े हुए लोग 

गुरुवार, अगस्त 08, 2013

चलो मिल जाएँ

आज फिल्म 'दूसरा आदमी' का एक गाना 'क्या मौसम है' जिसे 'किशोर दा, लता दी और मोहम्मद रफ़ी साहब' ने गाया है सुन रहा था । सुनते सुनते मन में आया कि क्यों ना इसकी तर्ज़ को अपने शब्दों में दोस्तों के नाम कुछ लिख कर प्रस्तुत किया जाये बस वही छोटा सा प्रयास किया है । उम्मीद है कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई होगी । अब मेरे यार दोस्त ही बता सकते हैं के मुझे कहाँ तक सफलता मिली । 


एक जीवन है
वो मतवाले पल   
अरे फिर से वो, मुझे मिल जायें 
फिर से वो, कहीं मिल जायें 
कुछ साथी हैं 
मिलने के क़ाबिल
बस इसलिए हम, मिल जाएँ 
फिर से हम, कहीं, मिल जायें 

मिल के जब हम सभी, हँसते गाते हैं 
पड़ोस में चर्चे तब, हो जाते हैं 
हे हेहे हे 
ऐसा है तो, हो जाने दो, चर्चों, को आज
ये क्या कम है 
हम कुछ हमराही 
अरे मिल जाएँ, बहक जाएँ 
फिर से हम, कहीं, मिल जायें 

वो मस्तियाँ, यारों का प्यार 
हम हो चले, बेक़रार 
लो, हाथ में, शाम का, जाम लो 
बेवफ़ा किसी, सनम का, नाम लो 
दुनिया को अब खुश, नज़र आयें हम 
इतना पियें, के बहक, जाएँ हम 
के बहक, जाएँ हम, के बहक, जाएँ हम  
के बहक, जाएँ हम 

फिर से हम, कहीं मिल जायें 
ओ ओओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ 
फिर से हम, कहीं मिल जायें 
ओ ओ ओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ 

सोमवार, अगस्त 05, 2013

कब कहलायेगा देश महान ?





















मेरा भारत है महान
हर एक बंदा परेशान
जनता इसकी है हैरान
क्या यही है इसकी शान ?

नेता सारे हैं बेईमान
करते सबका नुक्सान
हरकतों से सब शैतान
फिर भी पाते क्यों ईनाम ?

नारी रूप दुर्गा समान
करुणा ममता की खान
घुटती रहती अबला जान
कब लेगी वो इन्तकाम ?

युवा देश की पहचान
चलता अपना सीना तान
खटता रहता सुबह शाम
मिलता नहीं उसे क्यों मान ?

फौजी देते हैं बलिदान
फिर भी पाते न सम्मान
परिवार उनके गुमनाम
घर उनके है क्यों वीरान ?

चापलूसों की देखो शान
करते अपना जो गुणगान
बनते दिनों दिन धनवान
उन गद्दारों का क्या ईमान ?

आम जनता छोटी जान
पालन करती हर फरमान
इज्ज़त पर देती है जान
क्या यही है इसका काम ?

'निर्जन' सोच सोच हैरान
कैसे बढ़ेगा देश का मान ?
कब टूटेगी लगी ये आन ?
कब कहलायेगा देश महान ?

रविवार, अगस्त 04, 2013

दोस्ती के जलवे

यह कविता समर्पित है मेरे अज़ीज़ दोस्तों के लिए :) जो हर एक तरह से दोस्त कहलाने के लायक है | उनमें एक अच्छे दोस्त के सभी कीटाणु मौजूद हैं | माता की तरह दुलार, पिताजी की फटकार, बहना की छेड़छाड़, भाई सा चिढ़ना यार, यह समस्त गुण तो कूट कूट कर भरे हैं पर प्रेमिका के जैसा प्यार वो अभी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा है ..... जो भी हो रहा है सिर्फ गालियाँ खिलवा रहा है...हा हा हा...तो पेश है कविता आपके सम्मुख :















दोस्ती जतलाने का
क्या है ये समझाने का
खट्टे-मीठे अहसासों का
नमकीन जज़्बातों का
रूठने-मनाने का
रो कर विश्वास जताने का
नौटंकी दिखने का
सुख-दुख के अफसाने का
गरिया कर भगाने का
खरी खोटी सुनाने का
फसबुक पे चैटियाने का
हॉल पर फ़िल्म दिखने का
ट्रीट श्रीट खिलवाने का
छीन के खाना खाने का
टिफ़िन बॉक्स चुराने का
चीज़ों पे हक जताने का
कुत्ता कुत्ती बुलाने का
कमीनापन झलकाने का
लात घूंसे चलाने का
दिमाग बड़ा सयाने का
नक़्शे बाज़ी दिखने का
मनोरंजन करवाने का
स्पष्टीकरण बताने का
शिष्टाचार दिखाने का
नकली गुस्सा झिलवाने का
मुश्किल में साथ निभाने का
मार पीट कर आने का
आपस में प्यार बढ़ाने का
रातों को साथ जगाने का
बैठ छत पर बतियाने का
और राज़ तेरे मुस्कुराने का
पल दो पल का साथ नहीं
"दोस्ती" एक रिश्ता है
उम्र भर साथ निभाने का

ऐसे कमीने दोस्तों को मेरे हृदयतल से मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ....

शनिवार, अगस्त 03, 2013

इंतज़ार उसका मुझे
















वो कहते हैं इश्क नहीं
होता पहली नज़र में
मैंने जिस से भी किया
आज भी निभा रहा हूँ

सुलगते जो दिल में
जज़्बात रहते हैं मेरे
आज लिखकर उन्हें
दिलसे बतला रहा हूँ

वो आया था नज़रों में
फिर दिल को भा गया
एक निगाह डाल कर
मुझे अपना बना गया

रंग ऐसा चढ़ा उसका
छुड़ाए छुट न सका
बाद मुददतों के भी
नाम मिट न सका

पतंगा बन कर रहा
आग में जलता रहा
बरसों 'निर्जन' यूँ ही
बस पिघलता रहा

इंतज़ार उसका मुझे
आज भी है ऐ दोस्त
उम्रभर इश्क को मेरे
जो बैठा परखता रहा

गुरुवार, अगस्त 01, 2013

लोगों की जान बचाएं














चम्मच चमचा जोड़, पार्टी लई बनाये
बन नेताजी अब, तेवर हैं दिखलाये
तेवर हैं दिखलाये, छुरी, कांटे भी है
जनता का लें ट्रस्ट, देते धोखा ही हैं

बैठ सवारी कार की, मारुती में आये
शुरुवात में पार्टी, कंगाली दिखलाये
कंगाली दिखलाये, मंशा स्वार्थी इनकी
ज्योही नकदी पाए, आ गई हौंडा सिटी

कहे वचन पुरजोर, करेंगे ये भी वो भी
करेका आया वक़्त, दिखाए ठेंगा ये भी
दिखाए ठेंगा ये भी, थे बड़े ही कपटी
तुरंत उछल बैठे, कुर्सी झट से झपटी

गलत नीति अपनाये, करते मनमानी
प्रत्याशी के रूप में, खड़े सेठ सेठानी
खड़े सेठ सेठानी, खीसा इनका भारी
कार्यकर्ता हैं त्रस्त, आई ये नई बीमारी

बीमारी दूर करे की, दवा जो बतलाई  
नेता हुए रुष्ट सबको, आँख दिखलाई
आँख दिखलाई, अहं की हुई लड़ाई
कार्यकर्ताओं से अपने, मुंह की खाई

गए स्वराजी भिड़, देखा न आगे पीछे
अब देखो नेताजी, आते हैं कब नीचे
आते हैं कब नीचे, गलत नीति दुखदाई
कोई तो समझाए, अक्ल क्या भैंस चराई

पार्टी का नुक्सान, बचना अब मुश्किल
छवि हो रही ख़राब, गिरेगी तिल तिल
गिरेगी तिल तिल, आओ सब मिल जाएं
ऐसे भ्रष्ट नेता से, लोगों की जान बचाएं

डाले नहीं हथियार, लड़ेंगे मिलकर
नेताजी मांगेगे माफ़ी, आगे चलकर
आगे चलकर, आएगा मोड़ एक ऐसा
तब नेताजी पाएंगे, जब जैसे को तैसा 

रविवार, जुलाई 28, 2013

दर्द और मैं

















दिल के दर्द क्यों दिखलाऊं
दिल की बातें क्यों बतलाऊं
दिल को अपने मैं समझाऊं
जीवन में बस चलता जाऊं
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दर्द मेरा बस मेरा ही है
दर्द तेरा बस मेरा भी है
दर्द से बनते रिश्तों में
एहसास बड़ा गहरा भी है
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खुशियाँ मेरी जब दी हैं
दुआएं दिल से तब ली हैं
ज़िन्दगी मेरी सब की है
हंसी लबों पर अब भी हैं
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रात काली थी चली गई
सुबह सुहानी दिखी नही
किस्मत का ये देखो ज़ोर
सन्नाटे में सुनता हूँ शोर
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बातें उनसे होती हैं कई
दिल फिर भी मिलते नहीं
बातें बस बातें ही रहती हैं
ख़ामोशी ही सच कहती हैं
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परदे के पीछे वो चुप है
परदे के आगे मैं चुप हूँ
आखीर क्यों वो चुप है
आखीर क्यों मैं चुप हूँ
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धोखा कोई देता नही
धोखा कोई खाता नही
सब किस्मत का खेला है
दर्द ही बस अकेला है
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सोमवार, जुलाई 22, 2013

स्वराज की मशाल





















मशाल लिए हाथ में 
हर एक खड़ा है 
ये आम आदमी है 
न छोटा है न बड़ा है 
हल्का ही सही 
तमाचा तो लगा है 
चमचों की मुहीम पर 
एक सांचा तो कसा है 
मान लो गर गलती 
तो छोड़ देंगे हम 
जो करेंगे चापलूसी 
उन्हें तोड़ देंगे हम 
'स्वराज' है 
हक हमारा 
इसे ला कर रहेंगे 
अपने विचारों को
अब खुलकर कहेंगे
दिलों में अपने 
जोश अब 
कम होने न पाए 
आओ सब मिलकर 
अब एक हो जाएँ 
आवाज़ सबके 
दिल से 'निर्जन' 
उठती है यही
स्वराज है 
स्वराज है 
हाँ स्वराज है यही

गुरुवार, जुलाई 18, 2013

यहाँ दिल अब पत्थर हैं




















व्यक्ति विशेष यहाँ ऐसे भी हैं
जिनमें शेष अब प्राण नहीं
विचारों से निष्प्राण हैं जो
उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं

कुछ लोग यहाँ ऐसे भी है
जो दोस्त बनकर डसते हैं
मुंह देखे मीठी बातें कर
पीठ पीछे से हँसते हैं

बातें करते हैं बड़ी बड़ी
कलम कागज़ पर घिसते हैं
पर शब्दों में वज़न नहीं
कोरी बातें ही लिखते हैं

कलयुग है यह वाजिब है
भरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं

तू निरा मलंग है 'निर्जन'
ना जाने नफा नुक्सान है क्या
बस दिल से दोस्त बनाकर तू
क्यों खाता है धोखे ये बता?

ख़ामोशी है वीरानों सी
दिल में मगर विश्वास यही
एक दिन तो दोस्त मिलेगा वो
दिल जिसका बेजान नहीं 

रविवार, जुलाई 14, 2013

ऐसे हैं हम





















आदत में हम अपनी
स्वराज ले भिड़ते हैं
ऐसे स्वाराजी है हम

खून में हम अपने
गर्मी ले बढ़ते हैं
ऐसे जोशीले हैं हम

बदल सके जो हमको
ज़माना नहीं बना वो
ऐसे हठीले हैं हम

आसमानों में परिंदों
से आजाद उड़ते हैं
फौलादी हवाओं को
ले साथ फिरते हैं
गहराई सागरों की
मापते फिरते हैं
दोस्त हो या दुश्मन
गर्मजोशी से मिलते हैं

आँखों में हम अपनी
सपने ले जीते हैं
ऐसे मतवाले हैं हम

जिगर में हम अपने
आग ले जलते हैं
ऐसे लड़ाकू हैं हम

दिल में 'निर्जन' अपने
उम्मीद ले चलते हैं
ऐसे आशावादी हैं हम

गुरुवार, जुलाई 11, 2013

हंसी और ग़म



















होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
मुस्कान भी है, आँखे नम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
पास तो है, पर क्या दूरी कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
क्या व्हिस्की और क्या रम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कुछ चलता सा, कुछ कुछ थम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

सोमवार, जुलाई 08, 2013

'स्वराज' की हुंकार















अंतर्मन चीत्कार कर
बहिर्मन प्रतिकार कर
प्रघोष महाघोष कर
निनाद महानाद कर
नाद कर नाद कर
'स्वराज' का प्रणाद कर

साम, दाम, दण्ड, भेद
ह्रदय में रह न जाये खेद
भुलाकर समस्त मतभेद
सीना दुश्मनों का छेद
प्रहार कर प्रहार कर
'स्वराज' की दहाड़ कर

मुल्क अब भी गुलाम है
चाटुकारी आम है
काट चमचो का सर
धरती को स्वाधीन कर
उद्घोष कर उद्घोष कर
'स्वराज' की हुंकार भर

कदम रुकेंगे नहीं
कदम डिगेंगे नहीं
अटल रहे अडिग रहे
सर उठा कर कहे
बढ़ चले बढ़ चले
'स्वराज' पथ पर चढ़े

रणफेरी की ललकार है
मच रहा हाहाकार है
रावणों की फ़ौज है
भक्षकों की मौज है
मार कर मार कर
'स्वराज' का वार कर

शनिवार, जुलाई 06, 2013

ख़ुशी और सुख

















ख़ुशी और सुख के
अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको 
वहां ठिकाने 
जहाँ तेरा ही 
बस डेरा हो 
जहाँ आनंद ने 
घेरा हो 
तेरे उस 
अथाह समुन्द्र में
क्या मैं 
डूब ना जाऊंगा 
उबरने की 
कोई जगह ना हो 
बस मुस्कानों में 
डूबता जाऊंगा  
ले चल मुझे 
एक अनोखे जहाँ में 
कपट, लोभ, नफरत से दूर 
जहाँ तू भी अकेला है 
यहाँ मैं भी अकेला हूँ 
'निर्जन' मीत तू बन ऐसे 
जैसे सागर में फेना है 
ओ मेरे सुख
बस इस दिल में 
एक तेरा ही बसेरा है 
जीवन दुःख से मुक्त हो 
आत्मा बंधन से रिक्त हो 
एक ऐसे खुशहाल संसार में 
जहाँ सिर्फ खुशियों का डेरा हो 
ओ सुख के अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको वहां ठिकाने

शुक्रवार, जुलाई 05, 2013

एक मुलाकत 'सच्चे बादशाह' के साथ

















अभी हाल ही में अमृतसर जाने का अवसर प्राप्त हुआ | अगर दुसरे शब्दों में बयां करूँ तो अचानक ही बैठे बैठे 'दरबार साहब- हरमिंदर साहिब' से बुलावा आ गया | तो बस उठे और चल पड़े कदम 'वाहे गुरु' को सीस नावाने | 'दरबार साहब' के समक्ष अपने को जब खड़ा पाया तो एह्साह हुआ के जीवन में सब कुछ कितना छोटा है, बेमानी है और मिथ्या है | कुछ एक ऐसी परिस्थितियां जिनमे इंसान अपने को कमज़ोर महसूस करने लगता है, हालातों का गुलाम होने लगता है और उस पर एक नकारात्मक सोच काबिज़ होने लगती है ये सब 'हुज़ूर साहब' के सामने कुछ भी नहीं हैं | उनके दर्शन करते ही एक नई स्फूर्ति, नया जोश, नई सोच, नया विश्वास, नई उमंग, नए विचार और जीवन संतुलन के प्रति नया दार्शनिक नजरिया उनके आशीर्वाद से आपके समक्ष दिव्यज्योति बन कर आपके आसपास के वातावरण को प्रकाशित करता है और जीवन जीने की नई शक्ति प्रदान करता है | 'सच्चे बादशाह' के दरबार के कोई कभी खाली हाथ नहीं जाता | मैंने भी अपने जीवन के कुछ क्षण उनके साथ वार्तालाप करने में और 'श्री गुरु ग्रन्थ साहिब' के दर्शन करने में व्यतीत किये और उनका जो जवाब मुझे मिला वो मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | मुझे लगा उन्होंने मेरे सवालों के जवाब कुछ इस प्रकार से दिए : 

पुत्र 
अपनी भटकन 
मुझे 
क़र्ज़ रूप में 
ही दे दो 
अपने 
मन मस्तिष्क 
का वो शून्य 
जिसमें तुम खो कर 
अपने आप को 
अस्तित्वहीन सा 
पाते हो 
जीवन की एक
गौरव भरी 
सजीव शक्ति 
उस क़र्ज़ के बदले 
मैं तुम्हे देता हूँ 
जिस को 
स्वीकारने पर 
तुम स्वयं 
एक नई दिशा 
बनाओगे 
चेतना स्फूर्ति
कर्म भरा जीवन 
तुम पाओगे 
एक निश्चित धरातल 
जिसमें भटकन का 
कोई स्थान नहीं होगा 
सिर्फ
अथाह कर्म का सागर 
यश और 
समृद्धि का एक रत्न 
उज्जवल आकाश 
निर्मल धारा
सूर्या का तेज 
चन्द्र की शीतलता 
तब तुम्हारा मेरा ऋण
पूरा होगा 
एक कुशल 
व्यापारी की भांति 
हम एक दुसरे के 
सच्चे मित्र होंगे

बस इतना सा कहा उन्होंने मुझसे और मैं माथा टेक कर उनका शुक्रिया अदा कर मुस्कराता हुआ उनसे मिलकर प्रसादी और लंगर  ग्रहण कर वापस चला आया | 

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फ़तेह | जो बोले सो निहाल 'सत श्री आकाल' | 

जैसे गुरु साहब ने मेरे ऊपर मेहर रखी वैसे ही सभी पर कृपा करते हैं | 

शनिवार, जून 29, 2013

यह भारत है देश मेरा



यह भारत है देश मेरा
इस देश के लोग निराले हैं
कुछ मरने मिटने वाले हैं
कुछ करते घोटाले हैं

कुछ देश के भक्त यहाँ
कुछ के ठाठ निराले हैं
कुछ नेता के चमचे हैं
कुछ बाबर के साले हैं

जिहादी गुंडे कितने
देखो दाढ़ी वाले हैं
गंगा के घाट पे बैठे हैं
जितने कंठी वाले हैं

झुकते हैं कुछ काबे पर
कुछ मंदिर में जाते हैं
इंसानियत क्या होती है
ये इसका पता न पाते हैं

मैं करता बात 'स्वराज' की हूँ
इन सबमें सबसे काला हूँ
मैं 'निर्जन' भारत माता की
पावन मिटटी का पाला हूँ

यह भारत है देश मेरा...

'स्वराज' लिखूंगा












कलम उठा दीवारों पर, 'स्वराज' लिखूंगा
अपने दिल से उठती हर, आवाज़ लिखूंगा

मशाल उठा हाथों में, धर्म का ज्ञान कहूँगा
अपने शब्दों से क्रांति का, मान कहूँगा

बातें न कर के, अब बस मैं कर्म करूँगा
राष्ट्र-हित में सही है जो, वह धर्म करूँगा

गीता का पाठ, सिखाता है देश पर मिटना
भिड़ना दुश्मन से, और सर काट कर लड़ना  
 
अब न बैठो ठूंठ, समय मत और गंवाओ
युद्ध करो जवानों, जंग का बिगुल बजाओ

गर्म खून में जोश है कितना, कितनी है रवानी
'निर्जन' हो जा तयार, भारत की है लाज बचानी

नमाज़ में वो थी















नमाज़ में वो थी, पर ऐसा लगा कि
दुआ हमारी, कबूल हो गई
सजदे में वो थी, पर ऐसा लगा कि
खुदा हमारी, वो रसूल हो गई
आयतों में वो थी, पर ऐसा लगा कि
ज़िन्दगी हमारी, नूर हो गई
तज्बी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
मुख़्लिस हमारी, हबीब हो गई
मदीने में वो थी, पर ऐसा लगा कि
तसव्वुफ़ हमारी, मादूम हो गई
ज़िन्दगी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
'निर्जन' ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से
महरूम हो गई, महरूम हो गई

मुख़्लिस - दिल की साफ
हबीब - दोस्त
तसव्वुफ़ - भक्ति
मादूम - धुंदली हो गई 

गुरुवार, जून 27, 2013

स्वराज या गुंडाराज – मर्ज़ी है आपकी क्योंकि देश है आपका

अपनी बात को मैं इन दो पंक्तियों के माध्यम से आरम्भ कर रहा हूँ 

कुछ ज़बानों पर हैं ताले, कुछ तलवों में हैं छाले
पर कहते हैं कहने वाले, के स्वराज चल रहा है 
किस हाल से हमारा यह समाज गुज़र रहा है ? 
'सब चलता है' के नारे पर स्वराज जल रहा है

स्वराज की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज भारत की पीड़ित और त्रस्त आम जनता देश में बदलाव की आस लगाये मुंह ताकती बैठी है | हिंसा, गरीबी, भुखमरी, शोषण, महंगाई, बेरोज़गारी, उंच नीच, नक्सलवाद, आर्थिक विषमता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं की आग में जनता फतिंगों की तरह भुन रही है और हमारे लोकशाही पहलवान उन्हें दिन-बा-दिन और ज्यादा गर्म करते जा रहे हैं | 

आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और जनक माननीय श्री अरविन्द कजरीवाल द्वारा दिखाई गई स्वराज की तस्वीर ने लोगों के दिलों में एक क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित की थी | उनके अनुसार नए स्वराजगर्भी भारत में भ्रष्टाचारियों की खिलाफ जेल का प्रावधान होगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल होगा, चोर बाजारियों और बेईमानों की संपत्ति ज़ब्त होगी, रिश्वतखोरों को नौकरियों से बर्ख़ास्त किया जायेगा, कोर्ट में केस आने पर फटाफट सुनवाई होगी और जल्द से जल्द फैसलें दिए जायेंगे, पुलिसिया गुंडाराज पर अंकुश कसा जायेगा, व्यापारियों को एक सम्मान जनक स्थान दिया जायेगा, महिलाओं की रक्षा और सुरक्षा सर्वोपरि होगी और भी न जाने ऐसी कितनी ही बातें जो जनता का दिल बहलाने को ग़ालिब-ए-ख्याल बन खुशियों का एक सब्ज़बाग़ बनाने में सफल रहीं | आम आदमी के भीतर एक निश्चय, विश्वास और आत्मसम्मान ने जन्म लिया और लोग स्वराज के इस सपने से जुड़ते चले गए |

उधर दूसरी ओर स्वराज के अंतर्गत पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज में कहा गया है के - 

- देश की राजनीति को बदला जायेगा आम जनता को अपने साथ जोड़ा जायेगा 
- भ्रष्टाचार को दूर करने का नियंत्रण सीधा जनता के हाथ में होगा 
- सामाजिक भेद भाव, छुआ छूत और अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा 
- धर्म के नाम पर समाज नहीं बंटने दिया जायेगा 
- आर्थिक और सामाजिक नीतियों में बदलाव होगा 
- हर एक विषय में जनता की भागीदारी को महत्त्व दिया जायेगा 
- बेहतरीन स्वस्थ्य एवं शिक्षा योजनायें बनाई जायेंगी 
- जनता को ख़ारिज करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिजेक्ट )
- जनता को मन्सूख करने का अधिकार होगा ( राईट तो रिकॉल )
- जनता को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार होगा ( राईट तो स्पीक )

आम आदमी पार्टी के दूरदर्शिता दस्तावेज का सबसे अभिन्न कदम है प्रत्याशीयों की चुनावी प्रक्रिया जिसमें कहा गया है के चुनाव में खड़ा होने वाला उम्मीदवार - आम जनता में से ( फ्रॉम दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के द्वारा ( बाय दा कॉमन पीपल ) - आम जनता के साथ (विथ दा कॉमन पीपल) की पद्दति के द्वारा चयनित होगा | यहीं पर पार्टी और आम आदमी की जीत होती है | 

परन्तु दुर्भाग्यवश पिछले कुछ समय से पार्टी की कुछ फैसलों और कार्यप्रणाली को लेकर और स्वराज के मुखौटे को लेकर अनेक सवाल खड़े होते जा रहे हैं | पार्टी की कारगुजारियों और हुक्मराना रवैये को लेकर आम आदमी के दिल में पार्टी और स्वराज के प्रति सवालिया निशान लगते जा रहे हैं | जैसे - 

- क्या 'आप' भी राजनीति और राजनेताओं का शिकार हो रही है ?
- क्या 'आप' का संभावित और तथाकथित स्वराजनामा अपने लक्ष्य से भटक रहा है ?
- क्या 'आप' अपनी दूरदर्शिता का स्वयं क़त्ल करने में जुट गई है ?
- क्या 'आप' को साख चाहियें या चुनावी राख चाहियें ?
- क्या 'आप' बिकाऊ उम्मीदवारों को अपने स्तम्भ बनाकर खड़ा करना चाहती है ?
- क्या 'आप' को जीताऊ, नामी, और सरनामी उम्मीदवारों की ज़रुरत है ?
- क्या 'आप' की नीतियां और आदर्श बेमानी हो रहे हैं ?
- क्या 'आप' में आम जनता का महत्त्व कम हो रहा है ?
- आज के परिवेश में 'आप' में आम आदमी के लिए स्थान कहाँ है ? 
- क्या 'आप' आज भी आम आदमी की आवाज़ है ?
- क्या 'आप' को कुछ एक चंद लोग मिलकर चलने लगे हैं ?
- क्या 'आप' में सरगना और गुटबाज़ी हो रही है ?
- क्या 'आप' में भाई भतीजावाद जन्म ले रहा है ? 
- क्या 'आप' में कार्यकर्ताओं की अहमियत कम हो रही है ? 
- क्या 'आप' में आला कमान वाली स्तिथि बन्ने लगी है ?
- क्या 'आप' भेड़ियों और भेड़चाल के दवाब में आ रही है ?
- क्या 'आप' अपनी छवि के साथ समझौता करने पर आमादा है ?

मेरा इन सवालों को उठाने का उद्देश्य भी यही है के यह सवाल आप तक पहुंचे और आप अपने स्वीकारोक्ति / सुझाव / टिप्पणियां हमारे इस अभियान तक पहुचाएं जिससे हम स्वराज की एक साकारात्मक छवि रखने में कायम रह सकें | इस लेख के ज़रिये मैं सभी से पुरजोर अनुरोध करता हूँ के ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे इस आन्दोलन से जुड़ें और अपना वक्तव्य हम तक पहुंचाएं और आज एक आम नागरिक के नज़रिए से हमें बतलाएं के आपको कुछ रसूकदारों की मनमानी का राज चाहियें, आलाकमान और उनके पप्पूओं की सांठ-गाँठ चाहियें, गुंडाराज चाहियें या फिर स्वराज चाहियें? चुनना है आपको क्योंकि यह ज़िम्मेदारी है आम आदमी की क्योंकि देश है आपका और भविष्य भी है आपका | इसे बिगड़ना और बनाना दोनों जनता के हाथों में है | इसलिए खुलकर सामने आयें और अपने विचार प्रकट करें |

आखिर में अपनी बात को विराम देने के लिए मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा के 

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है 
देखना है जोर कितना, बाज़ू-ए-क़तील में है 
वादा-ए-स्वराज अब, रह न जाए बातों में 
खून तो खौला हुआ, अब सभी के दिल में है 
वक़्त आने दो बता देंगे, तुम्हे ए अहमकों 
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है

जय स्वराज | जय भारत माता | जय हिंदी

शनिवार, जून 22, 2013

आवाज़ बुलंद अब करना है





















कमाल है धमाल है
लोकतंत्र बेमिसाल है
जनता का बुरा हाल है
ये सरकारी चाल है

भूखे गरीब मर रहे
धनवान तिजोरी भर रहे
महंगाई से लोग डर रहे
पप्पू मज़े हैं कर रहे

क़ुदरत भी आज ख़िलाफ़ है
कुकर्मों का अभिश्राप है
विपदा जो सर पर आई है
सरकार ही इसको लाई है

गिद्ध और बाज़ वो बन रहे
आसमान से दौरा कर रहे
लाशों के मंज़र देख रहे
चील सी आँखे सेंक रहे

प्रशासन बदहाल है
चांडालों की ढाल है
ज़ुल्मों से बेज़ार है
आम जनता ज़ार-ज़ार है

कुछ करोड़ हैं खर्च रहे
दिखावा चमचे कर रहे
मरने वाले हैं मर रहे
वो विदेशों में ऐश कर रहे

सवाल मेरा बस इतना है
घुट घुट कब तक मरना है?
कब तक हमको डरना है?
आज समय है हमको लड़ना है

आवाज़ बुलंद अब करना है...
आवाज़ बुलंद अब करना है...

गुरुवार, जून 13, 2013

चाटुकारी और चाटुकार
















चाटुकारी बड़ी महामारी
एक चाटुकार सौ पर भारी

अमानवता धर्म है इनका
थूक चाटना कर्म है इनका

तलवे चांटे, चलाए दिमाग
जय जय चापलूस विभाग

देशभक्त अब साइड हो गए
चाटुकार ही गाइड हो गए

पानी जैसा रक्त हो गया
नेता का गुर्गा भक्त हो गया

खुले कभी न इनकी पोल
कर लें चाहें कितने झोल

महा लिजलिजे लोभी आप
कर लो कुछ भी नहीं है पाप

महकमों में है आपका राज
चाहे होवे या ना होवे काज

चिकनी चुपड़ी से सब राज़ी हैं
चमचागिरी सर्वप्रिय बाज़ी है

चमचे आज होनहार हो गए
भारत की सरकार हो गए 

शनिवार, जून 08, 2013

घुंघरू













आज एक 
मूक घुंघरू भी 
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ 
वो कहता है 
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के 
लिए नहीं है 
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है 
जो मुझे जानने की 
इच्छा रखता है 
जो मुक्ता का 
स्वर जानता है 
दर्द पहचानता है 
उच्च स्वर का 
यन्त्र अचानक 
मौन कैसे हुआ 
जिसने संसार को 
अनेक स्वर दिए 
पर, बदले में 
मिला एक 
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ 
उसने अपनी शांति में 
ईश्वर को सुना 
बस अब तक तो 
वो बजता था 
तब, सब सुनते थे 
पर आज 
ईश्वर का स्वर स्वयं 
बजना है 
वो मूक बना 
उस स्वर का 
आनंद लेता है 
इस लिए ईश्वर को 
पाने वाला ही 'निर्जन'
उस घुंघरू की 
ताल और लय
सुन पायेगा

गुरुवार, जून 06, 2013

हास्य दोहावली

लड़े नौजवान, हुए शहीद, खून बहा के मिली आज़ादी
युवा को ठेंगा दिखा बुद्धों ने कर ली कुर्सी से शादी
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घायल बिल्ली दूजी बिल्ली से, बोली यह बात
सुबह-सुबह एक नेता मेरा, रास्ता गया था काट
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दुबला बोला मोटे से, क्यों धक्का दे रहे आप
क्यू में खड़ा मोटा बोला, क्या सांस लेना भी है पाप
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युपीऐ का मतलब मैडम पूछी, पी.एम्. बोले बिलकुल साफ़
'यु' आप और 'पीऐ' मैं हूँ, सर्वत्र है मैडम आप
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पांच तारा की सुविधा, चाहियें सांसदों को आज
प्रश्न पूछने के पैसे मांगे, इनको ना आये लाज
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राजघाट पर कुत्ते दौड़े, हिंसक को मिला सम्मान
सत्य अहिंसा के दूत को, चांटा मार गया शैतान
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पांच तारा में कुत्ते ठहरे, देकर मूंछ पर ताव
मंत्री शंत्री लगे दुम हिलाने, देख गोरी चमड़ी का भाव
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चमन उजाड़ रहे हैं उल्लू, बाढ़ खा रही खेत
खादी ख़ाकी देश को लूटें, बना रक्षक का भेष
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रिश्वत लिए और जेल गए, दिए घूस गए छूट
हर विभाग में घोटाले हैं, लूट सके तो लूट
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चोर कहें सोना कहाँ, जल्दी से बतलाओ
जी घर खाली पड़ा, जहाँ सोना सो जाओ
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धर्म कथावाचक अब, बन गए धन्ना सेठ
चेले चेली संग रास रचे, लें लाखों की भेंट
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हिंदी का नमक खाकर, हिंदी का गिराते मान
हिंदी ही पहचान है, पर अंग्रेजी को करें सलाम
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ऐसी वाणी बोलिए, पत्थर भी थर्राये
सज्जन पुरुष देखकर, कुत्ता भी गुर्राये
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हँसना और हँसाना, है सबसे उम्दा काम
जो कंजूसी करे हंसने में, वो व्यक्ति पशु समान
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हंसने से रक्त बढ़े, रक्तचाप हो दूर
दिल दिमाग मज़बूत बनें, मत हो तू मजबूर
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दुःख की चिंता छोड़ दो, चिंता चिता सामान
चिंता रोगों की माता है, चिंता छोड़ो श्रीमान
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आज कर तो कल कर, कल करे तो परसों
जल्दी काम शैतान का, अभी जीना है बरसों
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मुन्नाभाई डाक्टरों से, भरा पड़ा है देश
न मर्ज़ रहे न रहे मरीज़, चढ़ा तो हत्थे केस
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अपने शिक्षित युवा, बेकार और निष्तेज़
मंत्री बन्ने को कोई भी, न डिग्री और न ऐज
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चुटकी,चुटकुले, चाटुकारी, चल रहा रीमिक्स का दौर
कविता, कवी, दोहे पर, अब देता कोई न गौर
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क़र्ज़ लकर खाइए, जब तक तन में प्राण
देने वाला रोता रहे, खुद मौज करें श्रीमान
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मंगलवार, जून 04, 2013

चाँद पूनम का

















चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा

रात चाँद की चांदनी में सिसकता बदल देखा
मैंने रात की आँखों से पिघलता काजल देखा

काजल सी रात में तेरी बातें करता रहा खुद से
गूंजते रहे अलफ़ाज़ तेरे जुदा हो गया मैं खुद से

घुमड़ आई यादों की घटा बदली बन दिल पर
भीगता रहा रात भर मैं अपने लब सिल कर

हौसला छीन लिया मुझसे ग़म-ए-जिंदगानी ने
ख़ाक कर दिया दिल जलाकर रात तूफानी ने

आबाद हो जायेगा 'निर्जन' फिर शायद मर कर
जो फकत देख लेती तू कजरारे नयनो से मुड़ के

चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा